रविवार, 23 मार्च 2014

नेताजी का यूं दुखी होना

Satire on the "Black day" in the history of parliament when lower house erupted in chaos over the bill to form Telangana state.

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

आज वे बहुत ही दुखी है। इतने दुखी कि सोफा भी उनके दुख में बड़ा भावुक है। वे जब-जब दुखी होते हैं, सोफा भी तब-तब दुखी हो जाता है। यह सोफा तबका है जब वे मंत्री हुआ करते थे और किसी विदेषी मेहमान ने उस समय उन्हें गिफट किया था।
सोफे का नेताजी से और नेताजी का सोफे से बड़ा आत्मीय लगाव रहा है। नेताजी देषहित में जब-जब भी दुखी होते हैं, इसी सोफे में धंसते हैं। और तब सोफा भी इतना दुखी हो जाता है कि नेताजी को पुचकारकर कहना पड़ता है- अब रुलाएगा क्या! आज फिर नेताजी दुखी है। पूरे लोकतंत्र पर कालिख पुत गई है। उन्होंने तय कर लिया है कि वे दो दिन तक सोफे पर बैठकर ही षोक मनाएंगे। वे सोफे से तभी उठते, जब कोई टीवी चैनल वाला आता या कोई प्राकृतिक आपदा आती, अन्यथा सारे काम वहीं से निपटा रहे हैं। आज उन्होंने मिर्च का भी बहिष्कार कर दिया है। इसलिए सुबह से उन्होंने सात-आठ बार केवल फलों का ज्यूस ही लिया है। बीच-बीच में थोड़े बहुत ड्राय फ्रूटृस जरूर ले लेते हैं। सेहत के लिए जरूरी है, क्योंकि कोई दुखी एक बार तो होना नही है। सेहत अच्छी होगी तो ही देषहित के मुद्दों पर दुख जता सकेंगे। खैर लंच तक आते-आते वे इस बात राजी हो गए कि केवल चिकन कबाब के उपर थोडी सी मिर्च बुरक लेंगे। आखिर, जो हुआ उसमें मिर्च का क्या दोष। नेताजी ऐसे ही रहमदिल हैं।
षाम हो गई है और नेताजी ऐसे ही दुख में गढ़े हुए हैं। दुख में ही उन्होंने लंच के बाद सोफे पर झपकी भी निकाल ली। नेताजी को इतना दुखी देखकर हमसे रहा नहीं गया। हम उनके बंगले पहंुचे और दो-टुक कह दिया, बहुत दुखी हो लिए। बयान जारी हो गया। टीवी पर बाइट चल गई। और कितना दुखी होंगे। दूसरों को भी दुखी होने का मौका दीजिए। आप ही दुखी होते रहेंगे तो बेचारे आपकी ही पार्टी के रामलालजी, ष्यामलालजी जैसे युवा नेता क्या करेंगे। इनकी हमेषा षिकायत रहती है कि आप इन्हें दुखी होने नहीं देते। खुद ही दुखी हो होते।
‘अरे, हमें तो कभी बताया नहीं इन लोगों ने।’ नेताजी ने आष्चर्यमिश्रित दुख जताया।
‘अब आपका लिहाज रखकर कुछ बोलते नहीं बेचारे।’
‘अरे, यह तो हमारी गलती है। हमें दूसरों का भी कुछ सोचना चाहिए था।’ नेताजी के कई दुख एक-दूसरे में गड्ड-मड्ड हो रहे हैंे।
‘खैर, उन्हें कह दो कि आज रात आठ बजे बाद से वे दुखी हो लें। हम पर्याप्त दुखी हो लिए हैं।’
हमने मन ही मन सोचा। नेताजी धन्य है। दुख की घड़ी में दूसरों का कितना ख्याल रखते हैं। एकदम त्याग की मूर्ति।
अपने वादे के अनुसार आठ बजते ही नेताजी सोफे से उठ गए। अपने दुख को भुलाने वे चैथे माले पर बने विषेष कक्ष में चले गए हैं। कोई कांच का गिलास टूटा है। नीचे तक आवाज आई है।

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