बुधवार, 26 मार्च 2014

लाखों हाथ से निकल गए

Funny satire on Dahej Greedy but hypocrites... 
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha
वे बड़े परेषान थे। एक तो जन्म कुंडली नहीं मिल रही थी और उपर से लड़के को मंगल अलग था। प्रस्ताव पर प्रस्ताव आ रहे हैं, 50 तोले सोने से लेकर लक्जरी कार तक। लेकिन मुई कुंडली मिले तो बात आगे बढ़े ना!
हमारे पड़ोस में ही एक पंडितजी रहते हैं। बड़े सेवाभावी हैं और चमत्कारी भी। ऐसा चमत्कार दिखाते कि एक झटके में मंगल को षुक्र में बदल देते। हमने उनसे कहा भी कि चलो पंडितजी से कुछ बात कर लेते हैं। कोई न कोई पारस्परिक हित का रास्ता निकल ही आएगा। लेकिन इस मामले में वे बड़े ईमानदार और भगवान से डरने वाले। उन्होंने कहा, ‘षरम करो जी, उपर वाले से कुछ तो डरो। हर मामले में लेन-देन ठीक नहीं।’ इसलिए पंडितजी से झूठी कंुडली बनवाने का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया। रोज घंटों पूजा-पाठ करने वाले। भला ऐसा अनाचार कर सकते हैं क्या!
इस बीच, दो-चार कुंडलियां मिल भी गईं, लेकिन किस्मत खराब। कोई 20 तोले से आगे बढ़ा ही नहीं। वाह भाई, ऐसे कैसे लड़का दे दें! एमबीए हैं, अच्छी-भली कंपनी मंे नौकरी करता है। ऐसा अन्याय नहीं कर सकते। सिद्धांत के पक्के हैं वे। कोई समझौता नहीं। लेकिन वे अब भी परेषान हैं। दमदार पार्टियां मिलतीं तो कुंडली नहीं मिलतीं और कुंडलियां मिलती तो पार्टियां पोची निकलतीं।
हमने सलाह दी किसी मेट्रामोनियल में विज्ञापन दे डालो। वे मान गए। विज्ञापन छपा, ‘30 वर्षीय सुंदर कंुंवारे लड़के के लिए वधु चाहिए। लड़का मांगलिक, लेकिन एमबीए हैं। कृपया सक्षम पार्टियां ही संपर्क करें। कंडीषन अप्लाई।’
विज्ञापन का जबरदस्त असर दिखा। कई पार्टियों ने संपर्क किया। कुछ इसलिए खारिज कर दी गईं क्योंकि गुण और ग्रह नहीं मिल रहे थे और जबरदस्ती मिलवाकर पाप तो अपने सिर पर ले नहीं सकते थे। कुछ पार्टियां इसलिए खारिज हो गई, क्योंकि उन पर कंडीषन अप्लाई नहीं हो रही थीं।
लेकिन भगवान इतना भी कठोर नहीं। एक रिष्ता आ ही गया। लड़की मांगलिक थी। कुंडली भी मिल रही थी और सबसे बड़ी बात कंडीषन भी अप्लाई हो रही थी। लड़की वाले सैद्धांतिक तौर पर 30 तोला सोना, दस लाख कैष और कार देने को राजी हो गए थे।
नियत समय पर मिलना तय हुआ ताकि आगे की बातें की जा सकें। वे डाइंग रूम में सपत्निक बैठे इंतजार कर रहे थे। घर की घंटी बजी। उनके चेहरे पर प्रसन्नता तैर गई। उन्हें लगा कि वे आ गए। उठकर दरवाजा खोला। यह क्या! सामने अपना ही सपूत खड़ा था, पीछे एक सुंदर सी कन्या। ‘पापा आषीर्वाद दीजिए, हमने षादी कर ली है, कोर्ट में!’
सपूत कपूत निकल गया था! अब भगवान को क्या जवाब देंगे। न कुंडली मिली, न ग्रह!... और लाखों हाथ से निकल गए सो अलग!

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