रविवार, 13 अप्रैल 2014

पप्पू एंड मम्मा

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 

पप्पू: मैंने बोल दिया है कि अगर सारे खिलाड़ी चाहेंगे तो मैं कप्तान बनने से पीछे नहीं हटूंगा। क्या वो मुझे सपोर्ट करेंगे?
मम्मा: क्यों नहीं करेंगे! आखिर हमारे नाना-परनाना की टीम है। हमारी ननौती और बपौती दोनों है। झक मारकर करेंगे।
पप्पू: तो क्या मैं कप्तान बन जाऊं?
मम्मा: नहीं, नहीं।
पप्पू: पर मैं कप्तान क्यों नहीं बन सकता?
मम्मा: बोल दिया एक बार नहीं तो नहीं। देख, तू अगर कप्तान बनेगा तो तूझे कुछ करना पड़ेगा। बाॅलिंग आती नहीं। बैटिंग करेगा तो फेंकूं लोग ऐसे-ऐसे बाउंसर फेंकते हैं कि संभालना मुश्किल हो जाएगा।
पप्पू: तो मैं क्या करूं?
मम्मा: नाॅन प्लेइंग कैप्टन।
पप्पू: यह क्या होता है?
मम्मा: मैदान से बाहर रहकर कप्तानी करो। बैटिंग-बाॅलिंग करनी नहीं, बस फील्डिंग जमाते रहो। सामने वाला बाॅल पीटे तो वे जाने जो मैदान में खेल रहे हैं। बाउंसर भी उन्हें ही झेलने हैं। जीते तो कप हमारा, हारे तो हार उनकी।
पप्पू: (ताली बजाते हुए) मम्मा, यू आॅर द ग्रेट।
मम्मा: वो तो हूं ही, इसीलिए तो इतनी ‘असरदार’ हूं।
पप्पू: मम्मा, यह संजय बारू कौन हैं?
मम्मा: जितना बोलूं, उतना ही बोल!
पप्पू: यस माॅम।

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