शुक्रवार, 20 जून 2014

हरिशंकर परसाई का व्यंग्य - विज्ञापन में बिकती नारी

हरिशंकर परसाई/ Harishankar Parsai

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मैंने तय किया पंखा खरीदा जाए। अखबार में पंखों के विज्ञापन देखे। हर कंपनी के पंखे सामने स्त्री है। एक पंखे से उसकी साड़ी उड़ रही है और दूसरे से उसके केश। एक विज्ञापन में तो सुंदरी पंखे के फलक पर ही बैठी हुई है। मुझे डर लगा, कहीं किसी ने स्विच दबा दिया तो? ऐसी बदमाशियां आजकल होती रहती हैं। मैं सुंदरी के लिए चिंतित हुआ। पिछले साल मेरा एक महीना ऐसी ही चिंता में कटा था। एक पत्रिका ने मुखपृष्ठ सजाने के लिए चित्र छापा था - तीसरी मंजिल पर स्त्री पैर लटकाए बैठी है। मैं परेशान हो गया। रात को एकाएक नींद खुल जाती और मैं सोचता पता नहीं उसका क्या हुआ! कहीं गिर तो नहीं पड़ी। अगला अंक जब आया और मैंने देखा कि लड़की उतर गई है, तब चैन पड़ा।
सोचा, यही पंखा खरीद लूं। स्त्री को उतारकर घर पहुंचा दूं और कहूं- बहनजी, इस तरह पंखे पर नहीं बैठा करते। पंखे तो बिक ही जाएंगे। तुम उनके लिए जान जोखिम में क्यों डालती हो?
मैंने बहुत पंखे देखे। किसी के आगे कोई पुरुष बैठा हुआ हवा नहीं ले रहा है। लेकिन कमोबेश हर चीज का यही हाल है। टूथपेस्ट के इतने विज्ञापन हैं, मगर हर एक में स्त्री ही 'उजले दांत' दिखा रही है। एक भी ऐसा मंजन बाजार में नहीं है जिससे पुरुष के दांत साफ हो जाएं। या कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस देश का आदमी मुंह साफ करता ही नहीं। यह सोचकर बड़ी घिन आई कि ऐसे लोगों के बीच में रहता हूं, जो मुंह भी साफ नहीं करते।
इस विज्ञापन में लड़के ने एक खास मोटरसाइकिल खरीद ली है। पास ही लड़की खड़ी है। बड़े प्रेम से उसे देखकर मुस्करा रही है। अगर लड़का दूसरी कंपनी की साइकिल खरीद लेता, तो लड़की उससे कहती - हटो, हम तुमसे नहीं बोलते। तुमने अमुक मोटरसाइकिल नहीं खरीदी।
ये चार-पांच सुंदरियां उस युवक की तरफ एकटक देख रही हैं।
-सुंदरियों, तुम उस युवक पर क्यों मुग्ध हो? वह सुंदर है, इसलिए?
-नहीं, वह अमुक मिल का कपड़ा पहने है, इसलिए। वह किसी दूसरी मिल का कपड़ा पहन ले, तो हम उसकी तरफ देखेंगी भी नहीं। हम मिल की तरफ से मुग्ध होने की ड्यूटी पर हैं?
सुंदरी का कोई भरोसा नहीं। अगर कोई सुंदरी पुरुष से लिपट जाए तो यह सोचना भ्रम है कि वह तुमसे लिपट रही है। शायद वह रामप्रसाद मिल्स के सूट के कपड़े से लिपट रही है। अगर कोई सुंदरी तुम्हारे पांवों की तरफ देख रही है, तो वह 'सतयुगी समर्पिता' नारी नहीं है। वह तुम्हारे पांवों में पड़े धर्मपाल शू कंपनी के जूते पर मुग्ध है। सुंदरी आंखों में देखे तो जरूरी नहीं कि वह आंख मिला रही है। वह शायद 'नेशनल ऑप्टिशियन्स' के चश्मे से आंख मिला रही है। प्रेम व सौंदर्य का सारा स्टॉक कंपनियों ने खरीद लिया है। अब ये उन्हीं की मारफत मिल सकते हैं।

Short version of विज्ञापन में बिकती नारी 

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