शुक्रवार, 20 जून 2014

शरद जोशी का व्यंग्य - भूतपूर्व प्रेमिकाओं को पत्र

शरद जोशी/ Sharad Joshi

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देवी, माता या बहन,
अब मात्र यही संबोधन बचे हैं, जिनसे इस देश में एक पुराना प्रेमी अपनी अतीत की प्रेमिकाओं को पुकार सकता है। वे सब कोमल मीठे शब्द, जिनका उपयोग मैं प्रति मिनट दस की रफ्तार से नदी किनारों और पार्क की बेंचों पर तुम्हारे लिए करता था, तुम्हारे विवाह की शहनाइयों के साथ हवा हो गए। अब मैं तुम्हें भाषण देने वाले की दूरी से माता और बहन कहकर आवाज दे सकता हूं। वक्त के गोरखनाथ ने मुझे भरथरी बना दिया और तुम्हें माता पिंगला। मैं अपनी राह लगा और तुम अपनी। आत्महत्या ना तुमने की, ना मैंने। मेरे प्रेमपत्रों को चूल्हे में झोंक तुमने अपने पति के लिए चाय बनाई और मैंने पत्रों की इबारतें कहानियों में उपयोग कर पारिश्रमिक लूटा। 'साथ मरेंगे, साथ जिएंगे' के वे वचन जो हमने एक दूसरे को दिए थे, किसी राजनीतिक पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वायदों की तरह खुद हमने भुला दिए। वे तीर जिनसे दिल बिंधे थे, वक्त के सर्जन ने निहायत खूबसूरती से ऑपरेशन कर निकाल दिए और तुम्हारी आंखें, जो अपने जमाने में तीरों का कारखाना रही थीं, अब शान्त और बुझी हुई रहने लगीं, मानो उनका लाइसेंस छिन गया।
मेरी एक्स-प्राणेश्वरी कुन्तला (मैं तुम्हारा वास्तविक नाम शकुन्तला नहीं लिखता क्योंकि तुम्हारे उस झक्की पति को पता लग जाएगा), तुम मेरी जिंदगी में तब आई थी, जब मुझे 'प्रेम' शब्द समझने के लिए डिक्शनरी टटोलनी पड़ती थी। पत्र लेखन में बतौर एक्सरसाइज किया करता था। घर की देहरी पर बैठा मैं मुगल साम्राज्य के पतन के कारण रटता और तुम सामने नल पर घड़े भरतीं या रस्सिया कूदतीं। मानती हो कि मैंने अपनी प्रतिभा के बल पर तुम्हें आखें मिलाना और लजाना सिखाया। मैंने तुम्हें ज्योमैट्री सिखाते वक्त बताया था कि यदि दो त्रिभुजों की भुजाएं बराबर हों तो कोण भी बराबर रहते हैं और सिद्ध भी कर दिखाया था। पर वह गलत था। बाद में तुम्हारे पिताजी ने मुझे समझाया कि अगर दहेज बराबर हो तो कोण भी बराबर हो जाते हैं और भुजाएं भी बराबर हो जाती हैं। मैं अपने बिन्दु पर परपेण्डिकुलर खड़ा तुम्हें ताकता रहा और तुम आग के आसपास गोला बना चजुर्भज हो गईं।
कुन्तला, मुझे तुम अपने बच्चों की ट्यूशन पर क्यों नहीं लगा लेतीं? तुम तीनों बच्चों के लिए अस्सी रुपए उस मास्टर को देती हो। मैं तुम्हारे बच्चे पढ़ा दूंगा, मुझे दिया करो वे रुपए। सच कहता हूं कि एक शान्त मास्टर की तरह घर आऊंगा। प्रेम की तीव्रता से अधिक जरूरी है अस्सी की आमदनी निरंतर बनी रहे। तुम मेरी प्रेम की पीड़ा दूर नहीं कर सकीं, तुम मेरी गरीबी की पीड़ा दूर कर सकती हो।


Short version of भूतपूर्व प्रेमिकाओं को पत्र 

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