रविवार, 21 जून 2020

इस पति ने लिखकर दिया है कि वह भविष्य में सपने में भी ‘बायकॉट’ शब्द का नाम तक न लेगा, क्यों? पढ़ें यहां…




By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क। हमेशा भावनाओं में बहना अच्छी बात नहीं है। ग्राउंड रिएलिटीज देखना भी जरूरी है। लेकिन यहां के एक पति ने इसका ध्यान नहीं रखा और बायकॉट की राजनीति का शिकार हो गया।

यह घटना भोपाल के रानीगंज क्षेत्र में रविवार की सुबह घटित हुई। पति के एक जलकुकड़े पड़ोसी सूत्र की मानें तो इस क्षेत्र के एक मध्यमवर्गीय घर में रहने वाले एक मासूम पति ने टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही ‘बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट्स’ की रौ में बहकर खुलेआम धमकी भरे अंदाज में बायकॉट्स की एक भरी-पूरी सूची अपनी पत्नी को थमा दी। इस सूची में पति ने बाकायदा तीन चीजों का बायकॉट करने की धमकी दी थी – बायकॉट चाय मेकिंग, बायकॉट लौकी एंड बायकॉट कपड़े सूखाना।

उस जलकुकड़े सूत्र (जो एक अन्य महिला का पति ही है) ने बड़े ही शान से बताया , “उसकी पत्नी ने वह सूची ली। उस पर तिरछी नजर डाली और फिर फाड़ दी। उसके बाद, अहा, कसम से, मजा आ गया। पूछो ही मत …।”

फिर क्या हुआ? इसके जवाब में जलकुकड़े सूत्र ने कहा- “मैंने खिड़की से हटने में ही भलाई समझी। ज्यादा देर तक तमाशा देखने में रिस्क था। पकड़ा जाता तो! मेरी भी पत्नी है घर में! आपका क्या!!”

उस जलकुकड़े ने दावा किया कि उस पति ने बाकायदा यह भी लिखकर दिया है कि वह भविष्य में बायकॉट शब्द के बारे में सपने में भी नहीं सोचेगा। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। इस बीच, उस पति की इस ओछी हरकत की अन्य सभी पतियों ने अपनी-अपनी पत्नियों के समक्ष कड़े शब्दों में निंदा की है।

गौरतलब है कि यह पति पहले भी ‘बायकॉट चीनी प्रोडक्ट्स’ जैसे कैम्पेन के दौरान आज जैसे हल्के-फुल्के समाज विरोधी कृत्यों में शामिल रहा था। लेकिन तब लोगों ने उसका बचपना समझकर उसे इग्नोर कर दिया था। लेकिन क्या पता था कि यह आदमी भविष्य में इतना बड़ा समाज विरोधी कदम उठा लेगा।

(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। कोई भी पति इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकता।)

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शनिवार, 20 जून 2020

Not Funny : चाइनीज प्रोडक्ट्स के बायकॉट के इस दौर में हम जय श्री भैरू भवानी वाले से क्या सीख सकते हैं?



By Jayjeet

हम इस सवाल का जवाब जानें, उससे पहले एक नजर इस ठेले पर डाल लेने का आग्रह करता हूं। मंचुरियन, चाऊमिन से लेकर अमेरिकन चोप्सी तक यहां सबकुछ बिक रहा है। और यह भी पक्की बात है कि इन तमाम चीजों में शिमला मिर्च, सोयाबड़ी से लेकर पत्तागोभी जैसे चीजें होंगी। सॉसेस के नाम पर होगा तीखी मिर्च का पेस्ट…।

वापस सवाल पर आते हैं। जय श्री भैरू भवानी वाले से या भारत में चाऊमिन/मंचुरियन बेचने वालों से हम क्या सीखें? यही कि कैसे हमने शुद्ध चाइनीज प्रोडक्ट में अपनी हैसियत, अपनी टेस्ट हैबिट और अपने परिवेश के मुताबिक बदलाव करके एक ऐसी चीज बना दी जो चाइनीज होते भी हमारी है। क्या हमें ‘राष्ट्रभक्ति’ के नाम पर भैरू भवानी की चाऊमिन का विरोध करने की जरूरत है? बिल्कुल नहीं। हम इसे मजे से खा सकते हैं, बगैर इस ग्लानि के कि यह चाइनीज है। इसकी धेले भर की रॉयल्टी भी चाइना को नहीं मिलने वाली।

तो जरूरत इस बात की है कि हम महज चाइनीज चीजों के प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने के थोथे नारों से ऊपर उठें और यह देखें कि हम किन चाइनीज प्रोडक्ट्स को मेड इन इंडिया बना सकते हैं। जिन्हें बना सकते हैं, उन्हें बनाइए। जिन्हें नहीं बना सकते, उनका तब तक के लिए इस्तेमाल कीजिए जब तक कि उनका उचित विकल्प नहीं मिल जाता। क्योंकि देश की जरूरतों और देश के हितों के मुताबिक जमीनी व्याहारिकता पर चलना ही आज असली राष्ट्रभक्ति है।

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शुक्रवार, 19 जून 2020

Funny Interview : चाऊमीन ने समझाया कि कैसे चपटी नाक वाले चीनियों को हम दे सकते हैं करारा जवाब


By Jayjeet

देश में जैसे ही चाइनीज प्रोडक्ट्स के बायकॉट का हल्ला शुरू हुआ, रिपोर्टर सीधे पहुंच गया जय श्री भैरू भवानी वाले चाइनीज ठेले पर। वहां नूडल्स पड़ी-पड़ी मरोड़ खा रही थी। रिपोर्टर को देखते ही नूडल्स ही नहीं, सोयाबड़ी, शिमला मिर्च और पत्तागोभी भी उठ खड़ी हुई…


रिपोर्टर : क्या मैं आपसे हिंदी में बात कर सकता हूं? क्योंकि मुझे चाइनीज तो आती नहीं…
नूडल्स : भाई, हमें कौन-सी आती है! तुम चाहो तो भोजपुरी में भी बात कर सकते हो। जिस ठेले पर हम बिक रही हैं, वह किसी बिहारी भाई का है।

रिपोर्टर : तो आप चाइनीज ना हैं क्या?
नूडल्स : अरे, मेरे साथ ये सोयाबड़ी है। ये क्या चाइनीज लगती है? न शकल से, न अकल से….

रिपोर्टर : हां, ये सोयाबड़ी तो ठेठ इंडियन ही लगती है। देखो कैसे तोंद निकली पड़ी है…
नूडल्स : अरे भाई, ये इंडियन लगती ही नहीं, इंडियन है भी। और हम सब इंडियन हैं। बस नाम चाइनीज है, चाऊमीन …पर तुम हम गरीबों से बात करने काहे आ गए?

रिपोर्टर : अभी मेरे घर के सामने कुछ लोग ‘बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट’ का नारा लगा रहे थे, तो मैंने भी चाऊमीन के बहिष्कार की अखंड प्रतिज्ञा ले ली है। और फिर मैं भागा-भागा वर्जन लेने तुम्हारे पास आ गया।
नूडल्स : ये ही तो तुम गलत करते हों। तुम्हें पता कुछ रहता नहीं, पर प्रतिज्ञाएं उल्टी-सीधी कर लेते हों। ये कुरुवंशी लोग भी ऐसा ही करते थे। जब टीवी पर महाभारत आ रही थी तो देखा था मैंने। वो कौन भीष्म पिमामह, वो अर्जुन… । अब तुम भी हमें कभी खाने का आनंद नहीं ले पाआगे…

रिपोर्टर : अरे नहीं जी, हमारी प्रतिज्ञाओं का क्या? मैं तो हर साल ही चाइनीज चीजों के बायकॉट की प्रतिज्ञा लेता हूं। दिवाली और होली पर तो नियम ही बना लिया है…
नूडल्स : पर ये तो ठीक ना है। बायकॉट करो तो पूरा करो, नाटक ना करो। और फिर पूरी तैयारी के साथ करो।

रिपोर्टर : इसमें तैयारी क्या करना?
नूडल्स : भैया, केवल बायकॉट से काम ना चलेगा। वो चपटी नाक वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना होगा। जैसा तुम लोगों ने चाइनीज चाऊमीन का इंडियन वर्जन बना दिया, वैसा ही उनके हर प्रोडक्ट के साथ करो। फिर न रहेगा चाइनीज प्रोडक्ट, न बायकॉट की जरूरत पड़ेगी। समझ गए…!

रिपोर्टर : ये तो सही आइडिया है…
नूडल्स : हां, यही है The Idea of India…

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बुधवार, 17 जून 2020

Satire : सरकार का बड़ा फैसला, फसलें खराब न होने पर अफसरों को मिलेगा मुआवजा!



हिंदी सटायर डेस्क, भोपाल। मानसून की दस्तक के साथ ही मप्र सरकार ने ‘अफसर मुआवजा कोष’ बनाने का ऐलान कर दिया है। फसलें खराब न होने की स्थिति में इस कोष से संबंधित अफसरों को मुआवजा दिया जाएगा।

सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “फसलें खराब होना या न होना प्रभु के हाथ में है। इस पर हमारा कोई बस नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि फसलें खराब न होने की स्थिति में हमारे सरकारी अफसर किसानों की तरह सुसाइड करने को मजबूर हो जाएं। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि अगर फसलें बर्बाद नहीं होती हैं तो अफसर मुआवजा कोष से अफसरों को उतनी राशि मुआवजे में दी जाएगी, जितनी कि मुआवजा वितरण के दौरान वे खुद ही स्व-प्रेरणा से ले लेते हैं।”

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Satire : टाइम मिस-मैनेजमेंट!

(Disclaimer : असत्य घटना पर आधारित, पर देश के कोने-कोने में इसके सत्य होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता… )

एक बंदा एग्जाम की तैयारी करता प्रतीत हो रहा था। छह महीने तक करता रहा। पर रिजल्ट आया जीरो बंटे सन्नाटा।

मैं – छह माह तक क्या किया? पास क्यों न हो सके?
वह – जी, एग्जाम की तैयारी ना कर सका।

मैं – क्यों?
वह – टाइम ही ना मिल सका।

मैं – टाइम क्यों ना मिला?
वह – सारा टाइम तो टाइम मैनेजमेंट कैसे करें, इसकी किताबें पढ़ने और वीडियो देखने में ही चला गया।

मैं – ओहो। तो अब आगे क्या प्लानिंग है?
वह – फेल होने पर हम खुद को मोटिवेट कैसे करें, इस पर जरा स्टडी कर रहा हूं। इसके बाद कुछ प्लानिंग ..

मॉरल ऑफ द स्टोरी उर्फ ज्ञान… : हमारे यहां मोटिवेशनल गुरु अगर इतने कूद-कूदकर सफल हुए जा रहे हैं तो इसमें उन बेचारों को दोष मत दीजिए।

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सोमवार, 15 जून 2020

Humour : पतंजलि ने कोरोना की दवा बनाने का दावा क्या किया, अनुमति मांगने आ गया वायरस



By Jayjeet

बाबाजी ने कोरोना वायरस की दवाई ‘कोरोनिल’ बनाने का दावा किया है। यह दावा करते ही कोरोना तुरंत ही बाबाजी से चीन वापस जाने की अनुमति मांगने आ गया। सुनते हैं उनकी बातचीत के मुख्य अंश :

कोरोना : बाबाजी, अब मैं चलूं? मेरा काम तो हो गया…

बाबाजी : बेटा, इतनी जल्दी चला जाएगा तो फिर दवा बनाने का क्या फायदा?

कोरोना : बाबाजी, तीन लाख से ऊप्पर मरीज हो तो गए। अब बच्चे की जान लोगे क्या?

बाबाजी : पर तेरे को जल्दी क्यों है? मेहमाननवाजी में कोई कमी रह गई है क्या? रोज चाऊमीन खिला तो रहे हैं।

कोराना : बाबा, वही तो परेशानी है। सोया बड़ी व पत्ता गोभी वाला चाऊमीन भी कोई चाऊमीन होती है क्या? माना आप लोगों की हमारे चाइना से दुश्मनी है, पर आप यह दुश्मनी चाऊमीन के साथ क्यों निकाल रहे हैं!

बाबाजी : पर बेटा, अभी तू चाइना वापस जाएगा तो वहां वे तुझे 14 दिन के लिए क्वारंटाइन कर देंगे। तो तू यहीं रहकर मरीज बढ़ा ना। देख, लोग कैसे मजे में घूम रहे हैं। न मास्क की चिंता, न सोशल डिस्टेंसिंग की …तेरे लिए तो स्कोप ही स्कोप है..

कोराना : इसमें तो आप भी अपना स्कोप देख रहे हों… आप भी यही चाहते हों ना कि लोग ज्यादा से ज्यादा मुझसे प्यार करें ताकि आपने जो दवा बनाई, उसका…

बाबाजी : (बीच में बात काटते हुए) : तू कुछ ज्यादा शाणपत्ती मतलब ओवर समझदारी की बात ना कर रहा!

कोरोना : समझदार होता तो यूं इंडिया में आता क्या?

बाबाजी : अब तू आ गया तो अगले दो-एक महीने यहीं रुक…

कोरोना : हां रुक जाऊंगा, पर एक शर्त है। अब मैं कपालभाति ना करुंगा… सांस फूल जाती है। ना ही भ्रामरी, ना वो तुम्हारा अनुलोम-विलोम

बाबाजी : बेटा, इत्ते दिन भारत में हो गए। फिर भी तुझे कोई बीमारी हुई?

कोरोना : हां, ये बात तो अचरज की है, न बीपी, न डायबिटीज..

बाबाजी : वह इसीलिए कि तू ये बेसिक योगासन कर रहा है।

कोरोना : तो फिर आप दवा क्यों बना रहे हो? यही करवाओ ना सभी लोगों को?

बाबाजी : सब तेरे जैसे समझदार थोड़े हैं.. पर तू ज्यादा समझदारी भी ना दिखा। हमको भी थोड़ा बहुत धंधा करने दे…कुछ लोगों की नौकरियां भी तो इसी से चलेंगी.. अब जा। कल टाइम पे आ जाना…साथ में योग करेंगे।

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रविवार, 14 जून 2020

Humour : जब ट्रम्प का नाम बदलवाने पर अड़ गए डक साहब, योगीजी वाला पैंतरा भी काम ना आया…



By Jayjeet

रिपोर्टर बहुत दिनों से किसी का इंटरव्यू नहीं ले पाया था.. इस बीच उसे पता चला कि अमेरिका में भी लॉकडाउन के चलते डोनाल्ड डक (donald-duck) काफी फुर्सत में हैं। तो उसने उन्हीं के साथ वेबिनार कंडक्ट कर लिया। रिपोर्टर के जीवन का पहला वेबिनार, वह भी इंग्लिश में…. पर आप लोगों के लिए पेश है हिंदी वर्जन…

रिपोर्टर : डोनाल्ड साहब? कैसे हों आप?
डोनाल्ड डक : अब जिसके नाम में डोनाल्ड लगा हो, वह कैसे हो सकता है भला?

रिपोर्टर : सेक्सपीयर साहब बोल गए है कि नाम में क्या रखा है…
डोनाल्ड डक : एक तो वो शेक्सपीयर हैं, सेक्सपीयर नहीं। फिर तुम भारतीयों ने सेक्स से ज्यादा धेला भी ना पढ़ा होगा, पर नाम वाले मामले में उनकी एक लाइन क्या पढ़ ली, ऐसा ज्ञान झाड़ते हो मानो शेक्सपीयर पर पूरी पीएचडी कर रखी हो।

रिपोर्टर : ठीक है, अगर नाम से ही दिक्कत है तो आप हमारे योगीजी को बोलिए। वे आपका या उन वाले डोनाल्ड डक का नाम ही बदल देंगे।
डोनाल्ड डक : तुमने मुझे क्या बेइज्जती करने के लिए वेबीनार में बुलाया है?

रिपोर्टर : क्यों क्या हो गया? गलती से कुछ का कुछ बोल गया क्या?
डोनाल्ड डक : तुमने उस वाले डोनाल्ड के साथ मेरा ‘डक’ जोड़कर मेरी पूरी बत्तख जाति का अपमान करने का काम किया है।

रिपोर्टर : ओ सॉरी, सॉरी। आप कहें तो मैं योगीजी से बात करूं नाम बदलवाने को लेकर? आई एम वेरी सीरियस…
डोनाल्ड डक : अच्छा लगा यह जानकर कि तुम पत्रकार लोग कभी-कभी सीरियस भी हो जाते हों। पर मैं 1934 से हूं। तो सीनियर होने के नाते मेरा नाम नहीं बदलेगा, अगर बदलेगा तो उसी डोनाल्ड ट्रम्प का नाम बदलेगा…

रिपोर्टर : अच्छा, आप इतने पुराने हैं!! तभी डोनाल्ड ट्रम्प के माता-पिता ने बचपन में ही उनमें कार्टूनपना देखकर आपके नाम पर उनका नाम रख लिया होगा… आपको तो इज्जत दी है उनके माता-पिता ने। मिट्‌टी डालो ना अब तो नाम के इश्यू पर …
डोनाल्ड डक : उसके माता-पिता का नाम लेकर तुमने इमोशनल कर दिया। चलो मिट्‌टी डाली… तो अपन खतम करें वेबिनार…

रिपोर्टर : जी, बिल्कुल। डेजी अम्मा को मेरा प्रमाण कहना …. छोटों को स्नेह, बड़ों को नमस्कार, अन्य को यथायोग्य..
डोनाल्ड : हाव, चलता हूं…

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Funny Interview : लॉकडाउन के कारण MLA की अंतरात्मा भी परेशान, पढ़िए खास बातचीत…



By Jayjeet

रिपोर्टर सुबह उठते ही सीधे रिजॉर्ट के बाहर पहुंच गया। उसे किसी विधायक (MLA) की अंतरात्मा की तलाश थी। जैसे ही एक अंतरात्मा टेलीफोन पर बात करने के लिए बाहर लॉन में आई, रिपोर्टर छलांग लगाकर लॉन में पहुंच गया। रिपोर्टर को यूं देखकर अंतरात्मा हकबका गई – हट, हट कौन हैं?

रिपोर्टर : घबराइए नहीं अंतरात्मा जी, मैं रिपोर्टर हूं, बस आपसे बात करने आया हूं।
अंतरात्मा : पर ऐसे आते हैं भला? मैं फोन पर प्राइवेट बात कर रही थी और तुम अचानक आ गए तो खटका हुआ कि कहीं हाईकमान का ड्रोन तो ना टपक पड़ा! स्सालों ने जगह-जगह ड्रोन तैनात कर रखे हैं।

रिपोर्टर : हम भी क्या करें। अब अंतरात्माओं पर इतने पहरे बिठा दिए गए हैं तो ऐसे ही आना पड़ता है।
अंतरात्मा : अच्छा ठीक है, वहां नाश्ता लगा है। एक से बढ़कर एक ड्रायफ्रूट्स हैं। पहले वो कर लो।

रिपोर्टर : नहीं जी। नाश्ता तो मैं करके ही आया हूं…
अंतरात्मा : देखिए, अंतरात्मा हूं, इसलिए मुझसे तो झूठ मत बोलो… लॉकडाउन के कारण मुझे मालूम है हर जगह हालात खराब है। अब हमारी ही हालत देख लो …

रिपोर्टर : लेकिन आपको क्या दिक्कत है?
अंतरात्मा : अब क्या बताएं, सामने वाली पार्टी 25 करोड़ से ऊपर जा ही नहीं रही… उसी को लेकर मैं आगे की बात कर रही थी कि तुम टपक पड़े..

रिपोर्टर : एक अंतरात्मा के लिए 25 करोड़ तो काफी होते हैं।
अंतरात्मा : नहीं जी, वही तो तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही थी। इतना खराब समय आ गया है कि क्या बताएं… वे 25 में एक नहीं, वे दो अंतरात्माओं का सौदा करना चाहते हैं – ‘बाय वन गेट वन’ । लेकिन 25 में कैसे काम चलेगा। मैंने 30 में एक और अंतरात्मा को साथ लाने का ऑफर दिया है, लेकिन स्साले कह रहे हैं मार्केट डाउन है। अरे तुम्हारा मार्केट डाउन होगा तो होगा, हम अंतरात्माओं की भी कोई इज्जत है कि नहीं…

रिपोर्टर : हां वो तो सही है। अब आगे क्या प्लानिंग है?
अंतरात्मा : पहले तुम इधर आओ, ये नमकीन ड्रायफ्रूट्स खाओ…

(रिपोर्टर के मुंह में जबरदस्ती नमकीन ड्रायफ्रूट्स ठूंसने के बाद….)

अंतरात्मा : देखो, अब मैं 100 करोड़ में 10 अंतरात्माओं को एक साथ लाने का एकमुश्त ऑफर दे रही हूं। 25 मेरे, और बाकी 75 छोटी अंतरात्माएं आपस में बांट लेंगी।
रिपोर्टर : अरे वाह, यह तो ब्रेकिंग न्यूज है। धन्यवाद इसके लिए।

अंतरात्मा : ओए रिपोर्टर की औलाद। तेरे को नमकीन ड्रायफ्रूट्स किसलिए खिलाए कि तू ऐसी नमक हरामी करेगा…?
रिपोर्टर : पर अंतरात्मा जी, नमक हरामी आप भी तो कर रही है। जिस पार्टी से जीती, उसके साथ नमकहरामी..

अंतरात्मा : भाई, हम विधायक की अंतरात्मा है, हमारी जो मर्जी है हम करेगी। नमक हरामी करना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। विधायक की अंतरात्मा पैदा ही होती है नमक हरामी के लिए… पर तू मत करना, तू सच्चा रिपोर्टर है, हां …

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शुक्रवार, 5 जून 2020

बारिश में अधिक से अधिक भीगे अनाज, सरकारी महकमे ने की पूरी तैयारी



By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क। मानसून की आहट सुनते ही मप्र सरकार ने मंडियों में रखी उपज के भीगने के पूरे इंतजाम कर लिए हैं। सरकार ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल 20 फीसदी अनाज अधिक भीगना चाहिए। ऐसा न होने पर उनके खिलाफ कड़ी विभागीय कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। इस बीच, कई इलाकों में निसर्ग तूफान के असर के कारण हुई पहली ही बारिश में मंडी प्रांगण में रखे अनाज के भीगने से सरकारी खेमे में उल्लास की लहर है।

मप्र में कई इलाकों में जून के पहले पखवाड़े में मानसून के पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इस संबंध में कृषि विभाग के एक सीनियर अफसर ने हिंदी सटायर से खास बातचीत में कहा, “हर बार की तरह इस बार भी हम अनाज को मानसूनी बारिश में भिगोने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। वैसे तो हमने इस तरह की चाक-चौबंद व्यवस्था कर रखी है कि खरीदा गया या किसानों द्वारा बेचने के लिए लाया गया अनाज बिल्कुल नैचुरली खुले में ही पड़ा रहे। फिर भी अगर कहीं गलती से अनाज को सुरक्षित रख दिया गया है तो उसे जल्दी ही मानसून दिखाने के लिए खुले में ले लाएंगे।”

उन्होंने कहा, “सारे संबंधित अफसरों को अधिक से अधिक अनाज और उपज को मानसूनी बारिश में भिगोने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद अगर किसी मंडी या सरकारी गोदाम में अनाज सुरक्षित पाया जाता है तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”

20 फीसदी अधिक का टारगेट :
प्यून को पान-बहार लाने का निर्देश देने के बाद अधिकारी ने बताया कि अब सरकार भी प्राइवेट सेक्टर्स की तरह टारगेट बेस्ड काम करने लगी है। इस बार पूरे प्रदेश में अनाज के भीगने का लक्ष्य पिछली बार की तुलना में 20 फीसदी अधिक दिया गया है। उम्मीद है कि हम इसके आसपास रहेंगे।

यह पूछे जाने पर कि इतना प्रगतिशील राज्य होने के बावजूद मप्र अब तक 100 फीसदी लक्ष्य हासिल क्यों नहीं कर पाया? इस सवाल पर सीनियर अफसर ने धीरे से कहा, “प्रदेश में अब भी ऐसे कई भ्रष्ट अधिकारी हैं जो गोदाम में रखे अनाज को मानसून या चूहों से बचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सरकार ऐसे अफसरों पर नजर रखे हुए हैं। हम जल्दी ही ऐसे अफसरों को चिह्नित कर उन्हें उन विभागों में भेजने की कार्रवाई करेंगे जहां केवल मक्खी मारने का काम होगा। ये अफसर इसी तरह का काम करने के लायक हैं।”


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मंगलवार, 2 जून 2020

Humour : जब बर्फ में दबे मिले 7 वायरस… तो देखिए क्या हुआ!!!




By Jayjeet

(20 हजार साल बाद की दुनिया में देखिए क्या होगा… )

हिंदी सटायर डेस्क। वायरस हजारों सालों तक बर्फ में या सतह के नीचे सक्रिय अवस्था में रह सकते हैं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। तो इसी तथ्य के आधार पर आज टाइम मशीन से चलते हैं 20 हजार साल बाद धरती के एक हिस्से में ….

धरती के एक कोने में जहां कभी इंसान रहते थे, वहां AI संचालित रोबोट्स को बर्फ की सतह पर 7 वायरस मिले। वे रोबोट्स उन्हें पास की एक लैब में ले आए। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से उन्होंने तुरंत जान लिया कि ये वर्षों पहले यानी 2020 के वायरस हैं। हालांकि वे रोबोट थोड़े मंदबुद्धि टाइप के थे। इसलिए यह पता नहीं लगा सके कि वर्षों पहले वे किस स्थान पर दबकर अचेत हो गए थे। तो उन्होंने एक-एक वायरस को जागृत कर स्पेशल स्कैनिंग की तो उनके सामने ये दृश्य आए :

पहला वायरस : जागृत होते ही वह जोर-जोर से थाली बजाने लगा। साथ ही चिल्लाने भी लगा – गो कोरोना गो… गो कोरोना गो…

दूसरा वायरस : यह वायरस लगातार हिचकौले खा रहा था और गाए जा रहा था – झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम। और फिर एक तरफ लुढ़क गया।

तीसरा वायरस : यह वायरस बनियान व बरमूडा पहने हुए था और कंप्यूटर पर आंखें गढ़ाए हुए था। बीच-बीच में अंगड़ाइयां ले-लेकर फोन पर ही मीटिंग करने जैसी हरकतें कर रहा था।

चौथा वायरस : इस वायरस के हाथ में कोई पुराना जूठा-सा बर्तन था। जागृत होते ही वह घबराकर उसे साफ करने की कोशिश करने लगा।

पांचवां वायरस : इसके हाथ में मोबाइल था। वह ‘कोरोना’ नामक किसी जंतु पर बने घटिया जोक्स और ज्ञानवर्द्धक बातों को वाट्सएप नामक किसी प्लेटफार्म पर उछल-उछलकर फारवर्ड कर रहा था।

छठवां वायरस : यह अपनी उंगलियों पर बार-बार इस बात का हिसाब लगा रहा था कि 20 लाख करोड़ में जीरो कितने होते हैं। और हिसाब नहीं लगा पाने पर भन्ना रहा था।

सातवां वायरस : यह वायरस चुपचाप लगातार जार-जार आंसू बहा रहा था। उसके मुंह से बार-बार ये लफ्ज निकल रहे थे- हे मजदूरो, तुम मुझे माफ करना। मेरे कारण तुम्हें बहुत दिक्कत हुई।

वे मंदबुद्धि रोबोट उन्हें पहचान नहीं पाए कि ये सातों कहां के हैं। वायरस भी स्साले होशियार निकले। उन्होंने भी कुछ बताया नहीं। तो उन रोबोट्स ने इन वायरसों को खाकी ड्रेस पहने कुछ अन्य रोबोट्स के हवाले कर दिया। अब वे खाकी ड्रेस वाले रोबोट्स मार-कूटकर उनसे उगलवाने की कोशिश कर रहे हैं।

वैसे पाठकगण समझ ही गए होंगे कि ये वायरस किस जगह पर बर्फ के नीचे दबे होंगे और रोबोट्स भी कहां के होंगे…

(ऐसे ही मजेदार खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए आप हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत की पहली वेबसाइट http://www.hindisatire.com पर क्लिक कर सकते हैं।)


Funny Interview : टिड्डी की खरी-खरी : कभी नेताओं से भी तो पूछिए कि वे इतना खाकर पचा कैसे लेते हैं?



By Jayjeet

आज रिपोर्टर फिर निकल पड़ा किसी नए शिकार की तलाश में, यानी किसी मासूम का इंटरव्यू लेने। रास्ते में निवृत्त होने के लिए जैसे ही वह खेत की ओर मुड़ा, वहां एक टिड्डी नजर आ गई। बस, सबकुछ भूलकर उसने वहीं इंटरव्यू शुरू कर दिया :


 रिपोर्टर : यहां कैसे? रास्ता भटककर यहां आ गई क्या?
टिड्डी : हम इंसान नहीं हैं जो बार-बार रास्ता भटक जाए। मैं तो नई संभावना की तलाश में यहां आई हूं। वैसे आपके एरिया में तो मामला पहले से ही सफाचट है। यहां कृषि अधिकारियों के दौरे ज्यादा होते हैं क्या?

रिपोर्टर : (हम्म..) पता नहीं। वैसे कृषि अफसर तो सीमित संख्या में आते हैं, पर जब तुम टूटती हो तो लाखों की संख्या में। यह बेरहमी क्यों?
टिड्डी : हमारी तो यही प्रकृति है। तो हम इसी का पालन करते हैं। तुम्हारे जैसे नहीं…

रिपोर्टर : पर यार, तुम फसलों को इतना चौपट कैसे कर सकती हों, वह भी रातो-रात?
टिड्डी : यार मत कहो….(चीखते हुए..) । हां, तुम इंसानों से कम ही चौपट करती हैं। हम कम से कम बागड़ होने का दिखावा तो नहीं करती। तुम इंसान तो बागड़ बनकर फसल खाते हों। हम ऐसा नहीं करतीं।

रिपोर्टर : अच्छा एक पर्सनल सवाल… तुम इतना खाती हो तो पचाती कैसी हों? मतलब…
टिड्डी : कभी अपने जनप्रिय नेताओं या भ्रष्ट सरकारी अफसरों से पूछने हिम्मत की है कि वे इतना खाकर कैसे पचाते हैं? तो जैसे वे पचाते हैं, वैसे ही हम पचा लेती हैं।

रिपोर्टर : मतलब तुम और हमारे नेता-अफसर एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं?
टिड्डी : हां, एक ही थैली के टिड्डे-बिड्डे भी कह सकते हैं…

रिपोर्टर : कहीं पढ़ा है कि तुम लोग भी रंग बदलने में माहिर हो। पर कैसे? यह कहां से सीखा?
टिड्डी : (थोड़ा शर्माते हुए) हमने तो गिरगिटों से सीखा था। और गिरगिटों ने शायद तुम इंसानों से। तो कह सकते हैं कि इस मामले में तुम इंसान ही हमारे पूर्वज हुए।

रिपोर्टर : अच्छा, एक बात बताइए…
टिड्डी : जी अब बहुत हो गए सवाल। तुम तो फोकटे मालूम पड़ते हो, पर मुझे बहुत काम हैं। पर हां, इस बार तुम्हारे सवाल ठीक थे। पुराने इंटरव्यू जैसे वाहियात नहीं थे। तैयारी करके आए थे इस बार…

रिपोर्टर : अच्छा, तो तुम मेरे इंटरव्यू पढ़ती हों?
टिड्डी : हां जी, कौन नहीं पढ़ता। पर गलतफहमी में मत रहना। सब पढ़कर मजे ही लेते हैं… अच्छा मैं उड़ी…।

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