By Jayjeet
जैसे
ही बादल का टुकड़ा छत
के ऊपर से गुजरा, रिपोर्टर
ने हाथ के इशारे से
उसे रोक लिया।
बादल
: कौन हो भाई? क्यों
रोक लिया हमें?
रिपोर्टर
: अरे, मुझे ना पहचाना, मैं
वही, जाना-माना रिपोर्टर?
बादल
: अरे वाह, रिपोर्टर ना हुए, मोदी
हो गए कि तुम्हें
हर कोई पहचान जाए! काम बताओ, पर ये मत
बताना कि तुम्हारे साले
साहब की गली में
बरसना है।
रिपोर्टर
: अरे मुझे क्या टुच्चा पत्रकार समझा जो टुच्चे-मुच्चे
काम बताऊगा। मुझे तो आपका इंटरव्यू
करना है।
बादल
: अच्छा, बड़े रिपोर्टर
हैं। तो आपको सुशांत
सिंह मामले की जांच-पड़ताल
से फुर्सत मिल गई क्या?
रिपोर्टर
: हां, हमने अब यह केस
सीबीआई को सौंप दिया
है।
बादल
: वैसे मुझे सीबीआई पर भरोसा नहीं
है। आप लोग सही
तो जा रहे थे..
रिपोर्टर
: बादल महोदय, मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि
मेरा ऐसे मामलों में कोई खास इंटरेस्ट नहीं है। मैं तो डेवलपमेंटल रिपोर्टर
हूं, डेवलपमेंटल रिपोर्टर, हां
बादल
: दो बार डेवलपमेंटल रिपोर्टर बोलने भर से कोई
विकास टाइप की पत्रकारिता करने
वाला पत्रकार नहीं बन जाता, जैसे
बार-बार विकास विकास बोलने भर से विकास
ना हो जाता। खैर
मुद्दे पर आइए और
पूछिए क्या पूछना है? पर जरा जल्दी,
सीजन चल रहा है।
रिपोर्टर
: पहला सवाल, या कह सकते
हैं कि पहला आरोप
है कि आप बरसने
में इतनी असमानता क्यों रखते हैं? कहीं घटाघोप तो कहीं एक
बूंद भी नहीं।
बादल
: यह सवाल कभी आपने अपने नेताओं और अफसरों से
पूछा, उन जिम्मेदारों से
जिनके ऊपर विकास की जिम्मेदारी रही
है?
रिपोर्टर
: समझा नहीं।
बादल
: अब इतने भी नासमझिये ना
बनो। भई, सालों से आपके नेता
समाजवाद की बात करते
आए हैं, लेकिन हुआ क्या? समानता आई?
रिपोर्टर
: अब तो समाजवाद की
बात ही बंद हो
गई, तो हम इस
फालतू शब्द पर चर्चा क्यों
करें?
बादल
(बीच में बात काटते हुए) : सही कह रहे हैं।
समाजवाद की बात करना
पहले भी केवल फैशन
था, अब ओल्ड फैशन्ड
हो गया है। ठीक है। ऐसे कठिन सवाल छोड़ देते हैं।
रिपोर्टर
: आपने मेरी बात बीच में काट दी थी.. मेरा तो केवल इतना
सवाल था कि ऐसा
भी क्या बरसना कि शहरों में
बाढ़ आ जाए...
बादल
: पत्रकार महोदय, बरसते तो हम सदियों
से आए हैं, लेकिन
पहले नदियों में बाढ़ आती थी। अब नदियां तो
वैसी रही नहीं तो शहरों में
आ रही है। बाढ़ कहीं तो आएगी ना!
और यह सिटी प्लानर्स
से पूछिए कि अरबों-खरबों
खर्च करके भी वे बाढ़मुक्त
शहर क्यों नहीं बना पा रहे?
रिपोर्टर
: फिर भी थोड़ी सी
बारिश में बेइज्जती हो जाती है
लोगों की। हम रिपोर्टर्स को
भी मजबूरी में लिखना पड़ता है कि पटना
में या जयपुर में
बाढ़ आई.... मुंबई-इंदौर में बाढ़ जैसे हालात हुए...कुछ तो उपाय बताइए...
बादल
: तो सिंपल सा उपाय सुन लीजिए और मुझे चलने की अनुमति दीजिए। उपाय यह है कि कुछ ही दिनों में संसद का मानसून सत्र होने वाला है। सरकार एक कानून बनाकर मानसून में हर शहर को नदी घोषित कर दें। न रहेंगे शहर, न आएगी बाढ़। चलता हूं, किसान मेरा इंतजार कर रहा है...आप शहरियों को हम न बरसे तो दिक्कत और बरसे तो दिक्कत ...।
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