शनिवार, 6 मार्च 2021

Humor & Satire : 135 साल की बेबस कांग्रेस अम्मा से खास बातचीत, कहा- अब मुक्त होने का टाइम आ गया!

 

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By Jayjeet

आज रिपोर्टर का मन काम में नहीं लग रहा था। मन कुछ-कुछ कांग्रेसी हो रहा था। तो वह यूं ही 24 अकबर रोड पर टहलने चला गया। वहां के एक सुनसान इलाके में स्थित एक खंडहर इमारत, जिसे लोग आज भी कांग्रेस मुख्यालय के नाम से जानते हैं, के सामने से गुजरते हुए अचानक उसकी नजर एक पत्थर पर बैठी हुई एक बुढ़िया पर गई। टूटी हुई लाठी, झीने-से कपड़े, झुर्रियों में खोया-खोया चेहरा। हालांकि झुर्रियों के पीछे छिपे चेहरे पर हल्की-सी चमक यह भी बता रही थी कि इस बुढ़िया के कभी बड़े ठाठ रहे होंगे। खूब इज्जत, मान-सम्मान मिला होगा। पर अब चेहरे पर उपेक्षा का दंश है... रिपोर्टर पहले तो यह सोचकर डर गया कि चमगादड़ों से पटी इस इमारत में कहीं बुढ़िया के रूप में कोई भूत-वूत तो नहीं है। पर पैरे देखे तो सीधे थे। रिपोर्टर ने सुन रखा था कि भूत के पैर उलटे होते हैं। राहत की सांस ली। हिम्मत करके वह उस बूढ़ी अम्मा के पास पहुंच गया...

रिपोर्टर : आप इतने सुनसान से खंडहर में क्या कर ही हैं, अम्मा?

बुढ़िया ने नजरें ऊंची की, एनक पोंछी : कौन है, जो मुझसे इतने सालों के बाद बात कर रहा है?

रिपोर्टर : जी, मैं रिपोर्टर.. मैं भी सालों बाद इस खंडहर इमारत के सामने से गुजर रहा था तो आप दिख गईं। पहले तो मैं डर गया कि कहीं आप कोई भूत-वूत तो नहीं। फिर आपके पैरों से कंफर्म किया कि आप भूत ना हैं। आप कौन हैं?

बुढ़िया : तुम्हारा अंदाजा गलत था बेटा। मैं सीधे पैर वाली भूत ही हूं... (एक ठहाका)

(रिपोर्टर ढाई मिनट तक यूं ही निशब्द खड़ा रहा... भागना चाहता था, पर पैर वहीं जम गए...रिपोर्टर की हालत को वही समझ सकते हैं जिनका कभी भूतों से पाला पड़ा होगा। रिपोर्टर के होश में आने के बाद अब आगे पढ़ें आगे का इंटरव्यू...)

रिपोर्टर : आप भी अच्छा मजाक कर लेती हो अम्मा।

बुढ़िया : चलो मजाक ही मान लो, नहीं तो तुम्हारा भूत बन जाता। बताओ, तुम मेरे पास क्यों आए हो?

रिपोर्टर : ऐसा लग रहा है कि बहुत पहले किसी तस्वीर में आपको कहीं देखा है...

बुढ़िया : शायद तुमने अपने दादाजी या नानाजी के कमरे में लगी मेरी तस्वीर देखी होगी...

रिपोर्टर : हां, हां, बिल्कुल....याद आ गया। जब मैं छोटा था, उस समय दादाजी और उनके जितने भी दोस्त थे, उन सभी के घरों में आपकी तस्वीर लगी रहती थी।

बुढ़िया : पुराने जमाने में हर घर में मेरी तस्वीर लगी रहती थी....

रिपोर्टर : हां, उन तस्वीरों में आप बहुत ही सुंदर-शालीन नजर आती थीं। पर आप हैं कौन? आपने अपना परिचय नहीं दिया।

बुढ़िया : बेटा, अब मैं क्या परिचय दूं। परिचय के लिए कुछ बचा ही नहीं। फिर भी बता देती हूं, मैं कांग्रेस हूं... 135 साल की बुढ़िया। इसीलिए मैं खुद तो भूत कह रही थी.... अतीत वाला भूत..।

रिपोर्टर (आश्चर्य से) : अरे, अगर आप कांग्रेस हैं तो फिर 10 जनपथ पर जो एक संभ्रान्त महिता रहती हैं, अपने एक नन्ने-मुन्ने बालक के साथ, वो कौन हैं? मैं तो उन्हें ही कांग्रेस समझता आया हूं। सभी उन्हें ही कांग्रेस समझते हैं।

कांग्रेस अम्मा : अरे हां, वो। बेटा, उन्हें मेरा प्रणाम कहना, अगर मिल सको। वैसे तुम क्या मिल सकोंगे। मैं ही नहीं मिल पाती उनसे तो।

रिपोर्टर : आप कांग्रेस होकर उनसे नहीं मिल पातीं? क्या वे भी आपसे मिलने नहीं आतीं?

कांग्रेस अम्मा : कभी नहीं आईं। अब इसमें उनकी भी क्या गलती? हो सकता है उनके सलाहकारों ने उन्हें मेरे बारे में बताया ही ना हो। अगर उन्हें मेरे बारे में कोई बताता तो वे जरूर आतीं।

रिपोर्टर : और उनका नन्ना-मुन्ना बालक?

कांग्रेस अम्मा : हां, वह बालक कभी-कभार आ जाता है। कभी मेरी लकुटिया ले लेता है और कंधे पर लाठी रख जैसे किसान चलते हैं ना, वैसे ही चलने की एक्टिंग करता है। कभी मेरा ये टूटा हुआ ऐनक पहन लेता है और पूछता है- देखो दादी, मैं गांधी बाबा दिख रहा हूं ना...। जैसा भी है, पर है बहुत प्यारा बच्चा। पर आश्चर्य है, मेरे बारे में उसने भी अपनी मां को कभी नहीं बताया।

रिपोर्टर : आप इस खंडहर इमारत में सालों से अकेली रहती हों। अपने बारे में कुछ तो सोचिए।

कांग्रेस अम्मा : अब मेरा कुछ भरोसा नहीं बेटा। इस दुनिया से कब मुक्त हो जाऊं, क्या पता।

रिपोर्टर : अरे नहीं, इस देश को आपकी बहुत जरूरत है। भले ही अब आपके घर वाले ही आपको ना पूछते हो, लेकिन देश के लिए आपने क्या ना किया, मैं सब जानता हूं। मैंने किताबों में सब पढ़ा है। क्या-क्या नाम गिनाऊं, गोखले जी, तिलक जी लेकर बापू तक, सब आपकी ही छत्रसाया में पले-बढ़े। नहीं, अभी आपको जाना नहीं है...

कांग्रेस अम्मा : बस कर पगले, अब रुलाएगा क्या! (और बेबस आंखों से एक आंसू टपक पड़ा...)

रिपोर्टर : आप बहुत भावुक हो रही हैं। बढ़ती उम्र में ऐसा होता है। मोदीजी भी अभी भावुक हो गए थे। अरे हां, मोदीजी से याद आया, उन्होंने अभी-अभी कोरोना का टीका लगवाया है। आप भी लगवा लीजिए, फिर आप भी सेफ हो जाओगी।

कांग्रेस अम्मा : तू पत्रकार होकर भी इतना भोला कैसा है रे? मेरे शरीर में तो वंशवाद, चमचागीरी, दलाली जैसे संक्रमण भरे पड़े हैं। इन संक्रमणों ने ही मेरे तन-मन को तोड़कर रख दिया है। कोरोना वाले टीके से कुछ नहीं होगा।

रिपोर्टर : फिर भी कोई तो टीका ऐसा होगा जिनसे आप हमारे बीच हमेशा के लिए रह सकती है?

कांग्रेस अम्मा : लीडरशिप का, मेहनत का, सांगठनिक क्षमताओं का, इसके टीके की जरूरत है। ये है क्या ...?

रिपोर्टर (15-20 सेकंड की शांति के बाद) : माफ करना अम्मा, कम से कम आपके लिए तो ऐसा टीका अभी अवेलेबल नहीं है। पर, इस खंडहर से आप बाहर तो निकलिए...। टीका भी बन जाएगा।

कांग्रेस अम्मा : जब टीका बन जाए तो पहले उन कांग्रेसियों को जरूर लगवा देना जो घर बैठकर चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं, मेरी जवानी फूटने के चमत्कार का इंतजार। और हां, मेरे नन्हे-मुन्ने बालक को मत भूल जाना...अब मैं चलती हूं...सोने का समय हो गया है...

रिपोर्टर काफी देर तक किंकत्तर्व्यविमूढ़ भाव से वहीं खड़ा रहा... उसे पता ही नहीं चला कि वह बूढ़ी अम्मा अचानक कहां ओझल हो गई.... क्या रिपोर्टर वास्तव में किसी भूत से बात कर रहा था? शायद!! पर जो भूतों को नहीं मानते, वे पाठक भला इसे क्या समझेंगे!!

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