रविवार, 21 मार्च 2021

Political Satire : जान बचाकर भागा रिपोर्टर, जब घोषणा पत्र ने सुना दी कविता ...

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By Jayjeet

दो दिन पहले ममता दीदी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया था। आज बीजेपी ने भी जैसे ही घोषणा-पत्र जारी किया, रिपोर्टर क्विक इंटरव्यू के चक्कर में तुरत-फुरत घोषणा-पत्र के पास पहुंच गया...

रिपोर्टर : बधाई हो, राजनीतिक दलों ने फिर से आप पर भरोसा जताया है...

घोषणा पत्र : हां जी, संतोष की बात है ये। नेता लोग अब तक मुझे भूले नहीं हैं। कभी वचन पत्र तो कभी संकल्प पत्र, अलग-अलग नामों से जारी कर ही देते हैं।

रिपोर्टर : लेकिन हर बार आप जनता के लिए तो छलावा ही साबित होते हैं?

घोषणा पत्र : जनता का मुझसे क्या लेना-देना?

रिपोर्टर : आपको जारी तो आम जनता के लिए ही किया जाता है ना?

घोषणा पत्र : अच्छा...? तो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए।

रिपोर्टर : वैसे तो सवाल मैं लिखकर लाया हूं। पूछने का नैतिक अधिकार भी मेरा ही है। फिर भी एक ठौ पूछ लीजिए।

घोषणा पत्र : इस साल न्यू ईयर पर आपने कोई रिजोल्यूशन जैसा कुछ लिया था?

रिपोर्टर : हां, लिया तो था। बड़ा अच्छा-सा था कोई, पर अब याद नहीं आ रहा।

घोषणा : देख लो, ये है आम जनता की स्थिति। अपने रिजोल्यूशन, संकल्प तो याद रहते नहीं। और बात मेरे संकल्पों की करती है।

रिपोर्टर : फिर भी अपनी कसम खाकर कहिए कि अब आप केवल मखौल बनकर नहीं रह गए हैं।

घोषणा-पत्र : हां, कसम खाकर कहता हूं कि मैं मखौल बनकर नहीं रह गया हूं। मेरे अक्षर-अक्षर में ईमानदारी है, सच्चाई है, नैतिकता है, वगैरह-वगैरह...

रिपोर्टर (थोड़ी ऊंची आवाज में) : लो जी, कसम खाकर भी सरासर, खुल्लमखुल्ला झूठ बोल रहे हों? शरम नहीं आती आपको?

घोषणा-पत्र (मुस्कराते हुए) : सही कह रहे हों मित्र। शरम ही तो नहीं आती हमें। क्यों आएगी शरम बेचारी? नेताओं के साथ रहते-रहते हमने उम्र गुजार दी है सारी। हमारे बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही है नेताओं के साथ यारी। अब चल यहां से रिपोर्टर महोदय, बहुत हो गई तुम्हारी होशियारी। आज विश्व कविता दिवस भी है, ज्यादा पेल दूंगा तो पूरी रात दूर ना होगी मेरी कविता की खुमारी...।

रिपोर्टर : बस कर मेरे बाप... गलती हो गई आज। रिजोल्यूशन तो याद ना आया, पर आ बैल मुझे मार कहावत जरूर याद आ गई है। जा रहा हूं ...

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