गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

Satire : पौधे की अभिलाषा

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पौधे की अभिलाषा

चाह नहीं बड़ा होकर
फूलों से लद जाऊं
चाह नहीं दरख्त बन
हवा में सरसराऊं
चाह नहीं छतनार बन
अपनी शाखों पर इतराऊं
चाह नहीं नेता के बंगले पर
शोभा का पेड़ कहलाऊं
मुझे काट लेना हे सरकार
बनाने ऑक्सीजन प्लांट
जिसके लिए आज मचा है
जगह जगह हाहाकार...।

मॉरल ऑफ द पोयम : अगर पौधे होकर भी वे किसी सड़क, पुल, इमारत या प्लांट जैसी चीजों के लिए सरकार के काम न आए तो व्यर्थ है उनकी पेड़गीरी।

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अब पढ़िए माखनलाल चतुर्वेदी जी की वह कविता पुष्प की अभिलाषा जो उक्त कविता की प्रेरणा बनी है....

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

रविवार, 25 अप्रैल 2021

Humor & Satire : बंगाल चुनाव नतीजों से पहले ही एक रिजॉर्ट से एक्सक्लूसिव बातचीत

रिजार्ट पोलिटिक्स, नेताओं पर कटाक्ष, राजनीतिक व्यंग्य,  neta per jokes

By Jayjeet

कोविड सेंटर्स में फैली अफरा-तफरी, हॉस्पिटल्स से आ रही करुण कंद्रन के बीच थोड़ा फील गुड करने-करवाने के लिए रिपोर्टर निकल पड़ा एक रिजॉर्ट की ओर। नहीं जी, वहां तफरीह वगैरह के लिए नहीं, बस उससे बात करने के लिए.... पांच राज्यों में चुनाव नतीजे आने से पहले ही किसी रिजॉर्ट का पहला इंटरव्यू। एक्सक्लूसिव, हमेशा की तरह केवल इस रिपोर्टर के पास...

रिपोर्टर : मुंह पर बड़ी मुर्दानगी छाई हुई है जी..

resort : तो क्या मैं नाचूं? माहौल नहीं देख रहो?

रिपोर्टर : अरे महोदय, खुश हो जाइए, कम से कम आपके अच्छे दिन आने वाले हैं।

resort : क्यों? चुनाव खतम हो गए क्या?

रिपोर्टर : नहीं, बस समझो खत्म होने ही वाले हैं। जब चुनाव आयोग जाग जाता है, तब चुनाव खत्म होने का टाइम आ जाता है। अभी-अभी आयोग जागा है। इसीलिए तो मैं आपके पास भागा-भागा आया हूं।

resort : चलो भगवान का लाख-लाख शुक्र है। मैंने तो सारी उम्मीदें ही छोड़ दी थीं। मुझे याद है जब चुनाव शुरू हुए थे, तो उस समय मेरे आंगन के किनारे पर आम का वह छोटा-सा पौधा लगाया गया था - मैंगू। देखो, कितना बड़ा हो गया है। अब तो उसमें फल भी आने वाले हैं।

रिपोर्टर : बस, वही फल खाने के लिए तो आपको गुलजार करने आ रहे हैं हमारे माननीय।

resort : मुंह ना नोच लूं... आ तो जाए जरा निगोड़े। इस माहौल में भी लाज ना आ रही है इनको..

रिपोर्टर : काबा किस मुंह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुमको मगर नहीं आती। ऐसा ही हाल है इनका। आप इनका मुंह नोच लो कि नंगा कर दो, कुछ फर्क ना पड़ने वाला इन्हें। भाई, ये चुनाव लड़ते ही क्यों है? महीनों से मेहनत कर रहे हैं। अब फल भी ना खाएं भला...!!

resort :###$$&##**####  (गालिया)

रिपोर्टर (बीच में टोकते हुए) : माफी चाहूंगा। आप इतने सोफिस्टेकैटेड रिजॉर्ट हो। ये गालियां, आई मीन ओछी बातें आपकी जबान पर शोभा नहीं देती।

resort : भैया क्या करें। स्साले इन नेताओं की संगत में मेरा कैरेक्टर भी खराब हो गया है। मुंह में गालियां भर गई हैं। रात को बुरे-बुरे सपने आते हैं। वैसे नेताओं को गालियां देने में आपको क्यों तकलीफ हो रही है?

तभी फोन की घंटी....

resort : (फोन पर ही) : जी, जी, जी.... बिल्कुल, जैसा आप कहें नेताजी...। हो जाएगी, सारी व्यवस्थाएं...

रिपोर्टर : फोन आने लगे...?

resort : हां जी, चलता हूं। दवा-दारू, कबाब-शबाब की व्यवस्था करने...।

रिपोर्टर ....  सही है। रिजॉर्ट है तो क्या हुआ। आपमें और हम जनता में क्या फर्क है। पीठ पीछे गालियां, और सामने आते ही - जी जी जी...

रिजॉर्ट तब तक अपनी व्यवस्थाओं में जुट चुका था।

# resort  # resort politics

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

Humor Video : रिजॉर्ट के बाहर क्या कर रहे हैं अमित शाह?


 

बीते दिनों कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच बंगाल चुनाव में रैलियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह (amit shah) सोशल मीडिया पर लोगों के खासे निशाने पर रहे। बीजेपी की चुनावी राजनीति पर देखिए यह छोटा-सा व्यंग्य वीडियो :

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

Satire : चुनाव नतीजों से पहले एक बेचैन EVM के साथ इंटरव्यू

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हिंदी सटायर डेस्क। असम और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में यूज की गई ईवीएम इस समय बंद दरवाजों के पीछे आराम फरमा रही हैं। लेकिन उनमें एक अजीब-सी बेचैनी भी है। हिंदी सटायर ने ऐसी ही एक बेचैन और परेशान ईवीएम से बात करने की कोशिश की। नाम न छापने की शर्त पर वह इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गई। पेश है उस इंटरव्यू के कुछ खास अंश :

हिंदी सटायर : कुछ घंटे बचे हैं। कैसा फील हो रहा है? कुछ नर्वसनेस?

EVM : हां भैया, बहुत बेचैनी है, घबराहट फील हो रही है।

हिंदी सटायर : क्यों?

EVM : क्यों क्या? अगर किसी के चाल-चलन पर लगातार शक किया जाए तो क्या अच्छा लगेगा? अगर आपकी बहन-बेटी को कोई कुलक्षणी कहेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा?

हिंदी सटायर : पर आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि लोग आपके कैरेक्टर पर सवाल उठा रहे हैं?

EVM : अरे भाई, अब तो यह हर चुनाव की बात हो गई है। एक पार्टी के लोग हारते नहीं कि दूसरी पार्टी के लोगों पर आरोप लगा देते हैं कि उन्होंने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की। कभी आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग के लोग मिलकर हमारे साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। ये क्या है? ये एक तरह से हमारे कैरेक्टर पर ही उंगली उठाना हुआ। मतलब तो यही हुआ ना कि वे छेड़ रहे हैं और हम छिड़ रही है। इसकी आड़ में लोग हमें कुलक्षणी तक बोल रहे हैं!

हिंदी सटायर : तो आप मौका ही क्यों देती है छेड़छाड़ का?

EVM : यह पुरुष प्रधान समाज है। भले ही महिला की गलती हो या न हो, इज्जत तो उसी की उतारी जाती है। इसलिए मेरा कहना है कि कोई भी आरोप लगाने से पहले सच्चाई तो पुख्ता कर लो कि वाकई किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई भी या नहीं। अगर किसी ने किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की भी तो छेड़छाड़ करने वाले को पकड़ो। पूरी ईवीएम बिरादरी पर उंगली उठाना कहां का न्याय है?

हिंदी सटायर : नतीजों के बारे में क्या कहना है?

EVM : भाई, अब बाकी की बातें बाद में करेंगे। अब तुम जाओ, किसी ने देख लिया तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमें ही ताने दिए जाएंगे कि चालू ईवीएम किस गैर मर्द के साथ नजरें लड़ा रही थीं।

Not Funny & humor : सरकार हमें हमारे भगवान भरोसे छोड़ रही है तो प्लीज शिकायत तो मत कीजिए...!!!

 

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(क्योंकि हमने सरकार से हर बार मंदिर और मस्जिद ही मांगे, अस्पताल नहीं...)
By Jayjeet

इन दिनों हर सुबह जब मैं अखबार देखता हूं तो बार-बार खुद से ही पूछता हूं - हमारे यहां अच्छे हॉस्पिटल क्यों नहीं हैं? अस्पतालों में अच्छी व्यवस्थाएं क्यों नहीं हैं? क्यों लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही? क्यों जरूरी इंजेक्शन नहीं मिल रहे? और हर व्यक्ति यही सोच रहा है। खुद से यही पूछ रहा है। आपसी बातचीत में भी हम एक-दूसरे से यही पूछ रहे हैं। जाहिर है मेरी उंगली सरकार की तरफ ही उठ रही है। आप सब की भी।
पर सरकार को इससे फर्क पड़ता है? बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि वह उस एक अंगुली को नहीं देखती, जो उसकी तरफ उठती है। वह तो उन चार उंगलियों को देखकर खुशी में मस्त होती है जो मेरी ओर, हमारी ओर उठ रही हैं।
सरकार ने वह सब तो दिया, जो हमने मांगा। हमने मांगा मंदिर, वह दे दिया। हमने मांगी एक भूतपूर्व मस्जिद के टूटे हुए ढांचे की भरपाई। उसके लिए जमीन दे दी। और सरकार देती भी कैसे नहीं? सालों हमने एक से दूसरी अदालतों तक लड़ाई लड़ी, अपने मंदिर के लिए, अपनी मस्जिद के लिए। सड़कों पर भी लड़े। खूब लड़े। किसी ने केसरिया खून बहाया तो किसी ने हरा। तो सरकार किसी के भी बाप की होती, उसे तो मंदिर और मस्जिद देना ही था।
क्या हम एक अदद अस्पताल के लिए लड़े? क्या हमने अस्पताल के लिए खून बहाया? क्या कभी अपने किसी नेता को अस्पताल के नाम पर हराया या जिताया? तो फिर आज सरकार से शिकायत क्यों? उसने मंदिर दे दिया, मस्जिद के लिए जमीन दे दी।
एक और मंदिर का मामला अदालत में पहुंच ही गया है। वहां भी हम लड़ेंगे, अपने मंदिर के लिए, अपनी मस्जिद के लिए। सालों बाद सरकार हमें कुछ न कुछ दे ही देगी। पर हां, सदियों बाद भी हमें अस्पताल नहीं मिलेंगे, क्योंकि वे हमें चाहिए ही नहीं।
अब अगर सरकार हमें भगवान भरोसे छोड़ रही है, तो प्लीज शिकायत तो मत कीजिए। मैंने भी शिकायत करना छोड़ दिया है। क्योंकि मैं और आप अलग थोड़े ही हैं।
और यह तब तक होता रहेगा, जब तक हम अपने मंदिरों और मस्जिदों से यह न कह सकेंगे, माफ कीजिएगा मंदिर-मस्जिद। हमें अस्पताल भी चाहिए। और मुझे नहीं लगता किसी मंदिर या मस्जिद को इसमें कोई आपत्ति होगी।

# temple with mosque

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

Humor & Satire : जहां चुनाव, वहां राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है...

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By Jayjeet

ऑक्सीजन बहुत तेजी में थी, फिर भी रिपोर्टर ने उसे पकड़ ही लिया...

रिपोर्टर : इतनी तेजी में कहां भाग-दौड़ कर रही हों?

ऑक्सीजन : रिपोर्टर होकर कुछ ना पता?

रिपोर्टर : मालूम है। आपकी बड़ी डिमांड है। इसीलिए तो आपके पास आया हूं।

ऑक्सीजन : तो अपनी ब्रेकिंग के चक्कर में मेरा रास्ता ना रोको। कोशिश कर रही हूं कि मैं जितनी ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आ सकूं।

रिपोर्टर : इंसान वही जो इंसान के काम आ सके। अब तो कहना पड़ेगा, ऑक्सीजन वही जो इंसान के काम आ सके...

ऑक्सीजन : नेताओं के पास से आ रहे हो? घटिया जुमले छोड़ो, मैं जुमलेबाजी में नहीं, काम में विश्वास करती हूं।

रिपोर्टर : पर आप क्यों परेशान हो रही हो? लोगों को ऑक्सीजन देना तो सरकार का काम है।

ऑक्सीजन : और सरकार ना करे तो? तो लोगों को ऐसे ही मर जाने दूं? अपने आखिरी कतरे तक मैं लोगों को जिलाती रहूंगी।

रिपोर्टर : पर सरकार की भी कुछ मजबूरी रही होगी। कोई यूं ही बेवफ़ा नहीं होता...

ऑक्सीजन : दो-चार शेर पढ़कर भी कोई यूं ही बड़ा रिपोर्टर ना बन जाता। वैसे सरकार की तरफदारी आप क्यों कर रहे हो? कुछ आपकी भी मजबूरी रही होगी... अब जाऊं मैं..?

रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल। चुनाव वाली जगहों में आपकी जरूरत क्यों नहीं पड़ रही?

ऑक्सीजन : तो लो मेरी ओर से ब्रेकिंग न्यूज- क्योंकि वहां अभी तो सबको राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है। चुनाव बाद भगवान बचाएं...

और ऑक्जीन वहां से तुरंत कट ली...

# Oxygen 


रविवार, 11 अप्रैल 2021

Not Funny : 'तपस्वी' एक साल की तपस्या के बाद फिर से 'गृहस्थ जीवन' में लौट आए हैं...!!

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By Jayjeet


भोपाल के एक सरकारी हॉस्पिटल में शनिवार को एक सरकारी डॉक्टर के साथ कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा की गई हरकत को लेकर पिछले दो दिन से सोशल मीडिया पर कई पोस्ट पढ़ने को मिली। उन डॉक्टर के साथ की गई हरकत उतनी ही निंदनीय है, जितनी किसी डॉक्टर द्वारा किसी मरीज की जान के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ निंदनीय होता है। उन डॉक साहब को मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता हूं। इसलिए उनके प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है।

तो फिर समस्या कहां है? समस्या यह है कि उस घटना के बहाने दो अलग-अलग चीजों को मिलाने की अनावश्यक कोशिश की जा रही है। उस घटना के बहाने तमाम उन डॉक्टरों को भी क्लीन चिट देने का प्रयास किया गया है जो कोरोना-काल द्वितीय में आई आपदा को 'अवसर' मानने में तन-मन-धन से जुटे हुए हैं। कोरोना काल प्रथम में उनके द्वारा की गई 'तपस्या' को अब किए जाने वाले पापों का सुरक्षा कवच माना जा रहा है। कोरोना काल प्रथम में कई डॉक्टर्स ने, खासकर सरकारी हॉस्पिटल्स के डॉक्टरों ने तपस्वी बनकर सेवा की। उन्हें प्रणाम। लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से अधिकांश तपस्वी महज एक साल की तपस्या के बाद ही फिर से 'गृहस्थ जीवन' में लौट आए हैं।

देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जनता की खुलेआम नाराजगी सामने आ रही है तो वह यूं तो नहीं होगी। धुआं बगैर आग के निकलते शायद ही किसी ने देखा होगा। यह नाराजगी सरकारी नाकारा सिस्टम के साथ-साथ उन प्राइवेट हॉस्पिटल्स और निजी डॉक्टर्स के खिलाफ भी है जो कोरोना काल में भी सीटी स्कैन का कमीशन तक नहीं छोड़ रहे हैं। इनमें सरकारी डॉक्टर्स भी कोई अपवाद नहीं है, यह भी सब जानते हैं।

माना सरकारी डॉक्टरों ने सेवा की है। लेकिन सेवा का इतना महिमामंडन क्यों? मैंने कहीं पढ़ा है (जो सच ही होगा) कि हर डॉक्टर अपनी पहली शपथ में सेवा की कसम खाता है। अगर सेवा का महिमामंडन करना ही है तो 7-10 हजार रुपए में संविदा पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों का क्यों नहीं जिन्होंने लगभग समान खतरे में रहकर काम किया है, 15-20 हजार रुपए पाने वाली नर्सों का क्यों नहीं, जिन्होंने तो डॉक्टरों से भी ज्यादा जोखिम उठाया है।

माना डॉक्टर बड़ी मुश्किल से, मेहनत से और जो ये नहीं कर पाते, वे लाखों के डोनेशन से बनते हैं (नो डाउट, इस डोनेशन के लिए भी उनके माता-पिता को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है)। लेकिन पता नहीं, डॉक्टर्स यह क्यों नहीं सोच रहे हैं कि कल तो संकट खत्म हो ही जाएगा। आज पैसे नहीं कमा पाएंगे तो कल कमा लेंगे। लेकिन इस दौर में डॉक्टर वह जरूर कमा सकते हैं, जिसका मौका सबको नहीं मिलता है।

चलते-चलते एक कहानी, एक छोटे से शहर के एक डॉक्टर की। कोरोना काल प्रथम में उस शहर के सभी नामी-गिरामी प्राइवेट डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक पर 'बंद' के बोर्ड लगा दिए। डर सबको लगता है। उन डॉक्टरों को भी लगा होगा। कुछ भी अस्वाभाविक नहीं। लेकिन एक डॉक्टर ने सोचा- इस समय अगर मैं काम न आया तो फिर मेरी डॉक्टरी को लानत है। लगातार मरीजों की सेवा की। और फिर उन्हें कोरोना से बीमार तो पड़ना ही था। लेकिन शहर के लोग भी कहां पीछे रहे। उनके लिए पूजा की, दुआएं मांगी। और भगवान से जिद करके उन्हें वापस ले ही लाए, सही-सलामत। तो उस डॉक्टर के लिए उनकी सेवा ही इतनी बड़ी कमाई बन गई। किसे मिलता है ऐसा मौका? 

शिकायत करने वाले अच्छे डॉक्टर इस सच्ची कहानी से प्रेरणा ले सकते हैं...। फिर मजाल दो-चार टके वाले नेताओं की...!!! 

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

Satire & humor : रिश्वत लेते पकड़े गए रंगे हाथ ने बयान किया अपना दर्द

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By Jayjeet

पिछले कुछ दिनों से कुछ नाकारा लोगों के रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ में आ जाने की खबरों से रिपोर्टर बड़ा हैरान और परेशान था। सवाल ही इतना बड़ा था। आखिर रिश्वत लेता कोई हाथ पकड़ में आ भी कैसे सकता है? रिपोर्टर ने ठान ही लिया कि आज तो उस रंगे हाथ की खबर लेकर ही मानेगा।

रिपोर्टर : आखिर पकड़ ही लिया मैंने रंगे हाथ पकड़ में आने वाले हाथ को...

रंगा हाथ (हाथ छुड़ाने की असफल कोशिश करते हुए) : मैं वो हाथ नहीं हूं जी। मैं तो होली में रंगा हाथ हूं...

रिपोर्टर : हम रिपोर्टर हैं तो क्या हुआ, इतने भी मूरख नहीं हैं कि हाथ-हाथ में फर्क ना समझ पाए। गब्बर लोग होली खेलकर कब के वापस चुनावों में बिजी हो गए हैं। हमें ना बनाओ अब..

रंगा हाथ : हां, अब आपसे क्या छिपाना। लेकिन आप हाथ धोकर हमारे पीछे क्यों पड़े हो जी?

रिपोर्टर : आपसे खास चर्चा करनी है, इसलिए। बल्कि आपकी खबर लेनी है।

रंगा हाथ : देखिए, मैं छोटा-सा मासूम हाथ। पहले से ही बहुत टेंशन में हूं। आप सवाल पूछेंगे तो और टेंशन में आ जाऊंगा।

रिपोर्टर : आप जैसे नाकारा हाथों को तो टेंशन में आना ही चाहिए। पकड़ में आकर आप न केवल पूरे सिस्टम को शर्मिंदा कर रहे हों, बल्कि रिश्वत लेने को मजबूर भोले-भाले प्राणियों में डर का माहौल भी बना रहे हो। देश में पहले से ही डर कम है क्या?

रंगा हाथ : लेकिन मैं तो केवल हाथ हूं, मुझे क्यों सुना रहे हों?

रिपोर्टर : रिश्वत लेने का तो शाश्वत नियम ही यह है कि इस हाथ लो तो उस हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। महाभारत काल से यह चला आ रहा है। लाक्षागृह बनाने वाले इंजीनियर के हाथों ने भी तो रिश्वत ली होगी। आज तक सबूत ना मिले। और आप बाकायदा सबूत समेत पकड़ में आ रहे हों। एक-आध बार हो तो चलो, बेनिफिट ऑफ डाउट दे दें। लेकिन बार-बार...

रंगा हाथ : भाई साहब, माना आप परमज्ञानी हों। महाभारत काल की झूठी-सच्ची कहानियों की भी बराबर खबर रखते हो। लेकिन आप हमारी मजबूरी नहीं समझ रहे हैं।

रिपोर्टर : अब ऐसी क्या मजबूरी कि पकड़ में ही आ जाओ?

रंगा हाथ : आप तो पहले से ही समझदार हों। फिर भी हम समझा देते हैं। अगर हम पकड़ में आ रहे हैं तो गलती दो लोगों की है- एक वे जो हमें पकड़ रहे हैं। तो सिस्टम को हमसे से भी ज्यादा लज्जित करने वाले ये लोग हैं, हम नहीं। दूसरा, हम हैं तो बस मोहरें ही ना। हमारी अपनी तो वकत है नहीं। जिम्मेदार तो वह खाली पेट है। पता नहीं स्साले उस पेट में ऐसे क्या-क्या एसिड भरे हैं कि अंदर माल जाते ही तुरंत पचा डालता है। और फिर हमें उंगली करने लगता है। अब हमारी भी तो कोई लिमिट है कि नहीं। ओवरलोड होने से प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़ेगा ही।

रिपोर्टर : मतलब, समस्या कहीं और है और परेशान आप हो रहे हों?

रंगा हाथ : बिल्कुल, आपको यह बात समझ में आ गई, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रही। मैं पहले भी कई बार बोल चुका हूं कि करप्शन के सिस्टम को हाईटेक कीजिए। जमाना कहां से कहां पहुंच गया और हमें आज भी टेबल के नीचे घुसने को कहते हैं...

रिपोर्टर : हम्म... आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट कहते हैं उसे। आपको उसका इस्तेमाल करना चाहिए।

रंगा हाथ : आर्टिफेशियल-वेशियल, जो भी हो, हम तो इतने पढ़े-लिखे हैं नहीं। होते तो पकड़ में आते भला। पर हम जिन इंटेलीजेंट लोगों के हाथ हैं, उनके दिमाग में क्या भूसा भरा है। वे सोचें। आखिर हम कब तक बेइज्जत होते रहेंगे और पूरे सिस्टम को बेइज्जत करते रहेंगे।

रिपोर्टर : हां, आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं।

रंगा हाथ : और हां, आपको भी हम गरीब ही मिलते हैं! हमें हरदम जोतने वाले, कोल्हू का बैल बनाने वाले पेट और दिमाग की तो खबर लेंगे नहीं.... है हिम्मत...???

रिपोर्टर (फोन पर एक्टिंग करने के बाद) : अच्छा, एक जरूरी काम याद आ गया। फिर मिलता हूं आपसे... विस्तार से बात करेंगे...।

# caught red handed # satire # vyangya

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

Satire & Humor : आखिर देश की आत्मा को मिला चैन…

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By Jayjeet

देश की आत्मा बहुत दिनों से बेचैन थी। इसलिए नहीं कि प्राइवेट हॉस्पिटल्स में लूट मची हुई है और सरकारें आंखें बंद करके बैठी हुई हैं। देश की आत्मा को मालूम है कि जहां भी लूट होती है, सरकारों की आंखें सबसे ज्यादा वहीं खुली होती है। एक्सपीरियंस है। तो सरकारों की तरफ से तो देश की आत्मा हमेशा से ही निश्चिंत रही है।

देश की आत्मा इस बात से भी बेचैन नहीं थी कि इतने बड़े-बड़े मसले आ रहे हैं और विपक्ष कुछ नहीं कर रहा है। देश की आत्मा अच्छे से जानती है कि विपक्ष कुछ कर भी नहीं सकता। जैसा भी है बड़ा ही प्यारा सा, मासूम सा विपक्ष है। देश की आत्मा ने विपक्ष की इस मासूमियत को स्वीकार कर लिया है। कोई गिला-शिकवा नहीं। तो विपक्ष की तरफ से भी निश्चिंत है देश की आत्मा।

तो फिर आखिर देश की आत्मा इतनी बेचैन क्यों थी? इसलिए थी कि देश में कोई डील हो और उसमें कोई लेन-देन ना हो, यह कैसे हो सकता था? वह भी हथियारों वाली डील!! जिस देश के कण-कण में एक भगवान* और दो भ्रष्ट लोग बसते हों, वहां ऐसा कैसे संभव है? क्या देश में ऐसा कोई शख्स हुआ है जिसने अपनी दो टके की मोपेड चलाने के वास्ते लाइसेंस बनाने के लिए व्हाया एजेंट टू आरटीओ बाबू अप-टू आरटीओ अफसर चाय-पानी के पैसे ना पहुंचाए हों। फिर यह तो राफेल है जिसकी औकात कम से कम मोपेड से तो ज्यादा ही होगी।

खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। भला हो फ्रांसीसी वेबसाइट का जिसने बताया कि रफाल के सौदे में 8 करोड़ रुपए किसी बिचौलिए को दिए गए। अब थोड़ा सुकून मिला। देश की आत्मा को ही नहीं, देश के 130 करोड़ लोगों की आत्माओं को भी। हालांकि सरकार के मंत्री अब भी बेशर्मी पर उतरे हुए हैं। नकार रहे हैं कि ऐसा कुछ ना हुआ जी ... हम सब कुछ सहन कर सकते हैं, लेकिन ऐसी बेशर्मी कदापि नहीं। देश की 130 करोड़ आत्माएं छोड़ेंगी नहीं, हां ...कोई भक्त-वक्त नहीं। आत्माएं सब समान होती हैं।

(* कृपया कोई बुरा न मानें। 'भगवान' में सभी जातियों, उपजातियों, पंथों, समुदायों, धर्मों और खेलों के भगवान शामिल हैं...)

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