रविवार, 11 अप्रैल 2021

Not Funny : 'तपस्वी' एक साल की तपस्या के बाद फिर से 'गृहस्थ जीवन' में लौट आए हैं...!!

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By Jayjeet


भोपाल के एक सरकारी हॉस्पिटल में शनिवार को एक सरकारी डॉक्टर के साथ कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा की गई हरकत को लेकर पिछले दो दिन से सोशल मीडिया पर कई पोस्ट पढ़ने को मिली। उन डॉक्टर के साथ की गई हरकत उतनी ही निंदनीय है, जितनी किसी डॉक्टर द्वारा किसी मरीज की जान के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ निंदनीय होता है। उन डॉक साहब को मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता हूं। इसलिए उनके प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है।

तो फिर समस्या कहां है? समस्या यह है कि उस घटना के बहाने दो अलग-अलग चीजों को मिलाने की अनावश्यक कोशिश की जा रही है। उस घटना के बहाने तमाम उन डॉक्टरों को भी क्लीन चिट देने का प्रयास किया गया है जो कोरोना-काल द्वितीय में आई आपदा को 'अवसर' मानने में तन-मन-धन से जुटे हुए हैं। कोरोना काल प्रथम में उनके द्वारा की गई 'तपस्या' को अब किए जाने वाले पापों का सुरक्षा कवच माना जा रहा है। कोरोना काल प्रथम में कई डॉक्टर्स ने, खासकर सरकारी हॉस्पिटल्स के डॉक्टरों ने तपस्वी बनकर सेवा की। उन्हें प्रणाम। लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से अधिकांश तपस्वी महज एक साल की तपस्या के बाद ही फिर से 'गृहस्थ जीवन' में लौट आए हैं।

देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जनता की खुलेआम नाराजगी सामने आ रही है तो वह यूं तो नहीं होगी। धुआं बगैर आग के निकलते शायद ही किसी ने देखा होगा। यह नाराजगी सरकारी नाकारा सिस्टम के साथ-साथ उन प्राइवेट हॉस्पिटल्स और निजी डॉक्टर्स के खिलाफ भी है जो कोरोना काल में भी सीटी स्कैन का कमीशन तक नहीं छोड़ रहे हैं। इनमें सरकारी डॉक्टर्स भी कोई अपवाद नहीं है, यह भी सब जानते हैं।

माना सरकारी डॉक्टरों ने सेवा की है। लेकिन सेवा का इतना महिमामंडन क्यों? मैंने कहीं पढ़ा है (जो सच ही होगा) कि हर डॉक्टर अपनी पहली शपथ में सेवा की कसम खाता है। अगर सेवा का महिमामंडन करना ही है तो 7-10 हजार रुपए में संविदा पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों का क्यों नहीं जिन्होंने लगभग समान खतरे में रहकर काम किया है, 15-20 हजार रुपए पाने वाली नर्सों का क्यों नहीं, जिन्होंने तो डॉक्टरों से भी ज्यादा जोखिम उठाया है।

माना डॉक्टर बड़ी मुश्किल से, मेहनत से और जो ये नहीं कर पाते, वे लाखों के डोनेशन से बनते हैं (नो डाउट, इस डोनेशन के लिए भी उनके माता-पिता को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है)। लेकिन पता नहीं, डॉक्टर्स यह क्यों नहीं सोच रहे हैं कि कल तो संकट खत्म हो ही जाएगा। आज पैसे नहीं कमा पाएंगे तो कल कमा लेंगे। लेकिन इस दौर में डॉक्टर वह जरूर कमा सकते हैं, जिसका मौका सबको नहीं मिलता है।

चलते-चलते एक कहानी, एक छोटे से शहर के एक डॉक्टर की। कोरोना काल प्रथम में उस शहर के सभी नामी-गिरामी प्राइवेट डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक पर 'बंद' के बोर्ड लगा दिए। डर सबको लगता है। उन डॉक्टरों को भी लगा होगा। कुछ भी अस्वाभाविक नहीं। लेकिन एक डॉक्टर ने सोचा- इस समय अगर मैं काम न आया तो फिर मेरी डॉक्टरी को लानत है। लगातार मरीजों की सेवा की। और फिर उन्हें कोरोना से बीमार तो पड़ना ही था। लेकिन शहर के लोग भी कहां पीछे रहे। उनके लिए पूजा की, दुआएं मांगी। और भगवान से जिद करके उन्हें वापस ले ही लाए, सही-सलामत। तो उस डॉक्टर के लिए उनकी सेवा ही इतनी बड़ी कमाई बन गई। किसे मिलता है ऐसा मौका? 

शिकायत करने वाले अच्छे डॉक्टर इस सच्ची कहानी से प्रेरणा ले सकते हैं...। फिर मजाल दो-चार टके वाले नेताओं की...!!! 

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