गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

Satire : पौधे की अभिलाषा

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पौधे की अभिलाषा

चाह नहीं बड़ा होकर
फूलों से लद जाऊं
चाह नहीं दरख्त बन
हवा में सरसराऊं
चाह नहीं छतनार बन
अपनी शाखों पर इतराऊं
चाह नहीं नेता के बंगले पर
शोभा का पेड़ कहलाऊं
मुझे काट लेना हे सरकार
बनाने ऑक्सीजन प्लांट
जिसके लिए आज मचा है
जगह जगह हाहाकार...।

मॉरल ऑफ द पोयम : अगर पौधे होकर भी वे किसी सड़क, पुल, इमारत या प्लांट जैसी चीजों के लिए सरकार के काम न आए तो व्यर्थ है उनकी पेड़गीरी।

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अब पढ़िए माखनलाल चतुर्वेदी जी की वह कविता पुष्प की अभिलाषा जो उक्त कविता की प्रेरणा बनी है....

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

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