सोमवार, 24 मई 2021

Not Funny : बड़े वकीलों की दिल्लगी...और कुछ नॉटी गॉसिप्स...!!

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By Jayjeet

दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट की एक ऑनलाइन सुनवाई के दौरान देश के कुछ वरिष्ठ वकीलों ने हंसी-दिल्लगी के दौरान एक ऐसे विषय की ओर ध्यान आकृष्ट किया है, जो अब गंभीर चर्चा की डिमांड कर रहा है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक खबर के अनुसार देश के लब्ध प्रतिष्ठ वकीलों के बीच मजाक का विषय यह था कि कौन-सा वकील सबसे ज्यादा पैसा लेता है। इस हंसी-मजाक में शामिल थे अभिषेक मनु सिंघवी, सुप्रीम कोर्ट बॉर एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता। 

वकीलों ने आपसी मजाक में इस बात का खुलासा किया कि देश के कुछ वकील ऐसे हैं जो महज 10 मिनट की पैरवी के लिए ही दस लाख रुपए तक लेते हैं। इस बात का खुलासा भी हुआ कि सालों पहले वकीलों द्वारा ली जाने वाली भारी-भरकम फीस को अनुचित मानते हुए सुप्रीम कोर्ट बॉर एसोसिएशन के तत्कालीन प्रेसिडेंट मुरली भंडारे फीस की ऊपरी सीमा तय करने के लिए प्रस्ताव भी लाए थे जिसे शांतिभूषण ने यह कहते हुए डस्टबीन के हवाले कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ऐसा करने वाला कौन? 

वहां ये सब बातें बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में कही जा रही थी और इसलिए ऑनलाइन सुनवाई के लिए जजों के आते ही उनकी इस टिप्पणी के साथ खत्म हो गई कि जज बनने से पहले हम भी वकील थे और जानते हैं कि वकील किस तरह की 'नॉटी गॉसिप' करते हैं। 

सही है, बड़े-बड़े वकीलों के लिए तो यह नॉटी गॉसिप ही है। और हमारी न्याय प्रणाली में ऐसी छोटी-छोटी नॉटी गासिपें चलती रहती हैं कि किस तरह लॉकडाउन की तरह कोर्ट केसेस में तारीख पे तारीख बढ़ती रहती है, किस तरह फैसले आने में 30 से 40 साल तक लग जाते हैं, किस तरह लाखों की तादाद में हर साल मामलों के अंबार लगते रहते हैं, किस तरह आज भी हमारा पूरा न्यायिक सिस्टम 40-50 दिन के समर वैकेशन पर जाना समृद्ध परंपरा का अभिन्न हिस्सा समझता है, आदि आदि... ये सब छोटी-छोटी नॉटी गॉसिप्स हैं, इनके क्या मायने भला?  

पर इन गॉसिप से इतर एक बड़े सवाल पर चर्चा करना जरूरी है। जब इतने बड़े-बड़े वकील इतनी बड़ी-बड़ी फीस लेते हैं तो उन्हें देने वाला भी तो बड़ा ही होता होगा। और कोई उन्हें इतनी भारी-भरकम फीस क्यों देता है? अभी कुछ दिन पहले ही हम सबने वेब सीरीज 'स्कैम 92' देखी है। याद कीजिए, वेब सीरीज का वह दृश्य जिसमें राम जेठमलानी की बाजू में हर्षद मेहता बैठा हुआ है। राम जेठमलानी जी स्वर्ग सिधार चुके हैं। इसलिए संस्कार यही कहते हैं कि हम उनके बारे में अच्छी बातें ही करें। तो अच्छी बात यह थी कि उन्होंने जनहित के कई मामले फ्री में लड़ें... हां, फ्री में भी... एक दावे के अनुसार 90 फीसदी मामले उन्होंने फ्री में लड़े। जो पैसा कमाया, वह केवल हर्षद मेहता स्कैम, हाजी मस्तान स्मगलिंग केस, जेसिका लाल मर्डर केस फेम मनु शर्मा जैसों से कमाया। आज जो लब्ध प्रतिष्ठ वकील हैं, जिनमें से कई बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों से भी जुडे़ हैं, कई मंत्री हैं और कई मंत्री रह चुके हैं, वे भी जनहित के कई मामले फ्री में लड़ते हैं...। वे भी हर्षद मेहताओं, मनु शर्माओं से ही पैसा कमाते हैं या फिर मधु कोड़ाओं जैसे भ्रष्ट नेताओं से। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारी-भरकम पैसा देने वाले सभी अपने अपराधों से बच ही जाते होंगे। फिर भी भारी-भरकम फीस दी जा रही है। बड़े-बड़े वकीलों के टैलेंट का इस्तेमाल हो रहा है। यह इस्तेमाल कैसा और कहां होता होगा, हम-आप जैसे सामान्य लोग तो कभी समझ भी नहीं पाएंगे। हम तो बस हिरण हत्याकांड जैसे मामलों की कोर्ट कार्रवाई में कभी-कभार जाते हुए अपने सल्लू भाई को अपने प्रशंसकों के सामने हाथ हिलाते ही देख पाते हैं, कहीं और 'हाथ मिलाते' हुए नहीं...। 

खैर, देश को अगर वाकई बदलना है तो क्या इसकी चिंता भी नहीं करनी चाहिए कि वकीलों की फीस कितनी होनी चाहिए? मजाक में नहीं, हकीकत में....पर कौन करेगा, कैसे करेगा, पता नहीं क्योंकि माननीय जज तो कह ही चुके हैं - जज बनने से पहले हम भी वकील ही होते हैं...

तो क्या बेहतर नहीं होगा कि बड़े-बड़े वकील ही इसकी चिंता करें...? क्योंकि जेब वाले कफन बनने तो अभी शुरू हुए नहीं। कफनों को तो मैनुप्यूलेट नहीं किया जा सकता...कम से कम अभी नहीं...!

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