बुधवार, 4 अगस्त 2021

Satire : और अचानक सत्य से हो गई मुलाकात....

(आज अगर अचानक हमारी सत्य नामक जीव से मुलाकात हो जाए तो वह हमें दूर ग्रह का एलियन टाइप ही दिखेगा... सोचिए उस रिपोर्टर की जिसकी अचानक ऐसे ही एलियन से मुलाकात हो गई...)


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सत्य आज कुछ-कुछ ऐसा ही एलियन टाइप नजर आएगा। 

By Jayjeet

सच इन दिनों ट्रेंड में है। हर कोई सच की तलाश में है। कोई पेगासस जासूसी कांड का सच जानना चाहता है तो किसी को किसान आंदोलन के पीछे के सच की चिंता है। पर सच जानकर करेंगे क्या? यह किसी को भी पता नहीं। 


लेकिन सच है कहां? क्या वाकई कहीं सच है भी? उस रिपोर्टर का तो यही दावा था कि हां, उसने सच को ढूंढ निकाला।


हुआ यूं कि उस दिन रिपोर्टर किसी ब्रेकिंग न्यूज की तलाश में नगर निगम के बाजू में स्थित बापू की प्रतिमा के पास खड़ा था। उसे वहीं एक कोने में पड़े कचरे के ढेर से एक साया झांकता हुआ नजर आया। रिपोर्टर ने ब्रेकिंग न्यूज के फेर में उसी साये को पकड़कर ढेर से बाहर निकाल लिया। पर यह क्या! एलियन जैसी आकृति! रिपोर्टर ऐसी आकृति पहली बार देख रहा था। तो चौंकना लाजिमी था। शुक्र है आसपास कोई और ना था। (नोट : दी गई तस्वीर उसी रिपोर्टर द्वारा दिए गए ब्योरे के आधार पर बनाई गई है।)


"आप कौन? इससे पहले तो आपको कभी देखा नहीं!' रिपोर्टर ने उस अनूठी एलियन टाइप की आकृति से बड़े ही अचरज के साथ पूछा। 


"मैं बताना तो नहीं चाहता, पर झूठ भी नहीं बोल सकता।' कचरे को झाड़ते हुए एलियन टाइप के साये ने जवाब दिया। अब वह गांधी मूर्ति के पास बहुत ही सतर्क होकर बैठ गया। 


"अच्छा...तो सच ही बोल दीजिए।' रिपोर्टर ने कुटिल मुस्कान के साथ ऐसे कहा मानो कोई बहुत बड़ा कटाक्ष कर दिया हो।


"जी मैं सत्य ही हूं।' बेचारा सत्य, रिपोर्टर के कटाक्ष को क्या जाने और क्या समझे। 


"अच्छा..... वही सत्य जिसकी लोग हमेशा तलाश में रहते हैं?'

 

रिपोर्टर को भरोसा नहीं हो रहा है। इसलिए उसने दो बार अपनी आंखें मसली, आकृति को छूकर सत्य की पुष्टि करनी चाही। फिर जेब से 100 रुपए का नोट निकाला। उलट-पलटकर देखा। गांधीजी की तस्वीर के बाजू में लिखे सत्यमेव जयते में "सत्य' आलरेडी उपस्थित था। तो यह कोई फेक सत्य तो नहीं! रिपोर्टर दुविधा में है। फिर उसने नोट को जेब के अंदर सरकाते हुए मामले का और भी सच जानने का निश्चय किया। 


"क्या सोच रहे हो महोदय?' सत्य ने बड़ी ही अधीरता के साथ इधर-उधर झांकते हुए कहा। उसकी अलर्टनेस बढ़ गई है। थोड़ी घबराहट भी।


"आप वाकई सत्य हो? पर उस कोने में पड़े कचरे के ढेर में क्या कर रहे थे?' रिपोर्टर ने तफ्तीश शुरू की।


"भाई, मेरी वहीं जगह है। आप लोगों ने ही तय की हाेगी। मैं तो कब से कोने वाले उसी कचरे के ढेर मंे पड़ा हूं। अच्छा होता, मुझे आप वहीं अंदर ही रहने देते। मैं जब तक छिपा हूं, तभी तक सुरक्षित हूं।' सत्य लगातार इधर-उधर देख रहा है। असुरक्षा और घबराहट के भाव बरकरार हैं। 


"आप इतने डरे-डरे, सहमे-सहमे से क्यों हों?'


"मुझे देखते ही कहीं लोग मेरा एनकाउंटर न कर देें। वैसे अब तो लिंचिंग का भी फैशन चल पड़ा है। इसीलिए... कृपया मुझे तुरंत जाने दीजिए। मैं वहीं ठीक हूं।'


"पर आपको डरना क्यों चाहिए? वैसे भी कहा ही गया है, सांच को आंच नहीं। अगर आप वाकई सत्य हो तो फिर काहें का डर?' रिपोर्टर ने सत्य की सत्यता की पुष्टि करने के लिए बचपन में पढ़ा हुआ मुहावरा फेंका।

  

"जब नेता टाइप के लोग मेरी रोटी बनाकर मुझे सेंकते हैं तो आंच मुझे भी लगती है।'  


"हो सकता है, वे आपके साथ प्रयोग करते हों, जैसे कभी बापू ने किए थे। मैंने कहीं पढ़ा था- गांधीजी के सत्य के प्रयोग। ऐसा ही कुछ...' रिपोर्टर ने एक ठहाका लगाया। पता नहीं क्यों लगाया। शायद अपनी ही बचकानी बात पर मोहर लगाने के लिए।


"भाई साहब, आप भी अच्छा मजाक कर लेते हों। अच्छा मुझे जाने दीजिए...' सत्य भी रिपोर्टर के मजाक को समझ गया। अब भी जाने की जिद पर अड़ा है।


"मैं आपके साथ हूं ना। आप घबराइए मत। आपका कुछ नहीं होने वाला।' राजनीतिक रिपोर्टिंग करते-करते इस तरह के आश्वासन रिपोर्टर्स की जबान पर भी स्थाई भाव की तरह चिपक ही जाते हैं।


"पुलिस, सीबीआई या सीआईडी वाले, इनसे आप बचा लोंगे? सबसे ज्यादा डर तो इनसे ही लगता है।' भयंकर घबराया हुआ सा है सत्य।


"लेकिन सत्य जी, पुलिस, सीबीआई, सीआईडी, ये तो हमेशा से ही आप के मुरीद रहे हैं। सत्य को ढूंढने की इन पर एक महती जिम्मेदारी भी है। अगर आप इनसे बचकर रहेंगे तो कैसे काम चलेगा? जनता तक सच पहुंचेगा कैसे?'


"नहीं भाई, दो-चार बार मैं इनसे मिला भी तो इन्होंने मेरा ये हाल किया कि उसे याद करके आज भी सिहर उठता हूं। मुझे इतना तोड़ा-मरोड़ा कि मैं, मैं ना रहा।'


"ऐसा वे क्या करते हैं? हम भी तो जानें जरा...' रिपोर्टर ने अनजान बनने का नाटक करते हुए पूछा। 

 

"इनके पास पहले से ही झूठ का सांचा रहता है। बस, उस सांचे में मुझे तोड़-मरोड़कर पटक देते हैं।' 


"लेकिन इसके लिए तो आप ही जिम्मेदार हैं।' रिपोर्टर ने शायद बड़ी बात कह दी।


"कैसे भला? अब चौंकने की बारी सत्य की थी। रिपोर्टर ने वाकई बड़ी बात ही कही थी। 


"आपकी तलाश में न जाने कितनी संसदीय समितियां बनती हैं, न जाने कितने बड़े-बड़े कमीशन बनते हैं। उनमें बड़े-बड़े अफसर नियुक्त होते हैं, सेवानिवृत्त जजों को तकलीफ दी जाती है। उनके ऑफिस, गाड़ियों पर खर्च अलग होता है। वह भी दो टके के सच, सॉरी, आई मीन सिर्फ आपकी तलाश में। एक सच को जानने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है बेचारों को। और फिर जब वह नहीं मिलता है तो पुलिस, सीबीआई, सीआईडी की मदद लेनी ही पड़ती है। क्या करें वे भी।' रिपोर्टर ने नैतिक ज्ञान पेला। 


"मैं समझा नहीं।' सत्य वाकई मासूम ही है। 


रिपोर्टर बगैर रुके रौ में बोल रहा है, "या फिर उन्हें आपकी तलाश इसी वाले सत्यमेव जयते के "सत्य' पर जाकर खत्म करनी पड़ती है।' रिपोर्टर ने उसी 100 रुपए के नोट को जेब से निकालते हुए सत्यमेव जयते वाले सत्य की ओर उंगली दिखाते हुए एलियन टाइप सत्य से कहा।  


इस बीच रिपोर्टर के बॉस का फोन भी आ गया। रिपोर्टर सत्य से साक्षात्कार की ब्रेकिंग न्यूज को लेकर फोन पर ही अपने बॉस को कन्विंस करने में लगा है। उधर बॉस शायद हंस रहा है।  


इधर, सत्य किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ा है और फिलहाल तो वह उसी कोने की ओर देख रहा है, जहां पड़े कचरे में से रिपोर्टर ने उसे ढूंढ निकाला था। ढूंढ क्या निकाला था, खींचकर जबरदस्ती बाहर निकाल लिया था। वह रिपोर्टर से नजरें बचाकर जल्दी से उसी ढेर में ओझल हो जाना चाहता है, लोगों को पता चले उससे पहले ही। फिर रिपोर्टर लाख दावा करें, कौन भरोसा करेगा। 

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। संवाद शैली में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)


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