(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
इस पोर्टल के नाम में भले ही 'Humour' हो, लेकिन यह गंभीर मुद्दे भी उठाता है, कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं। फिर कुछ जोक्स, फनी आइटम तो हैं ही।
शनिवार, 24 जुलाई 2021
Funny Interview : राज कुंद्रा मामले से फुर्सत मिलते ही रिपोर्टर ने कर ली बादल के टुकड़े से खास बातचीत
बुधवार, 21 जुलाई 2021
Satire : दो जासूस, करे महसूस कि जमाना बड़ा खराब है...
By Jayjeet
दो जासूस, दोनों के दोनों प्रगतिशील किस्म के। देश-दुनिया की समस्याओं पर घंटों चर्चा करके चर्चा के कन्क्लूजन को अपनी तशरीफ वाली जगह पर छोड़कर जाने वाले। दोनों एक कॉफ़ी हाउस में मिले। वैसे तो दोनों अक्सर इसी कॉफ़ी हाउस में मिलते रहते हैं, लेकिन आज का मिलना ज्यादा क्रांतिकारी है। अब ये जासूस कौन हैं, क्या हैं, इसका खुलासा ना ही करें तो बेहतर है। देखो ना, पेगासस नाम के किसी जासूस का खुलासा होने से कितनी दिक्कतें आ गईं। विपक्ष को हंगामा करने को मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस कहां पंजाब में अपने दो सरदारों के बीच सीजफायर करवाने के बाद थोड़ा आराम फरमा रही थी कि उसे फिर जागना पड़ा। और बेचारी सरकार। कब तक छोटे-छोटे हंगामों को राष्ट्र को बदनाम करने की साजिशें घोषित करती रहेगी। उसकी भी तो कोई डिग्नेटी है कि नहीं। कई बड़े-बड़े पत्रकार, नेता, बिल्डर, वकील, तमाम तरह के माफिया इस बात से अलग चिंतित हैं कि उनका नाम सूची में क्यों नहीं है! तो एक खुलासे से कितनी उथल-पुथल मच गई। इसलिए हम भी इन दोनों जासूसों के नाम नहीं बता रहे। हां, एक को करमचंद जासूस टाइप का मान लीजिए और दूसरे को जग्गा जासूस टाइप का। वैसे भी जासूस तो विशेषण है, संज्ञा का क्या काम। काले रंग का कोट, बड़ी-सी हेट, काला चश्मा, हाथ में मैग्नीफाइंग ग्लास वगैरह-वगैरह कि आदमी दूर से ही पहचान जाए कि देखो जासूस आ रहा है। दूर हट जाओ। पता नहीं, कब जासूसी कर ले।
तो जैसा कि बताया, ये दो जासूस एक कॉफ़ी हाउस में मिले। इसी कॉफ़ी हाउस में
दोनों का उधार खाता पता नहीं कब से चला आ रहा है। कई मैनेजर बदल गए, पर खाता अजर-अमर
है। कॉफ़ी हाउस में मुंह लगने वाले हर कप को मालूम है कि इन दिनों ये भयंकर फोकटे हैं।
इन दिनों क्या, कई दिनों से ही ये फोकटे हैं। कई बार कोट से बदबू भी आती है। जब किसी
के पास ज्यादा पैसे ना हों तो ड्रायक्लीन पर खर्च अय्याशी ही माना जाना चाहिए। तो ये
जासूस अक्सर इस तरह की अय्याशी से बचते हैं। वैसे इन दोनों जासूसों ने अपने बारे में
यह किंवदंती फैला रखी है कि जब ये वाकई जासूसी करते थे, तो उनके पास जूली या किटी टाइप
की सुंदर-सी सेक्रेटरी भी हुआ करती थीं, एक नहीं, कई कई। देखी तो किसी ने नहीं, पर
अब जासूसों से मुंह कौन लगे। कपों की तो मजबूरी है। बाकी बचते हैं।
खैर, मुद्दे पर आते हैं। तो आइए, इन दो प्रगतिशील जासूसों की जासूसी भरी
बातें भी सुन लेते हैं। आज तो चर्चा का एक ही विषय है - पेगासस।
"और बताओ, क्या जमाना आ गया?' पहले ने शुरुआत वैसे ही की, जैसी कि
अक्सर की जाती है।
"सही कह रहे हो। पर ये पेगासस है कौन?' दूसरा तुरंत ही मूल मुद्दे
पर आ गया, क्योंकि आज तो फालतू बातों के लिए इन दोनों के पास बिल्कुल भी वक्त नहीं
है।
"कोई जासूस है स्साला। फ्री में हर ऐरे-गैरे की जासूसी करता फिरता
रहता है।' पहले ने थोड़ा ज्ञानी होने के दंभ के साथ कहा।
"बताओ, ऐसे ही जासूसों के कारण हमारी कोई इज्जत नहीं रही।' दूसरे
ने यह बात इतनी संजीदगी से कही मानों उनकी कभी इज्जत रही होगी।
"और एक-दो की नहीं, पूरी दुनिया की जासूसी करने का ठेका उठा लिया
है इस पेगासस ने।' पहले ने जताया कि मामला वाकई गंभीर है।
"हां, रोज ही लिस्ट पे लिस्ट आ रही है, मानों चुनाव में खड़े होने
वाले उम्मीदवारों की सूचियां निकल रही हों।' दूसरे ने गंभीरता की हवा निकाल दी।
दोनों जोर से हंसते हैं। फिर अचानक अपने-अपने होठों पर उंगली रखकर शांत
रहने का इशारा करते हैं। लोगों को लगना नहीं चाहिए कि दो जासूस मूर्खतापूर्ण टाइप की
बातें कर रहे हैं, जो हंसी की वजह बन रही है। भले ही बातें करें, पर लगे नहीं। इसलिए
दोनों फिर धीमी आवाज में चर्चा शुरू देते हैं...
"यह भी क्या जासूसी हुई? अब आप नेताओं की जासूसी करवा रहे हों? नेताओं
की जासूसी करता है क्या कोई?' पहला फिर गंभीर हो गया।
"हां, मतलब नेताओं के नीचे से आप क्या निकाल लोगे? कोई बड़ा राज निकाल
लोगे? और जासूसी करके बताओंगे क्या? इतने करोड़ रुपए स्विस बैंक में, इतने करोड़ घर में,
इतने करोड़ की बेनामी संपत्ति, इतने लोगों को ठिकाने लगाने के लिए ये पलानिंग, वो पलानिंग।
जो चीज सबको मालूम है, वो आप बताओगे। ये क्या जासूसी हुई भला।' दूसरे ने पहले की गंभीरता
में गंभीरता के साथ पूरा साथ दिया।
"बताओ, क्या जमाना आ गया।' पहला फिर जमाने को दोष देने लगा।
"पर ये जासूसी करवा कौन रहा है?' दूसरा अब पॉलिटिकल एंगल ढूंढने की
जासूसी में लग गया है।
"कोई भी करवाए, हमें क्या मतलब?' पहले के भीतर का प्रगतिशील जासूस
अब आम मध्यमवर्गीय औकात में बदलने की तैयारी करने लगा है। कप की कॉफ़ी खत्म जो होने
लगी है।
दूसरा भी तुरंत सहमत हो गया। उसकी भी कॉफ़ी खत्म हो रही है। वह इस बात
पर सहमत है कि हमें ऐसे फालतू के मामलों में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं। चिंता
या तो सरकार करे जिसे हर उस मामले में देश की चिंता रहती ही है जिस मामले में उस पर
सवाल उठाए जाते हैं। या फिर विपक्ष करे, जो अब इस भयंकर चिंता में मरा जा रहा है कि
मामले को जिंदा रखने के लिए कुछ दिन और एक्टिव रहना होगा। संसद सत्र अलग शुरू हो गया
है। रोज हंगामा खड़ा करना होगा। कैसे होगा यह सब!
खैर, दोनों की कॉफ़ी खत्म हो गई है। तो चर्चा भी खत्म। तशरीफ को झाड़कर दोनों
उठ खड़े हुए। कॉफ़ी हाउस अब राहत की सांस ले रहा है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
रविवार, 18 जुलाई 2021
Humor : पंजाब में अमरिंदर और सिद्धू की लड़ाई से क्यों खुश हुई कांग्रेस?
By Jayjeet
10 जनपथ पर स्थित बड़े से बंगले के बड़े से गेट के बाहर फुटपाथ पर आज अचानक कांग्रेस अम्मा से मुलाकात हो गई। किनारे बैठी हुई। लेकिन घोर आश्चर्य, पोपले मुंह पर बड़ी ही स्मित मुस्कान! रिपोर्टर को रुकना ही था। अम्मा से यह दूसरी मुलाकात थी।
रिपोर्टर : पहचाना अम्मा?
कांग्रेस अम्मा : अरे हां, रिपोर्टर ना?
रिपोर्टर : बड़ी तेज याददाश्त है आपकी। मान गए आपको!
कांग्रेस अम्मा : बूढ़ी हो गई तो क्या हुआ, अब भी कुछ सांसें चल रही हैं (पोपले मुंह से जोरदार ठहाका)।
रिपोर्टर : आज बड़ी खुश नजर आ रही हों?
कांग्रेस अम्मा : बात ही ऐसी है। पंजाब से बड़ी अच्छी खबर आ रही है।
रिपोर्टर (चौंकते हुए) : अच्छी खबर? वहां तो आपके ही दो बेटे आपस में लड़ रहे हैं।
कांग्रेस अम्मा : यही तो अच्छी खबर है।
रिपोर्टर (लगता है बुढ़िया सठिया टाइप गई है) : कांग्रेस के दो नेता आपस में लड़ रहे हैं। इसमें क्या अच्छाई है?
कांग्रेस अम्मा : एक राज्य में कांग्रेस के पास दो-दो नेता हैं और दोनों की दोनों एक-दूसरे पर भारी। बेटा इससे अच्छी खबर और क्या होगी?
रिपोर्टर : पर वे तो आपस में लड़ रहे हैं अम्मा? (रिपोर्टर ने यह बात तीसरी बार रिपीट की)
कांग्रेस अम्मा : लड़ तो रहे हैं? यह कम है क्या? कांग्रेसियों को लड़ते हुए देखे तो जमाना हो गया। पर तुम मीडियावालों को कांग्रेस की खुशी देखी नहीं जाती। (बुढ़ापे की वजह से अम्मा शायद भूल गई कि थोड़े बहुत तो उसके राजस्थान के बेटे भी लड़े थे।)
रिपोर्टर : ऐसी बात नहीं है अम्मा। बंगाल में जब बीजेपी की हार पर आपने मोतीचूर के लड्डू बंटवाए थे, तो हम सबने बराबर खाए थे। हमारे ही कई लोगों ने तो खुद बंटवाए थे। पर अम्मा पंजाब में कांग्रेसियों के इस तरह लड़ने से क्या संदेश जाएगा? अच्छी बात है ये क्या?
कांग्रेस अम्मा : बेटा वही तो नहीं समझ रहे हो तुम। खुद को बड़ा रिपोर्टर कहते हो। भैया, इससे तो कांग्रेसियों में जान फूंक जाएगी। उन्हें इस बात का एहसास होगा कि वे भी लड़ सकते हैं। केवल घर बैठकर चर्बी चढ़ाना ही एकमात्र ऑप्शन नहीं है।
रिपोर्टर : लेकिन लड़ना तो सरकार के खिलाफ चाहिए ना?
कांग्रेस अम्मा (थोड़ी नाराजगी के साथ) : नवजोत क्या कर रहा है? सरकार के खिलाफ ही तो लड़ रहा है ना?
रिपोर्टर : पर वहां तो आपकी ही सरकार है? वहां वे क्यों लड़ रहे हैं?
कांग्रेस अम्मा : बेटा सरकार आज है, कल न रहे, पर अगर लड़ना सीख लिया तो यह दूसरी सरकारों के खिलाफ भी काम आएगा कि नहीं? बता, तू तो रिपोर्टर है ना!
रिपोर्टर ने बुढ़िया से ज्यादा मगजमारी करना मुनासिब नहीं समझा। आखिरी सवाल पर आ गया।
- अम्मा, चलिए आप खुश तो हम खुश। पर आप तो ये बताओ, उप्र में चुनाव आ रहे हैं। बाकी पार्टियों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। आपकी क्या तैयारी है?
कांग्रेस अम्मा : उप्र? ये क्या है? (कुछ याद आने के बाद) अच्छा, योगी के उत्तर प्रदेश की बात कर रहा है? तैयारी कर रहे हैं हम, बिल्कुल कर रहे हैं।
रिपोर्टर : वही तो पूछ रहे हैं। क्या तैयारी कर रहे हैं?
कांग्रेस अम्मा (10 जनपथ निवास की ओर इशारा करते हुए) : वो अंदर जाकर पूछो ना, वे ही बताएंगे?
रिपोर्टर : अरे अम्मा, हमारी वहां तक कहां पहुंच है। आप तो पहुंच सकती हैं। आप ही बताइए ना।
congress , satire on congress
बुधवार, 7 जुलाई 2021
Satire & Humor : जब राजा के दर्पण ने की दिल की बात, मतलब बड़ी वाली बदतमीजी!!
By Jayjeet
बुधवार, 30 जून 2021
पेट्रोल से खास बातचीत.... जब लोग अपनी बाइकों में इतना पेट्रोल डलवा रहे हैं तो कुछ तो गड़बड़ है...
By Jayjeet
बहुत दिनों के बाद आज रिपोर्टर फ्री था। तो सोचा, थोड़ा पेट्रोल से भी मिल लिया जाए। और पहुंच गया उसी पेट्रोल के पास जो अब खुद को एक तरह से सेलेब्रिटी मानने लगा था।
"नमस्कार भैया। कहां चढ़े हों? तनिक नीचे तो उतरो।' रिपोर्टर आसमान
की ओर देखते हुए पेट्रोल से मुखातिब था।
"कौन है भाई? हमारा विकास देखा नहीं जा रहा तो मुंह फेर लो।' पेट्रोल
उतने ही एटीट्यूड में बोला, जितना ऐसी स्थिति में आमतौर पर आ ही जाता है।
"आपका जरा इंटरव्यू करना है।'
"अच्छा तो आप रिपोर्टर हैं। बड़ी जल्दी आ गए। डीजल को भी जरा 100
पार कर लेने देते, फिर आते।' अपनी उपेक्षा के चलते पेट्रोल के मुंह पर एक तरह के कटाक्ष
का भाव है।
"आपकी शिकायत जायज है। देर हो गई आते-आते। अब क्या करें, कुछ बड़ी
राष्ट्रीय समस्याओं में फंस गया था। इसलिए समय ही नहीं मिल पाया।'
"अच्छा तो अब आप भी कांग्रेस हो गए। बड़ी-बड़ी समस्याओं में फंसे हुए
हैं और हम जैसे छोटों के लिए टाइम ही ना मिल रहा। बहुत बढ़िया!'
"अगर टांटबाजी हो गई हो तो सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू करें?'
"हां, जब सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत ना होती है तो फिर पूछने के लिए हम गरीब ही बचते हैं।' इतना कहते ही पेट्रोल ने ऐसा जोर से ठहाका लगाया कि थूक के कुछ छीटें रिपोर्टर के शर्ट पर आ गिरे। उसने यह ठहाका अपनी गरीबी पर उसी अंदाज में लगाया था जैसे अक्सर कई अमीर खुद की गरीबी पर लगाते हैं।
"इतना थूक ना उड़ाओ। आपकी थूक की एक-एक बूंद बड़ी कीमती है। और फिर
हमारे कपड़ों पर गिरकर रिस्की भी हो रही है। हवा में कब कौन कहां से तीली निकाल लें,
इन दिनों पता ही नहीं चलता। हां, पर आपने क्या कहा, मैंने कुछ सुना नहीं?'
"असली बातें सुनकर भी ना सुनना तो आप जैसों से सीखें। मैं कह रहा
था कि ये इंटरव्यू विंटरव्यू सरकार से क्यों नहीं करते?'
"अरे सरकार क्या हमारे लिए फालतू बैठी है? ट्विटर की वो छटाक भर की
चिड़िया भी सिर उठा रही है। इन दिनों बहुत चें चें कर रही है। लगता है राजद्रोहियों
के साथ मिल गई है। तो उसका थूथना दबाने में लगी है सरकार।'
"हां, ये तो सही कर रही है सरकार। ट्विटर को कम से कम देश के नक्शे-वक्शे
के साथ खेला नहीं करना चाहिए। इससे हम-आप तो ठीक है, पर उन लोगों की भावनाओं को बड़ी
ठेस पहुंचती है जो स्विस बैंकों के बजाय देश की सीमाओं के भीतर ही भ्रष्टाचार की अपनी
गाढ़ी कमाई रखते हैं। देश का पैसा देश में ही रहे, ऐसी पावन सोच वाले लोग जब ट्विटर
की ऐसी करतूत देखते हैं तो दुख तो होगा ही।'
"तो असल सवाल पूछने का सिलसिला शुरू करें?'
"असल सवाल?' हंसते हुए, "पर हमसे पूछने के लिए बचा ही क्या है?
यही पूछोंगे ना कि हमने तो सेंचुरी मार ली है, अब ये विराट दो साल से क्या कर रहा है?
पर बता दूं, क्रिकेट में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।'
"मेरी भी कोई दिलचस्पी नहीं है। फिर ऐसे सवाल पूछने के लिए उनकी बीवी
बैठी हुई हैं। हम क्यों पर्सनल बातें करें?'
"तो फिर पूछिए, जो भी पूछना हो। पर जरा जल्दी कर लेना। वैसे भी आपने
बहुत टाइम खोटी कर लिया। इतनी देर में हम दो-चार सेमी और ऊंचाई पर पहुंच जाते।'
"एक बहुत ही गंभीर सवाल है जो दो-तीन दिन से मन में मंडरा रहा है।
आपने सुना या पढ़ा ही होगा कि महामहिम ने कहा है कि वे अपनी आधी सैलरी टैक्स में दे
देते हैं ...'
"देखिए, महामहिम जी का हम बहुत सम्मान करते हैं। तो उनके खिलाफ हम
कुछ ना बोलेंगे, समझ लीजिए।' बात को बीच से ही काटते हुए पेट्रोल बोला।
"तो हम क्या कम सम्मान करते हैं उनका? बहुत सम्मान करते हैं। सबको
करना चाहिए। हम तो केवल उनकी बात से जुड़ा एक सवाल पूछ रहे हैं। पूरा सुन तो लीजिए।
जब महामहिम जी इतना टैक्स चुका रहे हैं, तो अपनी मोटरसाइकिलों में जो इतना महंगा तेल
भर-भरकर लोग जा रहे हैं, उनकी भी इनकम टैक्स जांच होनी चाहिए कि नहीं?'
"क्यों? हमारे दाम खटकने लगे! जरा खाने के तेल से भी ऐसा ही पूछो
ना!'
"हां, उससे पूछकर ही तो आ रहा हूं। वह भी इस बात से सहमत है।'
"क्या बोला वो? '
"यही कि लोग सब दिखावे के लिए झोपड़ियां तानकर रखे हैं और दो-दो टाइम
का खाना, वह भी तेल में बघारा हुआ खा रहे हैं। सरकार को पूरी जांच करके इस बात का पता
लगाना चाहिए कि आखिर आम लोगों के पास इतना भर-भरकर पैसा आ कहां से रहा है?'
"जब खाने का तेल यह बात बोल रहा है तो सही ही बोल रहा होगा। तो सरकार
जांच करवा लें और जो टैक्स चुरा रहे हैं, उनसे पूरी शक्ति के साथ पूरा टैक्स वसूले।
बेचारे देश के महामहिम टाइप के लोग ही टैक्स क्यों दें?' पेट्रोल ने सहमति जताई।
"तो फिर आप दोनों का यह ज्वाइंट स्टेटमेंट छाप दूं ना कि गाड़ियों
में पेट्रोल और पेटों में खाने का तेल अगर आम लोग इतनी आसानी से भरवा रहे हैं तो इसमें
कुछ तो गड़बड़ है।'
"पर हमारा नाम मत लेना। सूत्रों टाइप कुछ छाप सको तो छाप देना। कहीं
सरकार बुरा ना मान जाए। अभी सरकार से बहुत काम है। 150 तक जाना है। आप जानते ही हैं
कि अगर सरकार से काम हो तो ज्यादा क्रांति नहीं दिखानी चाहिए। अब मैं चलूं, आज के लेटेस्ट
दाम आ गए हैं। अब तो दो इंच और ऊपर चला मैं...'
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
बुधवार, 16 जून 2021
Humor & Satire : गेहूं की बोरियों का भी वाट्सएप ग्रुप, बारिश में भीगती बोरियां डाल रही हैं स्टेटस
By Jayjeet
और तेज हवाओं के साथ झमाझम बारिश होने लगी। मानसून की पहली बारिश थी। बैग में छाता तो था, लेकिन बाइक पर उसे कैसे संभालता। तो रिपोर्टर ने भीगने से बचने के लिए सीधे उस यार्ड की शरण ली जहां गेहूं की बोरियां रखी हुई थीं। लेकिन वहां का सीन देखा तो माथा ठनक गया। गेहूं की एक नहीं, कई बोरियां पहली बारिश में भीगने का लुत्फ उठा रही थीं। छई छप्पा छई, छप्पाक छई... पर डांस कर रही थीं। न कोई लाज, न कोई शरम। रिपोर्टर का रिपोर्टतत्व जागृत हो उठा और अपना छाता तानकर सीधे पहुंच गया ऐसी ही एक बोरी के पास ...
रिपोर्टर : बोरीजी... बोरीजी ssss... ऐ बोरी...
बोरी : कौन भाई। आप कौन? क्यों चिल्ला रहे हों?
रिपोर्टर : ये आप बारिश में बिंदास भीग रही हैं। क्या आपको ना मालूम कि आपके भीतर बहुत ही कीमती दाना भरा हुआ है?
बोरी : अरे कहां ऐसी छोटी-मोटी बातों में लगे हों। पहली बारिश है। आप भी फेंकिए ना अपना छाता और मस्त भीगिए ना। (और फिर वह लग छई छप्पा छई, छप्पाक छई... )
रिपोर्टर : अरे नहीं, मैं तो आपको आपकी जिम्मेदारी का एहसास करवाने आया हूं।
बोरी : देखिए, जब मानसून की पहली बारिश होती है ना तो महीनों की सारी तपन दूर हो जाती है। मेरी सारी सहेलियां और कजीन सब भीगने का मजा ले रही हैं और आप हैं कि अपनी रिपोर्टरगीरी में इन शानदार पलों को खो रहे हों।
रिपोर्टर : सब भीग रही हैं, मतलब?
बोरी : हमारा वाट्सएप ग्रुप है। मप्र से लेकर राजस्थान, उप्र, पंजाब, हरियाणा, सब जगह की बोरियां इससे जुड़ी हैं। सब बोरियों ने पहली बारिश में भीगने की सेल्फियां पोस्ट की हैं। तो मैं क्यों यह मौका छोड़ू? अब आप आ ही गए तो मेरी बढ़िया-सी फोटो ही खींच दीजिए। ग्रुप में भी डाल दूंगी और स्टेटस पर भी।
रिपोर्टर (फोटो खींचने के बाद) : बहुत हो गया बोरीजी। मुझे आपके भीतर पड़े दाने की चिंता हो रही है। आप समझती क्यों नहीं?
बोरी : आप क्यों चिंता कर रहे हों? चिंता करने वाले दूसरे लोग हैं ना। अनाज भंडारण केंद्रों के कर्मचारी, मंडियों के अफसर सब हैं ना। कल आएंगे। आंकलन कर लेंगे कि कितना अनाज खराब हुआ, कितना सड़ा। अपने दस्तावेजों में सब दुरुस्त कर लेंगे। बेमतलब की चिंता छोड़िए और आप तो मेरे साथ एक सेल्फी लीजिए। किसी बोरी ने आज तक किसी रिपोर्टर के साथ सेल्फी ना खिंचवाई होगी। आज तो सबको जलाऊंगी...
रिपोर्टर : पर ये कौन अफसर हैं? मुझे जरा उनका नंबर दीजिए, अभी बात करता हूं।
बोरी : आप बहुत ही विघ्न संतोषी टाइप के आदमी मालूम पड़ते हों। लगता है, न आप कभी खुद खुश होते हो और न दूसरों को खुश देख सकते हों...
रिपोर्टर : अरे, मैं तो उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना चाहता हूं, बस।
बोरी : अब आप भी बस कीजिए रिपोर्टर महोदय। बेचारे अफसर पहली बारिश में घर में बैठकर अपनी-अपनी बीवियों के हाथों पकोड़े खा रहे होंगे। आप क्यों छोटी-छोटी बातों पर उन्हें परेशान करना चाहते हैं। आप भी जाकर खाइए ना पकोड़े-सकोड़े... और इतना कहकर फिर लग गई ...छई छप्पा छई, छप्पाक छई...
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
शनिवार, 5 जून 2021
Satire & Humor : उस पौधे से बातचीत जिसे बड़ा होकर नेताओं की कुर्सी बनना है...
कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। बड़ी ही बेसब्री से नेताजी का इंतजार कर
रहे थे। उन्हें प्रफुल्लित देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे इंसानों को चिढ़ा रहे हों कि
आपके अच्छे दिन आए या ना आए, हमारे तो आ गए। पर उन्हीं में से एक पौधा कोने में मुंह
फुलाए दीवार के सहारे अधखड़ा था। उसे विश्व पर्यावरण दिवस से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़
रहा था। रिपोर्टर तो हमेशा ऐसे ही असंतुष्ट और बागियों की तलाश में रहते हैं। ब्रेकिंग
न्यूज तो आखिर उन्हीं से मिलती है। तो यह रिपोर्टर भी पहुंच गया उसी बागी पौधे के पास
और लगा कुरेदने ...
रिपोर्टर : नमस्कार, आज तो आपका दिन है। लेकिन आपके चेहरे पर इतनी मुर्दानगी
क्यों छा रही है भाई?
पौधा : मुझे तो उन पौधों पर तरस आ रहा है तो आज के दिन बड़े खुश हो रहे
हैं। देखो, नेताजी के इंतजार में कैसे खुशी से मरे जा रहे हैं।
रिपोर्टर : खुश तो आपको भी होना चाहिए। पर आप तो सचिन पायलट बन रहे हों।
पौधा : तो क्या हमें सिंधियागीरी मिल जाएगी, जो खुश हो जाएं?
रिपोर्टर : वाह, नहले पर दहला जड़ दिया। राजनीति का आपको इतना इल्म कैसे?
पौधा : आपके नेताओं से हमारे बाप-दादाओं का पुराना राब्ता रहा है।
रिपोर्टर : अरे, भला कैसे?
पौधा : आपके नेता लोग लकड़ी की जिन कुर्सियों पर बैठते हैं, वे आखिर हमारे
बाप-दादाओं के बलिदान का ही तो प्रतिफल है।
रिपोर्टर : अच्छा, इसीलिए आपके दिलो-दिमाग में नेताजी के प्रति इतनी नफरत
भरी है?
पौधा : और नहीं तो क्या! बड़े होकर नेताओं की कुर्सी की लकड़ी बनना ही तो
हमारी नियति है। नेताओं से बच गए तो किसी बड़े इंडस्ट्रीयल प्रोजेक्ट के लिए काट दिए
जाएंगे।
रिपोर्टर : लेकिन ये भी तो सोचो कि बड़े होने पर अगर किस्मत से जंगल मिल
गया तो फिर तो ऐश ही ऐश। मस्ती से कई पीढ़ियां बीत जाएगी आपकी।
पौधा : सब मन बहलाने वाली बात है। अपने पुरखों की आत्मकथाएं बांच रखी हैं
मैंने। उनमें वे कटने से पहले विस्तार से बता गए कि कैसे कभी कोयले के लिए, कभी सोने
या हीरों के लिए तो कभी बड़े-बड़े बांधों के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिए गए।
रिपोर्टर : लेकिन आप मानवता के काम आ रहे हों, यह सौभाग्य कम ही लोगों
को मिलता है।
पौधा : ये अपना इमोशनली ब्लैकमेल वाला फंडा उन मूर्ख पौधों पर आजमाइए जो
नेताजी के हाथ से खुद को बर्बाद करने को तैयार बैठे हैं। मैं इंकलाबी खुद को सुखाकर
मर मिटूंगा, लेकिन तुम मनुष्यों के लिए कभी नहीं....
वह बागी पौधा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि उससे पहले ही सायरन बजाती
गाड़ियां धमक पड़ीं। क्षण भर में ही फॉरेस्ट विभाग के कारकून के दो हाथों ने उस पौधे
पर मानो झपट्टा-सा मारा। पौधे ने शुरू में प्रतिरोध किया, लेकिन फिर अपनी नियति के
लिए निकल पड़ा। फोटोग्राफर्स भी दूर खड़े नेताजी की तरफ लपक पड़े...
मंगलवार, 1 जून 2021
सोमवार, 31 मई 2021
Satire: और राह में चलते-चलते, एक दिन कोरोना की बाबाजी से मुलाकात हो गई...
By Jayjeet
एलोपेथी और आयुर्वेद के बीच जारी विवाद के बीच अचानक ही बाबाजी की कोरोना से मुलाकात हो गई। पहली नजर मिलते ही दोनों एक-दूसरे को देखकर कन्नी काटने लगे। पर जब सामने पड़ ही गए और एक-दूसरे से बचना नामुमकिन हो गया तो औपचारिक हाय-हलो से बात यूं शुरू हुई :
बाबाजी : अरे कोरोना, क्या हाल है? बहुत मुटा गया इतने दिनों में!
कोरोना : पर कल मैंने वुहान वीडियो कॉल लगाया था। मम्मी तो कह रही थी कि इंडिया जाकर तू बहुत दुबला हो गया। प्रॉपर खाने को नहीं मिलता क्या?
बाबाजी : अब क्या करें, हर मां को ऐसा ही लगता है। 100 किलो वजनी बेटे को भी यही बोलती है- तू बहुत दुबला हो गया रे। पर तू ने बताया नहीं कि यहां तो तेरी खूब खातिरदारी होती है। लोग पलक-पावड़े बिछाए तेरा इंतजार करते हैं। कई लोग तो तेरे को खुद ही अपने साथ घर ले जाते हैं।
कोरोना : हां, पर बाबाजी अब मैं बोर हो गया हूं। अब घर की याद आने लगी है।
बाबाजी : बेटा, इतनी जल्दी चला जाएगा तो हमारा इनोवेशन धरा का धरा ना रह जाएगा? अब तो हम स्वदेशी वैक्सीन के फॉर्मूले पर भी काम करने वाले हैं।
कोरोना : बाबाजी, तीन करोड़ के करीब मरीज हो तो गए। अब बच्चे की जान लोगे क्या?
बाबाजी : पर तेरे को जल्दी क्या है? मेहमाननवाजी में कोई कमी रह गई है क्या? रोज चाऊमीन खाने को मिल तो रही है।
कोराना : सोया बड़ी व पत्ता गोभी वाली चाऊमीन भी कोई चाऊमीन होती है क्या? ऊपर से इतना ऑयल अलग डाल देते हो। माना आप लोगों की हमारे चाइना से दुश्मनी है, पर ये दुश्मनी चाऊमीन के साथ क्यों निकालते हों!
बाबाजी : पर बेटा, अभी तू चाइना वापस जाएगा तो वहां तुझे बहुत दिक्कतें हो सकती हैं। अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने वुहान लैब वाला मामला फिर छेड़ दिया है। तो तू जैसे ही चाइना जाएगा, तेरी अपनी सरकार अमेरिका की नजर से बचाने के लिए तुझे ही काल कोठरी में डाल देगी। फिर सड़ते रहना....
कोरोना : तो आप चाहते क्या हो?
बाबाजी : बेटा अगले दो-चार दिन में देश के कई राज्य धीरे-धीरे अनलॉक हो रहे हैं। देखना फिर लोग मजे में घूमेंगे। न मास्क लगाएंगे, न सोशल डिस्टेंसिंग रखेंगे। तेरे लिए तो स्कोप ही स्कोप है..
कोराना : बाबाजी, इनडायरेक्टली आप इसमें अपना तो स्कोप ना देख रहे हों? वो आपने कौन-सी दवा बनाई। नाम भूल रहा हूं, मेरे ही नाम से मिलती-जुलती है ना ...
बाबाजी : (बीच में बात काटते हुए) : आज तू कुछ ज्यादा समझदारी की बात ना कर रहा!
कोरोना : समझदार होता तो यूं इंडिया में आता क्या? यहां आकर वजन बढ़ा सो बढ़ा, पर न जाने कितनी ही बीमारियां और हो गईं।
बाबाजी : हर बीमारी का मेरे पास इलाज है। कल से आ जा मेरे पास। दो चार महीने योगासन करेगा तो सारी बीमारियां छूमंतर हो जाएंगी।
कोरोना : बाबा, ये वो बीमारियां नहीं हैं, जो किसी योग से जाएंगी। ब्लैक मार्केटिंग, नकली दवाइयों का धंधा, झूठ, चमचागीरी, भाई-भतीजावाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार, बेमतलब पंगेबाजी जो आपने अभी ली है, इन सब बीमारियों के लक्षण मैं यहां इंडिया में आकर फील कर रहा हूं। इनका कोई इलाज हो तो बताओ आपके पास...
बाबाजी : हूंम्म... बताता हूं, पर अभी जरा बिजी हूं, वो एलोपैथी वालों को दो-चार जवाब और दे दूं, फिर इसके बाद अपने सीईओ के साथ एक जरूरी बिजनेस मीटिंग है। अपन फिर मिलते हैं... पर ये शीर्षासन जरा करते रहता... सबसे बढ़िया आसन है।
# baba-ramdev # baba-ramdev controversy
गुरुवार, 20 मई 2021
Humor & Satire : जब कहानी की जगह कविता सुनाने लगा बेताल
By Jayjeet
रिपोर्टर बरगद के पेड़ के नीचे फेसबुक चेक करने को रुका ही था कि अचानक उसकी बाइक की पिछली सीट पर अट्टहास करती एक आकृति कूद पड़ी। सामान्य काल होता तो रिपोर्टर चौंककर हॉस्पिटल में होता, लेकिन अब कोई भी घटना चौंकाती नहीं। आंखें थोड़ी फटी जरूर लेकिन मन में ब्रेकिंग न्यूज का सैलाब उमड़ने लगा। तो आंखों में डर की जगह चमक आ गई। चुपचाप से फोन का कैमरा चालू कर शुरू हो गया...
गुरुवार, 13 मई 2021
Humor : नीरो की बंशी को लेकर नया खुलासा, बदलनी पड़ेगी अब इतिहास की किताबें!
By Jayjeet
रिपोर्टर तो अक्सर गढ़े मुर्दों की तलाश में रहते ही हैं। एक दिन ऐसे ही एक मुर्दा तलाशते-तलाशते रिपोर्टर के हाथ लग गई एक खास बंसी, जिस पर लिखा था- मेड इन रोम। उससे थोड़ी हाय-हेलो हुई तो पता चला कि यह वही ऐतिहासिक बंसी है जो कभी नीरो ने बजाई थी। अब इतनी कीमती चीज हाथ लगी हो तो रिपोर्टर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू का मौका कैसे छोड़ सकता था। पढ़िए उसी इंटरव्यू के मुख्य अंश...
रिपोर्टर : जब रोम जल रहा था, तब आप कहां थीं?
नीरो की बंसी : नीरो जी के हाथों में।
रिपोर्टर : तो मतलब यह बात सही है ना कि जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी ही बजा रहे थे?
बंसी: हां, लेकिन यह पूरा सच भी नहीं है।
रिपोर्टर: पर इतिहास में भी यही लिखा है कि....
बंसी: आपने इतिहास में जो पढ़ा है, वे केवल आरोप हैं जो उस समय नीरो जी के विरोधियों ने लगाए थे। मीडिया ट्रायल में उन्हें दोषी मान लिया गया और वही इतिहास का हिस्सा हो गया।
रिपोर्टर: लगता है आप नीरो की बड़ी भक्त रही हैं।
बंसी: भक्ति, चमचागीरी तो आपके यहां की महामारियां हैं जी। मैं तो तथ्यों के प्रकाश में यह बात कर रही हूं।
रिपोर्टर: तो तथ्य ही बताइए, पहेलियां बहुत हो गईं।
बंसी: तो सुनिए। जिस समय रोम जल रहा था, उस समय मैं नीरो के पास ही थी। वे वैसे ही बंसी वादन कर रहे थे, जैसा अभी आपके यहां हो रहा है। लेकिन आपके और हमारे यहां जो अंतर है, वह विपक्ष का है। हमारे यहां का विपक्ष एग्रेसिव था, आपके यहां जैसा नहीं कि बस दो-चार चिटि्ठयां लिख दो, ट्विट कर दो, हो गई विपक्षगीरी। तब हमारे यहां विपक्षियों ने रोम की गली-गली गुंजा दी थी - इस्तीफा दो इस्तीफा दो, बंसी वादक नीरो, इस्तीफा दो।
रिपोर्टर : सही तो था। पूरा रोम जल गया तो इस्तीफा तो बनता ही था।
बंसी: इस्तीफा इसलिए नहीं मांगा गया था कि रोम जल गया था। रोम की किसको चिंता थी? चिंता का विषय तो केवल यह था कि नीरो जी बांसुरी क्यों बजा रहे थे?
रिपोर्टर: उफ, मतलब सदियां बीत जाती हैं, लेकिन राजनीति नहीं बदलती। हमारे यहा, आपके यहां सब शेम टू शेम... अच्छा, आगे बताइए, फिर क्या हुआ? इस्तीफा दिया?
बंसी: अब ऐसे छोटे-मोटे मामलों मंे इस्तीफा कैसे दे दें? पर विपक्ष का भी तो मुंह बंद करना था। तो सरकार ने बंसी कांड की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक जांच समिति बैठा दी ।
रिपोर्टर: तो जांच समिति ने अपनी जांच में क्या कहा?
बंसी: लंबे समय तक तो मामले की जांच ही नहीं हो पाई।
रिपोर्टर: क्यों?
नीरो: दरअसल जांच समिति के सदस्यों ने अपने घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आने-जाने तथा अपनी पत्नियों के लिए बाजार जाने के वास्ते एयरकंडिशनर रथों की मांग कर दी। अब जब तक इनके पास अपना वाहन न हों, वे जांच कर भी कैसे सकते थे।
रिपोर्टर: हां, रथ की मांग तो जायज थी। तो उनके लिए स्पेशल रथों की व्यवस्था कैसे की गई?
बंसी: यही तो पेंच था। रथों की स्वीकृति उस समय साम्राज्य की सीनेट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति से जरूरी थी। इस स्वीकृति में डेढ़ साल लग गया। इसके बाद रथों के लिए टेंडर बुलाए गए। टेंडर एक पार्टी को दे भी दिए गए। लेकिन फिर विपक्ष ने नया आरोप लगा दिया कि टेंडर में भारी घोटाला हुआ है। टेंडर नीरो के भतीजे के नाम पर बनाई गई एक फर्जी फर्म को दे दिए गए थे। इसको लेकर विपक्ष के लोगों ने इतना हंगामा किया कि सरकार को अंतत: झुकना पड़ा। टेंडर निरस्त कर दिए गए। विपक्ष यहीं तक नहीं रुका। उसने टेंडर घोटाले की जांच के लिए एक अलग से कमेटी गठित करने को भी मजबूर कर दिया।
रिपोर्टर: पर उस बंसी जांच समिति का क्या हुआ? रथों का क्या हुआ?
बंसी: समिति के सदस्यों को सरकारी रथ नहीं मिले तो नहीं मिले, लेकिन फिर भी उनके महल रूपी बंगलों में अत्याधुनिक रथ देखे गए, ऐसा लोगों का कहना था। पर मैं मान ही नहीं सकती कि उन्होंेने जांच के दौरान कोई भ्रष्टाचार किया होगा। बहुत ही सज्जन लोग थे तीनों के तीनों। इतने सज्जन कि नीरो के आगे हमेशा हाथ जोड़े खड़े रहते। मैं खुद चश्मदीद रही।
रिपोर्टर: इतनी राम कहानी आपने कह दी। पर मुद्दे की बात तो बताइए, जांच हुई भी कि नहीं? रिपोर्ट आई कि नहीं?
बंसी: जैसा कि हर जांच समिति के लिए रिपोर्ट पेश करना नैतिक दायित्व होता है, तो नीरो बंसी जांच समिति ने भी अपना नैतिक दायित्व पूरा किया। सीनेट के पटल पर बाकायदा रिपोर्ट रखी गई। रिपोर्ट में जांच समिति के माननीय सदस्यों ने सर्वसम्मति से लिखा - 'नीरो पर लगाए गए आरोप तथ्य आधारित प्रतीत नहीं होते। हमारी विस्तृत जांच से पता चलता है कि यह बात सत्य नहीं है कि 'जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी बजा रहे थे।' सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है और सत्य यह है कि 'जब नीरो बंसी बजा रहे थे, तब रोम जल रहा था।' इसलिए इसमें गलती नीरो की नहीं, बल्कि रोम की है। नीरो के बंसी बजाने के मौके पर रोम ने स्वयं आगे आकर जलने का जो आपराधिक कृत्य किया, उसके लिए समिति रोम को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की अनुशंसा करती है और नीरो को तमाम आरोपों से मुक्त करती है।' नीरो पक्ष ने करतल ध्वनि के साथ रिपोर्ट को मंजूर कर लिया और विपक्ष ने पूरे मामले में एक नई जांच समिति की मांग करते हुए सीनेट की कार्रवाई का बायकॉट कर दिया।
रिपोर्टर : ओह, यह तो बिल्कुल नई ऐतिहासिक जानकारी है।
नीरो की बंसी : जी, और अब अपने इतिहासकारों से भी कहिएगा कि वे किताबों में जरूरी बदलाव करें। जबरन हमारे-तुम्हारे नीरो बदनाम हो गए। अब मैं चलती हूं।
# nero # nero ki bansi # who is nero