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गुरुवार, 22 जुलाई 2021

Satire : नो वन किल्ड कोरोना मरीज ...

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मतलब आज ऑक्सीजन की कमी से कोई ना मरा, कल इंजेक्शन की कमी से कोई ना मरेगा... मतलब स्साला आदमी मरेगा कैसे? सरकार बताएगी?

By ए. जयजीत

'दद्दा, अब खुश हो जाओ और जिद छोड़ दो।' सीनियर देवदूत ने चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर पड़ी धरनाग्रस्त आत्मा से कहा।

'मैं तुम्हारी बात में ना आने वाला। तुम तीसरी बार फुसलाने आए हो, चित्रगुप्त के खास चमचे बनकर।'

'नहीं दद्दा, इस बार खबर सच्ची है। सरकार इतना भी झूठ नहीं बोलती है।'

'अब कौन-सा सच लेकर आ गए हो?'

'सरकार ने कहा है कि तुम्हारी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। मतलब सारा कन्फ्यूजन खत्म हो गया। अब कर्मों का हिसाब करवा लो। आप भी फ्री, हम भी फ्री।'

'मैं भी तो यही कह रहा था कि मेरी मौत हो ही नहीं सकती। धरती पर ऑक्सीजन तो फुल मात्रा में है। तो मौत कैसे हो सकती है?'

दद्दा की यह बात सुनते ही यह सीनियर देवदूत चकरा गया। आप भी चकरा गए ना। चकरा तो यह लेखक भी रहा है।

दरअसल, दद्दा बहुत शातिर है। पहले इस बात के बहाने वे चित्रगुप्त के दफ्तर में हिसाब करवाने से बचते रहे कि उनकी मौत की वजह स्पष्ट नहीं है। रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से उनकी मौत हुई या ऑक्सीजन न मिलने से, पहले यह साफ किया जाए। ऑक्सीजन या इंजेक्शन, इन दोनों में से किसी की जवाबदेही तय की जाए। इसके बाद ही वे अपने कर्मों के हिसाब-किताब के लिए चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत होंगे। हालांकि यमराज के दफ्तर से चली नोटशीट पर 'ऑक्सीजन की कमी' कारण स्पष्ट था, फिर भी दद्दा तो अड़ ही गए थे। देवदूतों ने उनके साथ जबरदस्ती की तो हाथ में घासलेट की बोतल और माचिस लेकर चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर ही धरने पर बैठ गए। लोकतंत्र तो ऊपर भी है। ऐसे ही भला जबरदस्ती थोड़ी की जा सकती है। और अब जब इस सीनियर देवदूत को लगा कि भारत सरकार के इस दावे से मामला सेटल हो गया और मौत की स्पष्ट वजह आ गई तो दद्दा ने नया दांव चल दिया। आइए, फिर सुनते हैं उनके तर्क-कुतर्क...

'दद्दा, अब ये लफड़ा मत कीजिए कि मौत ना हुई। मौत ना होती तो तुम यहां होते भला?' देवदूत ने सख्ती व मिमियानेपने के अजीब मिश्रण के साथ अपना तर्क दिया।

'क्यों तुम अपने उस छोकरे से, क्या नाम है, रम्मन देवदूत, उसी से पूछो। वही आया था मेरे पास। वह यही बोल के तो मुझे यहां लाया था कि ऑक्सीजन सिलैंडर में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो तुमको लेने आया हूं। पूछो उससे, यही बोला था कि नहीं!'

'अब उससे क्या पूछें। वैसे भी वह संविदा पर है। लेकिन मौत तो तुम्हारी आनी ही थी। हो सकता है यमराज जी के ऑफिस से जो नोटशीट चली होगी, उसमें कारण गलत दर्ज हो गया हो- ऑक्सीजन की कमी से मौत। पर अब स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई है। तुम यही तो चाहते थे कि जवाबदेही तय हो। तो अब रेमेडिसिवर इंजेक्शन पर जवाबदेही तय हो गई। बस खुश, अब चलो भी।'

लेकिन दद्दा के दिमाग में तो कुछ और ही खुराफात चल रही है। एक नया कुतर्क पटक दिया - 'क्यों जब नोटशीट पर कारण गलत दर्ज हो सकता है तो उसमें आदमी का नाम गलत दर्ज नहीं हो सकता? फिर देवदूत भी तुम्हारे संविदा वाले। तो उससे तो गलती हो ही सकती है। है कि नहीं!'

सीनियर देवदूत, जिसे कि 40 साल का अनुभव है, भी सकते में आ गया। स्साला आज तक यमराज के ऑफिस से चली एक भी नोटशीट गलत नहीं हुई। वह सोच में पड़ा हुआ है। उसे सोच में पड़ा देखकर दद्दा, जो ऑलरेडी शातिर है, ने एक और नया दांव चल दिया।

'मेरी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई। यही कहना चाहते हो ना तुम?'

'हां, जब ऑक्सीजन की कमी से ना हुई तो रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ही हुई होगी ना? हम यही मान लेते हैं।'

'अब, अगर कल को सरकार यह कह दे कि देश में एक भी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ना हुई, तो? तब तुम क्या करोगे?'

देवदूत, जो लगातार सोच में है, फिर सोच में पड़ गया - स्साला, सरकार का क्या भरोसा। यह भी कह सकती है। फिर तो लफड़ा हो जाएगा। और यह बुड्डा शकल ही नहीं, अकल से भी हरामी है। दूसरी आत्माओं को ना भड़का दे।

'दद्दा, यहीं रुको। मैं पांच मिनट में आया।' इतना कहकर देवदूत चित्रगुप्त के दफ्तर में घुस गया। पांच मिनट चर्चा करने के बाद वह वापस लौटा और दद्दा के कान में धीरे से कहा। दद्दा खुशी से उछल पड़े। उनके कुतर्क कामयाब हो गए थे।

यमराज के दफ्तर से संशोधित नोटशीट जारी हो गई है- दद्दा की मौत किसी भी वजह से नहीं हुई है। इसलिए उन्हें समम्मान धरती पर पहुंचाने के प्रबंध किए जाएं।

संविदा वाले देवदूत को सस्पेंड कर दिया गया है। किसी पर तो गाज गिरनी ही है। आखिर लोकतंत्र तो वहां भी है।

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

बुधवार, 21 जुलाई 2021

Satire : दो जासूस, करे महसूस कि जमाना बड़ा खराब है...

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By Jayjeet

दो जासूस, दोनों के दोनों प्रगतिशील किस्म के। देश-दुनिया की समस्याओं पर घंटों चर्चा करके चर्चा के कन्क्लूजन को अपनी तशरीफ वाली जगह पर छोड़कर जाने वाले। दोनों एक कॉफ़ी हाउस में मिले। वैसे तो दोनों अक्सर इसी कॉफ़ी हाउस में मिलते रहते हैं, लेकिन आज का मिलना ज्यादा क्रांतिकारी है। अब ये जासूस कौन हैं, क्या हैं, इसका खुलासा ना ही करें तो बेहतर है। देखो ना, पेगासस नाम के किसी जासूस का खुलासा होने से कितनी दिक्कतें आ गईं। विपक्ष को हंगामा करने को मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस कहां पंजाब में अपने दो सरदारों के बीच सीजफायर करवाने के बाद थोड़ा आराम फरमा रही थी कि उसे फिर जागना पड़ा। और बेचारी सरकार। कब तक छोटे-छोटे हंगामों को राष्ट्र को बदनाम करने की साजिशें घोषित करती रहेगी। उसकी भी तो कोई डिग्नेटी है कि नहीं। कई बड़े-बड़े पत्रकार, नेता, बिल्डर, वकील, तमाम तरह के माफिया इस बात से अलग चिंतित हैं कि उनका नाम सूची में क्यों नहीं है! तो एक खुलासे से कितनी उथल-पुथल मच गई। इसलिए हम भी इन दोनों जासूसों के नाम नहीं बता रहे। हां, एक को करमचंद जासूस टाइप का मान लीजिए और दूसरे को जग्गा जासूस टाइप का। वैसे भी जासूस तो विशेषण है, संज्ञा का क्या काम। काले रंग का कोट, बड़ी-सी हेट, काला चश्मा, हाथ में मैग्नीफाइंग ग्लास वगैरह-वगैरह कि आदमी दूर से ही पहचान जाए कि देखो जासूस आ रहा है। दूर हट जाओ। पता नहीं, कब जासूसी कर ले।

तो जैसा कि बताया, ये दो जासूस एक कॉफ़ी हाउस में मिले। इसी कॉफ़ी हाउस में दोनों का उधार खाता पता नहीं कब से चला आ रहा है। कई मैनेजर बदल गए, पर खाता अजर-अमर है। कॉफ़ी हाउस में मुंह लगने वाले हर कप को मालूम है कि इन दिनों ये भयंकर फोकटे हैं। इन दिनों क्या, कई दिनों से ही ये फोकटे हैं। कई बार कोट से बदबू भी आती है। जब किसी के पास ज्यादा पैसे ना हों तो ड्रायक्लीन पर खर्च अय्याशी ही माना जाना चाहिए। तो ये जासूस अक्सर इस तरह की अय्याशी से बचते हैं। वैसे इन दोनों जासूसों ने अपने बारे में यह किंवदंती फैला रखी है कि जब ये वाकई जासूसी करते थे, तो उनके पास जूली या किटी टाइप की सुंदर-सी सेक्रेटरी भी हुआ करती थीं, एक नहीं, कई कई। देखी तो किसी ने नहीं, पर अब जासूसों से मुंह कौन लगे। कपों की तो मजबूरी है। बाकी बचते हैं।

खैर, मुद्दे पर आते हैं। तो आइए, इन दो प्रगतिशील जासूसों की जासूसी भरी बातें भी सुन लेते हैं। आज तो चर्चा का एक ही विषय है - पेगासस।

"और बताओ, क्या जमाना आ गया?' पहले ने शुरुआत वैसे ही की, जैसी कि अक्सर की जाती है।

"सही कह रहे हो। पर ये पेगासस है कौन?' दूसरा तुरंत ही मूल मुद्दे पर आ गया, क्योंकि आज तो फालतू बातों के लिए इन दोनों के पास बिल्कुल भी वक्त नहीं है।

"कोई जासूस है स्साला। फ्री में हर ऐरे-गैरे की जासूसी करता फिरता रहता है।' पहले ने थोड़ा ज्ञानी होने के दंभ के साथ कहा।

"बताओ, ऐसे ही जासूसों के कारण हमारी कोई इज्जत नहीं रही।' दूसरे ने यह बात इतनी संजीदगी से कही मानों उनकी कभी इज्जत रही होगी।  

"और एक-दो की नहीं, पूरी दुनिया की जासूसी करने का ठेका उठा लिया है इस पेगासस ने।' पहले ने जताया कि मामला वाकई गंभीर है।

"हां, रोज ही लिस्ट पे लिस्ट आ रही है, मानों चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों की सूचियां निकल रही हों।' दूसरे ने गंभीरता की हवा निकाल दी।

दोनों जोर से हंसते हैं। फिर अचानक अपने-अपने होठों पर उंगली रखकर शांत रहने का इशारा करते हैं। लोगों को लगना नहीं चाहिए कि दो जासूस मूर्खतापूर्ण टाइप की बातें कर रहे हैं, जो हंसी की वजह बन रही है। भले ही बातें करें, पर लगे नहीं। इसलिए दोनों फिर धीमी आवाज में चर्चा शुरू देते हैं...

"यह भी क्या जासूसी हुई? अब आप नेताओं की जासूसी करवा रहे हों? नेताओं की जासूसी करता है क्या कोई?' पहला फिर गंभीर हो गया।

"हां, मतलब नेताओं के नीचे से आप क्या निकाल लोगे? कोई बड़ा राज निकाल लोगे? और जासूसी करके बताओंगे क्या? इतने करोड़ रुपए स्विस बैंक में, इतने करोड़ घर में, इतने करोड़ की बेनामी संपत्ति, इतने लोगों को ठिकाने लगाने के लिए ये पलानिंग, वो पलानिंग। जो चीज सबको मालूम है, वो आप बताओगे। ये क्या जासूसी हुई भला।' दूसरे ने पहले की गंभीरता में गंभीरता के साथ पूरा साथ दिया।

"बताओ, क्या जमाना आ गया।' पहला फिर जमाने को दोष देने लगा।

"पर ये जासूसी करवा कौन रहा है?' दूसरा अब पॉलिटिकल एंगल ढूंढने की जासूसी में लग गया है।

"कोई भी करवाए, हमें क्या मतलब?' पहले के भीतर का प्रगतिशील जासूस अब आम मध्यमवर्गीय औकात में बदलने की तैयारी करने लगा है। कप की कॉफ़ी खत्म जो होने लगी है।

दूसरा भी तुरंत सहमत हो गया। उसकी भी कॉफ़ी खत्म हो रही है। वह इस बात पर सहमत है कि हमें ऐसे फालतू के मामलों में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं। चिंता या तो सरकार करे जिसे हर उस मामले में देश की चिंता रहती ही है जिस मामले में उस पर सवाल उठाए जाते हैं। या फिर विपक्ष करे, जो अब इस भयंकर चिंता में मरा जा रहा है कि मामले को जिंदा रखने के लिए कुछ दिन और एक्टिव रहना होगा। संसद सत्र अलग शुरू हो गया है। रोज हंगामा खड़ा करना होगा। कैसे होगा यह सब!

खैर, दोनों की कॉफ़ी खत्म हो गई है। तो चर्चा भी खत्म। तशरीफ को झाड़कर दोनों उठ खड़े हुए। कॉफ़ी हाउस अब राहत की सांस ले रहा है।

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

सोमवार, 28 जून 2021

Political_Rumour_with_Humour : यह कैसी अफवाह? ...... पेट्रोल पर कांग्रेस जागी, राहुल ने लिखी चिट्ठी।

 

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By Jayjeet

आप इसे कोरी अफवाह मान सकते हैं। अफवाह यह है कि अंतत: कांग्रेस के वर्चुअल अध्यक्ष ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर भाजपा अध्यक्ष को एक चिट्ठी लिख मारी है। यकीन नहीं हो रहा ना कि कांग्रेस आखिर इस मुद्दे पर जाग कैसे गई? इसीलिए ये सबकुछ अफवाह जैसा ही लग रहा होगा। तो पढ़ लीजिए ये चिट्ठी। यह राहुल के स्टेटस से मेल खाती है।

प्रति
श्री जे.पी. नड्डा
राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीजेपी

विषय : पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ कांग्रेस का राजनीतिक प्रस्ताव।

महोदय,

सेवा में नम्र निवेदन है कि इस समय देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हो रही है। आप जानते ही हैं कि मुख्य विपक्षी पार्टी होने की मजबूरी के चलते हम पेट्रोल-डीजल जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे की चाहकर भी अनदेखी नहीं कर सकते। इस मुद्दे पर सरकार का विरोध करने के लिए हम पर काफी नैतिक दबाव है। इसलिए गत दिनों 10 जनपथ रोड पर पार्टी की आयोजित एक अहम बैठक में इस पूरे मसले पर गहन विचार-विमर्श किया गया।

मैं इस पत्र के माध्यम से सूचित करना चाहता हूं कि इस अहम बैठक में पार्टी ने जीरो के मुकाबले तीन मतों से एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव के अनुसार, चूंकि आप सात साल पहले ज्यादातर समय तक विपक्ष में रहे। पेट्रोल के जरा से दाम बढ़ने पर आसमान सिर पर उठा लेने का आपको पुराना अनुभव रहा है। ऐसे कठिन समय में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के मामले में आपको देशहित में अपने इस अनुभव का समुचित उपयोग करते हुए विरोध प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। ऐसा करना न केवल आपका राष्ट्रीय कर्म व सियासी धर्म है, बल्कि नैतिक दायित्व भी है।

पार्टी ने जीरो के मुकाबले तीन मतों से यह भी निर्णय लिया है कि समय मिलने पर हम भी कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को आपके द्वारा आयोजित किए जाने वाले एक या दो विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए प्रेरित करेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि प्रदर्शन के लायक कांग्रेसी कार्यकर्ता मिलते ही हम तुरंत उन्हें देशसेवा में झोंक देने के लिए तत्पर होंगे।

आपको फिर याद दिला दूं कि अगर इस कठिन समय में भी ओछी राजनीति करते हुए आप इतने महत्वपूर्ण मुद्दे की अनदेखी करते रहे और सड़कों पर नहीं निकले तो देश के साथ इससे बड़ा विश्वासघात और कुछ और नहीं होगा। विरोध प्रदर्शन आयोजित न कर पाने की स्थिति में आप इस पत्र को ही कांग्रेस पार्टी की ओर से भर्त्सना पत्र की तरह मानने का कष्ट करें। 

आपका तो हरगिज नहीं...

राहुल

(Disclaimer : हम इस चिट्ठी की सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं। बस चिट्ठी के सीधे-सादे नेचर से यह राहुल की प्रतीत होती है। कांग्रेस पर यह मजाक भी हो सकता है। उसके साथ वैसे भी इन दिनों बड़ा मजाक हो रहा है।)

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

 

गुरुवार, 17 जून 2021

Satire : सत्ता का हाथी और छह आधुनिक अंधे!

 

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By Jayjeet

बात बहुत पुरानी है। बात जितनी पुरानी होती है, उतनी ही भरोसेमंद भी होती है। तो यह भरोसेमंद भी है। किसी जमाने में छह अंधे हुआ करते थे। अंधे तो उस जमाने में और भी बहुत थे, लेकिन एक हाथी ने उन अंधों को अंधत्व के इतिहास में अमर बना दिया। अमर होने का फायदा यह होता है कि आप किसी भी बात को उसकी अमरता पर लाकर खत्म कर सकते हैं। यह बात नेहरू-गांधी के अनुयायियों से बेहतर भला और कौन जान सकता है? तो इन छह अंधों की बात भी हाथी की ऐतिहासिक व्याख्या पर आकर खत्म हो गई। बात भले खत्म हो गई हो, लेकिन अंधत्व की वह परम्परा खत्म नहीं हुई। वैसे यहां कोई राजनीति न ढूंढें, हम वाकई अंधों की ही बात कर रहे हैं। तो बगैर ब्रेक के बढ़ाते है वही बात, अंधों की बात।

तो हुआ यूं कि उन छह अंधों के छह आधुनिक वंशज हाल ही में किसी वेबिनार में मिल गए। चूंकि वे अपने पूर्वजों की अमर परम्परा को जीवित रखने के लिए ही अवतरित हुए थे, ऐसा उन्हीं का मानना था। तो उन्होंने दो काम किए। एक, वे अंधे बने रहे और दूसरा, उन्होंने भी हाथी की व्याख्या करने के अपने पुरखों के पुनीत काम को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया। पुरखों का काम आगे बढ़ाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि कुछ नया नहीं करना पड़ता है। नुकसान केवल पुरखों का नाम डूबने के खतरे के रूप में होता है। पर चूंकि पुरखे जा चुके होते हैं। तो यह खतरा अक्सर लोग और यहां तक कि पॉलिटिकल पार्टियां भी उठा लेती हैं। 

तो जैसा कि पहले बताया, ये छह अंधे एक वेबिनार में मिले। नए जमाने के नए अंधे। तो हाथी को जंगल में खोजने की मशक्कत करने के बजाय उन्होंने उसे गूगल पर ही खोजने का निर्णय लिया। गूगल का फायदा यह भी होता है कि वह गलत खोजों को भी करेक्ट कर देता है। जैसे इन छह अंधों द्वारा "Elephent' लिखकर सर्च करने पर भी गूगल ने स्पेलिंग ठीक कर ढेरों हाथी सामने पटक दिए। छोटे-बड़े, आड़े-टेढ़े, पस्त और मदमस्त। उन्होंने बहुमत से एक मदमस्त हाथी चुन लिया। हालांकि उन्होंने वही हाथी क्यों चुना, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। बस चुनना था तो चुन लिया। लेकिन खुशी तो उनके चेहरे पर ऐसी थी मानो सरकार चुन ली। दिखावा तो एेसा कि क्या समझ-बूझकर हाथी चुना। चूंकि वे वोर्टस भी थे तो उन्हें ऐसा हाथी चुनने में अपने मतदान का अनुभव काम आया।

खैर हाथी का चुना जाना ज्यादा महत्वपूर्ण था। उन्होंने जो हाथी चुना था, वह शायद उनके चुने जाने से पहले ही मदमस्त था। वह सत्ता का हाथी था जो इन दिनों ट्विटर, वाट्सऐप के पीछे-पीछे गूगल के बाड़े में भी आ धमका था और इसीलिए उन अंधों को वह गूगल पर ही चरते हुए मिल गया। सत्ता का वर्चुअल हाथी उनके सामने तो था, लेकिन उसे न देख पाना उनकी परंपरागत मजबूरी थी।

खैर, अंधों ने वर्चुअल हाथी की वर्चुअल व्याख्या शुरू की, क्योंकि हमने भी तो बात उस व्याख्या के लिए ही शुरू की थी।

पहला अंधा वर्चुअल हाथी के पेट पर अपने कम्प्यूटर माउस का कर्जर रखते ही बोला। अरे यह तो दीवार है। वोटों के लिए हिंदुओं-मुस्लिमों के बीच खींची हुई दीवार।

अब दूसरे अंधे ने अपने माउस का कर्जर हाथी के मुंह की तरफ मोढ़ा। सूंड पर पहुंचते ही बोला, - नहीं जी, यह दीवार नहीं, यह तो सांप है। विष वमन करने वाला सांप, धर्म के नाम पर तो कभी पाकिस्तान के नाम पर।

तीसरे अंधे के माउस का कर्जर हाथी की पूंछ के पास पहुंचा। उसे महसूस करके बोला, - यह रस्सी है, ऐसी रस्सी जो सत्ता में ऊपर चढ़ने के भी काम आए और विरोधियों का गला कसने के भी।

अब चौथे की बारी थी। चौथे अंधे ने हाथी के कानों को छूआ तो बोला, अबे, यह तो सूपड़ा है। जो काम का न हो, उसे झटक देता है। 75 साल के बूढ़ों को साफ करने में यह ज्यादा काम आया।

पांचवें अंधे के माउस का कर्जर हाथी के पैर के पास पहुंचा तो ऐसा उत्साह से भर गया मानो हाथी का रहस्य उसी ने ढूंढ़ लिया हो। वह चिल्लाने ही वाला था कि यकायक चुप हो गया। बाकी के अंधे 'क्या क्या' करते ही रह गए, पर वह न बोला तो न बोला। शायद वह अकल से अंधा न था।  

छठे ने अब ज्यादा इंतजार करना ठीक न समझा। वह अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं, लेकन दूसरों को मूर्ख जरूर समझता था। उसने सोचा, बहुत बकवास हो गई। सब घिसी-पिटी बात कर रहे हैं। मैं देखता हूं। उसने हाथी के दांतों तक अपने माउस का कर्जर पहुंचाया और धीरे से बोला, ‘अरे मूर्खों, यह तो बांसुरी है, बांसुरी। यह वही बांसुरी है, जो कभी नीरो बजाया करता था।’

पांचवें को छोड़कर बाकी सभी अंधों ने चिल्लाकर कहा, अरे हां, कुछ दिन पहले यही बांसुरी तो हमने सुनी थी। क्या सुंदर धुन थी। अब वे आंखों से अंधे थे, कानों से बहरे थोड़े ही थे। तो वह सुंदर धुन तो सबने सुनी ही थी, पांचवें वाले ने भी।

अब फिर से पुराने जमाने की कहानी में लौटते हैं। पूर्वजों द्वारा हाथी की व्याख्या में तो वह हाथी कन्फ्यूज हो गया था। लेकिन सत्ता के इस मदमस्त हाथी को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। नतीजा : एक अंधे को छोड़कर बाकी सभी धारा 124 के तहत जेल में चक्की पीस रहे हैं। पांचवें अंधे ने हाथी की इमेज को दुरुस्त करने के लिए उसका सोशल मीडिया अकाउंट संभाल लिया है।

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

सोमवार, 14 जून 2021

Funny : कोरोना की जिंदगी में भी शुरू हुआ स्यापा!


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By Jayjeet

कोरोना ने हम सब लोगों की जिंदगी में तूफान मचा रखा है। लेकिन अक्षय तृतीया के बाद से अब यह तूफान कोरोना की जिंदगी में उठ रहा है। वजह - उसने कोरोनी से शादी जो कर ली है। कोरोना की जिंदगी में क्या स्यापा चल रहा है, आइए सुनते हैं कोरोना और उसकी धर्मपत्नी यानी कोरोनी की यह बातचीत। बहुत ही गोपनीय ढंग से रिकॉर्ड की गई इस बातचीत की एक्सक्लूसिव सीडी केवल हमारे पास ही है :

कोरोना : हे कोरोनी, तुमने ये इतना बड़ा-सा घुंघट क्यों डाल रखा है?

कोरोनी : आपसे हमें संक्रमण ना हो जाए, इसी खातिर...

कोरोना : अरे, जबसे तुमसे शादी हुई है, तबसे हममें संक्रमित करने की ना तो इतनी ताकत बची, ना इतना समय..

कोरोनी : तो इसमें हमें काहे दोष देते हों? हमने ऐसा क्या किया?

कोरोना : क्या किया? सुबह से ही बिस्तर पर बैठे-बेठे ऑर्डर देने लगती हो, चाय बनी क्या? नाश्ता बना क्या? चाय-नाश्ता बनाकर फारिग होता ही हूं कि आलू-प्याज की रट लगा देती हो। बस, थैला उठाए आलू-प्याज और सब्जी लेने निकल जाता हूं। लोगों को संक्रमित क्या खाक करुं?

कोरोनी (घुंघट को हटाते हुए) : देखिए जी, अब ये तो ज्यादा हो रहा है... अरे और दूसरे हस्बैंड लोग भी तो हैं। वे अपने पड़ोस में शर्माजी को ही देखो..

कोरोना : शर्माजी, कौन शर्माजी?

कोरोनी : वही शर्माजी, जिनको तुमने हमारी इन्गेजमेंट के दिन ही संक्रमित किया था, भूल गए क्या? देखो उनको भी तो, कैसे बीवी के इशारों पर नाचते हैं, पर बॉस की भी पूरी हाजिरी लगाते हैं। ऐसे एक नहीं, कई लोग हैं जो बीवी और बॉस दोनों की चाकरी पूरे तन-मन से करते हैं और मुंह से उफ्फ तक नहीं निकलाते। और एक तुम हो कि बीवी जरा-से काम क्या बताती, उसी में चाइना वाली नानी याद आने लगती है.... काम धाम कुछ नहीं, शो-बाजी तो पूछो मत...

कोरोना (गुस्से में) : क्या काम-धाम ना करता हूं, बताओ‌ तो जरा? सुबह उठकर चाय-नाश्ता तैयार मैं करता हूं, सब्जी-वब्जी मैं लाता हूं। दोनों टाइम के बर्तन मैं साफ करता हूं। तंग आ गया मैं तो ... घर-गृहस्थी के चक्कर में अपना असली काम ही भूल गया... देखो, कैसे लोग बिंदास बगैर मास्क लगाए घूम रहे हैं, जैसे मुझे चिढ़ा रहे हों कि आ कोरोना आ... पर अब ताकत ही ना बची ...

कोरोनी (मामले को शांत करते हुए) : अरे जानू, तुम तो नाराज हो गए। अच्छा, चलो आज डिनर में चाऊमिन मैं बना दूंगी। .... और सुनो जी, गांधी हॉल में साड़ी की सेल शुरू हुई है। उसमें हजार-हजार की साड़ी पांच-पांच सौ में मिल रही है। चलो ना वहां, तुम्हारा भी मूड फ्रेश हो जाएगा...

कोरोना (सीने पर हाथ रखते हुए) : हे भगवान, क्यों सेल का नाम लेकर मेरा बीपी बढ़ा रही हो? उधर, सरकार ने वैक्सीन पर फिर पॉलिसी बदल ली है। मेरे लिए तो जिंदगी में टेंशन ही टेंशन है। क्या करुं, कहां जाऊं...!!

कोरोनी : हाय दैया, ये सरकार है कि तमाशा है। पल में तोला, पल में माशा। पर सरकार तुम्हारे पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ी है?

कोराना : अरे हमें पूरी तरह से नाकारा बनाने के लिए, और क्या! आधे मरे को पूरा मारने के लिए।

कोरोनी : अजी, तब तो तुम टेंशन मत लो। हम सरकार से कह देंगे कि देश में कोनो वैक्सीन-फैक्सीन की जरूरत नहीं है। अब हम है ना...!! और अब फटाफट तैयार हो जाओ। लॉकडाउन खुलने के बाद पहली सेल है। ऐसा ना हो कि सेल में अच्छी-अच्छी साड़ियां पहले ही खतम हो जाए...

और कोरोना "जी जी' करते हुआ तैयार हुआ और कंधे झुकाए निकल पड़ा बाइक पर कपड़ा मारने...


सोमवार, 24 मई 2021

Satire : विश्व कछुआ दिवस पर जब कुछ कछुए टी पार्टी में मिले

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By Jayjeet

कल (23 मई) को विश्व कछुआ दिवस था। इस मौके को सेलिब्रेट करने के लिए कुछ कछुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ चाय पर चर्चा के लिए जुटे। उनके बीच क्या बातचीत हुई, एक रपट ....
कछुआ : सबको बहुत-बहुत बधाइयां, कछुआ दिवस की।
सरकारी फाइल : क्या दिन आ गए हमारे कि अब आपके साथ चाय पीनी पड़ रही है!!
न्यायिक सिस्टम (सरकारी फाइल से) : लॉकडाउन में पड़े-पड़े मुटा गए हों और टांटबाजी बेचारे कछुए पर कर रहे हों? इट्स नॉट फेयर...
सरकारी फाइल (न्यायिक सिस्टम से) : आप तो अभी समर वैकेशन पर हैं तो वैकेशन पर ही रहिए। ज्यादा मुंह मत खुलवाइए। मुंह खुल गया तो आपकी कछुआवत सबके सामने आ जाएगी।
कछुआ : क्या हुआ भाई सरकारी फाइल? इतने फ्रस्टेट क्यों हो रहे हों? न्यायिक सिस्टम हमारे बीच अपनी कछुआवत की वजह से ही है। इसके लिए उन पर क्या ताना मारना!
लॉकडाउन (दिल्लगी करते हुए) : सरकारी फाइल भाईसाहब इसलिए फ्रस्टेट हो रहे हैं क्योंकि पिछले कई दिनों से इन पर कोई वजन नहीं रखा गया है। इसलिए बेचारे जहां पड़े है, वहीं सड़े हैं टाइप मामला हो रहा है।
सरकारी फाइल : इसमें हंसने की क्या बात है? हमारी मजबूरी पर हंस रहे हों? हमारे भगवान लोगों ने हमें बनाया ही ऐसा है तो क्या करे। पीठ पर जितना वजन होगा, उतना ही तो आगे बढ़ेंगे!
लॉकडाउन (फिर दिल्लगी) : कौन हैं ये आपके भगवान टाइप के लोग? हम भी तो सुनें जरा? हां हां हां...
सरकारी फाइल (लॉकडाउन से) : ये वही 'भगवान' हैं, जिन्होंने तुम्हें बनाया है और आज तुम हमारी संगत में बैठने की औकात पाए हो।
न्यायिक सिस्टम (बढ़ती गर्माहट के मद्देनजर बीच में दखल देते हुए) : मिस्टर कछुए, आप तो हमारे होस्ट हों। व्हाय आर यू सो वरीड? कहां उलझे हुए हों?
कछुआ : वैक्सीनेशन प्रोसेस का इंतजार कर रहा हूं। उन्हें चीफ गेस्ट बनाया था। पता नहीं कब आएंगे?
बाकी सभी : ओह नो..., ये हमारे चीफ गेस्ट हैं? तब तो आ गए। फोकट हमारा टाइम खोटी कर दिया। अच्छे भले सो रहे थे...।

रविवार, 16 मई 2021

Humour : डॉक्टर कितने तरह के होते हैं?



डॉक्टर दो तरह के होते हैं : एक, झोला झाप और दूसरा सूटकेस छाप।

झोला छाप डॉक्टरों की इस समय खूब लानत-मलानत हो रही है। कुछ टीवी चैनलों ने हाल ही में उनका स्टिंग भी किया। जब टीवी चैनलों के पास कोई काम नहीं होता तो वे ऐसे ही स्टिंग करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर ऐसे स्टिंग से मुक्त होते हैं। वे तो स्टिंग देते हैं...

झोला छाप डॉक्टरों के पास डिग्रियां नहीं होतीं। इसलिए उनके पास डॉक्टरी का लाइसेंस भी नहीं होता। डॉक्टरी का लाइसेंस न होने पर भी वे लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों के पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां होती हैं। ये डिग्रियां उनके लिए मूर्ख बनाने का डिफॉल्ट लाइसेंस होती हैं...। तो इन्हें प्रयास करने की जरूरत नहीं होती।

झोला छाप डॉक्टरों को कुछ पता नहीं होता। इसलिए ये 'मन के गुलाम' होते हैं। जो मन कहे, वही दवाइयां लिखते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों को सबकुछ पता होता है। इसीलिए ये 'मनी के गुलाम' होते हैं। इसलिए जो मनी कहती है, ये वही लिखते हैं- टेस्ट से लेकर दवाइयां तक...

झोला छाप डॉक्टर सेहत के लिए खतरनाक होते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर आर्थिक सेहत के लिए घातक होते हैं।

हमें न झोपा छाप डॉक्टर चाहिए। न सूटकेस छाप डॉक्टर।

(जैसा कि जॉली एलएलबी-2 में वकील बने अक्षय कहते हैं - हमें न कादरी जैसे टेररिस्ट चाहिए, न सत्यवीर जैसे करप्ट पुलिस अफसर...)

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तो कौन-से डॉक्टर चाहिए, महाराज? डॉक्टर पुराण बहुत हो गई...

हमें तो वही डॉक्टर चाहिए जो कभी देवलोक से आते थे, डैपुटेशन पर... भगवान के दूत के रूप में...

पर देवलोक ने डैपुटेशन पर डॉक्टर भिजवाने की व्यवस्था तो कब की बंद कर दी है...

अच्छा, इसीलिए तमाम सूटकेस छाप डॉक्टर डैपुटेशन वाले नहीं, डोनेशन वाले हैं...कुछ रिजर्वेशन वाले भी हैं शायद...

और जो बचे, वे झोला झाप हैं, कितना सिंपल तो है
 
तो चलिए, इसी स्टॉक में से चुनते हैं...🙁

(By : Jayjeet)

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

Satire : पौधे की अभिलाषा

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पौधे की अभिलाषा

चाह नहीं बड़ा होकर
फूलों से लद जाऊं
चाह नहीं दरख्त बन
हवा में सरसराऊं
चाह नहीं छतनार बन
अपनी शाखों पर इतराऊं
चाह नहीं नेता के बंगले पर
शोभा का पेड़ कहलाऊं
मुझे काट लेना हे सरकार
बनाने ऑक्सीजन प्लांट
जिसके लिए आज मचा है
जगह जगह हाहाकार...।

मॉरल ऑफ द पोयम : अगर पौधे होकर भी वे किसी सड़क, पुल, इमारत या प्लांट जैसी चीजों के लिए सरकार के काम न आए तो व्यर्थ है उनकी पेड़गीरी।

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अब पढ़िए माखनलाल चतुर्वेदी जी की वह कविता पुष्प की अभिलाषा जो उक्त कविता की प्रेरणा बनी है....

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

रविवार, 21 मार्च 2021

Political Satire : जान बचाकर भागा रिपोर्टर, जब घोषणा पत्र ने सुना दी कविता ...

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By Jayjeet

दो दिन पहले ममता दीदी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया था। आज बीजेपी ने भी जैसे ही घोषणा-पत्र जारी किया, रिपोर्टर क्विक इंटरव्यू के चक्कर में तुरत-फुरत घोषणा-पत्र के पास पहुंच गया...

रिपोर्टर : बधाई हो, राजनीतिक दलों ने फिर से आप पर भरोसा जताया है...

घोषणा पत्र : हां जी, संतोष की बात है ये। नेता लोग अब तक मुझे भूले नहीं हैं। कभी वचन पत्र तो कभी संकल्प पत्र, अलग-अलग नामों से जारी कर ही देते हैं।

रिपोर्टर : लेकिन हर बार आप जनता के लिए तो छलावा ही साबित होते हैं?

घोषणा पत्र : जनता का मुझसे क्या लेना-देना?

रिपोर्टर : आपको जारी तो आम जनता के लिए ही किया जाता है ना?

घोषणा पत्र : अच्छा...? तो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए।

रिपोर्टर : वैसे तो सवाल मैं लिखकर लाया हूं। पूछने का नैतिक अधिकार भी मेरा ही है। फिर भी एक ठौ पूछ लीजिए।

घोषणा पत्र : इस साल न्यू ईयर पर आपने कोई रिजोल्यूशन जैसा कुछ लिया था?

रिपोर्टर : हां, लिया तो था। बड़ा अच्छा-सा था कोई, पर अब याद नहीं आ रहा।

घोषणा : देख लो, ये है आम जनता की स्थिति। अपने रिजोल्यूशन, संकल्प तो याद रहते नहीं। और बात मेरे संकल्पों की करती है।

रिपोर्टर : फिर भी अपनी कसम खाकर कहिए कि अब आप केवल मखौल बनकर नहीं रह गए हैं।

घोषणा-पत्र : हां, कसम खाकर कहता हूं कि मैं मखौल बनकर नहीं रह गया हूं। मेरे अक्षर-अक्षर में ईमानदारी है, सच्चाई है, नैतिकता है, वगैरह-वगैरह...

रिपोर्टर (थोड़ी ऊंची आवाज में) : लो जी, कसम खाकर भी सरासर, खुल्लमखुल्ला झूठ बोल रहे हों? शरम नहीं आती आपको?

घोषणा-पत्र (मुस्कराते हुए) : सही कह रहे हों मित्र। शरम ही तो नहीं आती हमें। क्यों आएगी शरम बेचारी? नेताओं के साथ रहते-रहते हमने उम्र गुजार दी है सारी। हमारे बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही है नेताओं के साथ यारी। अब चल यहां से रिपोर्टर महोदय, बहुत हो गई तुम्हारी होशियारी। आज विश्व कविता दिवस भी है, ज्यादा पेल दूंगा तो पूरी रात दूर ना होगी मेरी कविता की खुमारी...।

रिपोर्टर : बस कर मेरे बाप... गलती हो गई आज। रिजोल्यूशन तो याद ना आया, पर आ बैल मुझे मार कहावत जरूर याद आ गई है। जा रहा हूं ...

Video : देखें गब्बर सिंह के मैनेजमेंट फंडे, कभी ना देखे होंगे, गब्बर की कसम...

मंगलवार, 2 मार्च 2021

Exclusive Interview : बढ़ते दामों के बीच गैस सिलिंडर को क्यों हुई नेहरूजी की चिंता?

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By jayjeet

जैसे ही कुछ लोगों द्वारा गैस सिलेंडर को लतियाने की खबर मिली, रिपोर्टर अपनी संवेदना जताने सिलेंडर के पास पहुंच गया..

रिपोर्टर : यह तो ठीक नहीं हुआ। आपको पैरों से लतियाया गया।
सिलेंडर : आ गए, जले को लाइटर लगाने। वैसे लतियाते पैरों से ही है, हाथों से नहीं... इट्स कॉमन सेंस...

रिपोर्टर : हां हां, पर कौन थे ये लोग?
सिलेंडर : रिपोर्टर आप हो। पता आपको होना चाहिए। और अब अगला डायलॉग जॉली एलएलबी फिलिम का यह मत मार देना- न जाने कहां से आते हैं ये लोग।

रिपोर्टर : हां, याद आया। ये मप्र यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। पर यह सवाल तो लाजिमी है - आज ये सालों बाद कहां से आ गए‌? बल्कि यह पूछना ज्यादा उचित होगा- बीच-बीच में कहां चले जाते हैं ये लोग?
सिलेंडर : युवा कांग्रेस पर तो मेरा मुंह मत खुलवाओ, यही अच्छा होगा।

रिपोर्टर : कहीं ऐसा तो नहीं कि एक तरफ तमिलनाडु में राहुल गांधी पुश-अप लगा रहे थे। तो शायद अपने नेता के सामने अपनी धाक जमाने के लिए युवा कांग्रेसियों ने आपको लतियाया हो!
सिलेंडर : हां, धाक तो गरीब पर ही जमाई जाती है। भाव गैस के ऊंचे हो रहे और लात हम गरीब खा रहे हैं। अगर धाक जमानी ही थी तो भरी हुई गैस वाले सिलेंडर के साथ जमाते। नानी याद आ जाती।

रिपोर्टर : इटली वाली ...!!!
सिलेंडर : आप कांग्रेसियों के नितांत पर्सनल इश्यू पर जा रहे हैं। इट्स नॉट फेयर। मैंने केवल मुहावरे का यूज किया था...

रिपोर्टर : खैर, असली मुद्दे पर आते हैं। यह सरकार कब समझेगी कि सिलेंडर जैसी चीजों, मेरा मतलब गैस के दाम बढ़ने से गरीबों को कितनी दिक्कत हो रही है।
सिलेंडर : जिस दिन समझ गई, उस दिन तो बेचारे नेहरूजी की शामत आ जाएगी।

रिपोर्टर : कैसे, इसका नेहरूजी से क्या लेना-देना?
सिलेंडर : अगर सरकार की पार्टी वाले मतलब बीजेपियों को यह लग गया कि गैस के दाम बढ़ने से उनके मतदाता बिचक रहे हैं तो वे नेहरूजी के पुतले फूंकना शुरू कर देंगे, यह कहते हुए कि आज गैस के दाम इसलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि 50 साल पहले नेहरू सरकार ने कुछ नहीं किया...

रिपोर्टर : वाह, आप तो बड़े दूरंदेशी हैं... तो फिर करना क्या चाहिए?
सिलेंडर : देखो भाई, बहुत सवाल हो गए, और सब के सब फालतू के सवाल। अब और पूछकर मेरा बीपी मत बढ़ाओ। लतियाने की वजह से मैं पहले से ही मेंटली परेशान हूं। टेंशन से मेरा सिर फटा जा रहा है, मैं पूरा फटूं, उससे पहले ही नौ दो ग्यारह हो जाओ... नहीं तो तुम्हारी ब्रेकिंग न्यूज बन जाएगी...

रिपोर्टर : रुको भाई, भागता हूं मैं...

पढ़ें ऐसे ही और भी मजेदार इंटरव्यू ...

Exclusive Interview : शिवराज को काटने वाले मच्छर की बदल गई ज़िंदगी
महंगाई के मन में फूटे राजनीति के लड्‌डू…गिरी हुई महंगाई से खास बातचीत
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शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

Satire & humor : महंगाई के मन में फूटे राजनीति के लड्‌डू…गिरी हुई महंगाई से खास बातचीत

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By Jayjeet

महंगाई क्या गिरी, रिपोर्टर तुरंत उछलकर उसके पास पहुंच गया। रिपोर्टर को देखते ही महंगाई ने मुंह बनाया - आ गए तुम रिपोर्टर लोग, जले पर तेल डालने...

रिपोर्टर : इसे जले पे नमक छिड़कना कहते हैं बहन…

महंगाई : वाह, मतलब आप रिपोर्टर लोगों को मुहावरे भी पता हैं..! मैं तो बस तुम्हारी परीक्षा ले रही थी।

रिपोर्टर : हम आम आदमी भी हैं। परीक्षा तो आप हम आम लोगों की हमेशा ही लेती रहती हो... वैसे हम आपके जले पे नमक छिड़कने नहीं, बल्कि बधाई देने आए हैं।

महंगाई :  बधाई! किस बात की?

रिपोर्टर : अब गिरने के मामले में आप भी नेताओं से होड़ लेने लगी हैं। मतलब, इस मामले में आप देश में दूसरे स्थान पर पहुंच गई हैं। इसी बात की आपको लख लख बधाइयां…

महंगाई: अच्छा, तो मतलब हम भी क्या पॉलिटिक्स-वॉलिटिक्स में आ सकती हैं?

रिपोर्टर : अरे आपने तो मुंह की बात ही छीन ली।

महंगाई: पर एक बात अब भी समझ में नहीं आ रही। मुझे थोड़ा डाउट सा हो रहा है। हम गिरे कब हैं? मतलब हमें तो गिरने जैसा कोई फील ही नहीं हो रहा।

रिपोर्टर : यह तो हमको भी समझ में नहीं आ रहा। हमें भी आपमें गिरने वाले कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे। आज भी प्याज 50 रुपए किलो मिल रहे हैं। पेट्रोल सेंचुरी मारने जा रहा है। हमने अपने मन की बात पहले इसलिए नहीं बताई कि कहीं आप हमें अज्ञानी पत्रकार ना समझ लो...

महंगाई : अच्छा किया जो मन की बात ना बताई। एक के मन की बात ही काफी है।

रिपोर्टर : वाह! आप तो बड़ी डेयरिंग भी हो। देखना, बैन-वैन ना हो जाओ...ट्विटर पर हों?

महंगाई : मजाक  छोड़िए, आप तो यह बताइए, राजनीति करने के लिए हमें करना क्या होगा? हमारे मन में तो राजनीति के लड्‌डू फूट रहे हैं।

रिपोर्टर : आप असल में गिरी हैं या नहीं, यह तो किसी को ना पता, पर राजनीति करनी है तो खुद को गिरा हुआ फील करना जरूरी है।

महंगाई : ठीक है, हम मुंह पर सरकारी आंकडे़ चिपका लेते हैं। इससे गिरने का फील आ जाएगा।

रिपोर्टर : एक शर्त और है।

महंगाई : वो क्या?

रिपोर्टर : आपको गिरने के मामले में कंसिस्टेंसी भी बनाए रखनी होगी। ऐसे नहीं कि आज गिरी और कल ऊपर चढ़ गई। परसो गिरी और फिर ऊपर चढ़ गई…समझें!!

सेंसेक्स : मतलब, स्साला पूरा नेता बनना होगा!

रिपोर्टर : बिल्कुल।

महंगाई : पर यह तो संभव ही नहीं है। हम आंकड़ों में खुद को गिरा लें, वहां तक ठीक है। पर चाल-चलन, कैरेक्टर, इन सब मामलों में हम कैसे गिर सकती है? नहीं करनी ऐसी राजनीति, यह नेताओं को ही मुबारक...। मैं तो चली...

रिपोर्टर : अरे, सुनो तो सही। कोई ब्रेकिंग-व्रेकिंग तो देती जाओ...

#inflation_satire #inflation_jokes

Short Satire : महंगाई दर ने की खुदकुशी की कोशिश

नई दिल्ली। एक चौकाने वाले घटनाक्रम के तहत महंगाई दर ने यहां शनिवार सुबह खुदकुशी करने की कोशिश की। उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है जहां उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। करीबी सूत्रों के अनुसार वह उसी दिन से मानसिक तौर पर काफी परेशान थी, जिस दिन यह बात सामने आई थी कि वह पिछले 16 महीनों में सबसे ज्यादा नीचे गिर गई है। उसके पास से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है, जिसमें लिखा है – “मैं महंगाई हूं, मैं कैसे गिर सकती हूं? इसके बावजूद मुझे यह कहकर प्रताड़ित किया जा रहा है कि मैं नीचे गिर रही हूं। मुझे क्या नेता समझ लिया है?”

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

Funny Video : कोरोना क्यों हुआ पस्त?


देश में कोरोना का असर कम होता जा रहा है। लेकिन इसकी वजह वैक्सीन कार्यक्रम कम, घर-गृहस्थी ज्यादा है। देखिए यह शुद्ध ह्यूमर एवं फनी वीडियो... कार्टून कैरेक्टर्स के जरिए....

ऐसे ही वीडियोज के लिए क्लिक करें...

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

Satire : रिहाना के एक ट्वीट की कीमत पूरे 18 करोड़ , क्या खाक बराबरी करेंगी कंगना!



किसान आंदोलन को लेकर भारत पर सवाल उठाने वाली अमेरिकन सिंगर रिहाना (rihana) अब खुद विवादों में हैं। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि उनके पोस्ट के लिए rihana को कनाडा की एक पीआर फर्म ने 18 करोड़ रुपए दिए थे, जो खालिस्तान समर्थक से जुड़ी है। देखिए, यह व्यंग्य शॉर्ट वीडियो...

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

Humor : राहुल को समझ में आया बजट, कांग्रेसियों में खुशी की लहर, सोनिया के निवास पर पहुंचकर की आतिशबाजी

Rahul understood budget Congressmen happy
मुझे खुशी है कि मेरे बेटे काे आखिरकार बजट समझ में आ गया : सोनिया 


By A. Jayjeet

नई दिल्ली। राहुल गांधी को बजट (budget) समझ में आ गया है। इसका ऐलान खुद राहुल ने एक ट्वीट कर किया। इसकी खबर मिलते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर छा गई। कार्यकर्ता ढोल नगाड़ों के साथ सोनिया के निवास पर पहुंचे और वहां जमकर आतिशबाजी की। कार्यकर्ताओं की भावनाओं को देखते हुए खुद सोनिया ने सड़क पर आकर राहुल के साथ विक्टरी चिह्न दिखाकर खुशी मनाई (देखें चित्र)।

जयराम रमेश ने खुशी के आंसू रोकते हुए कहा – आखिर मेरी तपस्या सफल हुई। मनमोहन सिंह ने कहा – मैं तो अब भी बजट समझने की कोशिश कर रहा हूं। राहुल बाबा मुझसे भी होशियार हो गए। विश्वास नहीं होता, मगर खुशी की बात है। दिग्गी राजा ने कहा- जिस बजट को आज तक मनमोहन सिंह जी तक नहीं समझ सके, उसे राहुलजी ने समझ लिया। इससे साफ है कि हमें राहुलजी की जरूरत है। मैं उनसे फिर से पार्टी की कमान संभालने का अनुरोध करता हूं।

सोनिया के निवास पर पहुंचे कार्यकर्ता, खुशी जताई :

राहुल के ट्वीट के बाद हजारों की संख्या में कार्यकर्ता सोनिया गांधी के निवास पर पहुंचे और वहां जमकर आतिशबाजी की। सोनिया ने बाहर निकलकर कार्यकर्ताओं से कहा – “ऐसा लग रहा है कि हम देश में आम चुनाव जीत गए हैं।”

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Budget Satire : आम आदमी को समझ में आया बजट, सदमे में पहुंची वित्त मंत्री






By Jayjeet

नई दिल्ली। बजट के इतिहास में पहली बार एक आम आदमी ने आम बजट को समझने का दावा कर आर्थिक और राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैला दी है। इस खबर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सदमे में बताई जा रही हैं। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने इसके लिए सीतारमण को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है।

इस बीच, अनेक आर्थिक विशेषज्ञों ने इस दावे को फेक बताते हुए कहा है कि यह संभव ही नहीं है कि कोई आम आदमी आम बजट को समझ सके। न पहले कोई समझ सका है, न आगे कोई समझ सकेगा। हालांकि अभी इस आम आदमी की पहचान का खुलासा नहीं किया गया है। सरकार ने इस आदमी के दावे की जांच के लिए आनन-फानन में तीन विशेषज्ञों की समिति गठित कर दी है।

विपक्ष ने मांगा सीतारमण का इस्तीफा
आम आदमी के इस दावे के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण विपक्ष के निशाने पर आ गई हैं। इसके लिए कांग्रेस ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को आगे किया है। चिदंबरम ने कहा कि आम आदमी के इस दावे ने वित्त मंत्रालय के इतिहास को कलंकित कर दिया है। उन्होंने इसके लिए सीतारमण को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है।

सदमे में सीतारमण
आम आदमी के इस दावे के बाद सीतारणम सदमे में बताई जा रही हैं। सदमे में आने से पहले उन्होंने ऐसा बजट तैयार करने के लिए तीन जिम्मेदार अफसरों को सस्पेंड कर दिया है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने हिंदी सटायर को बताया, “वित्त मंत्री अपने कक्ष में अपने अफसरों पर चिल्ला रही थीं। जाहिलो, ऐसा कैसा बजट बना दिया कि एक आम आदमी भी इसे समझ गया। आप लोगों ने इसे हलवा समझ रखा क्या?” अफसर बार-बार दलील देते रहे कि मैडम, यह विपक्ष की साजिश है। ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। आम आदमी तो हमारे फोकस में ही नहीं होता। लेकिन सीतारमण पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

# budget  #budget Satire 

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रविवार, 31 जनवरी 2021

हलवे की कड़ाही और वोटर्स में क्या समानता है? जानिए इसी कड़ाही से, बजट पूर्व खास इंटरव्यू में…

बजट का हलवा

 

By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क, नई दिल्ली। बजट पेश होने में अब कुछ ही घंटे बाकी हैं। ऐसे में बजट संबंधी ब्रेकिंग न्यूज कबाड़ने के फेर में रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों न कड़ाही से बात की जाए, वही कड़ाही जिसमें बजट की प्रिंटिंग से पहले हलवा बना था। तो छिपते-छापते रिपोर्टर पहुंच गया नॉर्थ ब्लॉक कड़ाही के पास :

रिपोर्टर : राम-राम कढ़ाही काकी। कल बजट आ रहा है और आप आराम कर रही हों?

कड़ाही : अब हमारा बजट से क्या काम? हलवा बनना था, बन गया और बंट भी गया।

रिपोर्टर : पर आप यहां इस समय कोने में क्या कर रही हों?

कड़ाही : अब यही तो हमारी नियति है बेटा। बजट छपने से पहले ही हमारी पूछ-परख है। एक बार हलवा खतम तो हमारा काम भी खतम। बस यहीं कोने में सरका दी जाती है। साल भर यहीं पड़े रहो।

रिपोर्टर : मतलब आपमें और हममें कोई फर्क नहीं?

कड़ाही : बिल्कुल। जैसे तुम वोटर्स की वोटिंग से पहले ही पूछ-परख होती है, वैसे ही मेरी बजट की छपाई से पहले।


रिपोर्टर : अच्छा, तनिक यह तो बताओ कि बजट में क्या आ रहा है? थोड़ी-बहुत ब्रेकिंग-व्रेकिंग हम भी चला दें…

कड़ाही : ब्रेकिंग का क्या, कुछ भी चला दो। चला दो कि बजट की एक रात पहले नॉर्थ ब्लॉक के पिछवाड़े में एक भूत के कदमों के निशान पाए गए। हो गई ब्रेकिंग न्यूज..।

रिपोर्टर : अरे नहीं काकी। मैं टीवी वाली ब्रेकिंग की बात ना कर रहा। हमें तो ‘हिंदी सटायर’ के लिए ब्रेकिंग चाहिए, वही जो खबरी व्यंग्यों में हिंदी में भारत का पहला पोर्टल है।

कड़ाही : अच्छा। तो खबर चाहिए? ऐसा बोलो ना। पर वो मुझे कहां पता। मैंने बजट थोड़े देखा है।

रिपोर्टर : मंत्री और अफसर हलवा खाते समय कुछ तो बतियाए होंगे?

कड़ाही : हां, मंत्राणी अपने अफसरों से पूछ रही थीं कि क्या उस आम आदमी की पहचान हो गई है जिसके लिए हम बजट बना रहे हैं?

रिपोर्टर : अरे वाह, फिर क्या हुआ?

कड़ाही : वही तो बता रही हो। बीच में ज्यादा टोकाटोकी मत करो…हां तो इस पर अफसर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। तब एक सीनियर अफसर ने हिम्मत करके कहा कि मैडम जी, हम तो हलवे में लगे थे। वैसे भी बजट का आम आदमी से क्या लेना-देना? फिर भी हमने उसकी तलाश में टीमें लगा दी हैं…. और भी बहुत बातें हुईं, पर ज्यादा समझ में ना आईं।

रिपोर्टर : हमें तो हलवे की फोटो ही देखने को मिलती आई है। ये तो बता दो उसमें क्या-क्या माल डलता है?

कड़ाही : बेटा, ये तो बहुत कॉन्फिडेंशियल है, बजट से भी ज्यादा।

रिपोर्टर : ठीक है, ना पूछता। पर दिल में कई सालों से एक सवाल उठ रहा था, हलवे को लेकर।

कड़ाही : क्या?

रिपोर्टर : यही कि क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि किसी दिन कोई वित्त मंत्री यह कहें कि इस बार हलवा न बनेगा और न बंटेगा। इस बार रोटियां बनेंगी और गरीबों में बंटेंगी, क्योंकि इस देश को हलवे से ज्यादा रोटियों की दरकार है और…

कड़ाही (बीच में टोकते हुए) : बेटा, अब ज्यादा हरिशंकर परसाई मत बनो। अपनी औकात में रहो। वो तो समय रहते निकल लिए। तुम परसाई बनने के चक्कर में अपनी लिंचिंग न करवा बैठना। तुम अभ्भी के अभ्भी यहां से निकल लो…खुद तो मरोगे, मुझे भी मरवाआगे…

(Disclaimer : बताने की जरूरत नहीं कि यह खबर कपोल-कल्पित है। मकसद केवल कटाक्ष करना है, किसी की मनहानि करना नहीं।)

शनिवार, 30 जनवरी 2021

Satire : पहले बजट हुआ 'बही खाता', अब महंगाई और टैक्स का नाम बदलने की बारी


हमारे देश में सबसे आसान काम होता है बजट का एनालिसिस करना। साथ ही महंगाई और टैक्स का नाम बदलने की क्यों है जरूरत, देखिए इस व्यंग्य वीडियो में ...


# बजट हास्य व्यंग्य, # बजट कटाक्ष, # budget satire

गोडसे ने बापू की डायरी में यह क्यों लिखा : 1,10,234 …?

 

gandhi-godse


By Jayjeet


गोडसे ने आज फिर बापू की डायरी ली और उसमें कुछ लिखा।


गांधी ने पूछा- अब कितना हो गया है रे तेरा डेटा?


एक लाख क्रॉस कर गया बापू। 1 लाख 10 हजार 234… गोडसे बोला


गांधी – मतलब सालभर में बड़ी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।


गोडसे : हां, 12 परसेंट की ग्रोथ है। बड़ी डिमांड है …. गोडसे ने मुस्कराकर कहा…


गांधीजी ने भी जोरदार ठहाका लगाया…


नए-नए अपॉइंट हुए यमदूत से यह देखा ना गया। गोडसे के रवाना होने के बाद उसने अनुभवी यमदूत से पूछा- ये क्या चक्कर है सर? ये गोडसे नरक से यहां सरग में बापू से मिलने क्यों आया था?


अनुभवी यमदूत – यह हर साल 30 जनवरी को नर्क से स्वर्ग में बापू से मिलने आता है। इसके लिए उसने स्पेशल परमिशन ले रखी है।


नया यमदूत – अपने किए की माफी मांगने?


अनभवी – पता नहीं, उसके मुंह से तो उसे कभी माफी मांगते सुना नहीं। अब उसके दिल में क्या है, क्या बताए। हो सकता है कोई पछतावा हो। अब माफी मांगे भी तो किस मुंह से!


नया – और बापू? वो क्यों मिलते हैं उस हरामी से? उसके दिल में भले पछतावा हो, पर बापू तो उसे कभी माफ न करेंगे।


अनुभवी – अरे, बापू ने तो उसे उसी दिन माफ कर दिया था, जिस दिन वे धरती से अपने स्वर्ग में आए थे। मैं उस समय नया-नया ही अपाइंट हुआ था।


नया – गजब आदमी है ये… मैं तो ना करुं, किसी भी कीमत पे..


अनुभवी – इसीलिए तो तू ये टुच्ची-सी नौकरी कर रहा है…


नया – अच्छा, ये गोडसे, बापू की डायरी में क्या लिख रहा था? मेरे तो कुछ पल्ले ना पड़ रहा।


अनुभवी – यही तो हर साल का नाटक है दोनों का। हर साल गोडसे 30 जनवरी को यहां आकर बापू की डायरी को अपडेट कर देता है। वह डायरी में लिखता है कि धरती पर बापू की अब तक कितनी बार हत्या हो चुकी है। गोडसे नरक के सॉफ्टवेयर से ये डेटा लेकर आता है।


नया – अच्छा, तो वो जो ग्रोथ बोल रहा था, उसका क्या मतलब?


अनुभवी – वही जो तुम समझ रहे हो। पिछले कुछ सालों के दौरान गांधी की हत्या सेक्टर में भारी बूम आया हुआ है।


नया – ओ हो, इसीलिए इन दिनों स्वर्ग में आमद थोड़ी कम है…


अनुभवी – अब चल यहां से, कुछ काम कर लेते हैं। वैसे भी यहां मंदी छाई हुई है। नौकरी बचाने के लिए काम का दिखावा तो करना पड़ेगा ना… हमारी तो कट गई। तू सोच लेना….


(Disclaimer : इसका मकसद गांधीजी को बस अपनी तरह से श्रद्धांजलि देना है, गोडसे का रत्तीभर भी महिमामंडन करना नहीं… )

#gandhi #godse 

बुधवार, 20 जनवरी 2021

आम आदमी की खोज पूरी, अब सरकार बजट से पहले खिलाएगी भरपेट हलवा, ताकि...

 

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आम आदमी (दाएं) के बारे में बताती हुईं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ...



By Jayjeet

नई दिल्ली। सरकार ने उस आम आदमी को ढूंढ निकालने का दावा किया है जिसके लिए आम बजट पेश किया जाना है। बजट के पहले हलवे की रस्म के दौरान इस आम आदमी को ठूंस-ठूंसकर इतना हलवा खिलाने की योजना है ताकि बाद में वह रोटी न मांग सके।।

इस आम आदमी को वित्त मंत्री ने स्वयं अपने प्रयासों से ढूंढा है। वे पिछले साल भर से इसी की तलाश में जुटी हुई थीं। इसकी तलाश में ही वित्त मंत्री उस दिन देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ प्रधानमंत्री की अहम बैठक में भी शामिल नहीं हो पाई थीं। प्रधानमंत्री ने भी वित्त मंत्री से कह रखा था कि अर्थशास्त्रियों के साथ तो बातचीत होती रहेगी। हर साल ही होती है। लेकिन उस आम आदमी को ढूंढकर लाना ज्यादा जरूरी है, जिसके नाम पर हम बजट बनाते हैं।

आज सुबह खुद वित्त मंत्री ने एक प्रेस वार्ता में इस बात की जानकारी दी। उन्होंने कहा, “जो काम पिछले 70 साल में कोई नहीं कर सका, उसे हमने कर दिखाया है। कांग्रेस की सरकारें केवल आम आदमी की बातें करती रहीं, लेकिन हमने उसे ढूंढ भी लिया है।”

कांग्रेस का दावा, नेहरूजी पहले ही खोज चुके :
इस बीच, कांग्रेस ने वित्त मंत्री के इस दावे को हास्यास्पद बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता सूरजेवाला ने प्रतिदावा किया कि नेहरूरी ने जिस इंडिया की खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) की थी, उसमें आम आदमी भी शामिल था। इसलिए यह कहना सरासर झूठ है कि आम आदमी की खोज मोदी सरकार ने की।

हलवे की रस्म के दिन रखा जाएगा खास ख्याल :
हर साल बजट की छपाई शुरू होने पर वित्त मंत्रालय में हलवे की रस्म होती है। एक सूत्र के अनुसार आम आदमी को इसी रस्म के दौरान इतना ठूंस-ठूंसकर हलवा खिलाया जाएगा ताकि बजट के बाद वह रोटी के बारे में कोई बात करने की स्थिति में ही न रहे।

(Disclaimer : यह खबर कपोल कल्पित है। इसका मकसद केवल कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं)

# budget jokes