गुरुवार, 15 मई 2014

छह अंधे और सत्ता का हाथी

जयजीत अकलेचा

छह अंधे बहुत दिनों से बेकार बैठे हुए थे। एक दिन उन्हें पता चला कि लोकतंत्र के जंगल में सत्ता का हाथी भटक रहा है। पहले वे एक हाथी को छूकर ज्ञानी हो चुके थे। उन्होंने सोचा, चलो इस बार सत्ता के इस हाथी का परीक्षण करते हैं। सभी उसके पास पहुंचे। पहले अंधे ने हाथी के पेट को हाथ लगाया तो वह बोला- अरे यह तो दीवार है। यानी सत्ता दीवार होती है। बाकी अंधे बोले, एक्सप्लेन इट। पहला अंधा- ‘दीवार और सत्ता का निकट संबंध है। पहले वोटों के लिए जाति, धर्म, संप्रदाय की दीवारें खड़ी कर दो और फिर कुर्सी के लिए विचारधारा की दीवारों को गिरा दो। देखना, एक-दो दिन में यही होने वाला है।‘
अब दूसरा अंधा हाथी के मुंह की तरफ बढ़ा। उसने सूंड को हाथ लगाया तो बोल उठा- ‘यह दीवार नहीं, सर्प है, घातक जहरीला सांप।’ उसने टीवी पर किसी के मुंह से सुन रखा था कि सत्ता जहर के समान होती है। तो उसने अपना फैसला सुना दिया कि सत्ता या तो सांपनाथ होती होगी या नागनाथ। वैसे भी पिछले डेढ़-दो महीनों के दौरान लोकतंत्र के जंगल में इतना विष वमन हो चुका था कि उसे यह फैसला करने में देर नहीं लगी।
तीसरा अंधा हाथी की पूंछ के पास पहुंचा। उसे छूकर बोला, ‘सत्ता रस्सी होती है, रस्सी। इसके सहारे खुद उपर चढ़ते जाओ। फिर अपने सगे-संबंधियों को भी चढ़ा लो। सुना है कि कोई जीजाश्री सत्ता की ऐसी ही रस्सी के सहारे काफी उपर पहुंच गए हैं।’
अब चैथे की बारी थी। उसने हाथी के पैर को छूआ तो ऐसा उत्साह से भर गया मानो सत्ता का रहस्य उसी ने ढूंढ़ लिया हो। चिल्लाकर बोला, ‘सत्ता और कुछ नहीं, पेड़ का तना है। आंधी चल रही हो तो इससे चिपक जाओ। उड़ोगो नहीं और फिर लता की तरह उस पर रेंगते रहो। देखना, ऐसी ही कई लताएं फलती-फूलती नजर आएंगी।’
पांचवें अंधे ने हाथी के कानों को छूआ तो बोला, ‘ तुम सब गलत हो। सत्ता तो सूपड़ा है। सूपड़े का तो नेचर ही होता है कि जो काम के नहीं हैं, हल्के हैं, उन्हें झटक दो। भारी वहीं बने रहते हैं। पिछले 60 साल से सत्ता का यह हाथी ऐसे ही काम करते आया है।’
छठे ने सोचा, बहुत बकवास हो गई। मैं देखता हूं। वह हाथी के दांतों के पास पहुंचा और उन्हें छूकर बोलो, ‘अरे मूर्खो, सत्ता तो तलवार है, दोधारी तलवार। सही इस्तेमाल करोगे तो यह आपकी जीत का मार्ग प्रषस्त करेगी, लेकिन जरा-सी लापरवाही आपको ही काट देगी। सुना है कोई नया आदमी अब तलवार घुमाने आने वाला है।’
तो छह अंधे, छह बातें। यानी कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन। इतने में पास से एक समझदार किस्म का बंदा गुजरा। षायद वह कोई विष्लेषक था और पिछले डेढ़ महीने से टीवी पर आ-आकर और भी समझदार बन गया था। अब अंधों ने उसे ही फैसला करने को कहा। उसने कहा- ‘तुम सब सही हो। सत्ता का हाथी ऐसा ही होता है। अच्छी बात यह है कि तुम लोगों ने अंधे होकर भी सत्ता के इस हाथी को पहचान लिया, जबकि अनेक आंखवाले देखकर भी अंधे बने रहते हैं। इसीलिए सत्ता का यह हाथी अपनी चाल चलता रहता है।’
कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

बुधवार, 14 मई 2014

इंडियन पपेट आर्ट एकेडमी के चेयरमैन बनेंगे मनमोहन सिंह!

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि अब वे क्या करेंगे? माना जा रहा है कि मनमोहन सिंह किसी अकादमी के प्रमुख बनाए जा सकते हैं। सूत्रों के अनुसार उन्हें इंडियन पपेट आर्ट एकेडमी का चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव है। पिछले दस सालों में उन्होंने भारतीय राजनीति में कठपुतली कला को जिस तरह से प्रोत्साहित किया, उसके लिए वे इस पद के सर्वथा उपयुक्त माने जा रहे हैं। अहमद पटेल को एकेडमी का आजीवन सचिव और दिग्विजय सिंह को अगले सात जनम तक के लिए ट्रस्टी बनाया जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि निवर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल के अनेक सदस्यों को भी इस एकेडमी में जगह मिल सकती है। गौरतलब है कि पपेट आर्ट एकेडमी की स्थापना 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पहल पर की गई थी।
मूक बच्चों के गुडविल एम्बेसडर बनने को राजी सिंह: इस बीच, एक अच्छी खबर यह आई है कि मनमोहन सिंह भारत में मूक बच्चों के हितार्थ गुडविल एम्बेसडर बनने को तैयार हो गए हैं। इस संबंध में बुधवार सुबह संयुक्त राश्ट्र के महासचिव बान की मून ने मनमोहन सिंह से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चर्चा की। मनमोहन सिंह ने इशारों ही इशारों में इसके लिए हामी भर दी। यह ऐसा पहला मौका होगा जब कोई्र प्रधानमंत्री स्तर का नेता इतने बड़े सोशल काॅज के लिए राजी हुआ है।

रविवार, 11 मई 2014

बड़ा सवाल - राहुल बेचेंगे आइसक्रीम या मोदी खोलेंगे टी चेन?


चुनाव नतीजों के बाद बनेंगे कई रोचक समीकरण

 जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


राहुल बाबा फिर निकलेंगे रोड शो पर! गाड़ी तैयार है।

चुनाव के नतीजे आने में अब कुछ घंटों का ही समय बाकी है। सबकी नजर इस बात पर है कि नतीजों के बाद किस तरह के समीकरण बनेंगे। जरा एक नजर इन संभावनाओं पर भी:
1. एनडीए की सरकार बनने पर:
 - राहुल बाबा को रोड शो की अच्छी प्रैक्टिस हो गई है। गर्मी चल रही है। वे रोड पर आइसक्रीम बेच सकते हैं या फिर पानीपुरी का ठेला भी लगा सकते हैं।
- दिग्विजय सिंह मेरिज ब्यूरो खोल सकते हैं। स्वयं उनकी पार्टी में ही कुछ ऐसे एलिजिबल बेचलर हैं, जिनके लिए वे दुल्हन की तलाश करने में मदद कर सकते हैं।
- मुलायम सिंह यादव पहलवानों के लिए एकेडमी शुरू कर सकते हैं। इसका फायदा उन्हें अगले विधानसभा चुनावों में मिलेगा।
- अरविंद केजरीवाल खासी की दवा बनाने वाली कंपनी के लिए काम कर सकते हैं। यह कंपनी इस मामले में रिसर्च करने में उनकी मदद ले सकती है कि आखिर किन हालातों में खासी हमेशा बनी रहती है। या अरविंद चाहें तो ड्रामा मंडली भी शुरू कर सकते हैं।

2. यूपीए या तीसरे मोर्चे की सरकार बनने पर
- नरेंद्र मोदी देशभर में चाय की चेन खोल सकते हैं। चुनाव प्रचार के बहाने देशभर में घूमने के पीछे उनका सबसे बड़ा मकसद तो यही था कि इससे कई लोगों से संबंध बन जाएंगे। इससे चाय का बिजनेस अच्छा चल पड़ेगा।
- लालकृश्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता तो जैसे अभी बेरोजगार हैं, वैसे ही तब भी रहेंगे। क्या फर्क पड़ेगा!

शुक्रवार, 9 मई 2014

व्यवस्था के ये टाॅमी


जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

किस्मत हो तो साहब के टाॅमी जैसी। साहब जब उसे सुबह-सुबह पार्क में ले जाते हैं, तब उसके जलवे देखते ही बनते हैं। हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति प्यार से कहता मिल जाएगा, टाॅमी टाॅमी! इतने प्यार से तो वे षायद अपने बच्चों को भी नहीं बुलाते होंगे। आखिर साहब का कुत्ता जो ठहरा। साहब भी इतने बड़े आदमी। हर कोई उनकी कृपादृष्टि को लालायित। लेकिन साहब ऐसे तो किसी को भाव देने से रहे। ऐसे में टाॅमी ही काम आता है। अब टाॅमी को यदि कोई पुचकारें तो भला साहब उसे कैसे रोक सकते हैं!
कल की ही बात है। सुबह-सुबह रामकृपालजी पार्क में दिखाई दिए। बड़े ठेकेदार हैं, दिनभर में हजारों लाखों का वारा-न्यारा करते हैं और देर रात थकान मिटाते हैं। उस सुबह वे स्पेषियल ट्रैक सूट पहनकर पार्क में निकल पड़े थे। उन्हें साहब से मिलना जो था, लेकिन अब ऐसे भी कैसे मिल लें। इसीलिए ट्रैक सूट की दोनों जेबों में हड्डियां डाल रखी थीं। आंखें टाॅमी को ही ढूंढ़ रही थीं। और जैसे ही टाॅमी को देखा, आंखों के लाल डोरों में उम्मीदें उतर आई। जाॅगिंग करते हुए उसके पास चल आए। जेब से हड्डी निकाली और आगे बढ़ा दी, ‘ले बेटा टाॅमी, ले लें’।
साहब जानते हैं कि आज रामकृपालजी को टाॅमी पर इतना प्यार क्यों आ रहा है। बड़े एक्सपर्ट हैं। सड़क को उपर से देखकर ही पता लगा लेते हैं कि नीचे क्या घालमेल हुआ है। यह अलग बात है कि ठेकेदारों को ज्यादा परेषान नहीं करते। दिल के उदार है। इसलिए एडजस्ट कर लेते हैं। सुबह-सुबह पार्क में रामकृपालजी को देखकर ही समझ गए थे कि माजरा क्या है। उनके ठेेके का पुराना पैसा अटका है। फाइल साहब के पास ही पड़ी है। रामकृपालजी भी जानते हैं कि फाइल कहां अटकी है, लेकिन इसी उधेड़बुन में हैं कि साहब को कैसे व कितनी हड्डियां आॅफर करें!
षुरुआत रामकृपालजी ने ही की, ‘बड़ा प्यारा कुत्ता है, देखिए कितने प्यार से हड्डी ले ली।’
‘भाईसाहब, हड्डी खिलाने का भी एक तरीका होता है, बस वही आना चाहिए। वह आ गया तो एक टाॅमी तो क्या, कई टाॅमी आपके कंट्रोल में आ जाते हैं।’
रामकृपालजी इषारा समझ गए। एक और हड्डी टाॅमी की ओर फेंकते हुए वे अब सीधे काम की बात पर आ गए, ‘आपके आॅफिस में मेरी फाइल अटकी पडी है। कुछ करवाइए ना?’
‘अब आप जानते ही हैं, आॅफिस में कोई एक टाॅमी तो है नहीं। उपर से नीचे तक कई हड्डियां फेंकनी पड़ती है, तब जाकर बात बनती है।’ साहब बोले।
‘तो इससे हमें कहां इनकार है? कल आॅफिस आ जाउ क्या?’ रामकृपालजी बोले।
‘हां, लेकिन हड्डियों के जरा थोड़े बहुत नमूने लाना मत भूलना। बड़े साहब पहले थोड़ी सी चखकर देखते हैं, फिर आगे की बात करते हैं।’
‘जैसा आप कहें, चलता हूं मैं, राम-रामजी।’ रामकृपालजी वहां से निकल लिए, लेकिन टाॅमी को बाय करना भूल गए। 

कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

गुरुवार, 8 मई 2014

मुलायम के शपथ ग्रहण समारोह में आजम खान की भैंसें भी शामिल होंगी

- भैंसें करवा रही हैं अपना फेषियल
- राजा भैया ने आईपीएल की चीयरलीडर्स को बुलवाया

 

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने दावा किया है कि इस बार केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी। इसका मतलब यही लगाया जा रहा है कि मुलायम सिंह ही प्रधानमंत्री बनेंगे। इस दावे के बाद उनके रिश्तेदारों व समर्थकों ने अलग-अलग तरह की तैयारियां षुरू कर दी हैं। इसमें अखिलेष यादव सबसे आगे हैं। उन्होंने पिछले पांच साल से अपने पिताजी का अलमारी में रखा बंद गले का कोट प्रेस करवाने के लिए अपने प्रेस अटैची को दे दिया है। हालांकि उन्हें बाद में बताया गया कि प्रेस अटैची का काम प्रेस करवाना नहीं है तो वे बुरा मान गए। लेकिन प्रेस अटैची ने बुरा नहीं माना और उन्होंने अपनी बीवी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। खैर यह बंद गले का कोट प्रेस होने के बाद मुलायम सिंह यादव के बंगले में पहुंच गया है। इस बीच, आजम खान ने भी अपनी भैंसों के फेषियल इत्यादि के लिए एक मैकअप आर्टिस्ट को उठवा लिया है। भैंसें बड़ी खुश हैं। वहीं राजा भैया के करीबी लोगों ने संकेत दिए हैं कि मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री पद के षपथ ग्रहण समारोह के दौरान आईपीएल की चीयरलीडर्स को भी स-सम्मान बुलवाया जाएगा। इस दौरान आईपीएल मैचों में चीयरलीडर्स का जिम्मा सपा कार्यकर्ताओं को सौंप दिया जाएगा।     
मंत्रियों का होगा डीएनए टेस्ट: सपा नेता अबू आजमी से जुड़े सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल में उन्हीं लोगों को लिया जाएगा, जिनकी पिछली दस पीढ़ियों का आरएसएस से कोई संबंध नहीं रहा है। इसके लिए डीएनए टेस्ट भी करवाया जाएगा।

मंगलवार, 6 मई 2014

ट्विटर के वे अफसर बर्खास्त होंगे जो रजनीकांत को लेकर आए


जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

ट्विटर के ये अफसर बर्खास्त क्यों होंगे, इसे जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर रजनीकांत ट्विटर पर आए कैसे। इसकी एक दिलचस्प कहानी है। दरअसल, ट्विटर के बड़े अधिकारियों को चिंता हुई कि भारत में चुनाव के बाद क्या होगा! अभी तो चुनाव को लेकर लोग ट्विटर पर आय-बाय-षाय कुछ न कुछ पटक ही देते हैं। इससे ट्विटर की दुकान चलती रहती है। लेकिन चुनाव के बाद जब सब फ्री होंगे तो ट्विटर तो खाली हो जाएगा। इस संकट से निपटने के लिए ट्विटर के थिंक टैंक की एक मीटिंग बुलाई गई। इसमें इस बारे में काफी विचार किया गया। तब उनके दिमाग में आया एक आइडिया। गलत समझे, अभिषेक बच्चन नहीं, रजनीकांत। ट्विटर के कुछ आला अफसरों की एक टीम रजनीकांत के पास पहुंची और उनसे हाथ जोड़कर ट्विटर पर आने का आग्रह किया। रजनीकांत ने तथास्तू कहा। तो इस तरह रजनीकांत ट्विटर पर आए।
लेकिन रजनीकांत को ट्विटर पर लाने से संकट और गहरा गया है। ताजा खबर है कि ट्विटर ने अपने थिंक टैंक के उन अफसरों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करने का मन बना लिया है, जिन्होंने रजनीकांत को ट्विटर पर लाने की योजना बनाई थी। क्यों? क्योंकि ट्विटर जल्द ही क्रैष हो सकता है। ट्विटर के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा। ट्विटर के लिए इससे बड़ी षर्मीदगी की बात और क्या होगी?

रविवार, 4 मई 2014

एक ‘आम’ बहस

 (Recently, EU has banned the import of Alphonso Mangoes.)

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha



तोतापरी: अब अकल ठिकाने आई होगी बच्चू की। बड़ा होषियार बनता था। सीधे मुंह बात ही नहीं करता था।
बादामी: तू किसकी बात कर रही है? अल्फांसो की?
तोतापरी: और किसकी? कितना एटीट्यूड था उसमें! बड़ी-बड़ी गाड़ियां, बंगले... बड़े  लोगों के दम पर कितना उछलता था।
बादामी: अब यह तो उसकी किस्मत है। कौन कहां पैदा होता है, इसमें क्या किसी का बस चलता है! असली राजा तो वही है। चांदी का चम्मच लेकर पैदा होता है। हम तो उसके दरबारी। इस गलतफहमी में गरीब इंसान हमें भी राजा मान लेते हैं।
तोतापरी: ईयू के बैन के बाद दो दिन में ही भाव जमीन पर आ गए।
बादामी: लेकिन अब भी 200 से कम नहीं होंगे। आम आदमी की औकात नहीं कि उसे हाथ भी लगा ले। मैं अब भी कह रहा हू, अल्फांसो इस द किंग।
‘अरे भाई, हम आमों के बीच यह आम आदमी कौन है? उसे अपने बीच क्यों ले आते हो यार। उसे चुनावों में ही रहने दो, वहीं उसकी इज्जत है।’ यह लंगड़ा था। बैसाखियां साइड में रखकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया।
बादामी: सही समय पर आए लंगड़ा भाई। अब आप ही समझाओ तोतापरी को।
सफेदा (बीच में टपकते हुए): वैसे इस साल तो हम भी बड़े घरों में ही जा रहे हैं तोतापरी! परेषान क्यों हो रही हो!
बादामी: सफेदा, यह दिल्लगी हर जगह ठीक नहीं। हम गंभीर मुद्दों पर बात कर रहे हैं।
लंगड़ा: देखा जाए तो ईयू का प्रतिबंध है तो सही। क्यों हम पर कीटनाषक छिड़क रहे हो, क्यों हमें केमिकल में पका रहे हो? क्या हमारे बच्चों को नेचुरली आगे बढ़ने का हक नहीं है? हो सकता है कि ईयू के इस कदम से हमारी सरकार को कुछ अकल आए।
तोतापरी: पर इससे होगा क्या? हो सकता है कि अल्फांसो को सरकार ठील दे दे, लेकिन हमारा कुछ नहीं होने वाला। हम तो पब्लिक आम है। हमें तो उसी केमिकल में मरना और जीना है।
इतने में एक दद्दा का प्रवेष। मुरझाई-सी काया। षरीर में मानो कोई रस ही नहीं।
‘आओ देसी दादा, विराजो’ बादामी ने उन्हें कुर्सी दी।
‘वह भी क्या जमाना था, जब अमीर से लेकर गरीब तक सब हमें समान भाव से खाते थे। सबकी पहुंच में थे हम। न कीट का लफड़ा न केमिकम का झंझट। लेकिन इंसानों ने मुझे तो साइड में पटक दिया और आमों की नई जनरेषन को भी केमिकल खिला-खिलाकर बर्बाद किए जा रहे हैं।’ देसी दादा पुरानी यादों में खो गए। सभी आम भी यह सोचकर जल्दी ही वहां से खिसक लिए कि दादा के पुराने किस्से षुरू हो गए तो सब बैठे-बैठे यही सड़ जाएंगे। आम बहस अधूरी ही रह गई।
कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

शनिवार, 3 मई 2014

भारतीय नेताओं पर ‘नेचर’ में छपा दिलचस्प रिसर्च

नेताओं की एक प्रजाति पर छपा कवर पेज।
पिछले 20 साल के दौरान एक भी नेता ने राजनीति से संन्यास नहीं लिया
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


जानी-मानी पत्रिका ‘नेचर’ में भारत की राजनीतिक प्रजाति के लोगों पर बड़ा ही दिलचस्प शोध-पत्र प्रकाशित हुआ है। इसमें पिछले बीस साल के दौरान राजनीतिक प्रजाति के 3 लाख 99 हजार 999 नेताओं के उस दावे या घोशणा की पड़ताल की गई है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर ऐसा या वैसा हो गया तो वे राजनीतिक जीवन छोड़ देंगे अर्थात राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इस रिपोर्ट में जो दिलचस्प तथ्य निकलकर आया है, वह यह है कि इन 3 लाख 99 हजार 999 नेताओं में से एक ने भी राजनीति से संन्यास नहीं लिया। अब अहमद पटेल 4 लाखवें नेता हो गए हैं, जिन्होंने एलान किया है कि अगर उनकी मोदी से दोस्ती की बात साबित हो जाती है तो वे राजनीतिक जीवन छोड़ देंगे।
इस बीच, भाजपा के एक वरिश्ठ नेता ने दावा किया है कि उनके हाथ एक बड़ा तथ्य लगा है। इसके अनुसार कुछ साल पहले नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी, जो पटेल ने तुरंत एक्सेप्ट कर ली थी। इस पर पटेल की टिप्पणी प्राप्त नहीं हो सकी है, लेकिन उनके एक करीबी का कहना है कि पटेल ने गुजरात दंगों के बाद उसे ‘अनफ्रेंड’ कर दिया था।
जांच दल गठित: गुजरात के महिला जासूसी मामले के बाद केंद्र सरकार ने एक और जांच दल गठित करने का फैसला किया है। यह दल इस बात की जांच करेगा कि नरेंद्र मोदी ने अपनी मित्रता स्वीकार करने के लिए अहमद पटेल पर कितना दबाव बनाया। सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है कि इसके लिए आयोग को दो बिंदुओं पर जांच करने के लिए कहा गया है। एक, नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल को कितनी बार फोन किए। दूसरा, फेसबुक पर मोदी ने कितनी बार पटेल को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजी। माना जा रहा है कि सरकार ने जांच के बाद मोदी पर अहमद पटेल को प्रताड़ित करने का मामला दर्ज करने का मन बना लिया है।

गुरुवार, 1 मई 2014

बेताल की आखिरी कहानी


By Jayjeet 

भारत उसे अपने कंधों पर लादकर फिर चल पड़ा। घनघोर अंधेरी रात में बेताल ने अट्टहास किया तो वह समझ गया कि यह मुआ फिर कोई नई कहानी सुनाएगा। बेताल कुछ बोले, उससे पहले ही भारत ने उसे कंधों से उतारकर ओटले पर दचक दिया। बेताल हक्का-बक्का! भारत बोला। ‘सुन बेताल, बहुत हो गई तेरी ड्रामेबाजी। कब से तूझे मैं उठा-उठाकर घूम रहा हूं। तेरा बोझा ढोते-ढोते थक गया हूं। कभी तो खत्म हो तेरी कहानी। कभी गरीबी हटाओ की कहानी सुनाता, कभी बोफोर्स की, कभी इंडिया षाइनिंग की। फिर तू गायब हो जाता पांच साल के लिए। तुझे लेने मुझे वापस पीछे लौटना पड़ता। आखिर कब तक मैं दो कदम आगे चार कदम पीछे होता रहूंगा? ’

‘यकीन कर भारत, अच्छे दिन आने वाले हैं।’ बेताल ने कुटिल मुस्कान के बाद जोरदार अट्टहास किया।

‘इसमें मेरे लिए क्या ? मैं ठहरा आम आदमी। बोझा ढोना ही मेरी नियति है।’ लाचारी के भाव के साथ भारत बोला।

‘तू सुन, इस बार बड़ी इनट्रेस्टिंग कहानी है। इसमें षहजादा है, रानी है। दामाद है। बीच-बीच में मूक पपेट षो हैं। योग है तो हनीमून भी है। सत्ता के लिए दीवानों की तरह घूमता एक राज्य का सामंत है। उसे रोकने के लिए तलवारें भांजते ढेरो छोटे-बडे क्षत्रप हैं। एक बेचारा भी है जिसे जो चाहे थप्पड़ मारता रहता है और वह षौक से खाता रहता है। बोले तो फूल एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट।’

‘सूरज बड़जात्या और सुभाष घई ने मिलकर क्या कोई खिचड़ी पकाई है? यह भी बता दें कि स्टार कौन है?’ खीजते हुए भारत बोला।

‘अरे भाई, स्टार तो तू ही है। सब तेरा ही नाम ले रहे हैं, कसम से।’

‘इसमें नई बात क्या है? तू 60 साल से कहानियां सुना रहा है। जो भी कहानी सुनाता, उसमें हर पात्र मेरी बात जरूर करता है, लेकिन होता क्या है!’

‘तू इतना सेंटी क्यों हो गया रे। ला कंधा ला।’

‘नहीं, अब यह कंधा कोई फालतू बोझ नहीं उठाएगा।’

’वाह..., अब बेताल फालतू बोझ हो गया! सालों से तू नेताओं का बोझ ढो रहा है तो कुछ नहीं। मैं तुझे जातिवादी-साम्प्रदायिक नेताओं, बाहुबलियों, धनपिषाचों की कहानियां सुनाता। तू एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता। वोट देने तक नहीं जाता। देता भी तो कभी अपनी जात वाले को देता तो कभी एक बोतल दारू के बदले में बेच देता। क्रांतिकारी बनने का षौक है तो पूरा बन, केवल बातें मत कर, हां।’

‘वोट दे तो आया हूं मैं, और क्या!’ भारत ने कहा।

‘नई सरकार बनने वाली है। नेताओं ने जो-जो वादे किए, उन पर नजर रख, तो मैं मानूं!‘ इतना कहकर बेताल भावुक हो गया। फिर बोला, ‘ अब लगता है तुझसे विदा होने का समय आ गया है। अब तुझे मेरी कहानियों की जरूरत नहीं है। टीवी, स्मार्टफोन, फेसबुक, ट्विटर सब तो हैं... कहानियां सुनना। लेकिन सुनकर चुप न रहना। भारत, अगर सबकुछ जानकर भी तू चुप रहा तो तेरी उम्मीदों, तेरी आकांक्षाओं के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।’ इतना कहकर बेताल नौ-दो ग्यारह हो गया, हमेषा-हमेशा के लिए।

और अब क्लाईमेक्स... रात हट रही है। सूरज उग रहा है... ओटले पर बैठा भारत अंगड़ाई ले रहा है।

कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

नेता, अफसर जिंदाबाद

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

काला धन-काला धन... बहुत षोर मचा रहे थे। लो, सरकार ने जनभावनाओं के मद्देनजर इन काले चोरों के नाम देष को बता दिए। पहचान लो इनमें से अगर किसी को जानते हो तो। इन्हें देष तो क्या, उनके षहर वाले भी नहीं जानते होंगे।
हां, इससे एक बात जरूर साफ हो गई। देष का एक भी नेता और बड़ा अफसर भ्रष्ट नहीं है। दिल को बड़ा सुकून मिला यह जानकर। मैं तो पहले ही कहता था। जबरन ही बेचारे नेताआंे और अफसरों पर षक की सुई घुमाए जा रहे थे। सत्यानाष तो एनजीओस का हो जो खाते इस देष में हैं, और उल्टियां विदेषों में करते हैं। ऐसे ही लोगों के नाम है इस लिस्ट में। वैसे भाड़ में जाने दो इनको। यह क्या कम हैं कि हमारे नेता और अफसर तो ईमानदार हैं। वे देष चला लेंगे। वे मिल-बांटकर खाने वाली संस्कृति के वाहक हैं। देष का पैसा देष में ही रहे, इस सिद्धांत के पैरोकार हैं। इसी से देष की इकोनाॅमी चलती है। देष सुरक्षित हाथों में हैं। सरकार को बधाई कि उसने हम सबकी आंखें खोलकर दुविधा दूर कर दी। वह आगे भी ऐसा ही करती रहेगी।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

फारुख के बयान से अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित

छोटे राष्ट्रों पर डूबने का खतरा मंडराया

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला के इस बयान के बाद कि नरेंद्र मोदी को वोट देने वालों को समुद्र में डूब जाना चाहिए, इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने मालदीव, बांग्लादेष, श्रीलंका जैसे देषों के लिए अलर्ट जारी किया है। इसमें इन देषों के बड़े हिस्से के डूबने का खतरा बताया गया है, खासकर तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की सलाह दी गई है। आषंका यह भी जताई गई है कि 30 अप्रैल को गुजरात में होने वाली वोटिंग के बाद कच्छ की खाड़ी के जल स्तर में भी भारी बढ़ोतरी हो सकती है।
इस बीच, मप्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और उत्तरप्रदेष के उन क्षेत्रों जहां वोटिंग हो गई है, वहां भारी संख्या में लोग अपने-अपने घरों से निकल गए हैं। आॅफ सीजन होने के कारण सस्ते के चक्कर में अधिकांष लोग गोवा के तटों की ओर जाते दिखाई दिए हैं। इन खबरों के बाद गोवा सरकार भी तत्काल हरकत में आ गई है। अपने यहां कानून एवं व्यवस्था बिगड़ने की आषंका के चलते उसने केंद्र सरकार से अर्द्धसैनिक बलों की 1500 टुकड़ियां मांगी है।
ओबामा ने की मनमोहन से बातचीत: 
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी निवर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस पूरे मसले पर बातचीत की है। उन्होंने मनमोहन सिंह के इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया कि यह भारत का अंदरूनी मामला है। ओबामा का कहना है कि इतने सारे लोगों के डूबने से समुद्र के जल स्तर में जो बढ़ोतरी होगी, उसका पूरे विष्व पर असर पड़ना लाजिमी है। इस बीच, जापान ने जी-7 देषों की बैठक बुलाने की मांग की है। जापान को सुनामी का डर सता रहा है।
12 मई को क्या होगा?
उप्र प्रषासन को चिंता 12 मई की है, जिस दिन वाराणसी में मतदान होगा। संत-समुदाय के कुछ धड़ों की इस घोषणा के बाद प्रषासन के हाथ-पैर फूल गए हैं कि काषी की जनता समुद्र में नहीं, गंगा में ही डूबकी लगाएगी। अब प्रषासन के सामने चुनौती यह है कि वह गंगा में इतना पानी कहां से लाए।

रविवार, 27 अप्रैल 2014

मनमोहन सिंह के पांच प्रायष्चित

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने भाई दलजीत सिंह के भाजपा में जाने से इतने दुखी हो गए हैं कि उन्होंने प्रायष्चित स्वरूप ये पांच घोषणाएं की हैं-
1. वे तब तब मौन व्रत धारण करके रखेंगे जब तक कि कांग्रेस केंद्र में सत्ता में नहीं आ जाती। (यानी अगले पांच साल तक उन्होंने चुप रहने का इंतजाम कर लिया है।)
2. वे अगले पांच साल तक घर में रखे टीवी के रिमोट कंट्रोल को हाथ तक नहीं लगाएंगे। (यानी टीवी पर अब वे चैनल भी वही देखेंगे जो दूसरे दिखाएंगे।)
3. वे अगले पांच साल तक पीएम नहीं बनेंगे। (यानी अपने सुपर पीएम की तरह बड़ा त्याग करने का फैसला।)
4. यदि पीएम बन जाते हैं तो वे साल में कम से कम एक फैसला स्वयं लेंगे।  (यानी उन्होंने जताने का प्रयास किया है कि उन्हें राजनीति आती है, क्योंकि तब वे तीसरा वादा तोड़ देंगे।)
5. अगर पीएम बनते हैं तो वे ऐसा कोई अध्यादेष लाएंगे ही नहीं, जिसे फाड़ने की नौबत आए। अगर कोई अध्यादेष फाड़ता है तो वे सुपर पीएम से पूछकर इस्तीफा देने पर विचार करने से पीछे नहीं रहेंगे।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

आंधी, सुनामी के बाद अल-नीनो

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

यह बिल्कुल तथ्यात्मक खबर है। इस बार देष को फिर से अल-नीनो प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है। एक्पट्र्स के अनुसार अल-नीनो हर सात साल में आता है। हालांकि कई बार यह पांच साल में भी आ जाता है, जैसा पिछली बार हुआ था। उस समय यह 2009 में आया था। इस तरह अल नीनों का भारतीय चुनावों से गहरा नाता रहा है। जब-जब चुनाव, तब-तब अल नीनो। अल-नीनो के पहले या तो आंधी होती है या सुनामी। 2009 में देष में गांधी की आंधी थी। ऐसा कांग्रेसियों का मानना रहा है। इस बार मोदी की सुनामी है। ऐसा मोदीवादियों का मानना है। जो भी हो, देष को चुनाव के बाद पोलिटिकल-इकोनाॅमिकल अल-नीनो इफेक्ट्स को तो झेलना ही होगा।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

सबसे बड़ी लाइव बहस

This is a satirical comment on TV Discussions which many times prove nonsense. 

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 


हमारे टीवी चैनल कभी-कभार देशहित व जनहित से जुडे़ मुद्दों पर भी चर्चा करते हैं। पेष है इसकी एक झलक:
एंकर: आज हम देष के सामने मौजूद सबसे ज्वलंत और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे हैं। विषय है - आखिर हम गंजे क्यों हो रहे हैं?
अतिथि परिचय के बाद बहस षुरू।
एंकर: पहली प्रतिक्रिया आपसे ही (नेता नंबर वन की ओर इषारा)
नेता नंबर वन ( जो विपक्ष का नेता है): देखिए, जबसे यह सरकार आई है, देष में गंजे लोगों की बाढ़-सी आ गई। पिछले दस साल में इस सरकार ने गंजों के लिए तो कुछ किया नहीं। जिनके थोड़े-बहुत बाल थे, वे भी तराष लिए गए।
नेता नंबर दो (जो सत्तारूढ़ी है): हमारे विपक्षी भाइयों को तो आरोप लगाने की आदत है। हमने तो कोषिष की है कि सबके सिरों को बाल मिले। दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए विषेष योजनाएं चलाई हैं, वे क्यों नहीं दिखतीं? 
एंकर: लेकिन आंकड़े भी तो यही कहते हैं कि आपके राज में गंजे होने वाले लोगों की संख्या में तीन गुना की बढ़ोतरी हुई है।
सत्तारूढ़ी नेता (हंसते हुए): ये आंकड़े कहां से आए? जिन एजेंसियों ने ये सर्वे किया है, हो सकता है उन्होंने पैसे लेकर बालों में हेर-फेर कर दिया हो। अपनी साम्प्रदायिक नीतियों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए विपक्षी ऐसी साठगांठ करते हैं।
नेता नंबर तीन (बीच में टपकते हुए): देखिए सरजी, हमारा तो यही कहना है कि ये दोनों पार्टियां तो चाहती हैं कि हमारा देष तेजी से गंजा हो, ताकि गंजेपन से छुटकारा दिलाने की दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को फायदा हो। दवा कंपनियों ने इन्हें अपनी जेब में रख रखा है।
पहला विषेषज्ञ: गड़बड़ यह है कि किसी भी पार्टी को बालों की फिक्र नहीं है। हर पार्टी लोगों को टोपी पहनाने की कोषिष करती है, ताकि सिर ढंका रहे तो बालों का इष्यू आए ही नहीं।
दूसरा विषेषज्ञ: समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि हमें अब मान लेना चाहिए कि दिन-प्रतिदिन लोग गंजे होने ही हैं, चाहे फिर किसी की भी सरकार आए।
विपक्षी नेता: लेकिन सवाल यह है कि आखिर कुछ लोगों के सिर भारी क्यों हो रहे हैं? इनके (सत्तारूढ़ पार्टी की ओर इषारा) जीजाजी का सिर तो देखिए। कैसे लहलहा रहा है।
सत्तारूढ़ी नेता (भयंकर गुस्साते हुए): देखिए, जीजाजी पर नहीं आना, कह देते हैं। व्यक्तिगत हमले हम सहन नहीं करेंगे।
फिर सभी पक्षों की ओर से अपषब्दों की धुआंधार बौछार। इतना अहम मुद्दा अब भटक गया है।
एंकर (नकली मुस्कान के साथ): अभी वक्त है एक ब्रक का। ब्रेक के बाद जारी रहेगा तमाम ऐसी ही अहम खबरों का सिलसिला।

कार्टून: संजीब मोइ़त्रा
  

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

यमलोक में नेताजी

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha




कई दिनों बाद उनका नंबर आया। वे रिसेप्षन पर पहुंचे, लेकिन रिसेप्षनिस्ट गायब थी। वे अंदर चले गए। वहां एक बड़ा-सा कैबिन बना हुआ था जिसके बाहर लटक रही नेमप्लेट पर लिखा हुआ था- चित्रगुप्त। महाषय सीट पर नहीं थे। अलबत्ता एसी आॅन था। सीटों से और भी कई लोग नदारद थे। किससेे पूछे, सोच ही रहे थे कि सामने से एक सुंदर-सी अप्सरा आती दिखाई दी। मन में कुछ लालसा उठी, लेकिन दबाते हुए पूछा, ‘साहब, कब मिलेंगे?’
‘अभी लंच टाइम चल रहा है, दिखता नहीं है क्या!’ अप्सरा ने रुखा-सा जवाब दिया।
‘दो घंटे से लंच!’ मन ही मन कुड़कुड़ाए।
उन्होंने दायीं तरफ देखा तो एक बड़ा-सा टीवी चलता नजर आया। वहां भी कोई नहीं था। उन्होंने सोचा, चलो कुछ देर टीवी पर टाइम पास करते हैं। लेकिन वह टीवी नहीं था। ऐसा लग रहा था मानो धरती से लाइव टेलीकास्ट हो रहा हो। वे पहचान गए, अरे उनका ही षहर था। वे अपने षहर के नेता हुआ करते थे। लेकिन एक हादसे में उपर पहुंच गए। यमलोक का कैमरा उनके पार्टी दफतर पर फोकस था। उनकी बड़ी-सी फोटो पर फूलमाला लटकी हुई है, अगरबत्तियां जल रही हैं। कोने में उनके दो खास पट्ठे बैठे हुए थे, जिन्होंने राजनीति में निःस्वार्थ भाव से उनकी सेवा की थी। ऐसा नेताजी का मानना था। ‘मेरे जाने के बाद दोनों जरूर मुझे मिस कर रहे होंगे और चुनाव को लेकर चिंतित हो रहे होंगे’, यह सोचते हुए उन्होंने स्पीकर आॅन कर दिया।
‘बुढ़वू के जाते ही हवा अपने पाले में आ गई गुरु! सहानुभूति वोट मिलना तय है।’ पहले वाला बोला।
‘सही टाइम पर खिसक गया, नहीं तो जमानत जब्त होनी तय थी। अपने भी करियर की वाट लग जाती।’ दूसरा बोला।
सुनते ही उनका दिल धक्क रह गया। इस बीच कैमरा उनके बंगले में पहुंच गया था। बंगले में धर्मपत्नी रो रही थी। सालियां पास में ही बैठी हुई थीं, ‘दीदी, बहुत बुरा हुआ, अब आपका क्या होगा!’
दीदी-‘होनी को कौन टाल सकता है भला! वैसे भगवान जो भी करते होंगे, सोच-समझकर ही करते होंगे। उनके साथ मुझे भी सादगी का दिखावा करना पड़ता था। घर में फाॅरेन ब्रांड्स की क्या-क्या चीज नहीं हैं, पर कुछ पहनने-ओढ़ने दे तब ना। विरोधियों की ज्यादा ंिचंता थी। मैं तो तंग आ गई थी।’ और फिर आंसू बह निकले। वैसे ही आंसू, जैसे नेताजी अक्सर बहाते थे।

तभी यमलोक का कैमरा उनके बेटे की तरफ गया। बेटे को टिकट मिल गया था। वह अपने बहुत ही खास मित्र से कुछ कह रहा था। उन्होंने स्पीकर लाउड कर दिया, ‘बप्पा जीते-जी विरासत छोड़ जाते थे तो क्या बिगड़ता! लेकिन कुर्सी से इतना मोह कि क्या बताएं! इसलिए मुझे ही कुछ करना पड़ा।’
‘तो क्या, वह हादसा नहीं था?’ मित्र से अचरज से पूछा।
‘नहीं भाई, राजनीति में सब जायज है।’ बेटा मुस्कुरा दिया।
नारे लग रहे थे ‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, बप्पा तेरा नाम रहेगा।’ बेटा भी नारे लगाने वालों में षामिल हो गया था।
उधर, यमलोक में नेताजी को दिल का दौरा पड़ गया था। यमलोककर्मी उन पर पानी के छींटे डाल रहे थे।
कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

रविवार, 13 अप्रैल 2014

पप्पू एंड मम्मा

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 

पप्पू: मैंने बोल दिया है कि अगर सारे खिलाड़ी चाहेंगे तो मैं कप्तान बनने से पीछे नहीं हटूंगा। क्या वो मुझे सपोर्ट करेंगे?
मम्मा: क्यों नहीं करेंगे! आखिर हमारे नाना-परनाना की टीम है। हमारी ननौती और बपौती दोनों है। झक मारकर करेंगे।
पप्पू: तो क्या मैं कप्तान बन जाऊं?
मम्मा: नहीं, नहीं।
पप्पू: पर मैं कप्तान क्यों नहीं बन सकता?
मम्मा: बोल दिया एक बार नहीं तो नहीं। देख, तू अगर कप्तान बनेगा तो तूझे कुछ करना पड़ेगा। बाॅलिंग आती नहीं। बैटिंग करेगा तो फेंकूं लोग ऐसे-ऐसे बाउंसर फेंकते हैं कि संभालना मुश्किल हो जाएगा।
पप्पू: तो मैं क्या करूं?
मम्मा: नाॅन प्लेइंग कैप्टन।
पप्पू: यह क्या होता है?
मम्मा: मैदान से बाहर रहकर कप्तानी करो। बैटिंग-बाॅलिंग करनी नहीं, बस फील्डिंग जमाते रहो। सामने वाला बाॅल पीटे तो वे जाने जो मैदान में खेल रहे हैं। बाउंसर भी उन्हें ही झेलने हैं। जीते तो कप हमारा, हारे तो हार उनकी।
पप्पू: (ताली बजाते हुए) मम्मा, यू आॅर द ग्रेट।
मम्मा: वो तो हूं ही, इसीलिए तो इतनी ‘असरदार’ हूं।
पप्पू: मम्मा, यह संजय बारू कौन हैं?
मम्मा: जितना बोलूं, उतना ही बोल!
पप्पू: यस माॅम।

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

जनमेजय का यज्ञ और अमित-आजम की बदला कथाएं

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

महाभारत नामक महाकाव्य यूं तो बदले की कहानियों से अटा पड़ा है, लेकिन राजा जनमेजय की कथा अद्भुत है। आज के भारत के दो धुरंधर प्रतापी राजकुंवरों अमित षाह और आजम खान की बदला लेने की भभकियों से राजा जनमेजय की वह कथा ताजा हो गई।
पहले कथा सुनते हैं- हुआ यूं कि राजा परीक्षित ने ऋषि षमीक का अपमान कर दिया। इस अपमान से उनके पुत्र षृंगी क्रुद्ध हो गए। उन्होंने पिता के अपमान का बदला लेने की ठानी। उन्होंने नागराज तक्षक को राजा परीक्षित को ठिकाने लगाने की सुपारी दे दी। तक्षक ने कोई कोताही नहीं बरती। परीक्षित की मृत्यु के पष्चात उनके पुत्र जनमेजय गद्दी पर बैठे। पिता की हत्या की कहानी का पता चलने पर जनमेजय इसका बदला लेने पर उतारू हो उठे। उन्होंने तक्षक को मारने के लिए सर्प यज्ञ करवाया। लेकिन मास्टरमाइंड यानी ऋषि षृंगी को छोड़ दिया। अब एक बाबा से पंगा कौन लें! बदला ही तो लेना है तो तक्षक से ही ले लेते हैं (ऐसा उन्होंने विचार किया होगा, लेकिन यह विचार महाभारत का आधिकारिक हिस्सा नहीं है)।
तो सर्पयज्ञ में एक-एक करके सारे सांप भस्म होने लगे। जो बेचारे भस्म हो रहे थे, उन्हें मालूम ही नहीं था कि आखिर हमारा कसूर क्या है? खैर, जब हजारों-लाखों सर्पों के मरने के बाद तक्षक की बारी आई तो उसने पता नहीं किन देवताओं से सेटिंग कर-कराके आस्तीक नामक एक बंदे को भिजवा दिया और सर्प यज्ञ रुकवा दिया। इस तरह तक्षक बच गया। सुना है बाद में जनमेजय और तक्षक सालों जीते रहे। तक्षक की तो इंद्र के महल में अच्छी-खासी पैठ बन गई।
हमारे आज के वीर-प्रतापी षाह और आजम भी क्या ऐसे ही बदला लेंगे? पता नहीं भस्म कौन होगा?

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

हरा-भरा सांसद

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 


हमारा कोई भी पर्व पकवानों के बिना अधूरा है। दिवाली पर गुजिया और ईद पर सैवइयां। तो लोकतंत्र में चुनाव के इस महापर्व के मौके पर पेष है एक विषेष डिष: हरा-भरा सांसद। राजनीतिक दल इस तरह से डिष तैयार करके अपने मतदाताओं का दिल खुष कर सकते हैं।
सामग्री: एक भरा-पूरा नेता। मालदार होगा तो अच्छा रहेगा। ब्लैक मनी जिसका कोई हिसाब-किताब न हो। फर्जी सोषल अकाउंट्स। षोरबे के लिए देसी दारू। खटास के लिए गालियां। सजावट के लिए देसी कट्टे-बंदूकें या ऐसी कोई भी सामग्री। लोकलुभावन वादे। जातिगत जुगाड़ नेता की जाति अनुसार।
विधि: सबसे पहले एक अच्छे से ऐसे नेता का चयन करें जो जीत सकता हो। उसके पास भरपूर पैसा होे, क्षेत्र में जातिगत प्रभाव हो और साथ ही डराने-धमकाने की ताकत भी। उस पर थोड़े-बहुत दाग होंगे तो उससे स्वाद और बढ़ जाएगा। उसे सबसे पहले अच्छे से छील लें, यानी पार्टी फंड के नाम पर जितना हो सके, पैसा कबाड़ लें। अब एक अलग बाॅउल में ब्लैक मनी व देसी दारू को आपस में मिलाकर षोरबा तैयार करें। षोरबे के कालेपन को मिटाने के लिए सोषल वेबसाइट्ृस का तड़का मिला दें। इससे कालापन थोड़ा कम हो जाएगा। थोड़ा-सा रहेगा तो कोई दिक्कत नहीं। स्वाद के षौकीनों को थोड़ा कालापन अच्छा लगता है। अब एक फ्राइंग पैन लें। उसमें नेता को रखें और उस पर ब्लैकमनी-देसी दारू का तैयार षोरबा डाल दें। इतना डालें कि नेता उससे सराबोर हो जाए। अब इस मिश्रण को धर्म की आंच में धीरे-धीरे पकने दें। नेता जितना लिजलिजा होगा, वह उतना ही स्वादिष्ट होगा। जब नेता अच्छी तरह पक जाए तो उसे फिर आंच से उतार लें। धीरे-धीरे ठंडा होने दें ताकि निर्वाचन आयोग को चटका न लगे लेकिन हलका-हलका गरम रहेगा तो स्वाद बना रहेगा। फिर थोड़ी गालियों व अपषब्दों की खटास डालें, और साथ में विरोधी दलों से पाला बदलकर आई थोड़ी षक्कर भी मिला दे। खट-मिट स्वाद आएगा। अब इसे निकालकर तष्तरी में रखें, उसके उपर थोड़े-से लोकलुभावन वादे बुरकें। आपकी यह डिष लगभग तैयार है। लेकिन ध्यान रखें, अच्छी डिष के साथ-साथ उसकी सजावट भी जरूरी है। इसके लिए देसी कट्टों, बंदूकों और चाकुओं की सजावट करना न भूलें। इससे अगर स्वाद में थोड़ी-बहुत कमी भी होगी तो उसकी पूर्ति हो जाएगी। लीजिए हरा-भरा सांसद तैयार।
कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

जब मुसीबत में पड़ गया हैरी पाॅटर

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

हैरी पाॅटर दिल्ली क्या घूमने आया, उसकी मुसीबत हो गई। अभी वह अपने वाहन से नीचे उतरकर सुस्ता ही रहा था कि टोपी पहने कुछ आम टाइप के नेता आ टपके। उन्होंने सबसे पहले उनके वाहन को प्रणाम किया। फिर उनमें से एक बोला, ‘हैरीजी, हम चाहते हैं कि आप हमारी पार्टी के स्टार प्रचारक बन जाएं।’
‘मैं कुछ समझा नहीं।’ हैरी बोला।
‘आपको यह तो पता ही है कि इस समय भारत में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व चल रहा है। हमारे एक स्टार प्रचारक खुली जीप में चल रहे हैं। इससे या तो जीप का प्रचार हो रहा है या उस पंजे का जो उन्हें जगह-जगह मिल रहे हैं। ’
‘लेकिन मैं क्या कर लूंगा?’ हैरी बोला।
‘अब आपसे ही उम्मीद बची है। वैसे भी हमने आपसे ही प्रेरणा ली है।’
‘वह कैसे?’
‘एक तो आप झाडू लेकर चलते हैं और दूसरा हमेषा हवा में उड़ते रहते हैं।’
‘अगर मैं ऐसा नहीं करुं तो!’
‘तो हम चुनाव आयोग को षिकायत कर देंगे। आपकी झाडू जब्त करवा देंगे। हमें कोई मना नहीं कर सकता। या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ।’



गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

पांच हजार की घूस और राज्य की नाक

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

सीबीआई उस मामले की जांच कर रही है कि एक बड़ा अफसर पांच हजार रुपए की रिष्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया है। अब मामला इतना बड़ा है तो चर्चा तो होनी ही है। जितने मुंह, उतनी बातें।
- वाकई बड़ी षर्म की बात है, पूरी बिरादरी की नाक कट गई। अच्छा हुआ सरकार ने सीबीआई जांच सौंप दी। ऐसे अफसर तो काम करने के लायक नहीं हैं। सीधे बर्खास्त करना चाहिए।
- लेकिन क्या इतना बड़ा इष्यू था कि सरकार को सीबीआई जांच करवाने की जरूरत पड़ गई?
- आप समझे नहीं, सरकार की भी इज्जत का सवाल है। पूरे राज्य के विकास के दावों की पोल खुल गई। इतना बड़ा अफसर और केवल पांच हजार लेते हुए पकड़ा गया। कोई बाबू-वाबू होता तो भी समझ में आता। टुच्चईपना की भी हद है भई। यह राज्य का अपमान है। दूसरे लोग क्या सोचेंगे भला! विकास के इतने बड़े-बड़े दावे और जमीनी हकीकत कुछ और! इसी कारण केजरीवाल जैसे लोगों को बढ़ावा मिलता है।
- हां, बात तो सही है। समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी थी!
- अब इतनी भी फाका-कषी नहीं थी कि बस पांच हजार के लिए ही बिछ जाओ।
- मेरे ख्याल से पहली कोषिष की होगी। कोई बात नहीं, सबके साथ होता है। अब सर्विस में आए समय ही कितना हुआ है!
- तो क्या जरूरी था? हमसे पूछ लेते। एक तो आता नहीं और एटीट्यूड आसमान पर। अनाड़ीपन की भी हद है। हमने भी ली है। बाएं हाथ से लेते और दाएं हाथ को भी पता नहीं चलता।
- वैसे बाएं हाथ से लेना ठीक नहीं है। हाथ बदल लीजिएगा। षगुन अच्छा नहीं होता। हम लेफटहैंडर हैं, लेकिन हमेषा दाएं से ही लेते हैं।
- हमारा ऐसे अंधविष्वासों में कोई भरोसा नहीं है। प्रगतिषील विचारधारा के हैं हम। वैसे हाथ से लेने का सिस्टम आप भी बदल डालिए। किसी दिन लपेटे में आ जाएंगे, बताए देते हैं। हमने तो बदल लिया है।
- अरे नहीं, हम नौसिखिया है क्या! अब आपको ही हमने सिखाया और आप हमें ही...
- वो ठीक है, पर ऐसे मामलों में ओवर कान्फिडेंस अच्छा नहीं है। जरा ही लापरवाही में पूरे राज्य की नाक कटते देर नहीं लगती।
 कार्टून: गौतम चक्रवर्ती