रविवार, 10 मार्च 2024

कांग्रेस की आत्मा तो अजर-अमर है! बस देह बदलकर भाजपा में प्रवेश कर रही है...!!

 

#जयजीत अकलेचा,  Satire On Congress, Satire on BJP, political Satire, sharad joshi vyangya, शरद जोशी के व्यंग्य

By Jayjeet Aklecha

 शुरुआत मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी जी की इन पंक्तियों से... कांग्रेस अमर है, वह मर नहीं सकती। उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएंगे। जब तक पक्षपात, दोमुंहापन, पूर्वग्रह, ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता। कांग्रेस कायम रहेगी।


नित दिन जब खबर आती है कि अमुक कांग्रेसी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली है तो यह भाजपा मुक्त भारत की दिशा में एक और ठोस कदम होता है। क्या कांग्रेसियों ने साजिश रच रखी है भाजपा को खत्म करने की? वाकई, राजनीति में कांग्रेसियों का कोई मुकाबला नहीं! ऐसा जाल बिछाया कि कांग्रेस मुक्त भारत करते-करते भाजपाइयों ने अनजाने में देश को भाजपा मुक्त कर दिया।

मैं उस भविष्य की ओर देख रहा हूं, जब देश में केवल दो पार्टियां होंगी - भाजपा () और भाजपा (सी) यानी भाजपा (ओरिजिनल) और भाजपा (कांग्रेस) कई लोगों को आशंका और उम्मीद है कि भविष्य में हमारा भारत महान चीन की तर्ज पर एक पार्टी सिस्टम पर जा सकता है और वह पार्टी होगी भाजपा (सी) यकीन मानिए, इसमें भाजपा की केवल देह होगी, भीतर आत्मा तो कांग्रेस की ही होगी।
 

आजादी के बाद कांग्रेस ने जो संघर्ष किया है, उसे भाजपा कभी नहीं समझ सकती।। शरद जोशी जी द्वारा गिनाए गए नैतिक पतन के तमाम आदर्श उसे स्वयं अपने हाथों से गढ़ने पड़े। भाजपा किस्मतवाली रही कि उसे नैतिक पतन के ये गुण विरासत में मिल गए। उसे आजादी के लिए संघर्ष करना पड़ा और ऐसे उच्च आदर्शों के लिए। बस, उसे कांग्रेस को अपने भीतर समाने की जरूरत थी। बेशक, यह बेहद मुश्किल था। पर भाजपा को साधुवाद! उसने कांग्रेस के गुणों को अपनाने में 10 साल भी नहीं लगाए।

आज अटल जी जहां कहीं भी होंगे, क्या सोच रहे होंगे? दु:खी हो रहे होंगे या खुश हो रहे होंगे? मुझे लगता है कि वे यह सोच-सोचकर खुद को भाग्यशाली मान रहे होंगे कि वे ' पार्टी विद डिफरंस' की ऐसी मौत अपनी आंखों से देखने से बच गए। आडवाणीजी एक बार फिर से अटलजी की किस्मत पर रश्क कर सकते हैं...!

समापन भी शरद जोशी की पंक्तियों से ही... दाएं, बाएं, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी। इस देश में जो भी होता है, अंततः कांग्रेस होता है। जनता पार्टी (आज पढ़ें भारतीय जनता पार्टी) भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी।

 (Disclaimer : विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

#जयजीत अकलेचा  Satire On #Congress Satire on #BJP #political_Satire


गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

News Satire : भाजपा को नेस्तनाबूद करने के लिए राहुल का आखिरी मास्टरस्ट्रोक!

jokes on rahul gandhi, jokes on bjp, jokes on congress, satire on rahul gandhi, राहुल गांधी पर जोक्स, भाजपा पर जोक्स, कांग्रेस पर जोक्स, politic jokes
By Jayjeet

राहुल गांधी ने अपनी पार्टी कांग्रेस को बचाने के लिए मास्टर स्ट्रोक चलने की तैयारी कर ली है। यह ऐसा मास्टर स्ट्रोक है जिससे ‘भाजपा मुक्त भारत' की स्थिति बन सकती है। इससे भाजपा की सांसें फूल गई हैं। 

राहुल के एक क़रीबी सूत्र के अनुसार अगले कुछ दिनों में राहुलजी ज़बरदस्ती भाजपा में शामिल होंगे। वे उसके पक्ष में जगह-जगह जाकर जमकर प्रचार भी करेंगे।

राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक के पीछे आख़िर गणित क्या है? इसको लेकर एक सूत्र ने बताया कि मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बड़ी-बड़ी बातें करते आए हैं। मोदी के इस घमंड को चूर-चूर करने के लिए ही राहुलजी यह मास्टर स्ट्रोक चलेंगे।

राहुल के इस मास्टर प्लान की जानकारी लीक होते ही बचे-खुचे कांग्रेसियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने अपनी ख़ुशी छिपाते हुए कहा, "गांधी परिवार अपने बलिदान के लिए जाना जाता है। इंदिराजी से लेकर राजीवजी तक ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। अब राहुलजी कांग्रेस को बचाने के लिए पार्टी छोड़कर जाएंगे। इससे बड़ा बलिदान और क्या होगा? हम कांग्रेसी इसे हमेशा याद रखेंगे।'

हालांकि राहुल के भाजपा में शामिल होने की ख़बरों से भाजपा में दहशत का माहौल है। पार्टी के प्रवक्ता सांबित पात्रा ने रूंधे हुए गले से कहा, "अगर ये ख़बरें सच हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें नहीं पता था कि कांग्रेसी इतना नीचे गिर जाएंगे।' 

#jokes_on_rahul gandhi, #राहुलगांधीजोक्स, #भाजपाजोक्स, #कांग्रेसजोक्स

(Disclaimer: यह केवल एक व्यंग्य बतौर लिखा गया है।)


रविवार, 25 फ़रवरी 2024

ग्लोबल ब्रांड्स तो बेकार की चीज हैं!



apple park
By Jayjeet Aklecha 

मेरा एक मित्र हाल ही में अमेरिका के कैलिफोर्निया से लौटा है। वही स्टेट, जिसने दुनिया को अनेक टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन दिए हैं। भ्रमण के दौरान उसके गाइड ने वो चीजें दिखाईं, जो मित्र के लिए अचरज का विषय थीं। मित्र को उसने वहां के आलीशाल चर्च नहीं दिखाए, बल्कि दिखाया वह रेस्तरां जहां से दुनिया में पहली बार कोई ई-मेल भेजा गया था। उसे दिखाए गए वे गैरेज जहां से एपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे ग्लोबल ब्रांड्स निकले। गूगल का वह हेडक्वार्टर भी दिखाया, जहां काम करना आज भारत सहित दुनिया के अधिकांश युवाओं के लिए किसी सपने से कम नहीं है। और भी बहुत कुछ। ये सब अमेरिकियों के लिए तीर्थस्थल जैसे हैं, जिन पर वे गर्व करते हैं...।

आइए, भारत लौटते हैं। यहां हम क्या दिखाते हैं? वह चट्टान जहां किसी पांडव पुत्र ने तपस्या की थी! वह तालाब जहां हमारे किसी देवता ने स्नान किया था! वह पेड़ जहां किसी संत ने घनघोर तपस्या की थी! बेशक, ये हमारी सांस्कृतिक विरासतें हैं, जिन पर हमें गर्व होना चाहिए। लेकिन कितना? और कब तक? और फिर कब तक हम केवल इन्हीं विरासतों पर गर्व करते रहेंगे? 

हां, हम गर्व के नए स्थल पैदा कर रहे हैं। करोड़ों रुपए से धार्मिक परिसरों का निर्माण कर रहे हैं। इसमें बुराई कुछ नहीं। अच्छा ही है। सुव्यवस्थित होने चाहिए सभी बड़े धर्मस्थल। पर इनके साथ ही क्या आने वाले दशकों में देश गूगल या एपल या माइक्रोसाफ्ट परिसर जैसे किसी परिसर की उम्मीद कर सकता है, जहां काम करना दूसरे देशों के युवाओं का भी सपना बन सके और हमारे युवा विदेश भागने के बजाय यहीं पर काम करने में गर्व महसूस कर सकें? यह फिलहाल तो असंभव के विरुद्ध इसलिए है, क्योंकि अभी तो हमारा देश एक अदद 'अपना मोबाइल' तक के लिए तरस रहा है। एपल-सैमसंग तो छोड़िए। हमारे पास अपना 'रेडमी' तक नहीं है!

हम फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं। मुश्किल नहीं है, पर दिक्कत एप्रोच की है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने पिछले 10 दिन में तीन बार देश को विकास के उच्च पायदान पर ले जाने की बात कही है। पर कहां से की है? ये बातें उन्होंने धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कही है। यह हमारी एप्रोच में विरोधाभास का एक और उदाहरण है। (मैंने उन्हें इसरो के अलावा किसी अन्य वैज्ञानिक या रिसर्च संस्थान में जाते बहुत कम देखा है। अगर आपने देखा तो मुझे करेक्ट कीजिएगा। वैसे जाएं भी तो कहां? ऐसी जगहें हैं भी? समस्या यह भी है…!)
 
अगले कुछ दशकों में हमारे पास दुनिया के धर्मप्रेमियों को दिखाने के लिए ढेर सारे शानदार भव्य धर्म परिसर होंगे, कई दिव्य लोक होंगे। लेकिन आशंका है कि तब भी हमारे पास न गूगल जैसा कुछ होगा, न एपल जैसा कुछ होगा। तब भी हमारे पास न ऑक्सफोड होगा, न स्टैनफोर्ड होगा, न कोई कैम्ब्रिज होगा। 

और हां, क्या इसके लिए हम सिर्फ सरकार को ही जिम्मेदार ठहराएं? पार्टियों को ही दोष दें? मैंने पहले भी लिखा है कि सरकारें और पार्टियां वही देंगी तो हम चाहेंगे। हमें मंदिर-मस्जिद चाहिए, वे हमें मंदिर-मस्जिद देंगे। हमें कुछ और चाहिए, तो वे कुछ और देंगे। फिलहाल तो हम सब धर्ममय होकर खुश हैं तो वे हमें धर्म की खुराक ही दे रहे हैं। चलिए, इसी में खुश रहते हैं। लगे हाथ यह भी जान लेना मुनासिब होगा कि हमारा इतना धर्ममय होना हमें पुण्यात्माओं में नहीं बदल रहा है। व्यक्तिगत शूचिता में हम कहीं पीछे हैं। ट्रांसपेंरेसी इंटरनेशनल के अनुसार हम भ्रष्टाचार के मामले में 93वें स्थान पर है। 

पुनश्च... ऊपर लिखा सब भूल जाइए। कम से कम यही सुनिश्चित कर लिया जाएं कि हमारे वे धार्मिक-सांस्कृतिक स्थल जिन पर हमें बहुत गर्व हैं, टूरिज्म के ग्लोबल सेंटर बन जाएं तो हमारी इकोनॉमी एपल और माइकोसॉफ्ट की कम्बाइंड वैल्यू (2.84+3.06 =5.90 ट्रिलियन डॉलर) के आजू-बाजू पहुंच सकती है। 

(तस्वीर : यह एपल का क्यूपर्टिनो, कैलिफोर्निया स्थित हेडक्वार्टर है। पूरा सोलर एनर्जी से संचालित है। बीच में ढेर सारे पेड़-पौधे। पेड़-पौधों की पूजा हम करते हैं, सार-संभाल वे करते हैं…!)

#जयजीत अकलेचा

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

होली कब है, कब है होली : ऐसे ही 7 डायलॉग्स से सीखें गब्बर के मैनेजमेंट फंडे ............ ( Holi kab he )



By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क। गब्बर सिंह केवल डाकू नहीं थे, बल्कि मैनेजमेंट के गुरु भी थे। वो तो केवल हम लोगों के दिमाग में मैनेजमेंट की बातें ठूंसने के लिए, हमें इंस्पायर करने के लिए उन्हें बंदूक उठानी पड़ी। 'होली कब है, कब है होली' (Holi kab he, kab he holi) जैसे उनके डायलॉग्स के जरिए सीखते हैं Guru Gabbar से मैनेजमेंट के कुछ फंडे ... 

1.होली कब है, कब है होली….
गुरु गब्बर अक्सर यह डायलॉग क्यों बोलते हैं? हमें यह सिखाने के लिए कि हमेशा भविष्य की प्लानिंग करके रखो। जो-जो इवेंट्स आने वाले हैं, उन्हें हमेशा दिमाग में रखो। साथ ही अपने लक्ष्य को ओझल मत होने दो। इसलिए बार-बार दिमाग को उंगली करते रहो, जैसे होली कब है, कब है होली… ।

2. जो डर गया, समझो मर गया…
गुरु गब्बर इसके जरिए यह कहना चाहते हैं कि आप चाहे कोई भी काम करो, आपको जिंदगी में रिस्क तो लेनी होगी। अगर आप रिस्क लेने में डर गए तो समझो आपके सपने भी उसी समय से मर गए।

3. यहां से पचास-पचास कोस दूर जब रात को बच्चा रोता है…
अपने इस बेहद इंस्पायरिंग डायलॉग के जरिए गुरु गब्बर दो बातें कहना चाहते हैं- एक, अपने ब्रांड/इमेज को इतना मजबूत बनाओ कि सब पर उसका प्रभाव हमेशा बना रहे। दूसरी, आपका अपना जो ब्रांड है, उस पर प्राउड करो, उसकी इज्जत करो। आप नहीं करोगे तो दूसरा भी नहीं करेगा।

4. अरे ओ साम्बा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…
इसमें भी गुरु गब्बर खुद के ब्रांड को प्रमोट करने का ही ज्ञान दे रहे हैं। उनका कहना है कि बार-बार अपनी ब्रांडिंग करना आज के कॉम्पिटिशन के जमाने में बहुत महत्वपूर्ण है। नहीं करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे।

5. कितने आदमी थे …
गुरु गब्बर कहना चाहते हैं कि अगर आपको अपने प्रतिस्पर्धी से आगे निकलना है तो पहले उसकी टीम और उसकी ताकत का आंकलन करना जरूरी है। इसीलिए वे बार-बार पूछते थे, कितने आदमी थे…

6. ले, अब गोली खा…
यहां गुरु गब्बर की प्रैक्टिकल सोच सामने आती है। वे यह कहना चाहते हैं कि कई बार ऑर्गनाइजेशन के हित में सख्त निर्णय भी लेने पड़ते हैं। यहां इमोशन वाला व्यक्ति फेल हो जाएगा। वैसे भी बीमार व्यक्ति को तो कड़वी गोली ही खिलाई जाती है।

7. छह गोली और आदमी तीन… बहुत नाइंसाफी है यह…
इसके पीछे गुरु गब्बर का सीधा-सा फंडा है – अगर आप लीडर की भूमिका में हैं तो अपने मातहतों को यह विश्वास दिलाते रहो कि आप केवल सही चीज में ही नहीं, नाइंसाफ टाइप की चीज में भी अपनी टीम के साथ है।

# gabbar-singh-dialogue  # holi kab he , # holi dialogue, # holi dialogue in hindi 


देखे यह मजेदार वीडियो भी : 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

हम और ज्यादा भ्रष्ट हो गए... और विपक्षी अब भी बाहर हैं!!!

By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा

अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारा देश एक साल में थोड़ा और भ्रष्ट हो गया ( ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत की रैंकिंग दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में 85 से बढ़कर 93 हो गई है)।
अफसोस इस बात का कतई नहीं है कि भारत और भ्रष्ट हुआ है। अफसोस इस बात का है कि आज भी विपक्ष के कई नेता बाहर कैसे हैं? उन्हें बाहर रहकर देश को भ्रष्ट बनाने की अनुमति आखिर कैसे दी जा सकती है?
ED जैसी राष्ट्र हितैषी एजेंसियों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, फिर भी अपने आप उठता है कि आखिर वह इतने सालों से कर क्या कर रही है? क्यों इतने सारे विपक्षी नेता बाहर रहकर देश को भ्रष्टाचार के पायदान पर ऊपर चढ़ा रहे हैं? इनफ इज इनफ। देश और ज्यादा भ्रष्ट न हो, इसके लिए हमें राष्ट्रीय स्तर पर दो काम प्रॉयोरिटी पर करने होंगे...
1. या तो विपक्ष के तमाम नेताओं (नेता हैं तो भ्रष्ट होंगे ही, यह मानकर) को जेल के भीतर किया जाना चाहिए।
2. या विपक्ष के तमाम नेताओं को एनडीए के भीतर किया जाना चाहिए।
शुक्र है... सुशासन बाबू एनडीए में आ गए। उनके आने से उम्मीद है अगले साल भ्रष्टाचार की रैंकिंग में हम थोड़ा सुधार करेंगे, बशर्ते वे एनडीए के साथ बने रहें। और इसमें कोई शक है?
कोई शक नहीं है कि वे एनडीए के साथ नहीं रहेंगे... पर फिर वही सवाल... आखिर हम राष्ट्र के स्तर पर विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

आस्थावान चरित्रवान और मर्यादित भी हो, यह जरूरी नहीं!

By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा

श्रीराम, आस्तिक, रामभक्त, राम मंदिर अयोध्या, sreeram
बीते कुछ दिनों से कुछ ऐसी पोस्ट्स देखने में आईं, जिनमें आस्थावान से नैतिक और चरित्रवान होने की अपेक्षा की गई। जैसे, एक पोस्ट में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की 8-10 विशेषताएं बताते हुए कहा गया कि अगर आप रामराज की बात कर रहे हैं तो श्रीराम की इन विशेषताओं का अनुसरण कीजिए। एक पोस्ट तो और भी अति अव्यावहारिक थी। पोस्ट का लब्बोलुबाब था कि अब जबकि पूरा देश राममय है तो कोई रावण किसी सीता की मर्यादा को भंग करने की चेष्टा नहीं करेगा। मतलब समाज से सारे रावण अब खत्म हो जाने चाहिए!
आस्था नैतिक चरित्र के समानुपाती हो, यह जरूरी नहीं है। शायद कहीं, किसी धर्म ग्रंथ में लिखा भी नहीं गया। नैतिक चरित्र विशुद्ध व्यक्तिगत विषय है। आस्था भी इससे पहले तक व्यक्तिगत विषय ही रहा है। बेशक, कोई आस्थावान या आस्तिक उच्च कोटि का नैतिक व्यक्ति हो सकता है, जैसे स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी। हालांकि गांधीजी की आस्था 'कंडिशनल' थी। उन्होंने कहा था कि अगर आस्था का मतलब अंधविश्वास और उन्माद नहीं है तो मैं सबसे बड़ा आस्तिक हूं।
लेकिन कोई आस्तिक अनिवार्य रूप से नैतिक भी हो, यह अपेक्षा नहीं की जा सकती। आस्तिक तो रावण भी था, चंगेज खान भी था और नीरो भी था। इसलिए यह कैसे कहा जा सकता है कि अगर कोई आस्तिक है तो उसे हर मामले में चारित्रिक उदात्तता के शीर्ष पर होना चाहिए? क्योंकि फिर तो यह होगा कि जो नास्तिक है, उसे पतित होना चाहिए। लेकिन यह भी जरूरी नहीं है। भगतसिंह और उनके समकालीन कई क्रांतिकारी स्वयं को घोषित तौर पर नास्तिक कहते थे। क्या इन नास्तिक क्रांतिकारियों के नैतिक चरित्र पर कोई अंगुली उठा सकता है? एक नास्तिक को तो अपने नैतिक चरित्र के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना होगा क्योंकि उसके लिए न किसी मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे-चर्च की चौखट है जहां वह अपने पापों के लिए प्रायश्चित कर सके और न ऐसी कोई 'पवित्र' नदी जहां वह अपने पाप धो सके।
जो कतिपय लोग रामभक्तों से मर्यादित और नैतिकवान होने की डिमांड कर रहे हैं, उनके मानस में मर्यादापुरुष श्रीराम की छवि है। लेकिन वे भूल रहे हैं कि आज हमारे समाज के आदर्श महाकवि तुलसी के भगवान श्रीराम हैं। तुलसी के श्रीराम को आदर्श मानने से सुविधा यह हो गई कि हमसे कोई 'भगवान' श्रीराम जैसा होने की उम्मीद नहीं कर सकता, क्योंकि कोई भगवान जैसा बन सके, यह संभव नहीं। बस हम भगवान की पूजा कर सकते हैं, जो हममें से अधिकांश लोग करते ही हैं। आज के बाद और भी जोर-शोर से कर सकेंगे। इसके साथ ही वाल्मीकि के मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम नेपथ्य में होते चले जाएंगे और उनकी जगह तुलसी के भगवान श्रीराम और भी तेजी से प्रतिष्ठित होते चले जाएंगे। अच्छा भी है। आस्था मर्यादित भी रहे, अब यह संभव नहीं!
(Disclaimer : यहां व्यक्त विचार नितांत निजी हैं। )

रविवार, 24 दिसंबर 2023

खिलाड़ी का राजनीति करना अपराध, मगर नेता की दबंगई स्वीकार्य!

punia Brij Bhushan Sharan Singh padmashree
By Jayjeet

पिछले दो-तीन दिन से मैं राजनीति करने वाले खिलाड़ियों और दबंगई करने वाले दबंग (आप इसे अपनी श्रद्धानुसार गुंडा भी पढ़ सकते हैं) सांसद के बीच की खींचतान पर सोशल मीडियाई कमेंट्स को फॉलो कर रहा हूं...
कमेंट्स का लब्बोलुआब: देश को राजनीति करने वाले खिलाड़ियों पर घोर आपत्ति है, लेकिन गुंडागर्डी और दबंगई करने वाले नेता पर नहीं!
हर कोई खिलाड़ियों को सलाह दे रहा है- राजनीति छोड़कर खेल खेलें। क्यों? राजनीति करना अपराध है? जब किसी नेता की गुंडागर्दी अपराध नहीं तो खिलाड़ियों की राजनीति अपराध कैसे हो सकती है? फिर नेताओं को गुंडागीरी छोड़ने की सलाह क्यों नहीं? उनका भी तो मुख्य काम राजनीति करना है, दबंगई का अधिकार क्यों दे दिया गया?
इस मामले में सच क्या है, दरअसल किसी को पता नहीं है। पर कोई इस सच से इनकार नहीं करेगा कि खिलाड़ियों की राजनीति कम से कम एक नेता की गुंडागर्दी से तो बेहतर ही होगी...!!!
मैं अपने आप को एक स्पोर्ट्स पर्सन मानता हूं और इसलिए नैतिक तौर पर एक दबंग के बजाय हमेशा खिलाड़ी के साथ रहूंगा... बाकी लोकतंत्र में लोग स्वतंत्र हैं, खूब क्रिकेट देखें और अपनी पसंद के गुंडे को समर्थन दें...!!!

#punia #BrijBhushanSharanSingh

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

Animal का अलार्म सिग्नल... पर इंसान कब मानता है!!!


animal movie , jungle alarm, एनिमल मूवी, एनिमल मूवी पर कटाक्ष
By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा
एक व्यक्ति फिल्म देखकर आता है और कहता है- बहुत घटिया है...
दूसरा सोचता है- यह उसे घटिया कैसे कह सकता है? मैं खुद देखकर घटिया कहूंगा... फिर वह देखकर कहता है- हां भाई, वाकई घटिया है...
तीसरा सोचता है- दो लोग देखकर आए और घटिया कह रहे हैं। लेकिन कितनी ज्यादा घटिया, ये नहीं बता रहे। बड़ा vague सा मामला है। फिर वह खुद देखता है और घोषणा करता है- महाघटिया...
और स्वयं उद्घोषणा के चक्कर में घटिया फिल्में करोड़ों के वारे-न्यारे कर लेती हैं और दूसरे निर्माता-निर्देशकों को इससे भी घटिया बनाने के लिए इंस्पायर कर जाती हैं।
जंगल में जब कोई जानवर खतरा देखकर बाकी एनिमल्स को आगाह करता है, तो वे सब उसके इशारे पर भरोसा करते हैं और उनमें से कई जानवर सुरक्षित बचने में सफल हो जाते हैं। इसे जंगल का 'अलार्म सिग्नल' कहते हैं।
यह वह प्रवृत्ति है, जो जानवरों को इंसान से अलग करती है। इंसान के सामने सबसे बड़ा संकट तो विश्वास का है। इसलिए वह दूसरों को ठोकर खाकर देखते हुए भी खुद ठोकर खाकर अनुभव लेना ज्यादा पसंद करता है- क्या पता सामने वाला नाटक कर रहा हो!
लेकिन कभी-कभी इंसानी अलार्म सिग्नल पर भरोसा करना समझदारी होता है। इससे आप पैसे भी बचा सकते हैं और सवा तीन घंटे का कीमती समय भी। हां, वाकई कीमती। इंसान रेड सिग्नल के ग्रीन होने के लिए 10 सेकंड का भी इंतजार नहीं करता है तो समझा जा सकता है कि उसके लिए 3 घंटे 21 मिनट कितने कीमती होंगे!
एक सवाल भी... इंसान के भीतर के शैतान की तुलना एनिमल से करना क्या जानवरों के प्रति ज्यादती नहीं है? साथ लगी तस्वीर में जानवरों की मासूमियत देखिए। आप मेरी बात से जरूर सहमत होंगे। कम से कम PETA जैसे संगठनों को तो इस पर आपत्ति उठानी ही चाहिए। हो सकता, उठाई भी हो।

रविवार, 19 नवंबर 2023

काश, इस खिलाड़ी को जरा याद कर लेते!!!

#iccworldcup2023 #ICCWorldCup #RavichandranAshwin
इस खिलाड़ी को मैंने कभी भी खराब खेलते नहीं देखा। बॉल से नहीं तो बैट से, इसने हमेशा अपनी उपयोगिता सिद्ध की। इस वर्ल्ड कप में खेले गए एकमात्र मैच में भी (10 ओवर में 34/1, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ)। मुझे अभी भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस खिलाड़ी को केवल पानी पिलाने के लिए टीम स्क्वाड में शामिल क्यों किया गया!!
मैं इंतजार कर रहा था कि भारत लीग में एक या दो मैच हारें ताकि टीम मैनेजमेंट को इस खिलाड़ी की फिर से याद आए। दुर्भाग्य से हमें उस मैच में हार मिली, जिसके लिए कोई भी भारतीय क्रिकेट प्रेमी तैयार नहीं था।
अहमदाबाद की धीमी पिच पर हुए इस महत्वपूर्ण व बेहद दबाव वाले मुकाबले में आर. अश्विन जैसा अनुभवी और प्रतिभाशाली खिलाड़ी टीम इंडिया के लिए ट्रम्प कार्ड साबित हो सकता था!
मगर अब बस अगर-मगर के अलावा कुछ बाकी नहीं... तो आइए हार को खुले मन से स्वीकार करें...!

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

सबसे पुरानी पार्टी के पुरातनपंथी और थके हुए वादे… न कोई इनोवेटिव आइडिया, न सियासी साहस!


congress, congress promise, कांग्रेस, कांग्रेस के वादे, राजनीतिक व्यंग्य
By Jayjeet Aklecha
दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि वे ऐसी सौर ऊर्जा योजना लॉन्च करने जा रहे हैं, जिससे आने वाले वर्षों में सभी लोगों के बिजली के बिल जीरो हो जाएंगे।
क्या इसे उसी तरह का एक और जुमला भर मान लिया जाएं, जैसे कि किसानों की आय दोगुनी करने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाकर लाखों नौकरियां सृजित करने जैसे वादे भी महज जुमले ही रहे!
बेशक, प्रधानमंत्री की ताजी घोषणा को भी जुमला माना जा सकता है। लेकिन इसकी और अन्य तमाम जुमलों की हम घोर निंदा करें, उससे पहले जरा कांग्रेस के वादों पर भी एक नजर दौड़ा लेते हैं, खासकर मप्र चुनावों के संदर्भ में- सरकार बनने पर किसानों का कर्ज माफ, 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त, तीन लाख नई सरकारी नौकरियां, पुरानी पेंशन की बहाली...
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। इस प्राचीनता पर अनेक कांग्रेसी अक्सर गर्व भी करते हैं। होना भी चाहिए। लेकिन पुरानी का मतलब क्या पुरातनपंथी होना भी है? शायद कांग्रेस यही मानती है और खासकर बीते कुछ सालों में तो कांग्रेस ने स्वयं को यही साबित करने के लिए जी जान लगा दी है। भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है, लेकिन विकसित देश बनने की करोड़ों युवाओं की आकांक्षाओं लिए आपके पास यंग और इनोवेटिव आइडियाज नहीं हैं। घिसे-पिटे और थके हुए आइडियाज लेकर आप चुनाव जीतने उतरते हैं और उतरे हैं (दुर्भाग्य से ओल्ड पेंशन योजना, मुफ्त बिजली जैसे आइडियाज ने आपको कुछ राज्यों में चुनाव जितवा भी दिए)।
दुनिया के तमाम विकसित देशों की इकोनॉमिक प्लानिंग पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि वे सतत पेंशन और सरकारी नौकरियों पर खर्च से मुक्ति पाने की दिशा में आगे बढ़े हैं। वे पेंशन से इनकार नहीं करते, लेकिन इसकी गारंटी के लिए उनके पास इनोवेटिव आइडियाज हैं (जैसे हमारे यहां एनपीएस है और जिसकी खामियों को दूर कर इसे बेहतर किया जा सकता है, बनिस्बत ओल्ड पेंशन के)। इन विकसित देशों ने निजी क्षेत्र की प्रोडक्टिविटी पर ज्यादा विश्वास किया है, जबकि सप्ताह भर पहले एक कांग्रेसी नेता जोर-शोर से निजीकरण के खिलाफ गला फाड़ रहे थे। निजीकरण के विरोध में नारे लगाने का काम तो अब ‘प्रागैतिहासिक' ट्रेड यूनियन लीडर्स तक छोड़ चुके हैं। लेकिन दुर्भाग्य से कई कांग्रेसी नेता अब भी मोहनजोदड़ो युग में जी रहे हैं, इसके बावजूद कि देश में ग्लोबलाइजेशन और प्रकारांतर में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम उन्हीं के एक बेहद शांत नेता (और जिन्हें कम से कम मैं चमत्कारी भी मानता हूं) की पॉलिसी का नतीजा था। उस पर गर्व करने और उसे आगे बढ़ाने के बजाय वे प्रतिगामी बनकर पूरे देश और उसकी इकोनॉमी को पीछे धकेलने पर उतारू हो रहे हैं।
बेशक, यहां भाजपा को कोई क्लीन चिट नहीं दी जा रही। अन्य तमाम दलों की तरह यह भी रेवड़ियां बांटने और इकोनॉमी का सत्यानाश करने में में पीछे नहीं है, लेकिन उसने आयुष्मान योजना, मुफ्त अनाज योजना और लाड़ली बहना जैसी स्कीमें शुरू कीं जो कल्याणकारी होने के साथ-साथ अंतत: मेडिकल इकोनॉमी, एग्री इकोनॉमी और (लाड़ली बहनाओं का सारा पैसा बाजार में आने की संभावनाओं के मद्देनजर) बाजार को प्रोत्साहन देने वाली है।
पुनश्च... कांग्रेस का एक वादा दो रुपए किलो की दर पर गोबर खरीदने का भी है। इस गोबर आइडिया के बजाय वह केवल इतना वादा भी कर देती कि हर किसान परिवार को एक भैंस मुफ्त दी जाएगी तो शायद इसी से तस्वीर बदल जाती, ग्रामीण अंचलों की भी और कांग्रेस की भी... आज कांग्रेसी इस जमीनी हकीकत से भी बावस्ता नहीं हैं कि दो रुपए किलो में तो स्वयं किसान भी गोबर खरीदने को तैयार हो जाएंगे, बशर्ते गोबर उपलब्ध तो हो...!!!