Offbeat Satire लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Offbeat Satire लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

होली कब है, कब है होली : ऐसे ही 7 डायलॉग्स से सीखें गब्बर के मैनेजमेंट फंडे ............ ( Holi kab he )



By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क। गब्बर सिंह केवल डाकू नहीं थे, बल्कि मैनेजमेंट के गुरु भी थे। वो तो केवल हम लोगों के दिमाग में मैनेजमेंट की बातें ठूंसने के लिए, हमें इंस्पायर करने के लिए उन्हें बंदूक उठानी पड़ी। 'होली कब है, कब है होली' (Holi kab he, kab he holi) जैसे उनके डायलॉग्स के जरिए सीखते हैं Guru Gabbar से मैनेजमेंट के कुछ फंडे ... 

1.होली कब है, कब है होली….
गुरु गब्बर अक्सर यह डायलॉग क्यों बोलते हैं? हमें यह सिखाने के लिए कि हमेशा भविष्य की प्लानिंग करके रखो। जो-जो इवेंट्स आने वाले हैं, उन्हें हमेशा दिमाग में रखो। साथ ही अपने लक्ष्य को ओझल मत होने दो। इसलिए बार-बार दिमाग को उंगली करते रहो, जैसे होली कब है, कब है होली… ।

2. जो डर गया, समझो मर गया…
गुरु गब्बर इसके जरिए यह कहना चाहते हैं कि आप चाहे कोई भी काम करो, आपको जिंदगी में रिस्क तो लेनी होगी। अगर आप रिस्क लेने में डर गए तो समझो आपके सपने भी उसी समय से मर गए।

3. यहां से पचास-पचास कोस दूर जब रात को बच्चा रोता है…
अपने इस बेहद इंस्पायरिंग डायलॉग के जरिए गुरु गब्बर दो बातें कहना चाहते हैं- एक, अपने ब्रांड/इमेज को इतना मजबूत बनाओ कि सब पर उसका प्रभाव हमेशा बना रहे। दूसरी, आपका अपना जो ब्रांड है, उस पर प्राउड करो, उसकी इज्जत करो। आप नहीं करोगे तो दूसरा भी नहीं करेगा।

4. अरे ओ साम्बा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…
इसमें भी गुरु गब्बर खुद के ब्रांड को प्रमोट करने का ही ज्ञान दे रहे हैं। उनका कहना है कि बार-बार अपनी ब्रांडिंग करना आज के कॉम्पिटिशन के जमाने में बहुत महत्वपूर्ण है। नहीं करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे।

5. कितने आदमी थे …
गुरु गब्बर कहना चाहते हैं कि अगर आपको अपने प्रतिस्पर्धी से आगे निकलना है तो पहले उसकी टीम और उसकी ताकत का आंकलन करना जरूरी है। इसीलिए वे बार-बार पूछते थे, कितने आदमी थे…

6. ले, अब गोली खा…
यहां गुरु गब्बर की प्रैक्टिकल सोच सामने आती है। वे यह कहना चाहते हैं कि कई बार ऑर्गनाइजेशन के हित में सख्त निर्णय भी लेने पड़ते हैं। यहां इमोशन वाला व्यक्ति फेल हो जाएगा। वैसे भी बीमार व्यक्ति को तो कड़वी गोली ही खिलाई जाती है।

7. छह गोली और आदमी तीन… बहुत नाइंसाफी है यह…
इसके पीछे गुरु गब्बर का सीधा-सा फंडा है – अगर आप लीडर की भूमिका में हैं तो अपने मातहतों को यह विश्वास दिलाते रहो कि आप केवल सही चीज में ही नहीं, नाइंसाफ टाइप की चीज में भी अपनी टीम के साथ है।

# gabbar-singh-dialogue  # holi kab he , # holi dialogue, # holi dialogue in hindi 


देखे यह मजेदार वीडियो भी : 

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

Satire : नो वन किल्ड कोरोना मरीज ...

नो वन किल्ड , ऑक्सीजन विवाद, कोरोना व्यंग्य, no one killed, corona satire, सरकार पर व्यंग्य, देवदूत, देवदूत व्यंग्य


मतलब आज ऑक्सीजन की कमी से कोई ना मरा, कल इंजेक्शन की कमी से कोई ना मरेगा... मतलब स्साला आदमी मरेगा कैसे? सरकार बताएगी?

By ए. जयजीत

'दद्दा, अब खुश हो जाओ और जिद छोड़ दो।' सीनियर देवदूत ने चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर पड़ी धरनाग्रस्त आत्मा से कहा।

'मैं तुम्हारी बात में ना आने वाला। तुम तीसरी बार फुसलाने आए हो, चित्रगुप्त के खास चमचे बनकर।'

'नहीं दद्दा, इस बार खबर सच्ची है। सरकार इतना भी झूठ नहीं बोलती है।'

'अब कौन-सा सच लेकर आ गए हो?'

'सरकार ने कहा है कि तुम्हारी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। मतलब सारा कन्फ्यूजन खत्म हो गया। अब कर्मों का हिसाब करवा लो। आप भी फ्री, हम भी फ्री।'

'मैं भी तो यही कह रहा था कि मेरी मौत हो ही नहीं सकती। धरती पर ऑक्सीजन तो फुल मात्रा में है। तो मौत कैसे हो सकती है?'

दद्दा की यह बात सुनते ही यह सीनियर देवदूत चकरा गया। आप भी चकरा गए ना। चकरा तो यह लेखक भी रहा है।

दरअसल, दद्दा बहुत शातिर है। पहले इस बात के बहाने वे चित्रगुप्त के दफ्तर में हिसाब करवाने से बचते रहे कि उनकी मौत की वजह स्पष्ट नहीं है। रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से उनकी मौत हुई या ऑक्सीजन न मिलने से, पहले यह साफ किया जाए। ऑक्सीजन या इंजेक्शन, इन दोनों में से किसी की जवाबदेही तय की जाए। इसके बाद ही वे अपने कर्मों के हिसाब-किताब के लिए चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत होंगे। हालांकि यमराज के दफ्तर से चली नोटशीट पर 'ऑक्सीजन की कमी' कारण स्पष्ट था, फिर भी दद्दा तो अड़ ही गए थे। देवदूतों ने उनके साथ जबरदस्ती की तो हाथ में घासलेट की बोतल और माचिस लेकर चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर ही धरने पर बैठ गए। लोकतंत्र तो ऊपर भी है। ऐसे ही भला जबरदस्ती थोड़ी की जा सकती है। और अब जब इस सीनियर देवदूत को लगा कि भारत सरकार के इस दावे से मामला सेटल हो गया और मौत की स्पष्ट वजह आ गई तो दद्दा ने नया दांव चल दिया। आइए, फिर सुनते हैं उनके तर्क-कुतर्क...

'दद्दा, अब ये लफड़ा मत कीजिए कि मौत ना हुई। मौत ना होती तो तुम यहां होते भला?' देवदूत ने सख्ती व मिमियानेपने के अजीब मिश्रण के साथ अपना तर्क दिया।

'क्यों तुम अपने उस छोकरे से, क्या नाम है, रम्मन देवदूत, उसी से पूछो। वही आया था मेरे पास। वह यही बोल के तो मुझे यहां लाया था कि ऑक्सीजन सिलैंडर में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो तुमको लेने आया हूं। पूछो उससे, यही बोला था कि नहीं!'

'अब उससे क्या पूछें। वैसे भी वह संविदा पर है। लेकिन मौत तो तुम्हारी आनी ही थी। हो सकता है यमराज जी के ऑफिस से जो नोटशीट चली होगी, उसमें कारण गलत दर्ज हो गया हो- ऑक्सीजन की कमी से मौत। पर अब स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई है। तुम यही तो चाहते थे कि जवाबदेही तय हो। तो अब रेमेडिसिवर इंजेक्शन पर जवाबदेही तय हो गई। बस खुश, अब चलो भी।'

लेकिन दद्दा के दिमाग में तो कुछ और ही खुराफात चल रही है। एक नया कुतर्क पटक दिया - 'क्यों जब नोटशीट पर कारण गलत दर्ज हो सकता है तो उसमें आदमी का नाम गलत दर्ज नहीं हो सकता? फिर देवदूत भी तुम्हारे संविदा वाले। तो उससे तो गलती हो ही सकती है। है कि नहीं!'

सीनियर देवदूत, जिसे कि 40 साल का अनुभव है, भी सकते में आ गया। स्साला आज तक यमराज के ऑफिस से चली एक भी नोटशीट गलत नहीं हुई। वह सोच में पड़ा हुआ है। उसे सोच में पड़ा देखकर दद्दा, जो ऑलरेडी शातिर है, ने एक और नया दांव चल दिया।

'मेरी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई। यही कहना चाहते हो ना तुम?'

'हां, जब ऑक्सीजन की कमी से ना हुई तो रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ही हुई होगी ना? हम यही मान लेते हैं।'

'अब, अगर कल को सरकार यह कह दे कि देश में एक भी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ना हुई, तो? तब तुम क्या करोगे?'

देवदूत, जो लगातार सोच में है, फिर सोच में पड़ गया - स्साला, सरकार का क्या भरोसा। यह भी कह सकती है। फिर तो लफड़ा हो जाएगा। और यह बुड्डा शकल ही नहीं, अकल से भी हरामी है। दूसरी आत्माओं को ना भड़का दे।

'दद्दा, यहीं रुको। मैं पांच मिनट में आया।' इतना कहकर देवदूत चित्रगुप्त के दफ्तर में घुस गया। पांच मिनट चर्चा करने के बाद वह वापस लौटा और दद्दा के कान में धीरे से कहा। दद्दा खुशी से उछल पड़े। उनके कुतर्क कामयाब हो गए थे।

यमराज के दफ्तर से संशोधित नोटशीट जारी हो गई है- दद्दा की मौत किसी भी वजह से नहीं हुई है। इसलिए उन्हें समम्मान धरती पर पहुंचाने के प्रबंध किए जाएं।

संविदा वाले देवदूत को सस्पेंड कर दिया गया है। किसी पर तो गाज गिरनी ही है। आखिर लोकतंत्र तो वहां भी है।

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

बुधवार, 23 जून 2021

Satire : तीसरा मोर्चा और मोनालिसा की मुस्कान!

monalisa-smile-political-satire

By Jayjeet

हाल ही में कुछ अखबारों में दो खबरें एक साथ छपीं। एक, गैर भाजपाइयों-गैर कांग्रेसियों का तीसरा मोर्चा बनाने के प्रयासों की खबर थी। दूसरी खबर थी- मोनालिसा की पेंटिंग की एक कॉपी ढाई करोड़ रुपए में बिकी। मोनालिसा ऐसी पेंटिंग है, जिसकी दुनियाभर में भर-भरकर कॉपी हुई है। आज तो खुद लियोनार्दों दा विंची उन्हें देखकर चकमा खा जाए कि उनकी वाली कौन-सी है। आजकल की नकली तो असली वाली से भी ज्यादा असली ही लगेगी। विंची को इस बात का मुगालता हो सकता है कि वे शायद मुस्कान से अपनी वाली मोनालिसा को पहचान जाएंगे। पर मुस्कानों का क्या! उन्हें कॉपी-पेस्ट करना भी कहां मुश्किल है।
खैर, वापस उन्हीं दोनों खबरों पर आते हैं। तीसरे मोर्चे की खबर आई तो लीजिए, मोनालिसा भी आ गई। अब मोनालिसा है तो मुस्कुराएगी ही। पवार साहब शिकायत कर सकते हैं कि देखिए, मीडियावाले सब मिले हैं जी। हमारे प्रयासों पर हंसने वाला कोई और नहीं मिला तो साथ में मोनालिसा की पेेंटिंग लगा दी। लेकिन मोनालिसा तो मुस्कुराती है, हंसती नहीं। मुस्कान तो पॉजिटिविटी लाती है। तो शिकायत क्यों? लेकिन एनसीपी सुप्रीमो अंदर से जानते हैं कि मोनालिसा तीसरे मोर्चे के प्रयासों पर मुस्कुरा तो नहीं सकती। हंस ही सकती है। अब अगर पवार साहब जैसे सीजन्ड लीडर को यह लगता है तो हम सब को भी मान लेना चाहिए कि मोनालिसा हंस ही रही होगी। यह तीसरे मोर्चे के अतीत में हुए हश्र को देखकर पवार साहब के अंदर का वह डर बोल रहा है जो उसके भविष्य को लेकर है।
लेकिन मोनालिसा केवल मुस्कुराती नहीं है, अद्भुत रूप से मुस्कुराती है। कला पारखी कहते हैं कि मोनालिसा की मुस्कान अद्भुत ही नहीं, रहस्यमयी भी हैै। अगर हम कला पारखी नहीं हैं तो हमें बगैर ज्यादा सोचे-विचारे मान लेना चाहिए कि मोनालिसा की मुस्कान वाकई बहुत ही अद्भुत है। रहस्यमयी भी होगी ही। जहां कुछ पता न हो, वहां तर्क-वितर्क करना केवल नेताओं को ही शोभा देता है। जैसे पवार साहब कह सकते हैं कि मोनालिसा मुस्करा नहीं रही है, वह तो हंस रही है, वगैरह वगैरह...। हालांकि पवार ने ऐसा कहा नहीं है। वे वैसे भी बहुत कम कहते हैं। उनका कम कहना ही ज्यादा रहस्यमयी रहा है। बनने वाले कथित तीसरे मोर्चे की बैठक में महाराष्ट्र में सरकार चला रहे दो अन्य साथी दलों के नेता तो न्यौते नहीं गए। अब यह क्या कम रहस्यमयी नहीं है? यह राजनीति की अमूर्त कला है जिसे समझ में न आने पर भी समझा हुआ मानकर आगे बढ़ जाना चाहिए। इसी से हम कला के पारखी कहला सकते हैं।
तो हम वही करते हैं। लो आगे बढ़ गए जी...। राजनीति से ही आगे बढ़ गए। मन की बात सुन मोनालिसा मुंह बिचकाकर-बिचकाकर कितना मुस्कुराएगी या कांग्रेस के वर्चुअल लीडर के ट्वीट्स को पढ़कर पेट पकड़-पकड़कर कितने ठहाके लगाएंगी, हम इन तमाम गैर जरूरी बातों से ही आगे बढ़ जाते हैं। बात केवल मोनालिसा की मुस्कान की करते हैं।
यह मानने के बाद कि मोनालिसा की मुस्कान वाकई बड़ी अद्भुत है, चलिए मान लीजिए रहस्यमयी भी है तब भी यह सवाल मेरे मन में शुरू से रहा है कि क्या वाकई मोनालिया मुस्कुरा रही है? और फिर क्या वह सदियों से ऐसे ही मुस्कुरा रही है? उसको इस दुनिया में आए करीब पांच सौ साल हो गए हैं। तो क्या इन पांच सौ सालों से वह यूं ही मुस्कुराते मुस्कुराते थकी नहीं है? हमारे यहां तो नकली मुस्कान का थेगला लगाए दिग्गज नेता चुनाव प्रचार खत्म होते-होते ही थक जाते हैं। तो मोनालिया क्यों न थकी?
इसमें मोनालिसा का कोई हाथ नहीं है। मोनालिसा को मुस्कान तो आर्टिस्ट ने ही दी होगी। आखिर वह ऐसा कौन-सा खुशी का पल था जिसके वशीभूत होकर आर्टिस्ट ने इसके अधरों पर मुस्कान का स्ट्रोक हमेशा-हमेशा के लिए फेर दिया था? क्या आर्टिस्ट उस समय किसी बहुत मलाईदार पद पर विराजमान था? या उसके किसी भतीजे या साले को माइनिंग का कोई बड़ा ठेका मिल गया था? या फिर क्या उसे किसी कारपोरेशन के अध्यक्ष पद का आश्वासन मिल गया था? ऐसा क्या था? या माफ करना, वह किसी रात शराब के नशे में इतना डूब गया था कि उसे याद ही ना रहा कि मोनालिसा के चेहरे पर मुस्कान को उसने कब स्थाई भाव दे दिया? इतना अन्याय!
सच क्या था, यह विंची साहब ही जानें। पर वे तो चले गए, लेकिन बेचारी मोनालिसा को हमेशा के लिए रहस्यमयी मुस्कान के आवरण में रहने का श्राप दे गए। हर हाल में मुस्कुराना मोनालिसा की जिंदगी की मजबूरी बन गई। बीते 500 सालों में बेचारी मोनालिसा ने क्या-क्या नहीं देखा होगा? यहूदियों पर हिटलर के अत्याचार, अमेरिका के परमाणु हमले में गलते जापानियों के शरीर, अफ्रीकी देशों में भूख से मिट्टी खाने को मजबूर बच्चे। तब से लेकर अब तक न जाने कितने अकाल आए, न जाने कितनी महामारिया आईं, कितने युद्ध लड़े गए, लेकिन मोनालिसा को तो हर हाल में मुस्कुराना ही था। भले ही पवार साहब लाख शिकायत कर लें, मुस्कुराना मोनालिसा की मजबूरी है। अब चाहे तो उसे हंसी मान लीजिए।
मोनालिसा की इस पीड़ा को समझने का प्रयास कीजिए। जिस समय दरिंदों के हाथों निहत्थी निर्भया की लुटी जा रही अस्मत मानवता के चेहरे पर बदनुमा दाग बनने की प्रक्रिया में थी, उस समय भी मुस्कुराना मोनालिसा की मजबूरी थी। गंगा नदी में बहते सैकड़ों शवों को या ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते असहाय लोगों को देखकर भी मोनालिसा मुस्कुराई ही होगी। हां, इनसे मुंह चुराकर मुस्कुराई होगी। समस्या से मुंह मोड़कर आप कुछ भी कर सकते हैं, मुस्कुरा भी सकते हैं। जलते हुए रोम की ओर से मुंह फेरकर बांसुरी बजाते हुए नीरो भी हो मुस्कुरा ही रहा होगा। बांसुरी बजाते-बजाते कोई रोता है भला! ऐसा तो हुआ नहीं होगा कि नीरो बांसुरी बजा रहा है और उसकी आंखों से टप-टप आंसू भी गिर रहे हैं।
तो मोनालिसा के लिए मुस्काना उसकी मजबूरी है, पर उसकी मुस्कान रहस्यमयी भी है। कला के ज्ञानी कहते हैं कि उसका एंगल बदलकर देखिए। एंगल बदलते ही मुस्कान की आब कमजोर हो जाती है और कहीं-कहीं तो मुस्कान गायब भी हो जाती है। अब यह एंगल ढूंढने वाला मामला बन गया। मामला पूरा की पूरा सब्जेक्टिव हो गया। कला में अक्सर यही होता है और राजनीति में तो इससे भी ज्यादा होता है।
मोनालिसा की मुस्कान का यह पूरा प्रकरण दिन दहाड़े रोशनी का है। रोशनी में मुस्कुराती है, शायद हंसती है, शायद ठहाके भी लगाती है। पर क्या पता वह रात को रोती हो? क्या किसी ने उन्हें अंधेरे में देखा है? अब इस बात पर पवार साहब खुश होंगे कि नाखुश?

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)

बुधवार, 16 जून 2021

Humor & Satire : गेहूं की बोरियों का भी वाट्सएप ग्रुप, बारिश में भीगती बोरियां डाल रही हैं स्टेटस

wheat-wet-monsoon-rain-satire, monsoon jokes, monsoon humor, बारिश पर जोक्स, बारिश पर व्यंग्य, बारिश में भीगी गेहूं की बोरियां, मंडी में भीगा गेहूं

 By Jayjeet

और तेज हवाओं के साथ झमाझम बारिश होने लगी। मानसून की पहली बारिश थी। बैग में छाता तो था, लेकिन बाइक पर उसे कैसे संभालता। तो रिपोर्टर ने भीगने से बचने के लिए सीधे उस यार्ड की शरण ली जहां गेहूं की बोरियां रखी हुई थीं। लेकिन वहां का सीन देखा तो माथा ठनक गया। गेहूं की एक नहीं, कई बोरियां पहली बारिश में भीगने का लुत्फ उठा रही थीं। छई छप्पा छई, छप्पाक छई... पर डांस कर रही थीं। न कोई लाज, न कोई शरम। रिपोर्टर का रिपोर्टतत्व जागृत हो उठा और अपना छाता तानकर सीधे पहुंच गया ऐसी ही एक बोरी के पास ...

रिपोर्टर : बोरीजी... बोरीजी ssss... ऐ बोरी...

बोरी : कौन भाई। आप कौन? क्यों चिल्ला रहे हों? 

रिपोर्टर : ये आप बारिश में बिंदास भीग रही हैं। क्या आपको ना मालूम कि आपके भीतर बहुत ही कीमती दाना भरा हुआ है?

बोरी : अरे कहां ऐसी छोटी-मोटी बातों में लगे हों। पहली बारिश है। आप भी फेंकिए ना अपना छाता और मस्त भीगिए ना। (और फिर वह लग छई छप्पा छई, छप्पाक छई... ) 

रिपोर्टर : अरे नहीं, मैं तो आपको आपकी जिम्मेदारी का एहसास करवाने आया हूं।

बोरी : देखिए, जब मानसून की पहली बारिश होती है ना तो महीनों की सारी तपन दूर हो जाती है। मेरी सारी सहेलियां और कजीन सब भीगने का मजा ले रही हैं और आप हैं कि अपनी रिपोर्टरगीरी में इन शानदार पलों को खो रहे हों। 

रिपोर्टर : सब भीग रही हैं, मतलब? 

बोरी : हमारा वाट्सएप ग्रुप है। मप्र से लेकर राजस्थान, उप्र, पंजाब, हरियाणा, सब जगह की बोरियां इससे जुड़ी हैं। सब बोरियों ने पहली बारिश में भीगने की सेल्फियां पोस्ट की हैं। तो मैं क्यों यह मौका छोड़ू? अब आप आ ही गए तो मेरी बढ़िया-सी फोटो ही खींच दीजिए। ग्रुप में भी डाल दूंगी और स्टेटस पर भी।

रिपोर्टर (फोटो खींचने के बाद) : बहुत हो गया बोरीजी। मुझे आपके भीतर पड़े दाने की चिंता हो रही है। आप समझती क्यों नहीं?

बोरी : आप क्यों चिंता कर रहे हों? चिंता करने वाले दूसरे लोग हैं ना। अनाज भंडारण केंद्रों के कर्मचारी, मंडियों के अफसर सब हैं ना। कल आएंगे। आंकलन कर लेंगे कि कितना अनाज खराब हुआ, कितना सड़ा। अपने दस्तावेजों में सब दुरुस्त कर लेंगे। बेमतलब की चिंता छोड़िए और आप तो मेरे साथ एक सेल्फी लीजिए। किसी बोरी ने आज तक किसी रिपोर्टर के साथ सेल्फी ना खिंचवाई होगी। आज तो सबको जलाऊंगी...

रिपोर्टर : पर ये कौन अफसर हैं? मुझे जरा उनका नंबर दीजिए, अभी बात करता हूं।

बोरी : आप बहुत ही विघ्न संतोषी टाइप के आदमी मालूम पड़ते हों। लगता है, न आप कभी खुद खुश होते हो और न दूसरों को खुश देख सकते हों... 

रिपोर्टर : अरे, मैं तो उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना चाहता हूं, बस।

बोरी : अब आप भी बस कीजिए रिपोर्टर महोदय। बेचारे अफसर पहली बारिश में घर में बैठकर अपनी-अपनी बीवियों के हाथों पकोड़े खा रहे होंगे। आप क्यों छोटी-छोटी बातों पर उन्हें परेशान करना चाहते हैं। आप भी जाकर खाइए ना पकोड़े-सकोड़े... और इतना कहकर फिर लग गई ...छई छप्पा छई, छप्पाक छई...

(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)


शनिवार, 5 जून 2021

Satire & Humor : उस पौधे से बातचीत जिसे बड़ा होकर नेताओं की कुर्सी बनना है...

environment day , world environment day, plantation by politicians, satire on politicians, political satire, विश्व पर्यावरण दिवस, नेताओं द्वारा पौधरोपण, नेताओं पर व्यंग्य, पौधरोपण पर व्यंग्य, जयजीत, jayjeet


By Jayjeet

कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। बड़ी ही बेसब्री से नेताजी का इंतजार कर रहे थे। उन्हें प्रफुल्लित देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे इंसानों को चिढ़ा रहे हों कि आपके अच्छे दिन आए या ना आए, हमारे तो आ गए। पर उन्हीं में से एक पौधा कोने में मुंह फुलाए दीवार के सहारे अधखड़ा था। उसे विश्व पर्यावरण दिवस से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ रहा था। रिपोर्टर तो हमेशा ऐसे ही असंतुष्ट और बागियों की तलाश में रहते हैं। ब्रेकिंग न्यूज तो आखिर उन्हीं से मिलती है। तो यह रिपोर्टर भी पहुंच गया उसी बागी पौधे के पास और लगा कुरेदने ...

रिपोर्टर : नमस्कार, आज तो आपका दिन है। लेकिन आपके चेहरे पर इतनी मुर्दानगी क्यों छा रही है भाई? 

पौधा : मुझे तो उन पौधों पर तरस आ रहा है तो आज के दिन बड़े खुश हो रहे हैं। देखो, नेताजी के इंतजार में कैसे खुशी से मरे जा रहे हैं।

रिपोर्टर : खुश तो आपको भी होना चाहिए। पर आप तो सचिन पायलट बन रहे हों।

पौधा : तो क्या हमें सिंधियागीरी मिल जाएगी, जो खुश हो जाएं?

रिपोर्टर : वाह, नहले पर दहला जड़ दिया। राजनीति का आपको इतना इल्म कैसे?

पौधा : आपके नेताओं से हमारे बाप-दादाओं का पुराना राब्ता रहा है।

रिपोर्टर : अरे, भला कैसे?

पौधा : आपके नेता लोग लकड़ी की जिन कुर्सियों पर बैठते हैं, वे आखिर हमारे बाप-दादाओं के बलिदान का ही तो प्रतिफल है।

रिपोर्टर : अच्छा, इसीलिए आपके दिलो-दिमाग में नेताजी के प्रति इतनी नफरत भरी है?

पौधा : और नहीं तो क्या! बड़े होकर नेताओं की कुर्सी की लकड़ी बनना ही तो हमारी नियति है। नेताओं से बच गए तो किसी बड़े इंडस्ट्रीयल प्रोजेक्ट के लिए काट दिए जाएंगे।

रिपोर्टर : लेकिन ये भी तो सोचो कि बड़े होने पर अगर किस्मत से जंगल मिल गया तो फिर तो ऐश ही ऐश। मस्ती से कई पीढ़ियां बीत जाएगी आपकी।

पौधा : सब मन बहलाने वाली बात है। अपने पुरखों की आत्मकथाएं बांच रखी हैं मैंने। उनमें वे कटने से पहले विस्तार से बता गए कि कैसे कभी कोयले के लिए, कभी सोने या हीरों के लिए तो कभी बड़े-बड़े बांधों के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिए गए। 

रिपोर्टर : लेकिन आप मानवता के काम आ रहे हों, यह सौभाग्य कम ही लोगों को मिलता है।

पौधा : ये अपना इमोशनली ब्लैकमेल वाला फंडा उन मूर्ख पौधों पर आजमाइए जो नेताजी के हाथ से खुद को बर्बाद करने को तैयार बैठे हैं। मैं इंकलाबी खुद को सुखाकर मर मिटूंगा, लेकिन तुम मनुष्यों के लिए कभी नहीं....

वह बागी पौधा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि उससे पहले ही सायरन बजाती गाड़ियां धमक पड़ीं। क्षण भर में ही फॉरेस्ट विभाग के कारकून के दो हाथों ने उस पौधे पर मानो झपट्‌टा-सा मारा। पौधे ने शुरू में प्रतिरोध किया, लेकिन फिर अपनी नियति के लिए निकल पड़ा। फोटोग्राफर्स भी दूर खड़े नेताजी की तरफ लपक पड़े...

# word environment day , # political satire

सोमवार, 31 मई 2021

Satire: और राह में चलते-चलते, एक दिन कोरोना की बाबाजी से मुलाकात हो गई...

baba ramdev corona controversy, बाबा रामदेव विवाद, बाबा रामदेव एलोपेथी आयुर्वेद विवाद, कोरोना व्यंग्य, corona humor

By Jayjeet

एलोपेथी और आयुर्वेद के बीच जारी विवाद के बीच अचानक ही बाबाजी की कोरोना से मुलाकात हो गई। पहली नजर मिलते ही दोनों एक-दूसरे को देखकर कन्नी काटने लगे। पर जब सामने पड़ ही गए और एक-दूसरे से बचना नामुमकिन हो गया तो औपचारिक हाय-हलो से बात यूं शुरू हुई :  

बाबाजी : अरे कोरोना, क्या हाल है? बहुत मुटा गया इतने दिनों में! 

कोरोना : पर कल मैंने वुहान वीडियो कॉल लगाया था। मम्मी तो कह रही थी कि इंडिया जाकर तू बहुत दुबला हो गया। प्रॉपर खाने को नहीं मिलता क्या?

बाबाजी : अब क्या करें, हर मां को ऐसा ही लगता है। 100 किलो वजनी बेटे को भी यही बोलती है- तू बहुत दुबला हो गया रे। पर तू ने बताया नहीं कि यहां तो तेरी खूब खातिरदारी होती है। लोग पलक-पावड़े बिछाए तेरा इंतजार करते हैं। कई लोग तो तेरे को खुद ही अपने साथ घर ले जाते हैं। 

कोरोना : हां, पर बाबाजी अब मैं बोर हो गया हूं। अब घर की याद आने लगी है। 

बाबाजी : बेटा, इतनी जल्दी चला जाएगा तो हमारा इनोवेशन धरा का धरा ना रह जाएगा? अब तो हम स्वदेशी वैक्सीन के फॉर्मूले पर भी काम करने वाले हैं। 

कोरोना : बाबाजी, तीन करोड़ के करीब मरीज हो तो गए। अब बच्चे की जान लोगे क्या?

बाबाजी : पर तेरे को जल्दी क्या है? मेहमाननवाजी में कोई कमी रह गई है क्या? रोज चाऊमीन खाने को मिल तो रही है। 

कोराना : सोया बड़ी व पत्ता गोभी वाली चाऊमीन भी कोई चाऊमीन होती है क्या? ऊपर से इतना ऑयल अलग डाल देते हो। माना आप लोगों की हमारे चाइना से दुश्मनी है, पर ये दुश्मनी चाऊमीन के साथ क्यों निकालते हों! 

बाबाजी : पर बेटा, अभी तू चाइना वापस जाएगा तो वहां तुझे बहुत दिक्कतें हो सकती हैं। अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने वुहान लैब वाला मामला फिर छेड़ दिया है। तो तू जैसे ही चाइना जाएगा, तेरी अपनी सरकार अमेरिका की नजर से बचाने के लिए तुझे ही काल कोठरी में डाल देगी। फिर सड़ते रहना....

कोरोना : तो आप चाहते क्या हो?

बाबाजी : बेटा अगले दो-चार दिन में देश के कई राज्य धीरे-धीरे अनलॉक हो रहे हैं।  देखना फिर लोग मजे में घूमेंगे। न मास्क लगाएंगे, न सोशल डिस्टेंसिंग रखेंगे। तेरे लिए तो स्कोप ही स्कोप है..

कोराना : बाबाजी, इनडायरेक्टली आप इसमें अपना तो स्कोप ना देख रहे हों? वो आपने कौन-सी दवा बनाई। नाम भूल रहा हूं, मेरे ही नाम से मिलती-जुलती है ना ...

बाबाजी : (बीच में बात काटते हुए) : आज तू कुछ ज्यादा समझदारी की बात ना कर रहा! 

कोरोना : समझदार होता तो यूं इंडिया में आता क्या? यहां आकर वजन बढ़ा सो बढ़ा, पर न जाने कितनी ही बीमारियां और हो गईं। 

बाबाजी : हर बीमारी का मेरे पास इलाज है। कल से आ जा मेरे पास। दो चार महीने योगासन करेगा तो सारी बीमारियां छूमंतर हो जाएंगी। 

कोरोना : बाबा, ये वो बीमारियां नहीं हैं, जो किसी योग से जाएंगी। ब्लैक मार्केटिंग, नकली दवाइयों का धंधा, झूठ, चमचागीरी, भाई-भतीजावाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार, बेमतलब पंगेबाजी जो आपने अभी ली है, इन सब बीमारियों के लक्षण मैं यहां इंडिया में आकर फील कर रहा हूं। इनका कोई इलाज हो तो बताओ आपके पास...

बाबाजी : हूंम्म... बताता हूं, पर अभी जरा बिजी हूं, वो एलोपैथी वालों को दो-चार जवाब और दे दूं, फिर इसके बाद अपने सीईओ के साथ एक जरूरी बिजनेस मीटिंग है। अपन फिर मिलते हैं... पर ये शीर्षासन जरा करते रहता... सबसे बढ़िया आसन है।   

# baba-ramdev  # baba-ramdev controversy

सोमवार, 24 मई 2021

Satire : विश्व कछुआ दिवस पर जब कुछ कछुए टी पार्टी में मिले

turtle-day-satire, कछुए, कछुओं पर व्यंग्य, देश के सिस्टम पर व्यंग्य, satire on system

By Jayjeet

कल (23 मई) को विश्व कछुआ दिवस था। इस मौके को सेलिब्रेट करने के लिए कुछ कछुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ चाय पर चर्चा के लिए जुटे। उनके बीच क्या बातचीत हुई, एक रपट ....
कछुआ : सबको बहुत-बहुत बधाइयां, कछुआ दिवस की।
सरकारी फाइल : क्या दिन आ गए हमारे कि अब आपके साथ चाय पीनी पड़ रही है!!
न्यायिक सिस्टम (सरकारी फाइल से) : लॉकडाउन में पड़े-पड़े मुटा गए हों और टांटबाजी बेचारे कछुए पर कर रहे हों? इट्स नॉट फेयर...
सरकारी फाइल (न्यायिक सिस्टम से) : आप तो अभी समर वैकेशन पर हैं तो वैकेशन पर ही रहिए। ज्यादा मुंह मत खुलवाइए। मुंह खुल गया तो आपकी कछुआवत सबके सामने आ जाएगी।
कछुआ : क्या हुआ भाई सरकारी फाइल? इतने फ्रस्टेट क्यों हो रहे हों? न्यायिक सिस्टम हमारे बीच अपनी कछुआवत की वजह से ही है। इसके लिए उन पर क्या ताना मारना!
लॉकडाउन (दिल्लगी करते हुए) : सरकारी फाइल भाईसाहब इसलिए फ्रस्टेट हो रहे हैं क्योंकि पिछले कई दिनों से इन पर कोई वजन नहीं रखा गया है। इसलिए बेचारे जहां पड़े है, वहीं सड़े हैं टाइप मामला हो रहा है।
सरकारी फाइल : इसमें हंसने की क्या बात है? हमारी मजबूरी पर हंस रहे हों? हमारे भगवान लोगों ने हमें बनाया ही ऐसा है तो क्या करे। पीठ पर जितना वजन होगा, उतना ही तो आगे बढ़ेंगे!
लॉकडाउन (फिर दिल्लगी) : कौन हैं ये आपके भगवान टाइप के लोग? हम भी तो सुनें जरा? हां हां हां...
सरकारी फाइल (लॉकडाउन से) : ये वही 'भगवान' हैं, जिन्होंने तुम्हें बनाया है और आज तुम हमारी संगत में बैठने की औकात पाए हो।
न्यायिक सिस्टम (बढ़ती गर्माहट के मद्देनजर बीच में दखल देते हुए) : मिस्टर कछुए, आप तो हमारे होस्ट हों। व्हाय आर यू सो वरीड? कहां उलझे हुए हों?
कछुआ : वैक्सीनेशन प्रोसेस का इंतजार कर रहा हूं। उन्हें चीफ गेस्ट बनाया था। पता नहीं कब आएंगे?
बाकी सभी : ओह नो..., ये हमारे चीफ गेस्ट हैं? तब तो आ गए। फोकट हमारा टाइम खोटी कर दिया। अच्छे भले सो रहे थे...।

रविवार, 28 मार्च 2021

Humor & Satire : बाहुबली गब्बर का रामगढ़ कनेक्शन, टिकट पर दावा हुआ मजबूत

 

Gabbar , Gabbar satire, gabbar memes, Gabbar jokes, Gabbar ki aatma se interview, gabbar holi kab he, political satire, गब्बर , गब्बर पर जोक्स, गब्बर होली जोक्स, गब्बर होली कब है जोक्स, होली पर जोक्स,  holi jokes

By A. Jayjeet

आज रिपोर्टर बड़ी जल्दी में था। सोशल मीडिया पर 'बायकॉट चाइनीज पिचकारी' टाइप कैम्पेन शुरू होने से पहले ही वह मेड इन चाइना की कोई सुंदर-सुशील पिचकारी खरीद लेना चाहता था। लेकिन जल्दबाजी में उसका स्कूटर फिसला और पलक झपकते ही उसके शरीर से आत्मा निकलकर पास स्थित एक बरगद पर उल्टी टंग गई।

रिपोर्टर की आत्मा कुछ देर यूं ही लटकी रही। झूला झूलने का नया एक्सपीरियंस उसे थ्रील दे रहा था। अचानक उसे एक आवाज सुनाई दी - चुनाव कब है, कब है चुनाव?

रिपोर्टर की आत्मा बुदबुदाई, अरे, ये आवाज तो कुछ जानी-पहचानी लग रही है। सालों पहले शोले देखी थी। उसमें भी तो ऐसी ही आवाज थी।

रिपोर्टर का अनुमान सही था। वह गब्बर सिंह की आत्मा थी।

गब्बर सिंह नमस्कार, पेड़ पर सीधे होते हुए रिपोर्टर की आत्मा बोली।

लगता है आज किसी समझदार इंसान की आत्मा से बात हो रही है... कौन हो तुम? गब्बर की आत्मा मुस्कुराई।

आप सही कह रहे हैं। मैं रिपोर्टर हूं...।

अरे वाह रिपोर्टर महोदय, आपको तो जरूर पता होगा कि चुनाव कब है? मैं कब से पूछा जा रहा हूं इन हरामजादों की आत्माओं से, कोई बता ही नहीं रहा..

पर आपको चुनावों से क्या लेना-देना? आपको तो हमेशा होली से ही मतलब होता है।

अब क्या है, मैं होली खेल-खेलकर बोर हो गया हूं। अब जी चाह रहा है कि चुनाव चुनाव खेलूं...। सुना है ठाकुर की जमीन पर भी चुनाव हो रहे हैं... उनसे तो पुराना हिसाब चुकता करना है...

गब्बर, आपको ये अधकचरी जानकारी क्या आपका वही साम्भा देता है? उसको बोलो, कुछ काम-धाम करें। दिनभर बैठे-बैठे अपनी सड़ी हुई दुनाली ही साफ करता रहता है…

हम्म… कुछ करता हूं इस स्साले का... तो क्या ठाकुर की जमीन पर चुनाव नहीं हो रहे?

ठाकुर की जमीन पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन यह आपके वे वाले ठाकुर मतलब ठाकुर बलदेव सिंह नहीं है। ये ठाकुर साहब तो ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर जी हैं। इनके बंगाल में चुनाव है। राष्ट्रगान तो आपको मालूम नहीं होगा। तो उनके बारे में और ज्यादा क्या बताऊं...

रिपोर्टर भाई, आपकी तो सेटिंग-वेटिंग होगी। तो चुनाव का एक टिकट दिलवाइए ना? गब्बर की आत्मा ने पान मसाले का पाउच मुंह में उड़ेलते हुए कहा। शायद अब खैनी मसलनी छोड़ दी है...

टिकट ऐसे नहीं मिलता है। माल-पानी है क्या?

माल-पानी की क्या कमी। कालिया की आत्मा इसी काम में लगी रहती है। अनाज का धंधा उसका खूब फल-फूल रहा है।

क्या...? वह अब भी अनाज की बोरियां लूटने के टुच्चे काम में ही लगा है‌? लेकिन अनाज की बोरियों की छोटी-मोटी लूट से क्या होगा?

हां, वो लूट तो अनाज की बोरियां ही रहा है, पर अब वैसे नहीं लूटता है। उसने आढ़तियों का कॉकस बना रखा है। अनाज के गोडाउनों की पूरी की पूरी चेन है उसकी। तो माल-पानी की कोई कमी नहीं है। बस, टिकट मिल जाए।

लेकिन गब्बर जी (गब्बर के आगे ‘जी’ अपने आप लग गया...), अच्छा-भला पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी चाहिए, टिकट पाने के लिए...

यह सुनते ही गब्बर सिंह की आत्मा ने वैसा ही जोरदार अट्‌टहास किया, जैसा उसने अपने तीन साथियों को 'छह गोली और आदमी तीन, बहुत नाइंसाफी है ये' जैसा कालजयी डायलॉग बोलकर उड़ाने के बाद किया था। फिर बोली - अरे ओ साम्भा, कितना इनाम रखे थे सरकार हम पर?

पूरे पचास हजार.... पास के ही एक दूसरे पेड़ पर बैठी साम्भा की आत्मा बड़े ही गर्व से बोली।

सुना... पूरे पचास हजार....और ये इनाम इसलिए था कि यहां से पचास पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रात को रोता है तो...

रिपोर्टर बीच में ही टोकते हुए – अब ये फालतू का डायलॉग छोड़िए। पचास हजार में तो आजकल पार्टी की मेंबरशिप भी नहीं मिलती। और ये बच्चा रोता है डायलॉग को भी जरा अपडेट कर लो। अब बच्चा रोता कम है, मां-बाप को रुलाता ज्यादा है। और बाय द वे, अगर रोता भी है तो मां उसे मोबाइल पकड़ा देती है... बच्चा चुप।

तो रिपोर्टर महोदय, आप होशियार हो, कुछ आप ही रास्ता सुझाओ...

आपको अपना थोड़ा मेकओवर करना होगा। अपनी डाकू वाली इमेज को बदल दीजिए।

अरे, यह तो मेरी पहचान है। इसको कैसे बदल सकता हूं? गब्बर की आत्मा चीखी।

पूरी बात तो सुनिए। डाकूगीरी छोड़ने का नहीं बोल रहा, वह तो पॉलिटिक्स का कोर है। केवल इमेज बदलनी है। ये मैली-कुचेली ड्रेस की जगह कलफदार सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा या कुर्ता-धोती टाइप ड्रेस पहननी है। अपनी पिस्तौल को कुर्ते के अंदर बंडी में डालकर रखना है, हाथ में नहीं पकड़ना है। हाथ में रखिए बढ़िया वाला आई-फोन। ऐसा ही मेकओवर अपने साथियों का भी कीजिए।

पर रिपोर्टर महोदय, कुर्ता-धोती पहनकर मैं घोड़ा कैसे दौड़ाऊंगा? गब्बर का सहज सवाल।

घोड़ों को भेजिए तेल लेने। अब आप चलेंगे एसयूवी में। नेता बड़ी एसयूवी में ही चलता है। आपके खेमे में 10-20 एसयूवी होनी ही चाहिए। कालिया-साम्भा टाइप के साथी भी इन्हीं एसयूवी में घूमेंगे। और हां, टोल नाकों पर टैक्स नहीं देना है, आपके साथी इस बात का खास ध्यान रखें। जो नेता टोल नाके पर डर गया, समझो घर गया। कालिया से भी कहिए कि अनाज के साथ थोड़ा-बहुत ड्रग्स का धंधा भी करें। जब आपको नेता बनना ही है तो खम ठोंककर पूरा ही बनिए ना...

तो इससे टिकट मिल जाएगा? गब्बर के दिमाग में राजनीति का कीड़ा अब तेजी से कुलबुलाने लगा था।

अपने बायोडाटा में इस बात का उल्लेख करना मत भूलना कि आप 'रामगढ़' से बिलॉन्ग करते हैं। यह आपकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। इससे आपको ये नहीं तो वो, कोई न कोई पार्टी तो टिकट दे ही देगी। रिपोर्टर ने अपना एडिशनल ज्ञान बघारा।

लेकिन अब भी मुझे ज्यादा समझ में नहीं आ रहा। इतना दंद-फंद क्यों करना भाई?

आप ज्यादा दिमाग मत खपाइए। दिमाग खपाने वाले लोग सच्ची राजनीति नहीं करते। मैंने जैसा कहा, वैसा कीजिए। अब आप मुझे गोली मारकर फिर से नीचे पहुंचाइए। बच्चे, पिचकारी का इंतजार कर रहे होंगे। कल होली है ना...!

और रिपोर्टर ने अपना सिर भावी नेता के आगे झुका लिया, गोली खाने को...।

देखें यह मजेदार वीडियो ... गब्बर सिंह के मैनेजमेंट फंडे...

# gabbar # gabbar holi jokes

रविवार, 31 जनवरी 2021

हलवे की कड़ाही और वोटर्स में क्या समानता है? जानिए इसी कड़ाही से, बजट पूर्व खास इंटरव्यू में…

बजट का हलवा

 

By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क, नई दिल्ली। बजट पेश होने में अब कुछ ही घंटे बाकी हैं। ऐसे में बजट संबंधी ब्रेकिंग न्यूज कबाड़ने के फेर में रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों न कड़ाही से बात की जाए, वही कड़ाही जिसमें बजट की प्रिंटिंग से पहले हलवा बना था। तो छिपते-छापते रिपोर्टर पहुंच गया नॉर्थ ब्लॉक कड़ाही के पास :

रिपोर्टर : राम-राम कढ़ाही काकी। कल बजट आ रहा है और आप आराम कर रही हों?

कड़ाही : अब हमारा बजट से क्या काम? हलवा बनना था, बन गया और बंट भी गया।

रिपोर्टर : पर आप यहां इस समय कोने में क्या कर रही हों?

कड़ाही : अब यही तो हमारी नियति है बेटा। बजट छपने से पहले ही हमारी पूछ-परख है। एक बार हलवा खतम तो हमारा काम भी खतम। बस यहीं कोने में सरका दी जाती है। साल भर यहीं पड़े रहो।

रिपोर्टर : मतलब आपमें और हममें कोई फर्क नहीं?

कड़ाही : बिल्कुल। जैसे तुम वोटर्स की वोटिंग से पहले ही पूछ-परख होती है, वैसे ही मेरी बजट की छपाई से पहले।


रिपोर्टर : अच्छा, तनिक यह तो बताओ कि बजट में क्या आ रहा है? थोड़ी-बहुत ब्रेकिंग-व्रेकिंग हम भी चला दें…

कड़ाही : ब्रेकिंग का क्या, कुछ भी चला दो। चला दो कि बजट की एक रात पहले नॉर्थ ब्लॉक के पिछवाड़े में एक भूत के कदमों के निशान पाए गए। हो गई ब्रेकिंग न्यूज..।

रिपोर्टर : अरे नहीं काकी। मैं टीवी वाली ब्रेकिंग की बात ना कर रहा। हमें तो ‘हिंदी सटायर’ के लिए ब्रेकिंग चाहिए, वही जो खबरी व्यंग्यों में हिंदी में भारत का पहला पोर्टल है।

कड़ाही : अच्छा। तो खबर चाहिए? ऐसा बोलो ना। पर वो मुझे कहां पता। मैंने बजट थोड़े देखा है।

रिपोर्टर : मंत्री और अफसर हलवा खाते समय कुछ तो बतियाए होंगे?

कड़ाही : हां, मंत्राणी अपने अफसरों से पूछ रही थीं कि क्या उस आम आदमी की पहचान हो गई है जिसके लिए हम बजट बना रहे हैं?

रिपोर्टर : अरे वाह, फिर क्या हुआ?

कड़ाही : वही तो बता रही हो। बीच में ज्यादा टोकाटोकी मत करो…हां तो इस पर अफसर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। तब एक सीनियर अफसर ने हिम्मत करके कहा कि मैडम जी, हम तो हलवे में लगे थे। वैसे भी बजट का आम आदमी से क्या लेना-देना? फिर भी हमने उसकी तलाश में टीमें लगा दी हैं…. और भी बहुत बातें हुईं, पर ज्यादा समझ में ना आईं।

रिपोर्टर : हमें तो हलवे की फोटो ही देखने को मिलती आई है। ये तो बता दो उसमें क्या-क्या माल डलता है?

कड़ाही : बेटा, ये तो बहुत कॉन्फिडेंशियल है, बजट से भी ज्यादा।

रिपोर्टर : ठीक है, ना पूछता। पर दिल में कई सालों से एक सवाल उठ रहा था, हलवे को लेकर।

कड़ाही : क्या?

रिपोर्टर : यही कि क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि किसी दिन कोई वित्त मंत्री यह कहें कि इस बार हलवा न बनेगा और न बंटेगा। इस बार रोटियां बनेंगी और गरीबों में बंटेंगी, क्योंकि इस देश को हलवे से ज्यादा रोटियों की दरकार है और…

कड़ाही (बीच में टोकते हुए) : बेटा, अब ज्यादा हरिशंकर परसाई मत बनो। अपनी औकात में रहो। वो तो समय रहते निकल लिए। तुम परसाई बनने के चक्कर में अपनी लिंचिंग न करवा बैठना। तुम अभ्भी के अभ्भी यहां से निकल लो…खुद तो मरोगे, मुझे भी मरवाआगे…

(Disclaimer : बताने की जरूरत नहीं कि यह खबर कपोल-कल्पित है। मकसद केवल कटाक्ष करना है, किसी की मनहानि करना नहीं।)

शनिवार, 30 जनवरी 2021

गोडसे ने बापू की डायरी में यह क्यों लिखा : 1,10,234 …?

 

gandhi-godse


By Jayjeet


गोडसे ने आज फिर बापू की डायरी ली और उसमें कुछ लिखा।


गांधी ने पूछा- अब कितना हो गया है रे तेरा डेटा?


एक लाख क्रॉस कर गया बापू। 1 लाख 10 हजार 234… गोडसे बोला


गांधी – मतलब सालभर में बड़ी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।


गोडसे : हां, 12 परसेंट की ग्रोथ है। बड़ी डिमांड है …. गोडसे ने मुस्कराकर कहा…


गांधीजी ने भी जोरदार ठहाका लगाया…


नए-नए अपॉइंट हुए यमदूत से यह देखा ना गया। गोडसे के रवाना होने के बाद उसने अनुभवी यमदूत से पूछा- ये क्या चक्कर है सर? ये गोडसे नरक से यहां सरग में बापू से मिलने क्यों आया था?


अनुभवी यमदूत – यह हर साल 30 जनवरी को नर्क से स्वर्ग में बापू से मिलने आता है। इसके लिए उसने स्पेशल परमिशन ले रखी है।


नया यमदूत – अपने किए की माफी मांगने?


अनभवी – पता नहीं, उसके मुंह से तो उसे कभी माफी मांगते सुना नहीं। अब उसके दिल में क्या है, क्या बताए। हो सकता है कोई पछतावा हो। अब माफी मांगे भी तो किस मुंह से!


नया – और बापू? वो क्यों मिलते हैं उस हरामी से? उसके दिल में भले पछतावा हो, पर बापू तो उसे कभी माफ न करेंगे।


अनुभवी – अरे, बापू ने तो उसे उसी दिन माफ कर दिया था, जिस दिन वे धरती से अपने स्वर्ग में आए थे। मैं उस समय नया-नया ही अपाइंट हुआ था।


नया – गजब आदमी है ये… मैं तो ना करुं, किसी भी कीमत पे..


अनुभवी – इसीलिए तो तू ये टुच्ची-सी नौकरी कर रहा है…


नया – अच्छा, ये गोडसे, बापू की डायरी में क्या लिख रहा था? मेरे तो कुछ पल्ले ना पड़ रहा।


अनुभवी – यही तो हर साल का नाटक है दोनों का। हर साल गोडसे 30 जनवरी को यहां आकर बापू की डायरी को अपडेट कर देता है। वह डायरी में लिखता है कि धरती पर बापू की अब तक कितनी बार हत्या हो चुकी है। गोडसे नरक के सॉफ्टवेयर से ये डेटा लेकर आता है।


नया – अच्छा, तो वो जो ग्रोथ बोल रहा था, उसका क्या मतलब?


अनुभवी – वही जो तुम समझ रहे हो। पिछले कुछ सालों के दौरान गांधी की हत्या सेक्टर में भारी बूम आया हुआ है।


नया – ओ हो, इसीलिए इन दिनों स्वर्ग में आमद थोड़ी कम है…


अनुभवी – अब चल यहां से, कुछ काम कर लेते हैं। वैसे भी यहां मंदी छाई हुई है। नौकरी बचाने के लिए काम का दिखावा तो करना पड़ेगा ना… हमारी तो कट गई। तू सोच लेना….


(Disclaimer : इसका मकसद गांधीजी को बस अपनी तरह से श्रद्धांजलि देना है, गोडसे का रत्तीभर भी महिमामंडन करना नहीं… )

#gandhi #godse 

सोमवार, 30 नवंबर 2020

Hindi Satire : 500 रन नहीं बनने पर ICC ने जताई चिंता, गेंदबाजों की चालाकी खत्म करने मशीनों से होंगी बॉलिंग

Cricket jokes, cricket satire, क्रिकेट पर जोक्स, bowling machine

By Jayjeet

Humour Desk. मेलबर्न। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने अब तक किसी भी ODI की एक पारी में 500 रन नहीं बनने पर चिंता जताई है। इसने गेंदबाजों की चालाकी और धूर्तता को खत्म करने के लिए अब मशीनों से बॉलिंग करवाने का निर्णय लिया है। यह निर्णय रविवार को सिडनी में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों के शर्मनाक प्रदर्शन की वजह से लिया गया है। इस मैच में दोनों टीमों के बल्लेबाज मिलकर 100 ओवर में महज 727 रन ही बना पाए।

ICC के एक सूत्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “इतने सारे नियमों में बदलाव करने और सपाट पिचें बनाने के बावजूद टीमें एक पारी में 500 रन भी नहीं बना पा रहीं। यहां तक कि सिडनी की सपाट पिचों पर भी बल्लेबाज फेल हो रहे हैं। यह बेहद अफसोसजनक हैं और बल्लेबाजों के निकम्मेपन को दर्शाता है।”

ICC के इस सूत्र ने कहा, “क्रिकेट में रोमांच बना रहे, इसके लिए गेंदबाजों की धूर्तता और चालाकी को खत्म करने का वक्त आ गया है। अब भी देखा गया है कि कई बार कोई-कोई गेंदबाज नैतिकता को ताक पर रखकर ऐसी बॉल फेंक देता है कि बेचारा बल्लेबाज मात खा जाता है। इस विसंगति को दूर करने के लिए अब हम तकनीक का सहारा लेने जा रहे हैं। इसके लिए अब आगे से हर वन डे मैच में गेंदबाजी केवल बॉलिंग मशीनों से होंगी। मशीनों में ऐसी सेटिंग की जाएगी कि न तो बॉल स्विंग हो और न ही स्पिन। सीधी-सपाट बॉल आएगी तो बल्लेबाजों को खेलने में आसानी होगी।”

यह पूछे जाने पर कि ऐसा करना क्या गेंदबाजों के साथ अन्याय नहीं होगा? उन्होंने प्रश्नकर्ता की नादानी पर हंसते हुए कहा, “जब किसी भी टीम में गेंदबाज ही नहीं होंगे ताे उनके साथ अन्याय कहां से होगा!”

(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है।)

बुधवार, 25 नवंबर 2020

Satire & Humour : कोरोना को नाकारा करने की प्लानिंग, लैब में तैयार हो रही है सुशील-सुंदर कोरोनी

testing-of-coroni-in-lab, corona, corona jokes, कोरोना जोक्स, देवउठनी एकादशी, devuthani ekadashi

 
By Jayjeet

Humour Desk . नई दिल्ली/पुणे। देवउठनी एकादशी का इंतजार खत्म होने के साथ ही कोरोना की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है। किसी शुभ मुहूर्त में कोराना को 'नाकारा' करने की प्लानिंग की जा रही है। इसके लिए निपुण, सुंदर व सुशील कोरोनी के विकास का काम लैब में जारी है। 

स्वास्थ्य मंत्रालय में पदस्थ एक सूत्र ने बताया कि पिछले कई दिनों से हमें वैक्सीन से भी ज्यादा देवउठनी एकादशी का इंतजार था। उन्होंने यह खुलासा भी किया कि किसी भी लैब में कोई वैक्सीन वगैरह नहीं बन रही है। ये केवल कोरोना को भरमाने के लिए अफवाह भर हैं। बल्कि हर लैब अपने-अपने स्तर पर सुंदर व सुशील कोरोनी का विकास कर रही है। इसमें सबसे आगे भारत का सीरम इंस्टीट्यूम ऑफ इंडिया है।

तीसरे चरण की टेस्टिंग जारी : 

सीरम इंस्टीट्यूम ऑफ इंडिया के CEO अदार जूनावाला ने बताया कि उनके यहां जिस कोरोनी का विकास किया जा रहा है, उसके तीसरे चरण में रसोईघर की टेस्टिंग चल रही है। इस चरण में इस बात का परीक्षण किया जा रहा है कि कोरोनी कितनी खूबी से अपने होने वाले पति से बर्तन मंजवाने से लेकर सुबह की चाय-नाश्ता वगैरह तैयार करवा सकती है। अब तक के नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं। इससे पूर्व पहले चरण में कोरोनी का इस बात के लिए टेस्ट किया गया था कि वह कोरोना से फोन पर मिमियाने वाली आवाज में जी-जी निकलवा पाती है या नहीं। दूसरे चरण में इस बात की टेस्टिंग की गई थी कि साड़ी वगैरह की सेल की खबर से वह कोरोना का बीपी कितना बढ़ा पाती है। दोनों चरण में सफलता मिलने के बाद तीसरे चरण की टेस्टिंग जारी है। शुभ मुहूर्त खत्म होने से पहले ही हम भारतीय परिवेश के अनुकूल सुंदर व सुशील कोरोनी भारत सरकार को सौंप देंगे। उम्मीद है कि कोरोना की शादी के बाद उसकी बची-खुची ताकत भी खत्म हो जाएगी। इस तरह corona पूरी तरह से नाकारा हो जाएगा।

# corona jokes, devuthani ekadashi, कोरोना जोक्स

रविवार, 22 नवंबर 2020

Satire : गायों के हित में मप्र की गो-कैबिनेट का बड़ा फैसला, पॉलिथीन पर से बैन हटेगा

Madhya Pradesh gau-cabinet , Polythene ban removed in mp, satire, मप्र गो कैबिनेट, गो भक्त सरकार, व्यंग्य
मजा आ गया! पॉलिथीन पर से बैन हटने के बाद...!

Humour Desk, भोपाल। मप्र में पॉलिथीन बैन होने के बाद गायों को हो रहीं दिक्कतों को देखते हुए राज्य सरकार ने गाय-हित में इसके उपयोग में छूट दे दी है। यह फैसला यहां रविवार को मप्र सरकार की पहली गो-कैबिनेट में लिया गया। गो कैबिनेट में इस बात पर चिंता जताई गई कि अगर पॉलिथीन पूरी तरह बैन हो गई तो गायें खाएंगी क्या? उन्हें भूखों मरने से बचाने के लिए यह संशोधन किया गया है।

मप्र की गोभक्त सरकार ने 24 मई 2017 को पॉलिथीन पर बैन (Polythene ban) लगाने के संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी किया था। सरकार ने इसके लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गायों को बचाने की दलील दी थी। नोटिफिकेशन जारी होते ही लोगों ने इसका मतलब यह निकाल लिया कि अब प्रदेश में न तो पॉलिथीन बनेगी और न ही बिकेगी। कई भोले दुकानदारों ने दुकानों पर नोटिस भी चिपका दिए थे कि – “सरकार ने पॉलिथीन पर बैन लगा दिया है। कृपया मांगकर शर्मिंदा न करें।” आम लोगों ने पतले कपड़े की बनी पॉलिथीन के लिए सहर्ष तीन से लेकर पांच रुपए तक खर्च करने भी शुरू कर दिए। कई लोग घर से ही थैले लेकर जाने लगे।

फिर मरने लगी गायें…

मप्र सरकार का यह फैसला भी नोटबंदी की तरह उलटा साबित हो गया। राज्य सरकार को मिली एक गोपनीय रिपोर्ट के अनुसार पॉलिथीन बैन होते ही सड़कों पर से ये गायब होने लगी। चूंकि मप्र की सड़कों पर विचरने वाली गायें सालों से पॉलिथीन खाकर ही अपना पेट भर रही थीं। ऐसे में पॉलिथीन की आदी ये गायें भूखी मरने लगी। कई सड़कों पर गायों के मरने की खबरें भी आईं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गो कैबिनेट की पहली ही बैठक में सरकार ने पॉलिथीन बैन पर आंशिक छूट दे दी।

कौन कर सकेगा यूज, कौन नहीं?

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पॉलिथीन पर बैन से छूट किसे दी जाएगी, लेकिन गोधन सेवा से जुड़े वरिष्ठ अफसरों के अनुसार गायों के हित में कोई भी हिंदू नागरिक पॉलिथीन में सामान लाकर उसे कहीं भी फेंक सकेगा। मुस्लिम और ऐसे ही उन समाजों के लिए यह प्रतिबंध जारी रहेगा जो गोधन को मां नहीं मानते हैं।

(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं। )

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

Satire & Humour : साइबेरियाई पक्षियों ने केजरीवाल को लिखी चिट्ठी, जानिए क्यों?

 

Kejriwal muffler jokes, Winter satire, winter jokes, sardi jokes

By Jayjeet

Humour Desk. नई दिल्ली। ठंड के मौसम में रूस और कजाकिस्तान के इलाकों से भारत आने वाले साइबेरियाई पक्षियों ने अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर मफलर को लेकर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया है। पिछले साल केजरीवाल ने अपना लोकप्रिय मफलर नहीं पहना था। इस वजह से पक्षी सर्दी को लेकर लंबे समय तक कंफ्यूज होते रहे और आधी ठंड निकल गई थी।

साइबेरियाई पक्षियों के आधिकारिक प्रवक्ता द्वारा मुख्यमंत्री सचिवालय को लिखे पत्र की प्रति humourworld के भी हाथ लगी है। इस पत्र में लिखा गया है : “माननीय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी, हमारे साथी रूस और कजाकिस्तान से भारत देश की सीमा पर पहुंच गए हैं। वे भारत में ठंड की दस्तक का इंतजार कर रहे हैं। दो साल पहले तक आपका मफलर ही हमारे लिए संकेत होता था कि इंडिया में ठंड शुरू हो गई है। लेकिन पिछले साल आप कतिपय कारणों से मफलर नहीं पहन पाए। इस वजह से हमारी साथियों को ठंड का संकेत मिलने में काफी विलंब हो गया था जिससे वे कंफ्यूजिया गए थे और हमारा पूरा सिस्टम बिगड़ गया था।”

पत्र में आगे लिखा गया – मफलर पहनना या न पहचाना आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। लेकिन समय से पूर्व ही हमें यह बताना भी आपका दायित्व है कि आप मफलर पहनेंगे या नहीं, ताकि हम ठंड के संकेतों के लिए आपके मफलर पर डिपेंड नहीं रहे और कुछ अन्य तरीकों को एक्सप्लोर कर सके।’

इस बारे में विस्तार से जानकारी के लिए humourworld ने प्रवक्ता से फोन पर बातचीत की। प्रवक्ता ने हमें बताया कि वे रूस और कजाकिस्तान से ईरान और अफगानिस्तान को पार कर गए हैं। इस समय पाकिस्तान की स्वात घाटी के पास आराम फरमा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछली बार की तरह इस साल भी उनका टाइम खोटी न हो, इससे बचने के लिए उन्होंने समय रहते ही केजरीवालजी को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह कर दिया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दो-चार दिन में उन्हें स्थिति क्लियर कर दी जाएगी।

Kejriwal muffler jokes, Winter satire, winter jokes, sardi jokes

बुधवार, 2 सितंबर 2020

श्राद्ध पर क्यों गायब हो गए कौव्वे? खुद कौव्वे ने किया ऐसा खुलासा

कौवा , crow

हिंदी सटायर। मौका श्राद्ध का है। लेकिन इसके बावजूद कौव्वे कहीं नजर नहीं आ रहे। हाल ही में एक स्टडी में भी कहा गया है कि कौव्वे तेजी से लुप्त हो रहे हैं। लेकिन हमारे संवाददाता किसी तरह एक कौव्वे से टेलीफोनिक इंटरव्यू करने में सफल रहे। पेश हैं उसके मुख्य अंश :

हिंदी सटायर : आजकल कहां गायब हो गए हों?

कौव्वा: हम गायब नहीं हुए हैं, बल्कि श्राद्ध पक्ष में हमें छिपना पड़ रहा है। सेहत का जो सवाल है।

हिंदी सटायर : ऐसा क्यों?

कौव्वा:  पता नहीं कौन हमें पकड़कर खाना-वाना खिला दें?

हिंदी सटायर : अरे, कौव्वा भाई, वो तो सम्मान के रूप में आपको भोजन करवाते हैं? इसमें इतना क्यों अकड़ते हो?

कौव्वा:  हमारा भी पेट, दिल और किडनियां हैं। इंसान को अपनी फिकर नहीं है, हमें तो है। वे मिलावटी खाकर हार्ट और डायबिटीज के पेशेंट बन रहे हैं। हमें नहीं बनना। कोरोना काल अलग चल रहा है।

हिंदी सटायर : लेकिन इंसान तो आपको पितरों की तरह पूजकर भोजन करवाता है?

कौव्वा:  छोटा मुंह बड़ी बात। पर श्राद्ध का इंतजार क्यों करते हैं? जीते-जी जो असली पितर हैं, उन्हें भी थोड़ा अटेंशन दे दो भाई। फिर हमें भोजन करवाएं। तब हम भोजन ही नहीं करेंगे, आशीर्वाद भी देंगे, वादा रहा।



सोमवार, 24 अगस्त 2020

Funny Interview : कांग्रेस में कौन बन सकता है नया अध्यक्ष, राहुल के डॉगी PIDI ने किया खुलासा

jokes on congress, rahul dog PIDI, राहुल का कुत्ता पीडी, राहुल गांधी जोक्स


By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क, दिल्ली। जैसे ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की और राहुल गांधी ने चिट्‌ठी लिखने वाले कांग्रेसियों को आढ़े हाथ लिया, किसी ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में रिपोर्टर लपककर पहुंच गया 10 जनपथ पर सीधे पीडी के पास। पीडी राहुल भैया का प्रिय डॉगी है। वह दो साल पहले उस समय सुर्खियों में आया था, जब राहुल ने कहा था कि उनके ट्वीटस पीडी ही करता है।

रिपोर्टर : पीडी भैया, उधर कांग्रेस में अफरातफरी मची है और इधर आप बड़े खुश नजर आ रहे हो?

पीडी: हां, राहुल भैया ने हमको तैयार रहने को कहा है।

रिपोर्टर : किस बात के लिए?

पीडी : शायद कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनने के लिए।

रिपोर्टर (जानबूझकर अनजान बनने का नाटक करते हुए) : क्यों भाई, ऐसा क्या हो गया?

पीडी : अरे आपको ना पता? किसने रिपोर्टर बना दिया! अभी कुछ देर पहले सोनिया मम्मा ने इस्तीफा देने की पेशकश की है। और राहुल भैया और प्रियंका दीदी ने भी कह दिया है कि अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का बनेगा। तो बताओ, अब अध्यक्ष कौन बनेगा? है कोई?

रिपोर्टर : पर आप भी तो परिवार में ही रहते हो? यानी प्रैक्टिकली तो आप भी गांधी परिवार का ही हिस्सा हो। तो आप भी ऐलिजिबल कैसे हो जाआगे?

पीडी : आप भी क्या बात करते हों...  हम परिवार में जरूर रहते हैं, पर गांधी-नेहरू खानदान के थोड़े हुए।

रिपोर्टर : अच्छा, राहुल भैया ने आपको ही अध्यक्ष बनने के लिए तैयार रहने को क्यों कहा? आपमें ऐसी क्या योग्यता है?

पीडी : वफादारी, सबसे बड़ी योग्यता तो यही है। फिर मैं मम्मा, भैया और दीदी की ऑन डिमांड पर कभी भी दुम हिला सकता हूं। उनके तलवे भी मैं ही बड़े अच्छे से चाट सकता हूं।

रिपोर्टर : माफ करना पीडी भैया, अभी आपने मुझ पर ताना मारा था, लेकिन पता आपको भी कुछ नहीं है।

पीडी : ऐसा क्या पता नहीं है?

रिपोर्टर : आप जिस वफादारी की बात कर रहे हो ना, वह तो कांग्रेस में कई लोगों के पास है। दुम हिलाने वाले भी बहुत मिल जाएंगे और तलवे चाटने वाले भी।

पीडी : पर भैया, दो पैर वाले तो दो पैर के ही होते हैं। दो पैर वालों की वफा का भरोसा नहीं। देखा नहीं, अभी कैसे फटाक से चिट्ठी लिख मारी। ये कोई वफादारी है !! भला राहुल भैया को नाराज कर दिया। वफादारी में चार पैर वालों से टक्कर नहीं ले सकते आपके दो पैर वाले वफादार।

रिपोर्टर : पर दूसरे कांग्रेसी नेता आपको पार्टी का अध्यक्ष क्यों स्वीकार करेंगे?

पीडी : अरे, थोड़ी देर पहले आपने ही तो कहा था कि प्रैक्टिकली हम गांधी परिवार का हिस्सा है... इसलिए, समझें...

रिपार्टर कुछ और पूछें, इतने में पीडी के पास जमीन पर रखा मोबाइल बज उठा। स्क्रिन पर राहुल भैया नाम चमक रहा था। और पीडी भी जी भैया, जी भैया में बिजी हो गया... और यह रिपोर्टर भी अपनी दुम को समेटकर वापस आ गया, ब्रेकिंग न्यूज के साथ...

#congress new president  #political satire #congress #rahul #humor

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

देखिए नई टाइप की स्मार्ट रोड : ग्राउंड वाॅटर रिचार्ज करेगी, आसान होंगे कई काम

 smart city and roads बारिश में सड़क


By Jayjeet

1. जैसा कि चित्र से स्पष्ट है, यह बारिश के दिनों में ग्राउंड वाॅटर को रिचार्ज करने का काम करेगी। इसके पीछ सोच यह है कि चूंकि अब जगह-जगह कांक्रटीकरण के कारण पानी को जमीन के भीतर जाने का मौका नहीं मिलता है। तो ऐसे में इस तरह की सड़कों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाएं।

2. इस सड़क में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) का यूज किया जाएगा। इसका फायदा यह होगा कि अफसरों, इंजीनियरों और ठेकेदारों को सामग्री में मिलावट की मात्रा को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं होगी। यह काम सड़क खुद ही बहुत ही साइंटिफिक ढंग से कर लेगी।

3. AI के जरिए सड़क बादलों की डेंसिटी को देखकर पहले से ही उचित आकार के गड्‌ढों में तब्दील हो सकेगी, ताकि पानी की एक भी बूंद खराब न हो और वह सीधे जमीन में नीचे उतर सकें। सामान्य सड़क में पहली-दूसरी बारिश का पानी गड्‌ढे करने में ही व्यर्थ हो जाता है।

4. सड़क से जुड़े सभी नेताओं, इंजीनियरों, ठेकेदारों और अफसरों के बीच कमीशन का बंटवारा भी सड़क अपने आप डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम (DBT) के जरिए खुद ही कर देगी। इससे विभिन्न पक्षों के बीच किसी तरह का विवाद नहीं होगा।

5. जमीन के भीतर पर्याप्त पानी पहुंचाने के बाद बचे हुए पानी का इस्तेमाल यह सड़क बिजली बनाने में करेगी। अनुमान है कि ऐसी एक सड़क बारिश के हर सीजन में दस हजार वॉट तक अतिरिक्त बिजली का निर्माण कर सकेगी जो मुफ्त बांटने के काम आएगी।

#smart_city #satire #humor

यह भी पढ़ें ... एक्ट्रेस के मुंह से अचानक गिरा मास्क, चेहरा देखकर सदमे में आया कोरोना

शनिवार, 8 अगस्त 2020

कोरोना वैक्सीन की ब्लैक मार्केट वाली कीमत भी तय करेगी सरकार, गरीबों के हितों का रखा जाएगा ध्यान

corona vaccine कोरोना वैक्सीन कीमत


By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क, नई दिल्ली। देश में कोरोना वैक्सीन के जल्दी ही लॉन्च होने की संभावना को देखते हुए सरकार ने वैक्सीन को लेकर कालाबाजारियों की मनमानियों पर अंकुश लगाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। सरकार देश के प्रमुख कालाबाजारियों से चर्चा कर वैक्सीन की अलग-अलग श्रेणियों की कीमत फिक्स करेगी। देश के किसी भी कालाबाजार में उससे अधिक कीमत में वैक्सीन बेचे जाने को दंडनीय अपराध माना जाएगा।

हाल ही में कोरोनावायरस की दवा रेमडेसिवीर के कालाबाजार में 900 फीसदी तक ज्यादा दामों पर बेचे जाने की खबरों को देखते हुए सरकार वैक्सीन के मामले में कालाबाजारियों को खुली छूट देने के मूड में नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बार समय रहते ही सरकार कालाबाजार में बिकने वाली वैक्सीन के दाम तय कर देगी, ताकि बाद में कालाबाजारिये मनमानी करके मुनाफाखोरी न कर सकें। जरूरत पड़ने पर संबंधित एक्ट में जरूरी संशोधन भी किए जाएंगे। वैक्सीन को निर्धारित ब्लैक मार्केट प्राइस से अधिक दाम में बेचे जाने को दंडनीय अपराध बनाने पर भी विचार किया जा रहा है।

अलग-अलग श्रेणियां निर्धारित की जाएंगी...
सीरम इंस्टीट्यूट ने अपने कोरोना वैक्सीन के एक डोज की कीमत 225 रुपए तय की है। सरकार इसी कीमत को आधार बनाकर कालाबाजार में बिकने वाली वैक्सीन की कीमत तय करेगी। तुरंत वैक्सीन चाहने वालों को यह 2000 रुपए में उपलब्ध होगी। एक साल बाद की कीमत 1000 रुपए और दो साल बाद की कीमत 500 रुपए तय की जाएगी। कीमत तय करते समय गरीब तबकों के हितों का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। गरीबों को तीन साल बाद केवल 25 रुपए के प्रीमियम पर यानी 250 रुपए में वैक्सीन उपलब्ध करवाना सभी कालाबाजारियों का सामाजिक दायित्व होगा।

(Disclaimer : यह सिस्टम पर व्यंग्य है, फेक न्यूज नहीं... )

#satire #Jayjeet #corona_vaccine

(और भी मजेदार खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत के पहले पोर्टल hindisatire.com पर क्लिक करें ...)

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

Satire : अब बनेगी ‘शहरी बाढ़ जोड़ योजना’, पहले चरण में जुड़ेगा गुड़गांव-मुंबई की सड़कों का पानी

heavy rains flood mumbai मुंबई में बाढ़

नई दिल्ली। देश के विभिन्न शहरों में भारी बारिश के बाद पैदा हुए बाढ़ के हालात के मद्देनजर केंद्र सरकार 'शहरी बाढ़ जोड़ योजना' बनाने जा रही है। इसके तहत इन शहरों में भरे बारिश के पानी का सदुपयोग देश के विकास में किया जाएगा। इसके संकेत केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह ने दिए हैं।

यहां शनिवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्हाेंने कहा , “इन दिनों जगह-जगह बाढ़ आई हुई है। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार के कई शहरों में बाढ़ आई हुई है। मुंबई तो बाढ़ के लिए फेमस है ही। इस दिशा में मप्र सरकार ने भी अच्छा काम किया है और अब भोपाल व इंदौर जैसे शहरों में भी बाढ़ आने लगी है।”

उन्होंने आगे कहा, “वाजपेयी सरकार ने कुछ साल पहले नदी जोड़ योजना बनाई थी। इसी तर्ज पर अब हम स्मार्ट सिटी योजना के तहत शहरी बाढ़ जोड़ योजना लाने की प्लानिंग कर रहे हैं ताकि इन शहरों में भरे बारिश के पानी का सदुपयोग किया जा सके। पहले चरण में गुड़गांव और मुंबई शहरों की बाढ़ को जोड़ा जाएगा। अगले चरणों में बेंगलुरु, तिरुवनंतपुरुम, भोपाल, इंदौर और अन्य शहरों को शामिल किया जाएगा।”

#Flood #heavy_rains #humor #satire

(और भी मजेदार खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत के पहले पोर्टल hindisatire.com पर क्लिक करें ...)

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

Humor : देवउठनी एकादशी के बाद खत्म हो जाएगी कोरोना की सारी अकड़, एक अदद कोरोनी की तलाश

corona jokes कोरोना जोक्स

By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क, नई दिल्ली। भारत में पिछले छह माह से पूरी ताकत से उधम मचा रहे कोरोना का यह तामझाम देवउठनी एकादशी तक ही रहेगा। उसके बाद उसकी पूरी अकड़ दूर हो जाएगी। कोरोना के पर कुतरने के लिए सरकार ने उस प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है जो न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर में टेस्टेड रहा है।

कोरोना से लड़ने के लिए तमाम तरह के काढ़े, गिलोय, अश्वगंधा और हाल ही में ईजाद हुए नए तरीके पापड़, इन सबका इस्तेमाल किया जा चुका है। इसके बावजूद कोरोना का रुतबा कम होने का नाम नहीं ले रहा। इसलिए समाज वैज्ञानिकों की सलाह पर सरकार के संस्कृति विभाग ने अब अपने फाइनल प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत हर कार्य में निपुण, सुंदर, सुशील कोरोनी की तलाश शुरू कर दी गई है। जरूरत पड़ने पर भारत और चीन की मेट्रोमोनियल साइट्‌स का सहारा लिया जाएगा। ऐसी कोरोनी मिलते ही देवों के उठने के साथ कोरोना को सात जन्मों के बंधन में बांध दिया जाएगा।

कैसे नाकारा होता जाएगा कोरोना?
- शादी होते ही हम सभी की तरह कोरोना भी हाथ में सब्जी का थैला लिए सब्जी मंडी में भाव करता मिलेगा। फोन आने पर जी-जी करता पाया जाएगा। इससे उसकी वह धार जाती रहेगी जो अभी है।
- हमको बीमार बनाने वाले कोरोना को जैसे ही किसी सेल, जैसे साड़ी सेल आदि की खबर मिलेगी, खुद की तबीयत खराब हो जाएगी, बीपी बढ़ जाया करेगा।
- साल भर के भीतर जूनियर कोरोना के आने के बाद रही-सही कसर भी पूरी हो जाएगी। आधा समय जूनियर कोरोना की नैपी बदलने में निकल जाएगा और इससे उसकी बची-खुची ताकत भी खत्म हो जाएगी। इस तरह कोरोना पूरी तरह से नाकारा हो जाएगा।

#corona #corona_jokes #देवउठनी_एकादशी  #humor #satire

(और भी मजेदार खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत के पहले पोर्टल hindisatire.com पर क्लिक करें ...)