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रविवार, 23 मार्च 2014

नारदजी की झाडू से देवलोक में मची खलबली

When the craze of AAP was on the rise.  
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


देवलोक में अफरा-तफरी का आलम है। किसी को समझ में नहीं आ रहा कि अचानक नारदजी को क्या हो गया है। उन्होंने सिर पर फूलों का गजरा छोड़कर एक अजीब-सी टोपी पहन ली है। तंबूरे के स्थान पर झाडू हाथ में ले ली है। इसकी खबर जब देवलोक के सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया को लगी तो वे भागे-भागे नारदजी के पास पहुंचे, ‘महाराज, क्या कमी रह गई? आपने झाडू क्यों उठा ली है? मैं सफाई करवा देता हूं।’ वे प्रभु के सबसे करीबी नारदजी को आखिर नाराज कैसे देख सकते थे!
‘अरविंदम अरविंदम’... मुंह से ये बोल फूटते ही सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया चैके। नारायण-नारायण के स्थान पर ये क्या बक रहे हैं! वे मन ही मन बुदबुदाए। उन्हें अचरज में देखकर नारदजी ही बोले- ‘बहुत हो गया। अब सिस्टम सुधारने का वक्त आ गया है। मैं पूरे सिस्टम को अपनी झाडू से साफ कर दूंगा।’ और फिर अरविंदम-अरविंदम कहकर हाथ मंे झाडू घूमाएं नारदजी वहां से चले गए।
उधर, देवलोक में अब तक पूरा माजरा साफ हो चुका था। धरती पर आनन-फानन में भेजे गए देवदूतों का एक प्रतिनिधिमंडल वहां से लौट चुका था और देवताओं की कोर कमेटी के सामने पाॅवर पाइंट प्रेजेंटेषन भी दे चुका था। सबके चेहरों पर चिंता साफ थी। हालांकि कुछ ने कहा कि नारदजी की हैसियत ही क्या है? हमें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन एक बुजुर्ग-से देवता ने समझाया कि हमें इसे हलके में नहीं लेना चाहिए। आज उन्होंने झाडू उठाई। अगर कल वे रोजाना तीन लीटर मुफ्त सोमरस की मांग कर दंेगे तो दिक्कत में पड़ जाएंगे। सबसे ज्यादा टैक्स इसी से मिलता है। और यह ऐसी मांग है कि उन्हें इस पर भरपूर समर्थन भी मिल जाएगा।
उधर, इंद्र को अपना आसन भी डोलता नजर आ रहा है। उन्होंने तमाम अप्सराओं को ‘फाॅर टाइम बीइंग’ महल से निकलने का आदेष दे दिया है। अब वे दरबार लगाने लगे हैं, रात को सड़कों पर हाल जानने निकलने लगे हैं। रोजाना दो चार कर्मचारी सस्पेंड भी हो रहे हैं। वहीं, इंद्र के कुछ विरोधी दबी जुबान में कह रहे हैं, देखते हैं यह प्रहसन कब तक चलता है।
उधर नारदजी के साथ कुछ आम टाइप के देवता जुड़ने लगे हैं। पूछने पर ये आम देवता कहते- ‘जस्ट फाॅर ए चंेज।’ अब चेंज की यह सद्भावना उनकी अपनी निजी लाइफ को लेकर है या सिस्टम को लेकर, प्रभु ही जानें!

ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती

गब्बर की चुनावी तिकडम

Very funny article, but at the end you will find some satire on our political system.

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


  

‘चुनाव कब है चुनाव?’ पान खराब का पूरा पाउच मंुह में उड़ेलते हुए अपने लाॅन में बैठे गब्बर ने पूछा।
‘सरदार ये क्या बका जा रहा है।’ बंगले की उपरी मंजिल पर बैठा साम्भा बड़बड़ाया। उसे लगा कि उसने ही कुछ गलत-सलत सुन लिया होगा तो बोला, ‘सरदार, होली अगले महीने हैं।’
‘अरे, मैं पूछ रहा हूं, चुनाव कब है?’
‘यह तो इलेक्षन कमीषन बताएगा। पर माजरा क्या है सरदार?’
‘ठाकुर का संदेषा आया है। वे चुनाव में खड़े हो रहे हैं और हमसे लाॅजिस्टिक सपोर्ट मांग रहे हैं।’
‘सरदार, भूलना नहीं। आपको मारने के लिए ही उन्होंने कभी दो लफंगों को सुपारी दी थी। देखना उन्हें तो लेकर नहीं आ रहे।’ सांभा ने चेताया।
‘नहीं रहे, उनमें से एक तो बिल्डर का काम करता है। दूसरा घोडों पर दांव लगाकर इज्जतदार आदमी बन गया है। दोनों मजे में हैं। सुना है वे भी ठाकुर को चुनाव में सपोर्ट कर रहे हैं।’
‘वो तो करेंगे ही। वे ठाकुर के ही आदमी हैं। ठाकुर ने भी उनके लिए क्या-क्या नहीं किया।’
इतने में कालिया की एंटी।
‘खाली हाथ? ठेका नहीं मिला क्या?’
‘नहीं सरदार।’
‘तुमको पहले ही कहा था कि अफसरों को सेट कर लो। ठाकुर क्या तुम्हें सेट कर गया?’
‘नहीं सरदार, मैंने तो आपकी दारू पी है, चिकन खाया है...’ कहते ही कालिया को घबराहट होने लगी।
‘ले गोली खा, जब देखो तब हाई बीपी...। अब तफसील से बता क्या हुआ?
‘सरदार, वो ठाकुर के आदमियों ने हमारा खेल बिगाड दिया।’
‘अच्छा... तो ठाकुर का डबल गेम। उपर से चिकने जूते और नीचे तलवों में कीलें। वह पक्का नेता है तो हम भी कम नहीं। गब्बर फुसफुसाया। फिर जोर से बोला, ‘संदेषा करवा दो कि कोई सपोर्ट-वपोर्ट नहीं। हम भी चुनाव में खड़े होंगे।’
‘लेकिन सरदार आपको टिकट कौन देगा? सूरत देखी है क्या आपने?’ साम्भा बोला। सालों से मुंहलगा है। मुंहफट भी हो गया है। कुछ भी बोल देता है आजकल।
‘तो हम बदल लेंगे सूरत। वो क्या बोलते इमेज सुधारने वाले लोग होते हैं ना, उन्हें बोलो।’
‘इमेज कन्सलटेंसी।’ कालिया बोला।
’हां हां वही-वही।’ गब्बर खुष होकर बोला। ‘कालिया, जबसे तुमने दुनियादारी संभाली है, काफी होषियार हो गए हो।’
‘सरदार वो तो यूं ही।’ कालिया षरमा गया।
तो अब गब्बर की दाढ़ी ट्रिम हो गई है। चेहरे पर इम्पोर्टेड फ्रेम का चष्मा नजर आ रहा है। पान मसाले पाउच के स्थान पर चांदी का पानदान खरीद लिया गया है। उसे संभालने की जिम्मेदारी सांभा को दी गई है। आखिर कुछ तो करें। उपर बैठा-बैठा मक्खियां मारता रहता है। गब्बर के हाथ में आई फोन नजर आने लगा है। कालिया ने एंड्रायड आॅपरेट करना सिखा दिया है। जैसा कि बताया, कालिया तो पहले ही होषियार हो चुका है।
इस बीच, देष की दो पार्टियों ने गब्बर का नाम षार्टलिस्ट कर लिया है। ठाकुर पहले से ही षार्टलिस्टेड हैं। गब्बर ने वाट्स एप्स से मेसेज पहुंचाया है, ‘ठाकुर, यह सीट मुझे दे दें।’ लेकिन ठाकुर ने मना कर दिया है। गब्बर को कोई चिंता नहीं। वह अट्टहास लगा रहा है, ‘अब आएगा मजा चुनाव के इस खेल का।’
उधर, रामगढ की जनता कांप रही है, हमेषा की तरह।
 ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती