गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

बोर्नविटा के बहाने आइए कुछ असल सवाल उठाएं…


By Jayjeet Aklecha

हमारे देश की बुनियादी समस्या यह है कि हम बुनियादी मुद्दों पर काम करने के बजाय दिखावे पर ज्यादा भरोसा करते हैं। और यह बीमारी आम लोगों से लेकर सरकारों तक में व्याप्त है। शायद इसीलिए सालों पहले ही लोहियाजी कह गए थे कि दुनिया की सबसे ढोंगी कौम अगर कोई है तो वह भारतीय है।
खैर, मुद्दे पर आते हैं। मामला बोर्नविटा का है। मिडिल क्लास से लेकर हायर क्लास परिवारों में इस्तेमाल होने वाला या कभी ना कभी इस्तेमाल हुआ हेल्थ ड्रिंक पाउडर। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस पाउडर को बनाने वाली कंपनी से जवाब मांगा है। जवाब भी बस इस बात को लेकर कि उसने अपने प्रोडक्ट में चीनी व कुछ अन्य नुकसानदायक तत्वों की मात्रा को लेकर सही जानकारी क्यों नहीं दी। आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन दुखद सच यही है कि आयोग की आपत्ति केवल इस बात पर है कि कंपनी के विज्ञापन भ्रामक हैं। बस, विज्ञापन हटा दें, तो बाकी वह जो करें, सब ठीक है।
आयोग के अफसरों ने तो अपनी नौकरी कर ली है। बढ़िया है। आइए, हम कुछ काम करें, कुछ सवाल उठाएं। मेरा बुनियादी सवाल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से ही है। सीधा-सा सवाल यह है कि आज मैंने सुबह नाश्ते में अपने बच्चे को जो फल खाने को दिया या आज दोपहर में जो सब्जी खाने को दूंगा, उसमें चीनी से भी कई गुना घातक केमिकल्स से मैं अपने बच्चे को कैसे बचाऊं? या तमाम अभिभावक अपने-अपने बच्चों को कैसे बचाएं?
हम सब जानते हैं कि बाजार में कदम-कदम पर बिकने वाली तमाम सब्जियां-फल केमिकल्स से सने हुए हैं और इन्हें बच्चे ही नहीं, हम सब खा रहे हैं। हमारे घरों में, आस-पड़ोस में, ऑफिसों में नित बढ़ते कैंसर के मामले चीख-चीखकर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पानी सिर से कितना ऊपर जा चुका है। लेकिन फिर भी हम सतही चिंताओं में दुबले हुए जा रहे हैं। हमें चिंता इस बात की है कि ज्यादा बोर्नविटा पीने से बच्चे डायबिटीज के शिकार हो जाएंगे, लेकिन वे जिस दूध में इसे मिलाकर पी रहे हैं, उसमें कितने केमिकल्स बच्चों और बड़ों को कैंसर के करीब ले जा सकते हैं, इसकी किसी को चिंता है?
हम समझते हैं कि किसान आपका वोट बैंक है। ठीक है, उसे परेशान मत कीजिए। लेकिन फल-सब्जियों में घातक रसायन केवल किसान के खेत तक सीमित नहीं रह गए हैं। फलों-सब्जियों को पकाने, उसे अधिक चमकदार बनाने, कथित तौर पर मीठा बनाने का जो गोरखधंधा फसल के खेत से आने के बाद हो रहा है, हमें अपनी संस्थाओं व सरकारों से इस पर जवाब चाहिए। जवाब चाहिए कि हमारी आने वाली पीढ़ियों पर प्राणघातक बीमारियों का जो खतरा मंडरा रहा है, आखिर इसको लेकर वे क्या कर रही हैं? प्राकृतिक खेती का एक अव्यावहारिक जुमला उछाल भर देना काफी नहीं है, क्योंकि यह मामला केवल खेती तक सीमित नहीं रह गया है।
यह मुद्दा एक ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर’ के बोर्नविटा में अधिक चीनी होने के आरोप के मद्देनजर उठा है। काश, कम से कम हमारे तथाकथित सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर असली मुद्दों पर काम करते। बोर्नविटा जैसे सतही मुद्दों से देश के बच्चों का स्वास्थ्य सुधरने वाला नहीं है। हां, ऐसे मुद्दों से ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर’ के फॉलोवर्स की संख्या जरूर बढ़ जाएगी, क्योंकि आखिर ढोंग तो हम सबमें उसी तरह रचा-बचा है, जैसे फलों-सब्जियों में केमिकल्स।
लोहियाजी को गलत साबित करने का वक्त आ चुका है। खुद को गलत साबित होने में उनकी आत्मा प्रसन्न ही होगी। लेकिन बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसी हमारी संस्थाओं, हमारी सरकारों और हम सभी को सतही मुद्दों से फुर्सत मिले, तभी तो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your comment