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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

UPSC Toppers Interview : नाम न छापने की शर्त पर एक यूपीएससी रैंकर ने दिया बेलाग इंटरव्यू

IAS officer


नई दिल्ली। यूपीएससी (UPSC) के रिजल्ट की घोषणा हो चुकी है। इसमें सिलेक्ट होकर टॉप 500 रैंक में रहने वाले एक बेहद टैलेंटेड Topper ने नाम नहीं छापने की शर्त पर hindisatire को दिया बेलाग इंटरव्यू। पेश हैं उसके मुख्य अंश:

सवाल: इस परीक्षा में बेहतरीन रैंक हासिल कर कैसा लग रहा है?

जवाब: बहुत अच्छा लग रहा है। मैं अपने सपने को पूरा करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ गया हूं।

सवाल: कैसा सपना?

जवाब: जी, मेरा सपना है कि जैसे मेरे पूर्वजों ने इस देश को लूटा है, मैं भी उसमें अपना योगदान दे सकूं। भ्रष्टाचार करने में मैं नया कीर्तिमान बनाना चाहता हूं।

सवाल: अपने सपने को पूरा करने के लिए क्या कोई फ्रेमवर्क है?

जवाब: जी, अभी तो शुरुआत है। ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग का इंतजार करूंगा, फिर कोई प्लान बनाउंगा। हां, लेकिन चूंकि मेरे अपने परिवार में कई लोग सरकारी पदों पर रहे हैं। इसलिए उनकी ट्रेनिंग काफी मायने रखेगी और मुझे उम्मीद है कि अपने बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैं अपनी आने वाली सात पुश्तों के लिए काफी कुछ जोड़ सकूंगा।

सवाल: जब देश के आप जैसे क्रीम लोग ही भ्रष्टाचार करेंगे तो आम आदमी का क्या होगा?

जवाब: इस सवाल के जवाब में मेरा आपसे ही एक सवाल है। अगर क्रीम लोग भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो कौन करेगा? क्या आम लोगों और सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में इतना कौशल व दम है? फिर देश का क्या होगा?

सवाल: आप जैसे कई चयनित उम्मीदवार पहले ही प्राइवेट सेक्टर में अच्छी नौकरी कर रहे हैं। खूब कमा रहे हैं और ईमानदारी से कमा रहे हैं। तो फिर आईएएस अधिकारी क्यों बनना चाहते हैं?

जवाब: अगर आप मेरा नाम छापते तो कहता कि मैं देशसेवा और आम लोगों की सेवा के लिए आईएएस अधिकारी बनना चाहता हूं। देश में बहुत गरीबी हैं, गरीबों का कल्याण इसी सेवा के माध्यम से हो सकता हूं। समाज में बदलाव के लिए, आदिवासियों के जीवन में सुधार के लिए काम करना चाहता हूं, वगैरह-वगैरह। पर आपने नाम न छापने की गारंटी दी है। इसलिए अपने दिल की बात करता हूं। यह ऐसी सर्विस है, जिसमें रहकर आपको वही सुखद एहसास होता है जैसा कभी दशकों पहले ब्रिटेन के गोरे शासकों को होता होगा। इसमें हमें खुद को राजा होने और आम लोगों के प्रजा होने का एहसास होता है। यह सबसे बड़ा एहसास है। आप जैसे आम लोग इसे महसूस भी नहीं कर सकते।

सवाल: तो क्या मान लें कि देश में अब कोई भी ईमानदार अफसर नहीं है? देश ईमानदार अफसरों के कलंक से मुक्त हो गया है?

जवाब: यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि अभी भी मुठ्ठीभर ऐसे नालायक ईमानदार अफसर हैं, जो केवल देश की सोचते हैं। मुझे आशंका है कि मेरे साथ की बैच में भी कुछ ऐसे अफसर जरूर होंगे। हमें इनसे जल्दी ही मुक्त होना होगा।

(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल सिस्टम पर कटाक्ष करना है, किसी टॉप रैंकर पर नहीं।) 

शनिवार, 1 अगस्त 2020

Humor : जब राफेल से मिलने पहुंच गए राहुल, जानिए फिर क्या हुई बातचीत …

 

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By Jayjeet

अंबाला। लंबे सफर के बाद एक लंबी नींद। नींद के बाद जैसे ही राफेल ने आंखें खोलीं, उसे सामने एक शख्स नजर आया। चेहरे पर मास्क था। इसलिए पहचानने में थोड़ी दिक्कत हुई। लेकिन राफेल कुछ बोले, उससे पहले ही उसे आवाज सुनाई दी- राफेल भैया, नमस्कार।


अब राफेल को पहचानने में देर ना लगी- अच्छा राहुल भैया आए हैं। और सुनाओ, कैसे आना हुआ।

राहुल : बस भैया, आपका नाम बहुत सुना था, तो सोचा खुद ही मिल आऊं..

राफेल : हां, नाम तो मैंने भी आपका बहुत सुन रखा है।

राहुल : अच्छा! क्या सुन रखा है मेरे बारे में?

राफेल : एक तो यह कि आप सवाल बहुत पूछते हों और सवाल पूछने के चक्कर में आपने एक बार यह सवाल भी पूछ डाला था कि राफेल नडाल पर सरकार इतना खर्च करने क्यों जा रही है?

राहुल : हां, याद आया। वो शुरू में हमारे सलाहकारों ने कुछ कन्फ्यूज कर दिया था। हमें लगा था कि सरकार देश में करोड़ों खर्च कर टेनिस प्लेयर राफेल नडाल को ला रही है। इस सरकार का कुछ भरोसा नहीं…

राफेल : भई, सरकार की तो हम ना जानें, हमें तो फ्रांस सरकार ने कहा कि इंडिया जाना है तो चले आए। पर आप मुझसे मिलने यहां क्यों चले आए?

राहुल : राफेल भैया, सबसे पहले तो हम आपको पोलाइटली क्लियर कर दें कि सवाल पूछने का काम हमारा है। पर आप हमारे मेहमान हैं तो आपके सवाल का जवाब दे देते हैं। हम तो बस ये पूछने आए थे कि आप हमसे नाराज तो नहीं हों?

राफेल : आपसे नाराज क्यों होने लगा भला?

राहुल : मैंने आपका नाम ले-लेकर काफी कुछ बोला हैं ना, इसलिए पूछ रहा हूं।

राफेल : अरे बाबा, मुझे क्या भाजपा के प्रवक्ता या मोदी के मंत्री समझ रखा है जो मैं आपकी हर बात को इतना सीरियसी लूंगा?

राहुल : मतलब भैया, आप नाराज नहीं हैं ना? बस यही सुनने आया था। आज मैं चेन से सो सकूंगा। कल तो मैं रातभर छत पर खड़े होकर बस आसमां की ओर ही देखता रहा कि कभी गुस्से में ऊपर से फट ना पड़ो… अच्छा चलता हूं। अब ना मिलेंगे…!

शनिवार, 25 जुलाई 2020

Special Interview : पौधे की मुंहफट, इंसान को दिखाया आईना


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By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क। कोने में कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। हमने इंटरव्यू के लिए ऐसे ही एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, पर फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :

रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?

पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। हमारे नाम पर तो कई कैम्पेन भी शुरू गए हैं। क्या नेता, क्या अफसर, सब हमारा ही नाम जप रहे हैं।

रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के पौधे हैं आप?

पौधा : अरे यार, ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।


रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?

पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे मप्र, राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की इच्छा में इधर से उधर हो रहे हैं।


रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।

पौधा (एटिट्यूड में) : ये तो है। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता। पीछे छिप जाता हूं।


रिपोर्टर : आप अपना भविष्य कैसे देखते हैं?

पौधा : वैसे तो हम वर्तमान में ही खुश रहने वाले सजीव हैं। पर अपने पुरखों के साथ जिस तरह से हादसे हुए, उनसे भविष्य को लेकर जरूर थोड़ा-थोड़ा डर भी लगता है।


रिपोर्टर : क्यों, पुरखों के साथ क्या हुआ?

पौधा : अब आप बनने की कोशिश तो मत कीजिए। आप लोग ही तो हो जिम्मेदार हों। रोप भर देते हों। फोटो-वोटो, सेल्फी-वेल्फी के बाद फिर भगवान भरोसे छोड़ देते हों। पनप भी गए तो आठ-दस साल बाद कभी सड़क के लिए, कभी मेट्रो के लिए तो कभी किसी भवन के लिए हमारी बलि ले लेते हों।


रिपोर्टर : तो हम इंसानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

पौधा : यही कि भैया, हमारी चिंता भले मत करो। अपनी ही कर लो। इंसान तो बड़ा स्वार्थी है। तो अपना स्वार्थ समझकर ही कर लो। हम न रहेंगे, तो आप भी न रहोंगे, समझ लेना।


रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।

पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार।

सोमवार, 20 जुलाई 2020

Funny Interview : पौधे की पीड़ा...पौधरोपण की तस्वीर में बस हम ही ना होते!


plant पौधरोपण पौधा

By Jayjeet

कोने में रखी काली थैलियों में पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। रिपोर्टर भी मुस्कुराया। शिकार मिल गया था। तुरंत इंटरव्यू के लिए एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :

रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?
पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। रोज अखबार में तस्वीर छपती है।

रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।
पौधा : हां, बताया तो सही कि खूब अखबार में छप रहे हैं। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता।

रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के हैं आप?
पौधा : ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।

रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति-वजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?
पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की जुगाड़ में इधर से उधर हो रहे हैं।

रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।
पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार
#satire #Humor

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रविवार, 12 जुलाई 2020

Satire : पिस्तौल का दुख, हीरोइन के बजाय दुनिया अब भी चरित्र अभिनेत्री ही मानती है

Vikas-Dubey encounter memes and jokes मीम्स जोक्स

By Jayjeet
वह पिस्तौल सैनेटाइजेशन के बाद कोने में पड़ी सुस्ता रही थी, जिसे छीनकर गैंगस्टर विकास दुबे भागा था। इतना बड़ा कांड हो जाने के बाद भी पिस्तौल की सुरक्षा में एक भी सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं था। तो मौका देखकर यह जांबाज रिपोर्टर भी तुरंत पिस्तौल के पास पहुंच गया।
रिपोर्टर : राम राम पिस्तौल जी।
पिस्तौल : राम राम भैया, यहां क्या करने आए हो?
रिपोर्टर : आपका खास इंटरव्यू करने आए हैं।
पिस्तौल : क्यों? हमने ऐसा क्या तीर मार दिया, जो इंटरव्यू करने आ धमके?
रिपोर्टर : अरे, आपकी वजह से तो वह दुर्दांत गैंगस्टर मारा गया?
पिस्तौल : कौन? हमें ना याद आ रहा।
रिपोर्टर : अरे, वही विकासवा... भूल गई इतनी जल्दी?
(पिस्तौल को शायद याद आया कि उसे भी तो कहानी में चरित्र अभिनेत्री का रोल करने को कहा गया था। पर वह भूल गई थी। तो सपकपाकर बोली, हां हां याद आया। )
रिपोर्टर : भूल कैसे गई थी आप?
पिस्तौल : अब क्या है कि इतनी कहानियों में हम भाग ले चुकी हैं कि कई बार भूल जाती हैं कि हमसे किस कहानी के बारे में पूछा जा रहा है।
रिपोर्टर : तो कैसा लग रहा है आपको?
पिस्तौल : बहुत अच्छा लग रहा है। हम भी इस देश-दुनिया के काम आई,अच्छा क्यों ना लगेगा?
रिपोर्टर : नहीं, मतलब जब वह विकासवा आपको लेकर भाग रहा था तो उस समय क्या फील हो रहा था? थोड़ा डिटेल में बताइए ना।
पिस्तौल : तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे हम कोई छोकरिया है। तुम यह जानना चाहते हों कि जब वह हमें भगाकर ले जा रहा तो उस समय हम कैसा फील कर रही थी? तुम पत्रकार लोग कभी सुधरगो?
रिपोर्टर : हम तो बस अपने रीडर्स के हिसाब से पूछ रहे थे। नहीं तो हमको क्या मतलब। फिर भी थोड़ा सिक्वेंस तो बताइए कि कैसे छीना और क्या-क्या हुआ?
पिस्तौल : भई, हमसे मुंह मत खुलवाओ। बाकी का तो कुछ नहीं होगा, पर अगर पता चल गया कि कोई हमारे साथ जबरदस्ती कर रहा है, मतलब जबरन में हमारा मुंह खुलवाने का प्रयास कर रहा है तो कहीं तुम्हारा एनकाउंटर ना हो जाए।
रिपोर्टर : हमारा क्यों होगा? हम क्या कोई गैंगस्टर है?
पिस्तौल : तो तुम्हें क्या लगता है, सब एनकाउंटर गैंगस्टर के ही होते हैं?
रिपोर्टर : तुम हमें डरा रही हो। पर चलने से पहले एक आखिरी सवाल - हर बार कहानी में तुम्हारा ही अपहरण क्यों करवाया जाता है?
पिस्तौल : भई, यह तो स्क्रिप्ट राइटर्स से पूछो। हमारा काम एक्टिंग करना होता है तो हम वही करती है। बस, दुख इसी बात का होता है कि अब भी ये लोग हमें हीरोइन का दर्जा ये नहीं दे पाए हैं। बस, चरित्र अभिनेत्री ही मानकर चलते हैं। अच्छा भैया आप खिसक लो, फिर समझा रही हूं।

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गुरुवार, 2 जुलाई 2020

Satire & Humour : जब बाबा रामदेव को नोबेल पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया! क्यों और कैसे? एक सच्ची कहानी!



By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क। पतंजलि द्वारा कोराना की दवा ‘कोरोनिल’ बनाने के दावे के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें नोबेल पुरस्कार देने की वकालत कर रहे हैं, कुछ मजाक में तो कुछ सच्ची में। हिंदी सटायर को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार बाबा रामदेव तो पिछली बार ही इस अवार्ड के लिए प्रबल दावेदार थे। लेकिन उन्हें अवार्ड मिलते-मिलते रह गया। दरअसल, इसका खुलासा तब हुआ, जब हमारा उत्साही रिपोर्टर इस संबंध में बात करने के लिए नोबेल कमेटी के पास पहुंच गया। वहां बैठे एक सूत्र से बात की तो उसने तफ्सील से पूरी जानकारी दी।

रिपोर्टर : बाबाजी ने कोरोना की दवा ‘कोरोनिल’ बना ली है। अब तो चिकित्सा का नोबेल उन्हें मिल ही जाना चाहिए।

नोबेल कमेटी का सूत्र :  अरे आपको नहीं मालूम, नोबेल तो उन्हें पिछले साल ही मिल जाता, पर एक लोचा हो लिया।

रिपोर्टर : ऐसा कौन-सा लोचा हो लिया?

सूत्र : अब क्या बताएं। बाबा रामदेव जी ने खुद को चार-चार कैटेगरी में नॉमिनेट करवा लिया था।

रिपोर्टर : अरे, कैसे? और ये चार कौन-सी कैटेगरी हैं?

सूत्र : एक, चिकित्सा के लिए।

रिपोर्टर : हां, इसमें तो बहुत टॉप का काम कर रहे हैं अपने बाबाजह। इसमें तो मिलना ही था। पर दूसरी कैटेगरी में और कहां टांग घुसा ली इन्होंने?

सूत्र : यही तो प्रॉब्लम हो गई। उन्हें मुगालता हो गया कि 5 रुपए से कारोबार को बढ़ाकर 5 हजार करोड़ का कर लिया तो इकोनॉमी के लिए अवार्ड मिलना चाहिए।

रिपोर्टर : अच्छा! इसके अलावा?

सूत्र : आपको याद होगा कि बाबाजी ने एक बार ‘ओम शांति ओम’ शो में भी काम किया था। तो उन्होंने पीस के लिए भी अप्लाई कर दिया। इतना ही नहीं, किसी ने बाबा को कह दिया कि आप तो केमिस्ट्री में भी माहिर हैं- योग एंड पॉलिटिक्स की केमिस्ट्री। बस, बाबाजी ने यहां भी टांग घुसेड़ दी।

रिपोर्टर : तो इससे क्या हो गया?

सूत्र : चार-चार नॉमिनेशन से कमेटी वाले चकरा गए। कुछ लोग उन्हें चारों में अवार्ड देने की बात करने लगे कुछ उनका विरोध। बस, कमेटी में इतना कन्फ्यूजन पैदा हो गया कि बाबाजी को नोबेल अवार्ड आगे के लिए टाल दिया गया।

(Disclaimer : यह केवल काल्पनिक इंटरव्यू है। केवल हास्य-व्यंग्य के लिए लिखा गया है। कृपया समर्थक और विरोधी दोनों टेंशन ना लें… )

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शुक्रवार, 19 जून 2020

Funny Interview : चाऊमीन ने समझाया कि कैसे चपटी नाक वाले चीनियों को हम दे सकते हैं करारा जवाब


By Jayjeet

देश में जैसे ही चाइनीज प्रोडक्ट्स के बायकॉट का हल्ला शुरू हुआ, रिपोर्टर सीधे पहुंच गया जय श्री भैरू भवानी वाले चाइनीज ठेले पर। वहां नूडल्स पड़ी-पड़ी मरोड़ खा रही थी। रिपोर्टर को देखते ही नूडल्स ही नहीं, सोयाबड़ी, शिमला मिर्च और पत्तागोभी भी उठ खड़ी हुई…


रिपोर्टर : क्या मैं आपसे हिंदी में बात कर सकता हूं? क्योंकि मुझे चाइनीज तो आती नहीं…
नूडल्स : भाई, हमें कौन-सी आती है! तुम चाहो तो भोजपुरी में भी बात कर सकते हो। जिस ठेले पर हम बिक रही हैं, वह किसी बिहारी भाई का है।

रिपोर्टर : तो आप चाइनीज ना हैं क्या?
नूडल्स : अरे, मेरे साथ ये सोयाबड़ी है। ये क्या चाइनीज लगती है? न शकल से, न अकल से….

रिपोर्टर : हां, ये सोयाबड़ी तो ठेठ इंडियन ही लगती है। देखो कैसे तोंद निकली पड़ी है…
नूडल्स : अरे भाई, ये इंडियन लगती ही नहीं, इंडियन है भी। और हम सब इंडियन हैं। बस नाम चाइनीज है, चाऊमीन …पर तुम हम गरीबों से बात करने काहे आ गए?

रिपोर्टर : अभी मेरे घर के सामने कुछ लोग ‘बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट’ का नारा लगा रहे थे, तो मैंने भी चाऊमीन के बहिष्कार की अखंड प्रतिज्ञा ले ली है। और फिर मैं भागा-भागा वर्जन लेने तुम्हारे पास आ गया।
नूडल्स : ये ही तो तुम गलत करते हों। तुम्हें पता कुछ रहता नहीं, पर प्रतिज्ञाएं उल्टी-सीधी कर लेते हों। ये कुरुवंशी लोग भी ऐसा ही करते थे। जब टीवी पर महाभारत आ रही थी तो देखा था मैंने। वो कौन भीष्म पिमामह, वो अर्जुन… । अब तुम भी हमें कभी खाने का आनंद नहीं ले पाआगे…

रिपोर्टर : अरे नहीं जी, हमारी प्रतिज्ञाओं का क्या? मैं तो हर साल ही चाइनीज चीजों के बायकॉट की प्रतिज्ञा लेता हूं। दिवाली और होली पर तो नियम ही बना लिया है…
नूडल्स : पर ये तो ठीक ना है। बायकॉट करो तो पूरा करो, नाटक ना करो। और फिर पूरी तैयारी के साथ करो।

रिपोर्टर : इसमें तैयारी क्या करना?
नूडल्स : भैया, केवल बायकॉट से काम ना चलेगा। वो चपटी नाक वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना होगा। जैसा तुम लोगों ने चाइनीज चाऊमीन का इंडियन वर्जन बना दिया, वैसा ही उनके हर प्रोडक्ट के साथ करो। फिर न रहेगा चाइनीज प्रोडक्ट, न बायकॉट की जरूरत पड़ेगी। समझ गए…!

रिपोर्टर : ये तो सही आइडिया है…
नूडल्स : हां, यही है The Idea of India…

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रविवार, 14 जून 2020

Humour : जब ट्रम्प का नाम बदलवाने पर अड़ गए डक साहब, योगीजी वाला पैंतरा भी काम ना आया…



By Jayjeet

रिपोर्टर बहुत दिनों से किसी का इंटरव्यू नहीं ले पाया था.. इस बीच उसे पता चला कि अमेरिका में भी लॉकडाउन के चलते डोनाल्ड डक (donald-duck) काफी फुर्सत में हैं। तो उसने उन्हीं के साथ वेबिनार कंडक्ट कर लिया। रिपोर्टर के जीवन का पहला वेबिनार, वह भी इंग्लिश में…. पर आप लोगों के लिए पेश है हिंदी वर्जन…

रिपोर्टर : डोनाल्ड साहब? कैसे हों आप?
डोनाल्ड डक : अब जिसके नाम में डोनाल्ड लगा हो, वह कैसे हो सकता है भला?

रिपोर्टर : सेक्सपीयर साहब बोल गए है कि नाम में क्या रखा है…
डोनाल्ड डक : एक तो वो शेक्सपीयर हैं, सेक्सपीयर नहीं। फिर तुम भारतीयों ने सेक्स से ज्यादा धेला भी ना पढ़ा होगा, पर नाम वाले मामले में उनकी एक लाइन क्या पढ़ ली, ऐसा ज्ञान झाड़ते हो मानो शेक्सपीयर पर पूरी पीएचडी कर रखी हो।

रिपोर्टर : ठीक है, अगर नाम से ही दिक्कत है तो आप हमारे योगीजी को बोलिए। वे आपका या उन वाले डोनाल्ड डक का नाम ही बदल देंगे।
डोनाल्ड डक : तुमने मुझे क्या बेइज्जती करने के लिए वेबीनार में बुलाया है?

रिपोर्टर : क्यों क्या हो गया? गलती से कुछ का कुछ बोल गया क्या?
डोनाल्ड डक : तुमने उस वाले डोनाल्ड के साथ मेरा ‘डक’ जोड़कर मेरी पूरी बत्तख जाति का अपमान करने का काम किया है।

रिपोर्टर : ओ सॉरी, सॉरी। आप कहें तो मैं योगीजी से बात करूं नाम बदलवाने को लेकर? आई एम वेरी सीरियस…
डोनाल्ड डक : अच्छा लगा यह जानकर कि तुम पत्रकार लोग कभी-कभी सीरियस भी हो जाते हों। पर मैं 1934 से हूं। तो सीनियर होने के नाते मेरा नाम नहीं बदलेगा, अगर बदलेगा तो उसी डोनाल्ड ट्रम्प का नाम बदलेगा…

रिपोर्टर : अच्छा, आप इतने पुराने हैं!! तभी डोनाल्ड ट्रम्प के माता-पिता ने बचपन में ही उनमें कार्टूनपना देखकर आपके नाम पर उनका नाम रख लिया होगा… आपको तो इज्जत दी है उनके माता-पिता ने। मिट्‌टी डालो ना अब तो नाम के इश्यू पर …
डोनाल्ड डक : उसके माता-पिता का नाम लेकर तुमने इमोशनल कर दिया। चलो मिट्‌टी डाली… तो अपन खतम करें वेबिनार…

रिपोर्टर : जी, बिल्कुल। डेजी अम्मा को मेरा प्रमाण कहना …. छोटों को स्नेह, बड़ों को नमस्कार, अन्य को यथायोग्य..
डोनाल्ड : हाव, चलता हूं…

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Funny Interview : लॉकडाउन के कारण MLA की अंतरात्मा भी परेशान, पढ़िए खास बातचीत…



By Jayjeet

रिपोर्टर सुबह उठते ही सीधे रिजॉर्ट के बाहर पहुंच गया। उसे किसी विधायक (MLA) की अंतरात्मा की तलाश थी। जैसे ही एक अंतरात्मा टेलीफोन पर बात करने के लिए बाहर लॉन में आई, रिपोर्टर छलांग लगाकर लॉन में पहुंच गया। रिपोर्टर को यूं देखकर अंतरात्मा हकबका गई – हट, हट कौन हैं?

रिपोर्टर : घबराइए नहीं अंतरात्मा जी, मैं रिपोर्टर हूं, बस आपसे बात करने आया हूं।
अंतरात्मा : पर ऐसे आते हैं भला? मैं फोन पर प्राइवेट बात कर रही थी और तुम अचानक आ गए तो खटका हुआ कि कहीं हाईकमान का ड्रोन तो ना टपक पड़ा! स्सालों ने जगह-जगह ड्रोन तैनात कर रखे हैं।

रिपोर्टर : हम भी क्या करें। अब अंतरात्माओं पर इतने पहरे बिठा दिए गए हैं तो ऐसे ही आना पड़ता है।
अंतरात्मा : अच्छा ठीक है, वहां नाश्ता लगा है। एक से बढ़कर एक ड्रायफ्रूट्स हैं। पहले वो कर लो।

रिपोर्टर : नहीं जी। नाश्ता तो मैं करके ही आया हूं…
अंतरात्मा : देखिए, अंतरात्मा हूं, इसलिए मुझसे तो झूठ मत बोलो… लॉकडाउन के कारण मुझे मालूम है हर जगह हालात खराब है। अब हमारी ही हालत देख लो …

रिपोर्टर : लेकिन आपको क्या दिक्कत है?
अंतरात्मा : अब क्या बताएं, सामने वाली पार्टी 25 करोड़ से ऊपर जा ही नहीं रही… उसी को लेकर मैं आगे की बात कर रही थी कि तुम टपक पड़े..

रिपोर्टर : एक अंतरात्मा के लिए 25 करोड़ तो काफी होते हैं।
अंतरात्मा : नहीं जी, वही तो तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही थी। इतना खराब समय आ गया है कि क्या बताएं… वे 25 में एक नहीं, वे दो अंतरात्माओं का सौदा करना चाहते हैं – ‘बाय वन गेट वन’ । लेकिन 25 में कैसे काम चलेगा। मैंने 30 में एक और अंतरात्मा को साथ लाने का ऑफर दिया है, लेकिन स्साले कह रहे हैं मार्केट डाउन है। अरे तुम्हारा मार्केट डाउन होगा तो होगा, हम अंतरात्माओं की भी कोई इज्जत है कि नहीं…

रिपोर्टर : हां वो तो सही है। अब आगे क्या प्लानिंग है?
अंतरात्मा : पहले तुम इधर आओ, ये नमकीन ड्रायफ्रूट्स खाओ…

(रिपोर्टर के मुंह में जबरदस्ती नमकीन ड्रायफ्रूट्स ठूंसने के बाद….)

अंतरात्मा : देखो, अब मैं 100 करोड़ में 10 अंतरात्माओं को एक साथ लाने का एकमुश्त ऑफर दे रही हूं। 25 मेरे, और बाकी 75 छोटी अंतरात्माएं आपस में बांट लेंगी।
रिपोर्टर : अरे वाह, यह तो ब्रेकिंग न्यूज है। धन्यवाद इसके लिए।

अंतरात्मा : ओए रिपोर्टर की औलाद। तेरे को नमकीन ड्रायफ्रूट्स किसलिए खिलाए कि तू ऐसी नमक हरामी करेगा…?
रिपोर्टर : पर अंतरात्मा जी, नमक हरामी आप भी तो कर रही है। जिस पार्टी से जीती, उसके साथ नमकहरामी..

अंतरात्मा : भाई, हम विधायक की अंतरात्मा है, हमारी जो मर्जी है हम करेगी। नमक हरामी करना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। विधायक की अंतरात्मा पैदा ही होती है नमक हरामी के लिए… पर तू मत करना, तू सच्चा रिपोर्टर है, हां …

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मंगलवार, 2 जून 2020

Funny Interview : टिड्डी की खरी-खरी : कभी नेताओं से भी तो पूछिए कि वे इतना खाकर पचा कैसे लेते हैं?



By Jayjeet

आज रिपोर्टर फिर निकल पड़ा किसी नए शिकार की तलाश में, यानी किसी मासूम का इंटरव्यू लेने। रास्ते में निवृत्त होने के लिए जैसे ही वह खेत की ओर मुड़ा, वहां एक टिड्डी नजर आ गई। बस, सबकुछ भूलकर उसने वहीं इंटरव्यू शुरू कर दिया :


 रिपोर्टर : यहां कैसे? रास्ता भटककर यहां आ गई क्या?
टिड्डी : हम इंसान नहीं हैं जो बार-बार रास्ता भटक जाए। मैं तो नई संभावना की तलाश में यहां आई हूं। वैसे आपके एरिया में तो मामला पहले से ही सफाचट है। यहां कृषि अधिकारियों के दौरे ज्यादा होते हैं क्या?

रिपोर्टर : (हम्म..) पता नहीं। वैसे कृषि अफसर तो सीमित संख्या में आते हैं, पर जब तुम टूटती हो तो लाखों की संख्या में। यह बेरहमी क्यों?
टिड्डी : हमारी तो यही प्रकृति है। तो हम इसी का पालन करते हैं। तुम्हारे जैसे नहीं…

रिपोर्टर : पर यार, तुम फसलों को इतना चौपट कैसे कर सकती हों, वह भी रातो-रात?
टिड्डी : यार मत कहो….(चीखते हुए..) । हां, तुम इंसानों से कम ही चौपट करती हैं। हम कम से कम बागड़ होने का दिखावा तो नहीं करती। तुम इंसान तो बागड़ बनकर फसल खाते हों। हम ऐसा नहीं करतीं।

रिपोर्टर : अच्छा एक पर्सनल सवाल… तुम इतना खाती हो तो पचाती कैसी हों? मतलब…
टिड्डी : कभी अपने जनप्रिय नेताओं या भ्रष्ट सरकारी अफसरों से पूछने हिम्मत की है कि वे इतना खाकर कैसे पचाते हैं? तो जैसे वे पचाते हैं, वैसे ही हम पचा लेती हैं।

रिपोर्टर : मतलब तुम और हमारे नेता-अफसर एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं?
टिड्डी : हां, एक ही थैली के टिड्डे-बिड्डे भी कह सकते हैं…

रिपोर्टर : कहीं पढ़ा है कि तुम लोग भी रंग बदलने में माहिर हो। पर कैसे? यह कहां से सीखा?
टिड्डी : (थोड़ा शर्माते हुए) हमने तो गिरगिटों से सीखा था। और गिरगिटों ने शायद तुम इंसानों से। तो कह सकते हैं कि इस मामले में तुम इंसान ही हमारे पूर्वज हुए।

रिपोर्टर : अच्छा, एक बात बताइए…
टिड्डी : जी अब बहुत हो गए सवाल। तुम तो फोकटे मालूम पड़ते हो, पर मुझे बहुत काम हैं। पर हां, इस बार तुम्हारे सवाल ठीक थे। पुराने इंटरव्यू जैसे वाहियात नहीं थे। तैयारी करके आए थे इस बार…

रिपोर्टर : अच्छा, तो तुम मेरे इंटरव्यू पढ़ती हों?
टिड्डी : हां जी, कौन नहीं पढ़ता। पर गलतफहमी में मत रहना। सब पढ़कर मजे ही लेते हैं… अच्छा मैं उड़ी…।

(ऐसे ही मजेदार खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए आप हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत की पहली वेबसाइट http://www.hindisatire.com पर क्लिक कर सकते हैं।)


रविवार, 24 मई 2020

Interview : जब जनप्रिय रिपोर्टर को रोटी ने सुना दी खरी-खरी…

funny interview with roti. satire on system . सिस्टम पर यह एक व्यंग्य है


By Jayjeet

जैसे ही लॉकडाउन में थोड़ी राहत मिली, यह रिपोर्टर फिर निकल पड़ा अपने काम पर। काम मतलब उलटे सीधे इंटरव्यू के फेर में। इस समय आदमी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज क्या है? रोटी.. हां रोटी। इसी तलाश में लाखों लोग अपने गांव छोड़कर शहरों के नरक में गए थे और अब इसी के चक्कर में अपने गांव लौट रहे हैं। तो रिपोर्टर भी तलाशने लगा रोटी। कुछ दुकानों पर उसे डबलरोटी तो नजर आई, लेकिन रोटी नहीं। काफी देर तक इधर-उधर घूमने के बाद आखिर उसे इंटरव्यू के लिए रोटी नसीब हो ही गई। सड़क के किनारे पड़ी हुई थी, बिल्कुल सूखी हुई। शायद किसी दुर्भाग्यशाली लेकिन आत्मस्वाभिमानी गरीब के हाथों से गिर गई होगी और फिर उसने उसे उठाना उचित न समझा होगा।

‘नमस्कार रोटी जी। क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं?’ रिपोर्टर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बोला।

रोटी ने अपनी बंद आंख खोली, धूल साफ करते हुए अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई : जी, बोलिए।

मैं इस देश का जनप्रिय रिपोर्टर। बस आपका इंटरव्यू लेना था।

रोटी : क्या अब रिपोर्टर भी नेता हो क्या, जनप्रिय रिपोर्टर? खैर, पूछिए, पर जरा जल्दी पूछिएगा।

रिपोर्टर : सबसे पहले तो यही पूछना है कि आप गरीब की रोटी है या अमीर की?
रोटी: आपका पहला सवाल ही गलत है। रोटी तो रोटी होती है, न अमीर की न गरीब की। उसका तो एक ही काम होता है खाने वाले का पेट भरना। हां, गरीब की रोटी सूखी हो सकती है, लेकिन उसके लिए तो वही मालपुआ होती है ना!

रिपोर्टर : इन दिनों आप बड़ी डिमांड में है?
रोटी : यह भी गलत सवाल। मेरी डिमांड कब नहीं रहती? गरीबों की बस्तियों में तो मेरी हर समय मांग रहती है। लोग जीते भी मेरे लिए हैं और मरते भी मेरे लिए। देखा ना अभी, मेरे खातिर कितने लोग सैकड़ों किमी पैदल ही चल पड़े हैं।

रिपोर्टर : तो कहने का मतलब है गरीब के हाथ में आपको ज्यादा सम्मान मिलता है, अमीर के हाथ में कम?
रोटी : जब आपने अपनी तारीफ में कहा था कि आप जनप्रिय रिपोर्टर हैं, तभी मैं आपकी औकात समझ गई थी कि आप नेता जैसी तुच्छ हरकत तो करेंगे ही। नेताओं जैसी भेदभाव बढ़ाने वाली बात कर रहे हैं आप। हां, अमीर-गरीब के बीच भारी खाई है,लेकिन पेट की भूख तो अंतत: मुझसे ही मिटती है, भले ही अमीर की थाली में सौ पकवान ही क्यों न हों?

रिपोर्टर : जब आपको कोई खाता है तो कैसा लगता है?
रोटी : आप क्या पहले न्यूज एंकर भी रह चुके हैं जो ऐसे बेमतलब के सवाल पूछ रहे हैं? भाई, ईश्वर ने मुझे पैदा ही इसलिए पैदा किया है कि दूसरों की खुशी के लिए मैं खुद को मिटा दूं। ऐसा करके मैं अपने कर्त्तव्य का ही तो पालन करती हूं।

रिपोर्टर : अरे वाह, क्या नेक विचार हैं। अगर सभी इंसान भी आपकी तरह सोचने लगे तो शायद कोई भूखा न सोएं… अभी तो आपका यह विचार और भी प्रासंगिक हो गया है, सबका पेट भर सकता है।
रोटी : चलिए… अब दूर हट जाइए। बहुत देर से वह कुत्ता बड़ी लालसा के साथ अपनी जीभ लटकाए आपके हटने का इंतजार कर रहा है। अभी तो बेचारे जानवरों के सामने भी पेट भरने का संकट पैदा हो गया है। और हां, आपके सवाल बड़े कमजोर थे। अगली बार किसी से इंटरव्यू करने जाए तो तैयारी करके जाइएगा, जनप्रिय रिपोर्टर!!!

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रविवार, 29 मार्च 2020

Humor : क्या हर बार जनता मेरे ही भरोसे बैठी रहेगी या खुद भी कुछ करेगी? : भगवान

corona virus jokes satire God


By Jayjeet

रिपोर्टर घर पर बैठा है तो ऐसा नहीं है कि वह जांबाज़ नहीं है। जांबाज़ होने का मतलब केवल बाहर घूमना नहीं, बल्कि खुद को और दूसरों को भी सुरक्षित रखना है। पर काम तो करना है। बॉस ने कहा कि किसी का इंटरव्यू लेकर आओ, ऐसे का जिसका इंटरव्यू आज तक किसी ने नहीं लिया हो। बड़ी मुसीबत है। बॉस लोग कुछ भी आदेश जारी कर देते हैं। पर ठीक है। रिपोर्टर को चुनौती मंजूर है। इन दिनों देश-प्रदेश में जो हालात हैं, उनमें सबसे पहले भगवान ही याद आए। तो सोचा चलो उन्हीं का इंटरव्यू कर लेते हैं। पर भगवान से डायरेक्ट बात कैसे करें। तो रिपोर्टर ने यह काम ट्रांसफर कर दिया अपने मित्र इब्नबतूता की आत्मा को जो पिछले कुछ महीनों से धरती की यात्रा पर है। अब आत्मा-ए-इब्नबतूता अपने मित्र की बात कैसे टालें.. तो वह अपनी दैवीय शक्ति से सीधे पहुंच गई भगवान के पास…


 आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, हाथ जोड़कर नमन करता हूं…

भगवान : आप कौन? और ऐसी स्थिति में अपना घर छोड़कर मेरे पास क्यों आए हो? सोशल डिस्टेंसिंग का ना पता क्या?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, मैं इंटरव्यू लेने आया हूं, रिपोर्टर के प्रतिनिधि के तौर पर..

भगवान : सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि, यहां तक कि सरपंच प्रतिनिध तक सुना था। आज रिपोर्टर प्रतिनिधि, … खैर क्या पूछने आए हों?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, यह क्या हो रहा है इस समय हिंदुस्तान में?

भगवान : जब तुम्हें पता है तो फिर मुझसे क्यों पूछ रहे हों?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : मेरे पूछने का तात्पर्य यह है कि जनता हाहाकार कर रही है तो आप कुछ करते क्यों नहीं हो? आप तो मदद के लिए हमेशा आते रहे हों, जब-जब भक्तों ने पुकारा…

भगवान : क्या हर बार जनता मेरे ही भरोसे बैठी रहेगी या कभी खुद भी कुछ करेगी?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : हम तो सब लोग अपनी-अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे…

भगवान : अच्छा… तो तुम्हारा मास्क कहां है?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, वह तो मिला नहीं। मेडिकल शॉप वाले बड़े महंगे बेच रहे हैं..

भगवान : तो रुमाल नहीं है क्या?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : हां, वह तो सबके पास रहता है, मेरे पास भी है..

भगवान : तुम इंसान लोगों को बहाने बनाने का कह दो। जब ज्यादा गड़बड़ होगी तो मेरे पास भाग के आओगे…मैं क्या कर लूंगा उसमें, हें?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, आप बिल्कुल सही फरमा रहे हैं। मैं आपका समर्थन करता हूं…

भगवान : अरे उल्लू के पट्‌ठे, करोना वायरस को लेकर सरकार, पुलिस, डॉक्टर्स जो कह रहे हैं, उसका समर्थन कर…

आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, मैं इंसान नहीं, आत्मा हूं। मुझे क्यों डांट रहे हों? मैं तो अपने उस रिपोर्टर दोस्त के चक्कर में आपके पास आ गया।

भगवान : जो भी हो तुम, तुरंत नीचे धरती पर जाओ और वहां की जनता से, पढ़े-लिखे मूर्खों से मेरी ओर से करबद्ध प्रार्थना करना और कहना कि भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं, तो खुद अपनी मदद करते हैं… अब जा यहां से, नहीं तो भूत बना दूंगा और टीवी पर ब्रेकिंग चल जाएगी।

#humor #satire #इब्नबतूता

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शनिवार, 28 मार्च 2020

Satire : क्या हर बार जनता मेरे ही भरोसे बैठी रहेगी या खुद भी कुछ करेगी? : भगवान

funny interview god on corona virus


By Jayjeet

रिपोर्टर घर पर बैठा है तो ऐसा नहीं है कि वह जांबाज़ नहीं है। जांबाज़ होने का मतलब केवल बाहर घूमना नहीं, बल्कि खुद को और दूसरों को भी सुरक्षित रखना है। पर काम तो करना है। बॉस ने कहा कि किसी का इंटरव्यू लेकर आओ, ऐसे का जिसका इंटरव्यू आज तक किसी ने नहीं लिया हो। बड़ी मुसीबत है। बॉस लोग कुछ भी आदेश जारी कर देते हैं। पर ठीक है। रिपोर्टर को चुनौती मंजूर है। इन दिनों देश-प्रदेश में जो हालात हैं, उनमें सबसे पहले भगवान ही याद आए। तो सोचा चलो उन्हीं का इंटरव्यू कर लेते हैं। पर भगवान से डायरेक्ट बात कैसे करें। तो रिपोर्टर ने यह काम ट्रांसफर कर दिया अपने मित्र इब्नबतूता की आत्मा को जो पिछले कुछ महीनों से धरती की यात्रा पर है। अब आत्मा-ए-इब्नबतूता अपने मित्र की बात कैसे टालें.. तो वह अपनी दैवीय शक्ति से सीधे पहुंच गई भगवान के पास…

आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, हाथ जोड़कर नमन करता हूं…

भगवान : आप कौन? और ऐसी स्थिति में अपना घर छोड़कर मेरे पास क्यों आए हो? सोशल डिस्टेंसिंग का ना पता क्या?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, मैं इंटरव्यू लेने आया हूं, रिपोर्टर के प्रतिनिधि के तौर पर..

भगवान : सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि, यहां तक कि सरपंच प्रतिनिध तक सुना था। आज रिपोर्टर प्रतिनिधि, … खैर क्या पूछने आए हों?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, यह क्या हो रहा है इस समय हिंदुस्तान में?

भगवान : जब तुम्हें पता है तो फिर मुझसे क्यों पूछ रहे हों?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : मेरे पूछने का तात्पर्य यह है कि जनता हाहाकार कर रही है तो आप कुछ करते क्यों नहीं हो? आप तो मदद के लिए हमेशा आते रहे हों, जब-जब भक्तों ने पुकारा…

भगवान : क्या हर बार जनता मेरे ही भरोसे बैठी रहेगी या कभी खुद भी कुछ करेगी?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : हम तो सब लोग अपनी-अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे…

भगवान : अच्छा… तो तुम्हारा मास्क कहां है?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, वह तो मिला नहीं। मेडिकल शॉप वाले बड़े महंगे बेच रहे हैं..

भगवान : तो रुमाल नहीं है क्या?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : हां, वह तो सबके पास रहता है, मेरे पास भी है..

भगवान : तुम इंसान लोगों को बहाने बनाने का कह दो। जब ज्यादा गड़बड़ होगी तो मेरे पास भाग के आओगे…मैं क्या कर लूंगा उसमें, हें?

आत्मा-ए-इब्नबतूता : जी, आप बिल्कुल सही फरमा रहे हैं। मैं आपका समर्थन करता हूं…

भगवान : अरे उल्लू के पट्‌ठे, करोना वायरस को लेकर सरकार, पुलिस, डॉक्टर्स जो कह रहे हैं, उसका समर्थन कर…

आत्मा-ए-इब्नबतूता : भगवान जी, मैं इंसान नहीं, आत्मा हूं। मुझे क्यों डांट रहे हों? मैं तो अपने उस रिपोर्टर दोस्त के चक्कर में आपके पास आ गया।

भगवान : जो भी हो तुम, तुरंत नीचे धरती पर जाओ और वहां की जनता से, पढ़े-लिखे मूर्खों से मेरी ओर से करबद्ध प्रार्थना करना और कहना कि भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं, तो खुद अपनी मदद करते हैं… अब जा यहां से, नहीं तो भूत बना दूंगा और टीवी पर ब्रेकिंग चल जाएगी।

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रविवार, 15 मार्च 2020

Humor : गिरने के मामले में नेताओं के बाद दूसरे नंबर पर आया SENSEX, ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ में आजमाएगा हाथ

सेंसेक्स sensex jokes

By Jayjeet

जैसे ही शेयर बाजार के गिरने की खबर आई, यह रिपोर्टर पहुंच गया सेंसेक्स के पास। रिपोर्टर को देखते ही सेंसेक्स बोला- आ गए गिरे हुए पर पानी डालने! तुम पत्रकार और कर भी क्या सकते हो..


रिपोर्टर : इसे जले हुए पे नमक छिड़कना कहते हैं भाई…

सेंसेक्स : वाह, आपको मुहावरे भी पता है..

रिपोर्टर (शरमाते हुए) : जी, वो तो यूं ही कभी-कभी… वैसे हम आपके जले पे नमक छिड़कने नहीं, बल्कि बधाई देने आए हैं।

सेंसेक्स : बधाई, किस बात की?

रिपाेर्टर : अब गिरने के मामले में आप भी नेताओं से होड़ लेने लगे हैं। मतलब, इस मामले में आप देश में दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं।

सेंसेक्स : अच्छा, तो मतलब हम भी क्या पॉलिटिक्स-वॉलिटिक्स में आ सकते हैं?

रिपोर्टर : अरे आपने तो मुंह की बात ही छीन ली। मगर उसके लिए एक शर्त होगी।

सेंसेक्स : वो क्या?

रिपोर्टर : आपको गिरने के मामले में कंसिस्टेंसी बनाए रखनी होगी। ऐसे नहीं कि आज गिरे और कल ऊपर चढ़ गए। परसो गिरे और फिर ऊपर चढ़ गए…समझें!!

सेंसेक्स : मतलब, स्साला पूरा नेता बनना होगा!

रिपोर्टर : सही समझे।

सेंसेक्स : तो फिर, ट्रेडिंग का क्या होगा? ट्रेडिंग-श्रेडिंग बंद करनी होगी क्या?

रिपोर्टर : हॉर्स ट्रेडिंग करवाइए, मजे से करवाइए। यह तो नेताओं का प्रिय शगल है..

सेंसेक्स : पर इसके लिए मैं घोड़े कहां से लाऊंगा?

रिपोर्टर : मेरे भोले सेंसेक्स… घोड़े नहीं, विधायकों को सेंसेक्स में शामिल करना होगा। और तब देखना कैसे जोरदार ट्रेडिंग होती है।

सेंसेक्स : रिपोर्टर महोदय, तब तो मैं ऊपर ही ऊपर जाऊंगा, गिरुंगा कैसे? और फिर आप जो मेरे लिए बधाई आए हैं ना, इसकी फोंगली बनाके

रिपोर्टर (बीच में ही बात काटते हुए) : माइंड योर लैंग्वेज मिस्टर सेंसेक्स… मैं आपको ज्ञान दे रहा हूं और आप मुझ पर ही चढ़ रहे हों..

सेंसेक्स : ओह, माफी चाहूंगा, पर जरा स्पष्ट करेंगे कि तब मैं गिरने का कृत्य कैसे कर पाऊंगा?

रिपोर्टर : कैरेक्टर से… कैरेक्टर से नीचे गिरता है नेता। नहीं तो बैंक बैलेंस, प्लॉ्टस, जमीन, गोल्ड सब मामलों में तो वह ऊपर ही जाता है। देखा नहीं क्या?

सेंसेक्स : समझ गया मैं। चलता हूं, नेताओं से मिलके आता हूं और तब देखिएगा न्यू सेंसेक्स का धमाल…

#SENSEX #हॉर्स ट्रेडिंग

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शनिवार, 7 मार्च 2020

Humor : हॉर्स ट्रेडिंग वाले घोड़े से कर्री बात, गधों और खच्चरों के बीच फंसी नेताओं की ट्रेडिंग..

horse trading satire jokes , हार्स ट्रेडिंग जोक्स व्यंग्य


By Jayjeet

मप्र से जैसे ही हॉर्स ट्रेडिंग की खबर आई, यह रिपोर्टर अपने खच्चर पर बैठ सीधे पहुंच गया अस्तबल… इंटरव्यू की आज्ञा-वाज्ञा टाइप की फार्मलिटीज पूरी हो, उससे पहले ही रिपोर्टर को देखकर हॉर्स ने कहा, आओ गुरु, मुझे मालूम था तुम मेरे पास ही आओगे…

रिपोर्टर : यह आपको कैसे मालूम था?

हॉर्स : राजनीति और पत्रकारिता को देखे अरसा हो गया है। अब तुम पत्रकारों से ज्यादा पत्रकारिता समझने लगा हूं…

रिपोर्टर : मतलब?

हॉर्स : मतलब यही कि जहां सुभीता हो, वहां की पत्रकारिता करो।

रिपोर्टर : थोड़ा डिटेल में बताएंगे महोदय कि आपके यह कहने का आशय क्या है? मुझे यह आरोप प्रतीत हो रहा है।

हॉर्स : भैया, हॉर्स ट्रेडिंग स्साले वे नेता करें और सवाल उनसे पूछने के बजाय हमसे पूछ रहे हों? ये सुभीता की पत्रकारिता नहीं तो और क्या है?

रिपोर्टर : महोदय, आपका गुस्सा जायज है, लेकिन कृपया इस खच्चर के सामने तो हमें जलील न करो…

हॉर्स : ओ हो, माफी चाहता हूं, मुझे लगा कि साथ में तुम्हारा साथी है। खैर, पूछो क्या पूछना है?

रिपोर्टर : विधायकों की खरीद पर बार-बार हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का यूज किया जाता है। क्या नेताओं के साथ तुलना आपको अपमानजनक नहीं लगती?

हॉर्स : कोई नया सवाल नहीं है? ये तो आप पहले भी पूछ चुके हो, पचास बार पूछ चुके हो। कुछ पढ़ा-लिखा करो जरा..

रिपोर्टर : अभी कृपा करके नए पाठकों के लिए बता दीजिए। मैं जाकर पढ़ लूंगा…

हॉर्स : चलिए,थोड़ी इज्जत रख लेता हूं। तो हमारे घोड़ों का जो एसोसिएशन है, उसने मई 2018 में कर्नाटक में विधायकों की खरीद-फरोख्त के दौरान बार-बार हॉर्स ट्रेडिंग शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उस याचिका में हॉर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया था कि हॉर्स ट्रेडिंग का नाम बदलकर ‘डंकी ट्रेडिंग’ किया जा सकता है।

रिपोर्टर : ये तो एकदम सटीक नाम है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

हॉर्स : सुप्रीम कोर्ट कुछ कहे, उससे पहले ही डंकियों के एसोसिएशन की इस पर आपत्ति आ गई। उनका कहना था कि वे पहले से ही बदनाम हैं। ऊपर से नेताओं की खरीद-फरोख्त के साथ उनका नाम जोड़ दिया गया तो वे मुंह दिखाने के लायक भी न रहेंगे।

रिपोर्टर : तो अब क्या स्थिति है महोदय?

हॉर्स : अभी तो मामला सब्ज्यूडाइस है। इसलिए ज्यादा बोलना अदालत की अवमानना हो जाएगा।

रिपोर्टर : अगर घोड़ों और गधों दोनों को आपत्ति है, तो क्यों न खच्चर ट्रेडिंग नाम रख लिया जाए। क्या विचार है?

घोड़ा विचार करें, उससे पहले ही यह रिपोर्टर जिस खच्चर पर बैठा था, वह बिदक गया…. और दचक के नौ-दो ग्यारह हो गया…

घोड़ा जोर-जोर हिनहिनाकर हंस रहा है… और यह रिपोर्टर ब्रेकिंग न्यूज देने जा रहा है कि गधों और खच्चरों के बीच फंसी नेताओं की ट्रेडिंग…

#Horse_trading #satire #humor #Jayjeet

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गुरुवार, 5 मार्च 2020

Funny Interview : गधों और खच्चरों के बीच फंसी नेताओं की ट्रेडिंग

horse trading humour satire. हार्स ट्रेडिंग पर व्यंग्य


By Jayjeet

मप्र से जैसे ही हॉर्स ट्रेडिंग की खबर आई, यह रिपोर्टर अपने खच्चर पर बैठ सीधे पहुंच गया अस्तबल… इंटरव्यू की आज्ञा-वाज्ञा टाइप की फार्मलिटीज पूरी हो, उससे पहले ही रिपोर्टर को देखकर हॉर्स ने कहा, आओ गुरु, मुझे मालूम था तुम मेरे पास ही आओगे…

रिपोर्टर : यह आपको कैसे मालूम था?

हॉर्स : राजनीति और पत्रकारिता को देखे अरसा हो गया है। अब तुम पत्रकारों से ज्यादा पत्रकारिता समझने लगा हूं…

रिपोर्टर : मतलब?

हॉर्स : मतलब यही कि जहां सुभीता हो, वहां की पत्रकारिता करो।

रिपोर्टर : थोड़ा डिटेल में बताएंगे महोदय कि आपके यह कहने का आशय क्या है? मुझे यह आरोप प्रतीत हो रहा है।

हॉर्स : भैया, हॉर्स ट्रेडिंग स्साले वे नेता करें और सवाल उनसे पूछने के बजाय हमसे पूछ रहे हों? ये सुभीता की पत्रकारिता नहीं तो और क्या है?

रिपोर्टर : महोदय, आपका गुस्सा जायज है, लेकिन कृपया इस खच्चर के सामने तो हमें जलील न करो…

हॉर्स : ओ हो, माफी चाहता हूं, मुझे लगा कि साथ में तुम्हारा साथी है। खैर, पूछो क्या पूछना है?

रिपोर्टर : विधायकों की खरीद पर बार-बार हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का यूज किया जाता है। क्या नेताओं के साथ तुलना आपको अपमानजनक नहीं लगती?

हॉर्स : कोई नया सवाल नहीं है? ये तो आप पहले भी पूछ चुके हो, पचास बार पूछ चुके हो। कुछ पढ़ा-लिखा करो जरा..

रिपोर्टर : अभी कृपा करके नए पाठकों के लिए बता दीजिए। मैं जाकर पढ़ लूंगा…

हॉर्स : चलिए,थोड़ी इज्जत रख लेता हूं। तो हमारे घोड़ों का जो एसोसिएशन है, उसने मई 2018 में कर्नाटक में विधायकों की खरीद-फरोख्त के दौरान बार-बार हॉर्स ट्रेडिंग शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उस याचिका में हॉर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया था कि हॉर्स ट्रेडिंग का नाम बदलकर ‘डंकी ट्रेडिंग’ किया जा सकता है।

रिपोर्टर : ये तो एकदम सटीक नाम है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

हॉर्स : सुप्रीम कोर्ट कुछ कहे, उससे पहले ही डंकियों के एसोसिएशन की इस पर आपत्ति आ गई। उनका कहना था कि वे पहले से ही बदनाम हैं। ऊपर से नेताओं की खरीद-फरोख्त के साथ उनका नाम जोड़ दिया गया तो वे मुंह दिखाने के लायक भी न रहेंगे।

रिपोर्टर : तो अब क्या स्थिति है महोदय?

हॉर्स : अभी तो मामला सब्ज्यूडाइस है। इसलिए ज्यादा बोलना अदालत की अवमानना हो जाएगा।

रिपोर्टर : अगर घोड़ों और गधों दोनों को आपत्ति है, तो क्यों न खच्चर ट्रेडिंग नाम रख लिया जाए। क्या विचार है?

घोड़ा विचार करें, उससे पहले ही यह रिपोर्टर जिस खच्चर पर बैठा था, वह बिदक गया…. और दचक के नौ-दो ग्यारह हो गया…

घोड़ा जोर-जोर हिनहिनाकर हंस रहा है… और यह रिपोर्टर ब्रेकिंग न्यूज देने जा रहा है कि गधों और खच्चरों के बीच फंसी नेताओं की ट्रेडिंग…

(खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए आप हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत की पहली वेबसाइट http://www.hindisatire.com पर क्लिक कर सकते हैं।)


सोमवार, 2 मार्च 2020

Funny : तुम इंसान ही हिंदू और मुसलमान हों, हम पत्थरों की कोई कौम नहीं होती…

stone satire

By Jayjeet

हिंदी सटायर, नई दिल्ली। दिल्ली में दंगाई बेकाबू हुए तो इस जांबाज रिपोर्टर ने भी हिम्मत दिखाई और पहुंच गया मैदान-ए-जंग में। और कोई नज़र न आया तो उस पत्थर को ही रोक लिया जो बस दंगाई के हाथ से छूटने ही वाला था…(देखिए फोटो में उसकी तस्वीर…)

पत्थर : अबे, मुझे रास्ते में रोक लिया। बड़ी हिम्मत दिखाई तुने। सिर फूट जाता तो…

रिपोर्टर : क्या करें, कभी-कभी पत्रकार को हिम्मती नजर आना पड़ता है।

पत्थर : वाह, क्या हाइपोथेटिकल बात कही है! बाय दे वे, रोका क्यों?

रिपोर्टर : आपसे कुछ बात करनी है। और कोई तो जवाब दे नहीं रहा..

पत्थर : इधर दिल्ली जल रही है, उधर तुझे इंटरव्यू की सूझ रही है? पूछो, क्या पूछना, पर जल्दी। मेरे कई साथी अपने टारगेट पर जा चुके हैं …

रिपोर्टर : आप किस कौम से है?

पत्थर : हम पत्थरों की कोई कौम नहीं होती। और ये वाहियात सवाल पूछने के लिए तुमने मुझे रोका?

रिपोर्टर : पर इंसानों की तो होती है, कोई हिंदू है तो कोई मुसलमान।

पत्थर : स्सालो, इसीलिए तो आपस में लड़ते-झगड़ते हों…और ख़बरदार जो इंसानों के साथ मेरी तुलना की..

रिपोर्टर : शांत शांत, आप मुझ गरीब पत्रकार पर तो न बरसो..

पत्थर : बात ही बरसने वाली कर रहे हो, स्साला इतना फ्रस्टेशन है.. बताओ कहां बरसें..

रिपोर्टर : बरसो उन नेताओं पर जो तुम्हें दंगाइयों के हाथों में थमा देते हैं…

पत्थर : भाई, ऐसा करना तो हमारे हाथ में नहीं है…

रिपोर्टर : तो फिर किनके हाथ में है?

पत्थर : वही जिनके हाथ में हम हैं…

रिपोर्टर : मतलब?

पत्थर : मतलब जो हाथ पत्थर फेंक रहे हैं, बस वे हाथ जरा घूम ही लें उन नेताओं की ओर, जिन्होंने थमाए हैं हम मासूम पत्थर.. इतिहास बदल जाएगा, पर कभी दंगे नहीं होंगे, लिख लेना…

रिपोर्टर : पर मेरे भाई, इन्हें इसके लिए समझाएगा कौन?

पत्थर : तुम पत्रकार, और कौन…क्या ये तुम्हारी रिस्पॉन्सिबिलिटी नहीं है?

रिपोर्टर : अच्छा, चलता हूं…

#satire #humor #Jayjeet

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रविवार, 1 मार्च 2020

First Interview : जब कोरोना वायरस ने पॉलिटिकल सवाल पूछने से मना कर दिया…

 

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By Jayjeet

कोरोना वायरस के भारत पहुंचते ही यह रिपोर्टर भी चौकस हो गया। उससे बचने के लिए नहीं, बल्कि उससे दो-दो हाथ करने के लिए। सीधे पहुंच गया सीधी बात करने।

रिपोर्टर : कोरोना जी, नमस्कार। क्या आप मेरी बात समझ पा रहे हैं?

कोरोना : आप तो किसी भी भाषा में बात कर लीजिए, हिंदी से लेकर भोजपुरी तक। सब समझ जाएंगे हम तो।

रिपोर्टर : कैसे भला?

कोरोना : हम चाइनीज वायरस हैं, एआई से लेस हैं।

रिपोर्टर : एआई मतलब?

कोरोना : अबे रिपोर्टर की औलाद, एआई ना जानता! मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।

रिपोर्टर : जनाब, आप अबे से परहेज करेंगे और थोड़ी-बहुत इज़्ज़त से पेश आएंगे क्या!

कोरोना : माफ करना, हम चाइनीज हैं। थोड़ी अकड़ तो रहेगी ना, डीएनए में ही है ये हमारे…अच्छा पूछिए क्या पूछना है। पर जरा जल्दी कीजिए, पूरे भारत का टूर करना है हमें।

रिपोर्टर : सबसे पहला सवाल तो यही है जनाब कि आप चमगादड़ से आए हो या पैंगोलिन से, जैसा कि आपकी सरकार ने दावा किया है।

(कोरोना ने चुप्पी साध ली..)

रिपोर्टर : क्या हुआ जनाब, कुछ तो बोलिए। चमगादड़ सूंघ गया क्या?

कोरोना (धीरे से) : भाई,पॉलिटिकल क्योश्चन नहीं। हमारी सरकार की हर जगह नजर रहती है। हम दो यहां पर हैं, पर हमारे चार भाई-बहन उनके कब्जे में हैं।

रिपोर्टर : ये क्या बात हुई भला, आपकी सरकार ना हुई, अजित हो गई…वही बॉलीवुडी अजित..जानते हो ना उसे?

कोरोना : सब जानता हूं, पर नो नॉलिटिकल क्योश्चन प्लीज…

रिपोर्टर : पॉलिटिकल सवाल ना पूछूं तो फिर क्या पूछूं? पत्रकार हूं आखिर…

कोरोना : वही एंटरटेन टाइप के क्योश्चन, जो तुम लोग अपने यहां की सरकारों से पूछते हों।

रिपोर्टर : बहुत टांट मार लिए। ये मत भूलिए,आप हमारी धरती पर हैं। अतिथि देवो भव: की भावना के कारण हम आपकी इज्जत कर रहे हैं, नहीं तो आप चाइनीज चीजों की वैसे हमारे यहां कोई इज्जत नहीं है।

कोरोना : क्या मतलब?

रिपोर्टर : मतलब, आपके बारे में सब कह रहे हैं कि चाइनीज है, कितना टिकेगा? महीना, दो महीना, तीन महीना..

कोरोना : पूरी दुनिया हमसे डर रही है और आप लोग हमें हलके में ले रहे हो?

रिपोर्टर : पर मेरा सवाल उलटा है। क्या आपको भारत आते डर नहीं लगा?

कोराना (धीरे से) : सच बताऊं, अंदर से तो डर ही रहा हूं, पता नहीं किस मोड़ पर बड़ा वायरस टकरा जाए। वो देखो, तुम्हारे पीछे ही बैनर पर एक बड़े वायरस के दर्शन हो गए..।

रिपोर्टर : अच्छा वो… वो तो हमारे माननीय हैं… सबके हृदय सम्राट। चुनाव में खड़े हुए हैं। 

कोरोना : इसीलिए… इसीलिए मैंने हमारी सरकार से कहा भी था कि हमको इंडिया ना भेजो जी…वहां तो हमसे भी बड़े-बड़े वायरस हैं… पर कोई हमारी सुने तो …अच्छा भगता हूं…!

(यह इंटरव्यू मूल रूप से hindisatire.com पर प्रकाशित हुआ है।)

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

खास बातचीत : कैसे ट्रम्प ने बापू के बंदर को भूखा रहने से बचा लिया…!

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By jayjeet

कल ट्रम्प साहब ने गांधी आश्रम में बापू के बंदरों से मुलाकात की थी। तो यह रिपोर्टर भी आज सुबह-सुबह बंदरों के पास पहुंच गया। लेकिन नजर एक ही आया और वह भी स्मार्टफोन पर व्यस्त था। रिपोर्टर को देखते ही उसने स्मार्टफोन बाजू में पटक दिया। मौका देखकर रिपोर्टर ने भी राम-शाम किए बगैर ही सवाल दाग दिया- स्मार्टफोन में क्या देख रहे हों बापू के बंदर जी?

बापू का बंदर : अखबारों के ई-पेपर्स देख रहा था। देख रहा था कि ट्रम्प की हमसे मुलाकात के बारे में क्या-क्या ऊटपटांग छपा अखबारों में?

रिपोर्टर : आपके बाकी दोनों साथी कहां हैं?

बापू का बंदर : कोई साथी-वाथी नहीं है। मैं अकेला ही हूं। समय-काल के हिसाब से पोश्चर बदलता रहता हूं। कभी मुंह बंद कर लेता हूं, कभी आंखें तो कभी कान।

रिपोर्टर : अच्छा तो आप गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले प्राणी हो?

बापू का बंदर : बेटा, ज्यादा मालूम ना हो तो मुंह बंद रखना चाहिए। आय-बाय-शाय कुछ बकना नहीं चाहिए। मुंह बंद रखने वाली पोजिशन का मैसेज तुम पत्रकारों के लिए ही है, समझें…

रिपोर्टर : मुझ पर नाराज क्यों हो रहे हों? बाकी पत्रकार लोग टीवी पर कुछ भी बके जाते हैं। उन्हें भी तो मैसेज दीजिए।

बापू का बंदर : उन्हें मैसेज देने का कोई मतलब नहीं रहा। इसलिए मैं ही अक्सर कान ढंकने वाले पोश्चर में रहने लगा हूं।

रिपोर्टर : अच्छा, ट्रम्प साहब आश्रम आए पर विजिटर बुक में बापू के बारे में कुछ भी ना लिखा। बुरा ना लगा?

बापू का बंदर :अच्छा ही हुआ, ना लिखा। नहीं तो आज बापू को ऊप्पर एक दिन के लिए पश्चात्ताप व्रत रखना पड़ता और यहां मुझे भी जबरदस्ती भूखे मरना पड़ता। करे कोई, भरे कोई…।

रिपोर्टर : ट्रम्प साहब ने कल चरखे जी से भी मुलाकात की थी। क्या बात हुई उन दोनों में?

बापू का बंदर : वैसे ट्रम्प साहब के आगमन पर चरखे जी का तो कल मौन व्रत था। इसलिए जो भी कहा, ट्रम्प ने ही कहा। ट्रम्प के मुंह से बस यही सुनने में आया कि चरखा चलाने से कहीं आसान तो लोगों को चलाना है।

रिपोर्टर : अब आखिरी सवाल…. अरे आपने तो कानों पर हाथ रख लिए…

बंदरजी ने गर्दन हिलाकर जाने का इशारा किया। बाहर जाकर देखा तो टीवी चैनलों पर आय-बाय-शाय शुरू हो चुकी थी…

(Disclaimer : इसका मकसद केवल हास्य-व्यंग्य करना है, किसी की मानहानि करना नहीं। )

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

अहमदाबाद की दीवार ने गुस्से में क्यों कहा? मैं क्या कांग्रेस नजर आती हूं?

अहमदाबाद की दीवार

By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क, अहमदाबाद। अहमदाबाद की दीवार से अब बात करने को कुछ बचा नहीं था। पर संपादक को पता नहीं, इस रिपोर्टर से क्यों उम्मीद थी कि बंदा कुछ तो नया लाएगा। तो भेज दिया उसी दीवार के पास जलील होने के लिए…

रिपोर्टर : दीवार जी दीवार जी, मैं रिपोर्टर फलानांचद, आपसे बात करनी है।
दीवार : अरे वाह, बड़ी जल्दी आ गए मुझसे बात करने!!

रिपोर्टर : आप मेरी तारीफ कर रही है या मेरे मजे ले रही है?
दीवार : अबे! पूरी दुनिया मुझसे बात करके चली गई। मुझ पर पता नहीं क्या-क्या लिखा जा चुका है। और तुम अब आ रहे हो?

रिपोर्टर : मैं क्या करता, दीवार जी। जरा बिजी था।
दीवार : ऐसी कौन-सी खबर थी जो मुझसे ज्यादा जरूरी थी?

रिपोर्टर : अब क्या बताएं। बाजू में वह पुराना खंडहर है ना, वहां भूत आ गया था। तो उसी भूत को कवर करने चला गया था।
दीवार : तो जाओ, भूत को ही कवर करो।

रिपोर्टर : आप भी तो भूत ही बनने वाली है। ट्रम्प साहब चले जाएंगे तो फिर आपको कौन पूछेगा भला? हे हे हे…
दीवार : तुम मुझसे बात करने आए हो तो सीधे से बात करो..इधर-उधर की क्यों फेंक रहे हो? और ये हंसने की क्या जरूरत है?

रिपोर्टर : जी, वही तो करने की कोशिश कर रहा हूं। अच्छा, पहला सवाल- इतनी फेमस होने पर आपको कैसा लग रहा है?
दीवार : अच्छा ही लग रहा है। मेहमाननवाजी में नवाचार शुरू हुआ है। हिंदुस्तान में यह पहला मौका है जब किसी मेहमान के आने पर दीवार बन रही है। नहीं तो रोड ही बनते आई है।

रिपोर्टर : कहा जा रहा है कि मोदीजी ने आपकी आड़ लेकर गरीबी छुपाने की कोशिश की है?
दीवार : देखिए, मैं कोई मोदी की अंधी भगत नहीं हूं। पर आप आंख खोलकर एक बात सोचिए। जो मोदी अपनी गरीबी नहीं छुपाते, बल्कि भर-भरके अपनी गरीबी का बखान करते हैं, वे भला दूसरों की गरीबी क्यों छुपाएंगे?

रिपोर्टर : तो फिर यह दीवार बनाई क्यों गई है? कोई तो कारण रहा होगा?
दीवार : चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए। चीन अगर 10 दिन में हॉस्पिटल बना सकता है तो हम भी 9 दिन में दीवार तो बना ही सकते हैं।

रिपोर्टर : जब ट्रम्प अहमदाबाद में आएंगे तो क्या वे आपसे भी मिलने आएंगे?
दीवार : देखो भाई, ये हाइपो थेटिकल टाइप के सवाल मुझे पसंद नहीं है। हां, मेरी डिजाइन उनकी डेस्क तक पहुंच चुकी है और जल्दी ही मैक्सिको की बॉर्डर पर वे इसी तरह की दीवार बनाने के निर्देश भी देने वाले हैं।

रिपोर्टर : सुना है, आपने ट्रम्प साहब की यात्रा के बाद खुद को हैरिटेज साइट में शामिल करवाने की लॉबिंग शुरू कर दी है?
दीवार : बस, तुम रिपोर्टर लोग सुनी-सुनाई बातों पर रिपोर्टिंग करते रहो। अरे, क्या मैं तुम्हें कांग्रेस नजर आ रही हो जो खुद को हैरिटेज में शामिल करवाने की बात करूं।

रिपोर्टर : अंतिम सवाल …
दीवार :तुम्हारा अंतिम सवाल हमेशा घटिया ही होता है। इसलिए अब कोई जवाब नहीं। धन्यवाद। मैं सोने जा रही हूं…