Funny Interview लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Funny Interview लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 6 मई 2021

Satire & Humor : कफ़न की जेब का अब क़फन के थैलों से होने लगा कॉम्पीटिशन!

 

kafan , corona satire, corona humour, jayjeet, कफन, कफन में जेब, व्यंग्य, कोरोना पर व्यंग्य, kafan me jeb,  कोरोना पर कटाक्ष

By Jayjeet

रिपोर्टर बहुत दिनों से दुविधा में था। उसे एक सवाल खूब काटे जा रहा था। तो वह सीधे पहुंच गया कफ़न के पास। उसे टटोला तो वहां मिल गई जेब। वह जेब ही है, यह कंफर्म होते ही शुरू हो गया सवाल-जवाब का सिलसिला ...

रिपोर्टर : आपको नमस्कार करने का मन तो नहीं है, पर फिर भी स्वीकार कीजिए।

कफ़न की जेब : आप कौन? क्या जेब लेने आए हों? बताइए, किस साइज की?

रिपोर्टर : नहीं जी, मैं तो रिपोर्टर हूं। बीते कुछ दिनों से आपके बारे में काफी कुछ सुनने को मिला। भरोसा नहीं हो रहा था। तो सोचा आप से ही कंफर्म कर लूं कि क्या आप वाकई में हो या यह केवल कुछ शातिर लोगों द्वारा फैलाई अफवाह है?

कफ़न की जेब : गजब के रिपोर्टर हो। इसमें कंफर्म करने जैसी क्या बात है। हम तो हमेशा से रही हैं? कल भी थीं, आज तो हैं ही और उम्मीद है कल भी रहेंगी। कफ़न में जेब नहीं होती, ऐसी दंतकथाएं सुनी होंगी आपने, तभी डाउट कर रहे हैं। (गजब में तारीफ का नहीं, टांट का भाव था...आगे जवाब मिलेगा)

रिपोर्टर : आज जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, ऐसे माहौल में भी आप?

कफ़न की जेब (बीच में ही बात काटते हुए) : अरे, यह तो आपदा में अवसर है। जेब होकर भी अगर हम पीछे रह गई तो आने वाली पीढ़ियों को क्या मुंह दिखाएंगे?

रिपोर्टर : मतलब, पांचों उंगलियां घी में, सर कड़ाही में? (रिपोर्टर का जवाब महाटांट से...)

कफ़न की जेब : पर बीते कुछ दिनों से कुछ दिक्कतें भी शुरू हो गई हैं।

रिपोर्टर : कैसी दिक्कतें?

कफ़न की जेब : बीते दिनों मैंने पूरे कफ़न को ही थैले के रूप में देखा है। थैले रूपी कफ़न की डिमांड बढ़ रही है। लोग कहने लगे हैं कि केवल छुटैया जेब से काम ना चलेगा। अब हम कफ़न की जेबों को कफ़न के थैलों से काम्पीटिशन करना होगा। हे भगवान, ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे, सोचा ना था।

रिपोर्टर : कौन हैं ये लोग, कहां से आते हैं ऐसे लोग?

कफ़न की जेब : भैया, पिक्चरें कम देखा करो। इस माहौल में ये डायलॉगबाजी शोभा नहीं देती। अभी तो कफ़न की जेब को मजबूत करने का वक्त है।

रिपोर्टर : आप जैसी घटिया मानसिकता वाला इंसान ना देखा? लोग मर रहे हैं और तुम्हें अपनी पड़ी है।

कफ़न की जेब (थोड़ा गुस्से में) : कफ़न में जेब सिलवाने की आपकी औकात नहीं है, तो आप मुझ पर तो फ्रस्टेट मत होइए। और ये मुझे इंसान कहके मेरी इज्जत की चार वाट मत लगाइए। मैं तो बस इंसान की बाय प्रोडक्ट हूं....

रिपोर्टर : माफी चाहूंगा। अच्छा ये बताइए, किस धर्म या जाति के लोगों के कफ़न में आप ज्यादा इंगेज होती हैं?

कफ़न की जेब : हम इंसानों की तरह धर्म-जाति में नहीं बंटे हैं। हम धर्मों, जाति, समुदायों से परे हैं। बल्कि हमारा अपना ही एक अलग कल्ट है।

रिपोर्टर : फिर भी नेता, सरकारी अफसर, बिल्डर, दलाल, डॉक्टर, माफिया, कालाबाजारी, टैक्सचोर व्यापारी, मिलावटखोर... इनमें से किनसे आपको ज्यादा इज्जत मिलती है?

कफन की जेब : भैया, आपने जिनके भी नाम गिनाए, उन तमाम समुदायों में ऐसे कई लोग हैं, जिनसे हमारे बड़े अच्छे संबंध हैं। कुछ मीडिया वाले भी शामिल हैं। हां, इन्हीं समुदायों में भी ऐसे कई लोग हैं जो हमारी जरा भी इज्जत ना करते। अच्छा भैया, बहुत सवाल हो गए। इस समय थोड़ी ज्यादा व्यस्तता है। फिर कभी बात करेंगे।

रिपोर्टर : अच्छा, एक अंतिम जिज्ञासा। भरी जेब के साथ आपका कस्टमर जब ऊपर जाता है तो वहां क्या होता है। आप तो देखती ही होगी?

कफ़न की जेब (धीरे से) : यह ऑफ द रिकॉर्ड बता रही हूं। छापना मत, नहीं तो मेरा धंधा खत्म हो जाएगा। सुनिए ध्यान से... भरी जेब के साथ कस्टमर बड़े ही ठस्के के साथ यह सोचकर ऊपर जाता है कि स्वर्ग में अपने लिए एक बेड जुगाड़ लेगा। पर स्वर्ग में जाने से पहले ही नरक का गेट आता है। सारी जेब वहीं खाली करवा ली जाती है और कस्टमर के साथ क्या होता है, अपन फिर जानने की कोशिश नहीं करती। अपन को क्या! अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। चलती हूं.... पर यह बात छापना मत, फ्रेंडली रिक्वेस्ट है भाई...

रविवार, 25 अप्रैल 2021

Humor & Satire : बंगाल चुनाव नतीजों से पहले ही एक रिजॉर्ट से एक्सक्लूसिव बातचीत

रिजार्ट पोलिटिक्स, नेताओं पर कटाक्ष, राजनीतिक व्यंग्य,  neta per jokes

By Jayjeet

कोविड सेंटर्स में फैली अफरा-तफरी, हॉस्पिटल्स से आ रही करुण कंद्रन के बीच थोड़ा फील गुड करने-करवाने के लिए रिपोर्टर निकल पड़ा एक रिजॉर्ट की ओर। नहीं जी, वहां तफरीह वगैरह के लिए नहीं, बस उससे बात करने के लिए.... पांच राज्यों में चुनाव नतीजे आने से पहले ही किसी रिजॉर्ट का पहला इंटरव्यू। एक्सक्लूसिव, हमेशा की तरह केवल इस रिपोर्टर के पास...

रिपोर्टर : मुंह पर बड़ी मुर्दानगी छाई हुई है जी..

resort : तो क्या मैं नाचूं? माहौल नहीं देख रहो?

रिपोर्टर : अरे महोदय, खुश हो जाइए, कम से कम आपके अच्छे दिन आने वाले हैं।

resort : क्यों? चुनाव खतम हो गए क्या?

रिपोर्टर : नहीं, बस समझो खत्म होने ही वाले हैं। जब चुनाव आयोग जाग जाता है, तब चुनाव खत्म होने का टाइम आ जाता है। अभी-अभी आयोग जागा है। इसीलिए तो मैं आपके पास भागा-भागा आया हूं।

resort : चलो भगवान का लाख-लाख शुक्र है। मैंने तो सारी उम्मीदें ही छोड़ दी थीं। मुझे याद है जब चुनाव शुरू हुए थे, तो उस समय मेरे आंगन के किनारे पर आम का वह छोटा-सा पौधा लगाया गया था - मैंगू। देखो, कितना बड़ा हो गया है। अब तो उसमें फल भी आने वाले हैं।

रिपोर्टर : बस, वही फल खाने के लिए तो आपको गुलजार करने आ रहे हैं हमारे माननीय।

resort : मुंह ना नोच लूं... आ तो जाए जरा निगोड़े। इस माहौल में भी लाज ना आ रही है इनको..

रिपोर्टर : काबा किस मुंह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुमको मगर नहीं आती। ऐसा ही हाल है इनका। आप इनका मुंह नोच लो कि नंगा कर दो, कुछ फर्क ना पड़ने वाला इन्हें। भाई, ये चुनाव लड़ते ही क्यों है? महीनों से मेहनत कर रहे हैं। अब फल भी ना खाएं भला...!!

resort :###$$&##**####  (गालिया)

रिपोर्टर (बीच में टोकते हुए) : माफी चाहूंगा। आप इतने सोफिस्टेकैटेड रिजॉर्ट हो। ये गालियां, आई मीन ओछी बातें आपकी जबान पर शोभा नहीं देती।

resort : भैया क्या करें। स्साले इन नेताओं की संगत में मेरा कैरेक्टर भी खराब हो गया है। मुंह में गालियां भर गई हैं। रात को बुरे-बुरे सपने आते हैं। वैसे नेताओं को गालियां देने में आपको क्यों तकलीफ हो रही है?

तभी फोन की घंटी....

resort : (फोन पर ही) : जी, जी, जी.... बिल्कुल, जैसा आप कहें नेताजी...। हो जाएगी, सारी व्यवस्थाएं...

रिपोर्टर : फोन आने लगे...?

resort : हां जी, चलता हूं। दवा-दारू, कबाब-शबाब की व्यवस्था करने...।

रिपोर्टर ....  सही है। रिजॉर्ट है तो क्या हुआ। आपमें और हम जनता में क्या फर्क है। पीठ पीछे गालियां, और सामने आते ही - जी जी जी...

रिजॉर्ट तब तक अपनी व्यवस्थाओं में जुट चुका था।

# resort  # resort politics

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

Satire : चुनाव नतीजों से पहले एक बेचैन EVM के साथ इंटरव्यू

evm-election-satire, political satire, हास्य व्यंग्य, ईवीएम पर जोक्स

हिंदी सटायर डेस्क। असम और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में यूज की गई ईवीएम इस समय बंद दरवाजों के पीछे आराम फरमा रही हैं। लेकिन उनमें एक अजीब-सी बेचैनी भी है। हिंदी सटायर ने ऐसी ही एक बेचैन और परेशान ईवीएम से बात करने की कोशिश की। नाम न छापने की शर्त पर वह इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गई। पेश है उस इंटरव्यू के कुछ खास अंश :

हिंदी सटायर : कुछ घंटे बचे हैं। कैसा फील हो रहा है? कुछ नर्वसनेस?

EVM : हां भैया, बहुत बेचैनी है, घबराहट फील हो रही है।

हिंदी सटायर : क्यों?

EVM : क्यों क्या? अगर किसी के चाल-चलन पर लगातार शक किया जाए तो क्या अच्छा लगेगा? अगर आपकी बहन-बेटी को कोई कुलक्षणी कहेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा?

हिंदी सटायर : पर आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि लोग आपके कैरेक्टर पर सवाल उठा रहे हैं?

EVM : अरे भाई, अब तो यह हर चुनाव की बात हो गई है। एक पार्टी के लोग हारते नहीं कि दूसरी पार्टी के लोगों पर आरोप लगा देते हैं कि उन्होंने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की। कभी आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग के लोग मिलकर हमारे साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। ये क्या है? ये एक तरह से हमारे कैरेक्टर पर ही उंगली उठाना हुआ। मतलब तो यही हुआ ना कि वे छेड़ रहे हैं और हम छिड़ रही है। इसकी आड़ में लोग हमें कुलक्षणी तक बोल रहे हैं!

हिंदी सटायर : तो आप मौका ही क्यों देती है छेड़छाड़ का?

EVM : यह पुरुष प्रधान समाज है। भले ही महिला की गलती हो या न हो, इज्जत तो उसी की उतारी जाती है। इसलिए मेरा कहना है कि कोई भी आरोप लगाने से पहले सच्चाई तो पुख्ता कर लो कि वाकई किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई भी या नहीं। अगर किसी ने किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की भी तो छेड़छाड़ करने वाले को पकड़ो। पूरी ईवीएम बिरादरी पर उंगली उठाना कहां का न्याय है?

हिंदी सटायर : नतीजों के बारे में क्या कहना है?

EVM : भाई, अब बाकी की बातें बाद में करेंगे। अब तुम जाओ, किसी ने देख लिया तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमें ही ताने दिए जाएंगे कि चालू ईवीएम किस गैर मर्द के साथ नजरें लड़ा रही थीं।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

Humor & Satire : जहां चुनाव, वहां राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है...

oxygen-interview-satire-and-humor, political satire, corona jokes, corona satire


By Jayjeet

ऑक्सीजन बहुत तेजी में थी, फिर भी रिपोर्टर ने उसे पकड़ ही लिया...

रिपोर्टर : इतनी तेजी में कहां भाग-दौड़ कर रही हों?

ऑक्सीजन : रिपोर्टर होकर कुछ ना पता?

रिपोर्टर : मालूम है। आपकी बड़ी डिमांड है। इसीलिए तो आपके पास आया हूं।

ऑक्सीजन : तो अपनी ब्रेकिंग के चक्कर में मेरा रास्ता ना रोको। कोशिश कर रही हूं कि मैं जितनी ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आ सकूं।

रिपोर्टर : इंसान वही जो इंसान के काम आ सके। अब तो कहना पड़ेगा, ऑक्सीजन वही जो इंसान के काम आ सके...

ऑक्सीजन : नेताओं के पास से आ रहे हो? घटिया जुमले छोड़ो, मैं जुमलेबाजी में नहीं, काम में विश्वास करती हूं।

रिपोर्टर : पर आप क्यों परेशान हो रही हो? लोगों को ऑक्सीजन देना तो सरकार का काम है।

ऑक्सीजन : और सरकार ना करे तो? तो लोगों को ऐसे ही मर जाने दूं? अपने आखिरी कतरे तक मैं लोगों को जिलाती रहूंगी।

रिपोर्टर : पर सरकार की भी कुछ मजबूरी रही होगी। कोई यूं ही बेवफ़ा नहीं होता...

ऑक्सीजन : दो-चार शेर पढ़कर भी कोई यूं ही बड़ा रिपोर्टर ना बन जाता। वैसे सरकार की तरफदारी आप क्यों कर रहे हो? कुछ आपकी भी मजबूरी रही होगी... अब जाऊं मैं..?

रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल। चुनाव वाली जगहों में आपकी जरूरत क्यों नहीं पड़ रही?

ऑक्सीजन : तो लो मेरी ओर से ब्रेकिंग न्यूज- क्योंकि वहां अभी तो सबको राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है। चुनाव बाद भगवान बचाएं...

और ऑक्जीन वहां से तुरंत कट ली...

# Oxygen 


शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

Satire & humor : रिश्वत लेते पकड़े गए रंगे हाथ ने बयान किया अपना दर्द

funny satire interview with red handed , red handed, caught red handed,satire, रंगे हाथ पकड़ में आना, भारत में भ्रष्टाचार पर व्यंग्य, satire

 

By Jayjeet

पिछले कुछ दिनों से कुछ नाकारा लोगों के रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ में आ जाने की खबरों से रिपोर्टर बड़ा हैरान और परेशान था। सवाल ही इतना बड़ा था। आखिर रिश्वत लेता कोई हाथ पकड़ में आ भी कैसे सकता है? रिपोर्टर ने ठान ही लिया कि आज तो उस रंगे हाथ की खबर लेकर ही मानेगा।

रिपोर्टर : आखिर पकड़ ही लिया मैंने रंगे हाथ पकड़ में आने वाले हाथ को...

रंगा हाथ (हाथ छुड़ाने की असफल कोशिश करते हुए) : मैं वो हाथ नहीं हूं जी। मैं तो होली में रंगा हाथ हूं...

रिपोर्टर : हम रिपोर्टर हैं तो क्या हुआ, इतने भी मूरख नहीं हैं कि हाथ-हाथ में फर्क ना समझ पाए। गब्बर लोग होली खेलकर कब के वापस चुनावों में बिजी हो गए हैं। हमें ना बनाओ अब..

रंगा हाथ : हां, अब आपसे क्या छिपाना। लेकिन आप हाथ धोकर हमारे पीछे क्यों पड़े हो जी?

रिपोर्टर : आपसे खास चर्चा करनी है, इसलिए। बल्कि आपकी खबर लेनी है।

रंगा हाथ : देखिए, मैं छोटा-सा मासूम हाथ। पहले से ही बहुत टेंशन में हूं। आप सवाल पूछेंगे तो और टेंशन में आ जाऊंगा।

रिपोर्टर : आप जैसे नाकारा हाथों को तो टेंशन में आना ही चाहिए। पकड़ में आकर आप न केवल पूरे सिस्टम को शर्मिंदा कर रहे हों, बल्कि रिश्वत लेने को मजबूर भोले-भाले प्राणियों में डर का माहौल भी बना रहे हो। देश में पहले से ही डर कम है क्या?

रंगा हाथ : लेकिन मैं तो केवल हाथ हूं, मुझे क्यों सुना रहे हों?

रिपोर्टर : रिश्वत लेने का तो शाश्वत नियम ही यह है कि इस हाथ लो तो उस हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। महाभारत काल से यह चला आ रहा है। लाक्षागृह बनाने वाले इंजीनियर के हाथों ने भी तो रिश्वत ली होगी। आज तक सबूत ना मिले। और आप बाकायदा सबूत समेत पकड़ में आ रहे हों। एक-आध बार हो तो चलो, बेनिफिट ऑफ डाउट दे दें। लेकिन बार-बार...

रंगा हाथ : भाई साहब, माना आप परमज्ञानी हों। महाभारत काल की झूठी-सच्ची कहानियों की भी बराबर खबर रखते हो। लेकिन आप हमारी मजबूरी नहीं समझ रहे हैं।

रिपोर्टर : अब ऐसी क्या मजबूरी कि पकड़ में ही आ जाओ?

रंगा हाथ : आप तो पहले से ही समझदार हों। फिर भी हम समझा देते हैं। अगर हम पकड़ में आ रहे हैं तो गलती दो लोगों की है- एक वे जो हमें पकड़ रहे हैं। तो सिस्टम को हमसे से भी ज्यादा लज्जित करने वाले ये लोग हैं, हम नहीं। दूसरा, हम हैं तो बस मोहरें ही ना। हमारी अपनी तो वकत है नहीं। जिम्मेदार तो वह खाली पेट है। पता नहीं स्साले उस पेट में ऐसे क्या-क्या एसिड भरे हैं कि अंदर माल जाते ही तुरंत पचा डालता है। और फिर हमें उंगली करने लगता है। अब हमारी भी तो कोई लिमिट है कि नहीं। ओवरलोड होने से प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़ेगा ही।

रिपोर्टर : मतलब, समस्या कहीं और है और परेशान आप हो रहे हों?

रंगा हाथ : बिल्कुल, आपको यह बात समझ में आ गई, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रही। मैं पहले भी कई बार बोल चुका हूं कि करप्शन के सिस्टम को हाईटेक कीजिए। जमाना कहां से कहां पहुंच गया और हमें आज भी टेबल के नीचे घुसने को कहते हैं...

रिपोर्टर : हम्म... आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट कहते हैं उसे। आपको उसका इस्तेमाल करना चाहिए।

रंगा हाथ : आर्टिफेशियल-वेशियल, जो भी हो, हम तो इतने पढ़े-लिखे हैं नहीं। होते तो पकड़ में आते भला। पर हम जिन इंटेलीजेंट लोगों के हाथ हैं, उनके दिमाग में क्या भूसा भरा है। वे सोचें। आखिर हम कब तक बेइज्जत होते रहेंगे और पूरे सिस्टम को बेइज्जत करते रहेंगे।

रिपोर्टर : हां, आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं।

रंगा हाथ : और हां, आपको भी हम गरीब ही मिलते हैं! हमें हरदम जोतने वाले, कोल्हू का बैल बनाने वाले पेट और दिमाग की तो खबर लेंगे नहीं.... है हिम्मत...???

रिपोर्टर (फोन पर एक्टिंग करने के बाद) : अच्छा, एक जरूरी काम याद आ गया। फिर मिलता हूं आपसे... विस्तार से बात करेंगे...।

# caught red handed # satire # vyangya

रविवार, 28 मार्च 2021

Humor & Satire : बाहुबली गब्बर का रामगढ़ कनेक्शन, टिकट पर दावा हुआ मजबूत

 

Gabbar , Gabbar satire, gabbar memes, Gabbar jokes, Gabbar ki aatma se interview, gabbar holi kab he, political satire, गब्बर , गब्बर पर जोक्स, गब्बर होली जोक्स, गब्बर होली कब है जोक्स, होली पर जोक्स,  holi jokes

By A. Jayjeet

आज रिपोर्टर बड़ी जल्दी में था। सोशल मीडिया पर 'बायकॉट चाइनीज पिचकारी' टाइप कैम्पेन शुरू होने से पहले ही वह मेड इन चाइना की कोई सुंदर-सुशील पिचकारी खरीद लेना चाहता था। लेकिन जल्दबाजी में उसका स्कूटर फिसला और पलक झपकते ही उसके शरीर से आत्मा निकलकर पास स्थित एक बरगद पर उल्टी टंग गई।

रिपोर्टर की आत्मा कुछ देर यूं ही लटकी रही। झूला झूलने का नया एक्सपीरियंस उसे थ्रील दे रहा था। अचानक उसे एक आवाज सुनाई दी - चुनाव कब है, कब है चुनाव?

रिपोर्टर की आत्मा बुदबुदाई, अरे, ये आवाज तो कुछ जानी-पहचानी लग रही है। सालों पहले शोले देखी थी। उसमें भी तो ऐसी ही आवाज थी।

रिपोर्टर का अनुमान सही था। वह गब्बर सिंह की आत्मा थी।

गब्बर सिंह नमस्कार, पेड़ पर सीधे होते हुए रिपोर्टर की आत्मा बोली।

लगता है आज किसी समझदार इंसान की आत्मा से बात हो रही है... कौन हो तुम? गब्बर की आत्मा मुस्कुराई।

आप सही कह रहे हैं। मैं रिपोर्टर हूं...।

अरे वाह रिपोर्टर महोदय, आपको तो जरूर पता होगा कि चुनाव कब है? मैं कब से पूछा जा रहा हूं इन हरामजादों की आत्माओं से, कोई बता ही नहीं रहा..

पर आपको चुनावों से क्या लेना-देना? आपको तो हमेशा होली से ही मतलब होता है।

अब क्या है, मैं होली खेल-खेलकर बोर हो गया हूं। अब जी चाह रहा है कि चुनाव चुनाव खेलूं...। सुना है ठाकुर की जमीन पर भी चुनाव हो रहे हैं... उनसे तो पुराना हिसाब चुकता करना है...

गब्बर, आपको ये अधकचरी जानकारी क्या आपका वही साम्भा देता है? उसको बोलो, कुछ काम-धाम करें। दिनभर बैठे-बैठे अपनी सड़ी हुई दुनाली ही साफ करता रहता है…

हम्म… कुछ करता हूं इस स्साले का... तो क्या ठाकुर की जमीन पर चुनाव नहीं हो रहे?

ठाकुर की जमीन पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन यह आपके वे वाले ठाकुर मतलब ठाकुर बलदेव सिंह नहीं है। ये ठाकुर साहब तो ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर जी हैं। इनके बंगाल में चुनाव है। राष्ट्रगान तो आपको मालूम नहीं होगा। तो उनके बारे में और ज्यादा क्या बताऊं...

रिपोर्टर भाई, आपकी तो सेटिंग-वेटिंग होगी। तो चुनाव का एक टिकट दिलवाइए ना? गब्बर की आत्मा ने पान मसाले का पाउच मुंह में उड़ेलते हुए कहा। शायद अब खैनी मसलनी छोड़ दी है...

टिकट ऐसे नहीं मिलता है। माल-पानी है क्या?

माल-पानी की क्या कमी। कालिया की आत्मा इसी काम में लगी रहती है। अनाज का धंधा उसका खूब फल-फूल रहा है।

क्या...? वह अब भी अनाज की बोरियां लूटने के टुच्चे काम में ही लगा है‌? लेकिन अनाज की बोरियों की छोटी-मोटी लूट से क्या होगा?

हां, वो लूट तो अनाज की बोरियां ही रहा है, पर अब वैसे नहीं लूटता है। उसने आढ़तियों का कॉकस बना रखा है। अनाज के गोडाउनों की पूरी की पूरी चेन है उसकी। तो माल-पानी की कोई कमी नहीं है। बस, टिकट मिल जाए।

लेकिन गब्बर जी (गब्बर के आगे ‘जी’ अपने आप लग गया...), अच्छा-भला पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी चाहिए, टिकट पाने के लिए...

यह सुनते ही गब्बर सिंह की आत्मा ने वैसा ही जोरदार अट्‌टहास किया, जैसा उसने अपने तीन साथियों को 'छह गोली और आदमी तीन, बहुत नाइंसाफी है ये' जैसा कालजयी डायलॉग बोलकर उड़ाने के बाद किया था। फिर बोली - अरे ओ साम्भा, कितना इनाम रखे थे सरकार हम पर?

पूरे पचास हजार.... पास के ही एक दूसरे पेड़ पर बैठी साम्भा की आत्मा बड़े ही गर्व से बोली।

सुना... पूरे पचास हजार....और ये इनाम इसलिए था कि यहां से पचास पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रात को रोता है तो...

रिपोर्टर बीच में ही टोकते हुए – अब ये फालतू का डायलॉग छोड़िए। पचास हजार में तो आजकल पार्टी की मेंबरशिप भी नहीं मिलती। और ये बच्चा रोता है डायलॉग को भी जरा अपडेट कर लो। अब बच्चा रोता कम है, मां-बाप को रुलाता ज्यादा है। और बाय द वे, अगर रोता भी है तो मां उसे मोबाइल पकड़ा देती है... बच्चा चुप।

तो रिपोर्टर महोदय, आप होशियार हो, कुछ आप ही रास्ता सुझाओ...

आपको अपना थोड़ा मेकओवर करना होगा। अपनी डाकू वाली इमेज को बदल दीजिए।

अरे, यह तो मेरी पहचान है। इसको कैसे बदल सकता हूं? गब्बर की आत्मा चीखी।

पूरी बात तो सुनिए। डाकूगीरी छोड़ने का नहीं बोल रहा, वह तो पॉलिटिक्स का कोर है। केवल इमेज बदलनी है। ये मैली-कुचेली ड्रेस की जगह कलफदार सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा या कुर्ता-धोती टाइप ड्रेस पहननी है। अपनी पिस्तौल को कुर्ते के अंदर बंडी में डालकर रखना है, हाथ में नहीं पकड़ना है। हाथ में रखिए बढ़िया वाला आई-फोन। ऐसा ही मेकओवर अपने साथियों का भी कीजिए।

पर रिपोर्टर महोदय, कुर्ता-धोती पहनकर मैं घोड़ा कैसे दौड़ाऊंगा? गब्बर का सहज सवाल।

घोड़ों को भेजिए तेल लेने। अब आप चलेंगे एसयूवी में। नेता बड़ी एसयूवी में ही चलता है। आपके खेमे में 10-20 एसयूवी होनी ही चाहिए। कालिया-साम्भा टाइप के साथी भी इन्हीं एसयूवी में घूमेंगे। और हां, टोल नाकों पर टैक्स नहीं देना है, आपके साथी इस बात का खास ध्यान रखें। जो नेता टोल नाके पर डर गया, समझो घर गया। कालिया से भी कहिए कि अनाज के साथ थोड़ा-बहुत ड्रग्स का धंधा भी करें। जब आपको नेता बनना ही है तो खम ठोंककर पूरा ही बनिए ना...

तो इससे टिकट मिल जाएगा? गब्बर के दिमाग में राजनीति का कीड़ा अब तेजी से कुलबुलाने लगा था।

अपने बायोडाटा में इस बात का उल्लेख करना मत भूलना कि आप 'रामगढ़' से बिलॉन्ग करते हैं। यह आपकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। इससे आपको ये नहीं तो वो, कोई न कोई पार्टी तो टिकट दे ही देगी। रिपोर्टर ने अपना एडिशनल ज्ञान बघारा।

लेकिन अब भी मुझे ज्यादा समझ में नहीं आ रहा। इतना दंद-फंद क्यों करना भाई?

आप ज्यादा दिमाग मत खपाइए। दिमाग खपाने वाले लोग सच्ची राजनीति नहीं करते। मैंने जैसा कहा, वैसा कीजिए। अब आप मुझे गोली मारकर फिर से नीचे पहुंचाइए। बच्चे, पिचकारी का इंतजार कर रहे होंगे। कल होली है ना...!

और रिपोर्टर ने अपना सिर भावी नेता के आगे झुका लिया, गोली खाने को...।

देखें यह मजेदार वीडियो ... गब्बर सिंह के मैनेजमेंट फंडे...

# gabbar # gabbar holi jokes

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

Humor & Satire : कोरोना को अब राजनीति से डर नहीं लगता, मास्क लगाने की वजह का किया खुलासा

political satire  corona , corona interview, lockdown anniversary jokes, political satire, राजनीतिक कटाक्ष, कोरोना व्यंग्य, कोरोना जोक्स,

 


इस व्यंग्य को वीडियो में सुनने के लिए यहां क्लिक करें...

(साल भर में कितने बदल गए कोरोना के अनुभव, दूसरी बार दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कोरोना ने साझा की कई मजेदार बातें... )

By Jayjeet

आज से साल भर पहले जब कोरोना भारत आया तो उस समय यही रिपोर्टर था, जिसने मीडिया जगत में पहली बार किसी वायरस का इंटरव्यू लिया था (पढ़ें वह इंटरव्यू यहां)। लॉकडाउन की पहली बरसी पर रिपोर्टर ने फिर से उसी कोरोना को ढूंढ निकाला। साल भर में वजन थोड़ा बढ़ गया है। डायबिटीज बॉर्डर लाइन पर है। दांत पीले से हैं। शायद पान-मसाला खाना भी शुरू कर दिया है। पहले इंटरव्यू में उसने राजनीति पर बात करने से साफ इंकार कर दिया था, लेकिन इस बार भारतीय राजनीति पर खुलकर बातें की। दोबारा लिए गए इंटरव्यू में कोरोना ने ढेर सारे अनुभव साझा किए।

रिपोर्टर : क्या बात है कोरोना जी, बड़े हेल्दी-शेल्दी हो गए हैं। लगता है पानी जम गया यहां का...

कोरोना : हम्म... खान-पान तो चेंज हुआ ही है। वहां बीजिंग में बेस्वाद नूडल्स और सफेद चावल खाते-खाते तंग आ गया था। यहां की फितरत में ही है तरी माल खाना। अब बीते दिनों राजनीतिक कार्यक्रमों और शादियों में भी काफी ज्यादा जाना हुआ। तो इस वजह से वजन बढ़ गया। फिर चाइना में ढेर-सारे नियम कायदों का टेंशन रहता था। यहां नियम-कायदों का ढेला भी टेंशन नहीं। जहां थूकना हो थूको, जो मर्जी हो वह करो। तो इससे भी फर्क पड़ा। अब वजन को लेकर मैं दो-चार दिन में बाबाजी से मिलता हूं...

रिपोर्टर : बाबाजी, मतलब बाबा रामदेव?

कोरोना :
 हां, वही वाले। सोच रहा हूं कि वजन घटाने वाले कुछ आसन उन्हीं से सीख लूं।

रिपोर्टर : मेरी सलाह है, उनसे बच के रहिए। कोई उन्होंने कोई दवाई बनाई है। दावा है कि उससे आप जैसे सैकड़ों निपट जाएंगे।

कोरोना : आप कोरोनिल की बात कर रहे हो? घंटा डरे उससे... सॉरी मुंह से निकल गया ऐसा अप्रिय शब्द।

रिपोर्टर : मतलब, यहां की भाषा में भी प्रवीण हो रहे हैं आप.. बहुत बढ़िया। अच्छा बीते दिनों आपकी नेताओं से भी खूब मुलाकातें हुईं। उनसे मुलाकात का अनुभव कैसा रहा?

कोरोना : हां, कई नेताओं से मुलाकात हुई। मोटा भाई, नड्डा जी, शिवराज जी। कई कांग्रेसी नेता भी थे।

रिपोर्टर : उनसे कोई रोचक बात हुई हो तो साझा कीजिए।

कोरोना : हां, शिवराज जी मुझसे मजाक में कहा था कि भाई कोरोना, हम नेताओं के गले मत पड़ो। हमारा तो कुछ ना होने वाला। मुझे आपकी चिंता हो रही है। वाह, बड़ा ही मजेदार आदमी हैं आपका मामू, आई मीन मामाजी...

रिपोर्टर : कांग्रेसी नेताओं से भी आपकी चर्चा हुई होगी।

कोरोना : हां, पर सब स्साले हूं हूं करते रहे। ज्यादा पूछो तो कहते राहुल भैया का वो डॉगी, क्या नाम है उसका पीडी, उससे पूछके बताएंगे। अब ये क्या बात हुई भला! इसीलिए कांग्रेस की ऐसी औकात हो रही है।

रिपोर्टर : किसी सेलेब्रिटी के साथ कोई खट्टा-मीठा अनुभव रहा?

कोरोना : मत पूछो भैया। लॉकडाउन की बात है। रोड पे मजदूरों के रेले देख-देखके थोड़ा डिप्रेस हो रहा था। तो सोचा कि चलो किसी खूबसूरत एक्ट्रेस से मिल आते हैं। जस्ट फॉर चेंज, फील गुड के लिए। तो मैं एक एक्ट्रेस के बंगले पर गया। वह बालकनी में खड़ी थी। मैं दीदार के लिए बॉलकनी की रैलिंग पर उसके और भी नजदीक पहुंच गया। उसने चेहरे पर मास्क लगा रखा था और वो मोबाइल पर बात कर रही थी। मैं थोड़ा और पास खिसका। और भी पास.. बिल्कुल नजदीक पहुंचने ही वाला था कि तभी हवा के झोंके से उसका मास्क निकल गया। अरे बाप रे...उसका चेहरा देखकर तो मेरा दिल धक्क बैठ गया। आप विश्वास ना करेंगे, पर मुझे गहरा सदमा लगा था। यहां तक सोचने लगा था कि चीन निकल जाऊं और वॉल ऑफ चाइना से लटक के जान दे दूं। फिर थोड़ा नार्मल हुआ तो ध्यान आया कि मेरे कारण तो लॉकडाउन चल रहा है। तो मेकअप-शेकअप वाले कहां से आएंगे। बेचारी उस एक्ट्रेस का क्या कसूर? बस इतना ही...

रिपोर्टर : पिछले साल मैंने ही आपका पहली बार इंटरव्यू लिया था। उसके बाद अरनब गोस्वामी ने आपसे बात करने की कोशिश की थी। आपके साथ हॉट टॉक भी हुई थी। तफ्सील से बताइए ना कि क्या हुआ था?
कोरोना : अरनब ने फोन करके अपनी वाली स्टाइल से पूछा - नेशन वांट्स टु नो कि तू इस समय भारत में क्या कर रहा है? और तू यहां से कब जाएगा? अब तू-तकारा भले ही उसके स्टूडियो में आने वाले लोग सहन कर लेते होंगे, अपन को पसंद नहीं। तो अपन ने भी उधर से बोल दिया - मैं तेरे बाप का नौकर नहीं जो तुझे जवाब दूं। बस इतना सुनते ही अरनब इतने जोर से चीखे कि बाजू वाले स्टूडियो की एक छत ढह गई।

रिपोर्टर : आम भारतीयों को लेकर आपका क्या विचार है?

कोरोना : बहुत ही गजब लोग हैं। मैं यहां आतंक फैला रहा था और भारतीय लोग मुझ पर मीम्स, जोक्स बना रहे थे। मतलब, नॉन सीरियसनेस की हद है यह तो।

रिपोर्टर : अगला सवाल यह है कि...

कोरोना बीच में ही टोकते हुए ... : सर, अब मुझे ड्यूटी पर भी जाना है...
रिपोर्टर : हां, मैं समझता हूं, लोगों को संक्रमित करने जाना होगा...

कोरोना : संक्रमित करने नहीं भाई, सब्जी लेने जाना है... अब आपको क्या बताऊं। पिछली देवउठनी पर मैंने एक सुंदर-सुशील कोरोनी से शादी कर ली। तो पहली ड्यूटी तो यही है रोज सुबह उठकर सब्जी लेने जाना, बीवी को शॉपिंग-वॉपिंग करवाना। इसी में थक जाता हूं...

रिपोर्टर : चलिए, अंतिम सवाल। एक जिज्ञासा है। मुझसे बातचीत करते समय आपने भी मास्क पहन रखा है। दो गज की दूरी भी मैंटेन कर रहे हैं। ऐसा क्यों?

कोरोना : छह महीने पहले मैं भी इंसानी वायरस से संक्रमित हो चुका हूं। मुंह में गाली-गलौज, दिल में बेईमानी, एक-दूसरे के प्रति नफरत के भाव, बहुत सारी इंसानी चीजें आ गई हैं। तो मेरे डॉक्टर ने सचेत किया है कि अगर दोबारा मैं संक्रमित हुआ तो फिर इंडियन पॉलिटिक्स करने के अलावा मैं किसी काम का ना रहूंगा। इसीलिए बचकर रहता हूं... चलता हूं। चाइना लौटने से पहले अगर इंसानी संक्रमण के दोबारा अटैक से बच सका तो फिर मिलूंगा...।


कोरोना से संबंधित यह भी पढ़ें, देखें...

जब शिवराज सिंह ने कोरोना से कहा – हम नेता तो बच जाएंगे, मुझे आपकी चिंता है

पतंजलि ने कोरोना की दवा बनाने का दावा क्या किया, अनुमति मांगने आ गया वायरस

Interview : जब कोरोना वायरस ने पॉलिटिकल सवाल पूछने से मना कर दिया…

Funny Video : कोरोना क्यों हुआ पस्त?

रविवार, 21 मार्च 2021

Political Satire : जान बचाकर भागा रिपोर्टर, जब घोषणा पत्र ने सुना दी कविता ...

satire-on-political-manifesto/ घोषणा पत्र , घोषणा पत्र व्यंग्य, TMC manifesto, bjp manifesto, भाजपा का घोषणा पत्र, घोषणा पत्र जोक्स, नेताओं पर जोक्स

By Jayjeet

दो दिन पहले ममता दीदी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया था। आज बीजेपी ने भी जैसे ही घोषणा-पत्र जारी किया, रिपोर्टर क्विक इंटरव्यू के चक्कर में तुरत-फुरत घोषणा-पत्र के पास पहुंच गया...

रिपोर्टर : बधाई हो, राजनीतिक दलों ने फिर से आप पर भरोसा जताया है...

घोषणा पत्र : हां जी, संतोष की बात है ये। नेता लोग अब तक मुझे भूले नहीं हैं। कभी वचन पत्र तो कभी संकल्प पत्र, अलग-अलग नामों से जारी कर ही देते हैं।

रिपोर्टर : लेकिन हर बार आप जनता के लिए तो छलावा ही साबित होते हैं?

घोषणा पत्र : जनता का मुझसे क्या लेना-देना?

रिपोर्टर : आपको जारी तो आम जनता के लिए ही किया जाता है ना?

घोषणा पत्र : अच्छा...? तो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए।

रिपोर्टर : वैसे तो सवाल मैं लिखकर लाया हूं। पूछने का नैतिक अधिकार भी मेरा ही है। फिर भी एक ठौ पूछ लीजिए।

घोषणा पत्र : इस साल न्यू ईयर पर आपने कोई रिजोल्यूशन जैसा कुछ लिया था?

रिपोर्टर : हां, लिया तो था। बड़ा अच्छा-सा था कोई, पर अब याद नहीं आ रहा।

घोषणा : देख लो, ये है आम जनता की स्थिति। अपने रिजोल्यूशन, संकल्प तो याद रहते नहीं। और बात मेरे संकल्पों की करती है।

रिपोर्टर : फिर भी अपनी कसम खाकर कहिए कि अब आप केवल मखौल बनकर नहीं रह गए हैं।

घोषणा-पत्र : हां, कसम खाकर कहता हूं कि मैं मखौल बनकर नहीं रह गया हूं। मेरे अक्षर-अक्षर में ईमानदारी है, सच्चाई है, नैतिकता है, वगैरह-वगैरह...

रिपोर्टर (थोड़ी ऊंची आवाज में) : लो जी, कसम खाकर भी सरासर, खुल्लमखुल्ला झूठ बोल रहे हों? शरम नहीं आती आपको?

घोषणा-पत्र (मुस्कराते हुए) : सही कह रहे हों मित्र। शरम ही तो नहीं आती हमें। क्यों आएगी शरम बेचारी? नेताओं के साथ रहते-रहते हमने उम्र गुजार दी है सारी। हमारे बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही है नेताओं के साथ यारी। अब चल यहां से रिपोर्टर महोदय, बहुत हो गई तुम्हारी होशियारी। आज विश्व कविता दिवस भी है, ज्यादा पेल दूंगा तो पूरी रात दूर ना होगी मेरी कविता की खुमारी...।

रिपोर्टर : बस कर मेरे बाप... गलती हो गई आज। रिजोल्यूशन तो याद ना आया, पर आ बैल मुझे मार कहावत जरूर याद आ गई है। जा रहा हूं ...

Video : देखें गब्बर सिंह के मैनेजमेंट फंडे, कभी ना देखे होंगे, गब्बर की कसम...

शनिवार, 13 मार्च 2021

#ओलागीरी : चाल-चलन में भी पक्का नेता ही निकला ओला बाबू

Hail , Hailstorm, political satire, ओला, ओलावृष्टि, funny interview, राजनीतिक कटाक्ष, नेताओं पर व्यंग्य, neta per satire
By Jayjeet

मप्र, राजस्थान सहित कई प्रदेशों में कई जगहों पर ओले गिरे तो रिपोर्टर को तुरंत पहुंचना पड़ा एक ओले के पास...

रिपोर्टर : आप मुझे पहचान तो गए होंगे?

ओला : हां जी, ओले गिरने के बाद सबसे पहले किसान और फिर रिपोर्टर्स ही पहुंचते हैं। फिर बहुत बाद में पहुंचते हैं सरकारी अफसर…

रिपोर्टर :
 कुछ लोग आपकी नीयत पर सवाल उठा रहे हैं।

ओला : मैं सीधा-साधा ओला हूं। तिरछे सवाल क्यों पूछ रहे हों?

रिपोर्टर : कुछ लोगों का कहना है कि आप सरकारी अफसरों के साथ मिले हुए हों, ताकि फसलें खराब हों तो मुआवजे में उनका भी वारा-न्यारा हो सके।

ओला (रिपोर्टर की अज्ञानता पर हंसते हुए): अब तो मुआवजा सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में जाता है। तो अफसरों का इसमें कुछ खास बचा नहीं है। मैं तो इसलिए गिरता हूं क्योंकि गिरना मेरी नियति है।

रिपोर्टर : अच्छा, तो आप स्वीकार कर रहे हैं कि आप गिरे हुए हों?

ओला : हां, पर गिरने का मेरी नीयत से क्या लेना-देना?

रिपोर्टर : गिरना आपकी सिफ़त है और गिरकर नुकसान पहुंचाना आपका शौक। यह सब बताता है कि कहीं न कहीं नेतागीरी से आपके पुराने संबंध हैं।

ओला : अच्छा, वैसे तो मेरा रंग भी सफेद है, नेताओं के सफेद झक्क कुरते की तरह। तो लगा दो मेरे नेता होने की अटकलें। अटकलबाजी के अलावा आप लोग कर भी क्या सकते हों?

रिपोर्टर : इसीलिए तो कह रहा था, अब तो मान लो कि आपमें और नेताओं में कोई अंतर नहीं है।

ओला : खुद को इंटेलेक्चुअल रिपोर्टर साबित करने के चक्कर में आप मुझे नेता साबित करके मेरा लगातार अपमान कर रहे हैं...

रिपोर्टर : परिस्थितिजन्य साक्ष्य यही इशारा कर रहे हैं। इसमें अपमान की क्या बात है!

ओला : धूप तेज हो रही है। लगता है मेरे जाने का टाइम आ गया है। तुम जैसे रिपोर्टर से बात करने से अच्छा है गायब हो जाना…

(और देखते ही देखते धूप में ओला पिघलकर गायब हो गया…)

रिपोर्टर : गिरकर तबाही के निशान फैलाना, फिर लोगों को खून के आंसू पिलाना…और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़कर नौ दो ग्यारह हो जाना… रंग-ढंग ही नहीं, चाल-चलन से भी तुम पक्के नेता ही निकले, ओला बाबू …

(और अपनी इमोशनल स्टोरी लिए रिपोर्टर निकल पड़ा संपादक के कैबिन की ओर ...)

# ola # olavrashti # hailstorm

शनिवार, 6 मार्च 2021

Humor & Satire : 135 साल की बेबस कांग्रेस अम्मा से खास बातचीत, कहा- अब मुक्त होने का टाइम आ गया!

 

congress , satire on congress, political satire, funny interview, कांग्रेस पर व्यंग्य, कांग्रेस पर जोक्स, jokes on congress, राजनीतिक व्यंग्य

By Jayjeet

आज रिपोर्टर का मन काम में नहीं लग रहा था। मन कुछ-कुछ कांग्रेसी हो रहा था। तो वह यूं ही 24 अकबर रोड पर टहलने चला गया। वहां के एक सुनसान इलाके में स्थित एक खंडहर इमारत, जिसे लोग आज भी कांग्रेस मुख्यालय के नाम से जानते हैं, के सामने से गुजरते हुए अचानक उसकी नजर एक पत्थर पर बैठी हुई एक बुढ़िया पर गई। टूटी हुई लाठी, झीने-से कपड़े, झुर्रियों में खोया-खोया चेहरा। हालांकि झुर्रियों के पीछे छिपे चेहरे पर हल्की-सी चमक यह भी बता रही थी कि इस बुढ़िया के कभी बड़े ठाठ रहे होंगे। खूब इज्जत, मान-सम्मान मिला होगा। पर अब चेहरे पर उपेक्षा का दंश है... रिपोर्टर पहले तो यह सोचकर डर गया कि चमगादड़ों से पटी इस इमारत में कहीं बुढ़िया के रूप में कोई भूत-वूत तो नहीं है। पर पैरे देखे तो सीधे थे। रिपोर्टर ने सुन रखा था कि भूत के पैर उलटे होते हैं। राहत की सांस ली। हिम्मत करके वह उस बूढ़ी अम्मा के पास पहुंच गया...

रिपोर्टर : आप इतने सुनसान से खंडहर में क्या कर ही हैं, अम्मा?

बुढ़िया ने नजरें ऊंची की, एनक पोंछी : कौन है, जो मुझसे इतने सालों के बाद बात कर रहा है?

रिपोर्टर : जी, मैं रिपोर्टर.. मैं भी सालों बाद इस खंडहर इमारत के सामने से गुजर रहा था तो आप दिख गईं। पहले तो मैं डर गया कि कहीं आप कोई भूत-वूत तो नहीं। फिर आपके पैरों से कंफर्म किया कि आप भूत ना हैं। आप कौन हैं?

बुढ़िया : तुम्हारा अंदाजा गलत था बेटा। मैं सीधे पैर वाली भूत ही हूं... (एक ठहाका)

(रिपोर्टर ढाई मिनट तक यूं ही निशब्द खड़ा रहा... भागना चाहता था, पर पैर वहीं जम गए...रिपोर्टर की हालत को वही समझ सकते हैं जिनका कभी भूतों से पाला पड़ा होगा। रिपोर्टर के होश में आने के बाद अब आगे पढ़ें आगे का इंटरव्यू...)

रिपोर्टर : आप भी अच्छा मजाक कर लेती हो अम्मा।

बुढ़िया : चलो मजाक ही मान लो, नहीं तो तुम्हारा भूत बन जाता। बताओ, तुम मेरे पास क्यों आए हो?

रिपोर्टर : ऐसा लग रहा है कि बहुत पहले किसी तस्वीर में आपको कहीं देखा है...

बुढ़िया : शायद तुमने अपने दादाजी या नानाजी के कमरे में लगी मेरी तस्वीर देखी होगी...

रिपोर्टर : हां, हां, बिल्कुल....याद आ गया। जब मैं छोटा था, उस समय दादाजी और उनके जितने भी दोस्त थे, उन सभी के घरों में आपकी तस्वीर लगी रहती थी।

बुढ़िया : पुराने जमाने में हर घर में मेरी तस्वीर लगी रहती थी....

रिपोर्टर : हां, उन तस्वीरों में आप बहुत ही सुंदर-शालीन नजर आती थीं। पर आप हैं कौन? आपने अपना परिचय नहीं दिया।

बुढ़िया : बेटा, अब मैं क्या परिचय दूं। परिचय के लिए कुछ बचा ही नहीं। फिर भी बता देती हूं, मैं कांग्रेस हूं... 135 साल की बुढ़िया। इसीलिए मैं खुद तो भूत कह रही थी.... अतीत वाला भूत..।

रिपोर्टर (आश्चर्य से) : अरे, अगर आप कांग्रेस हैं तो फिर 10 जनपथ पर जो एक संभ्रान्त महिता रहती हैं, अपने एक नन्ने-मुन्ने बालक के साथ, वो कौन हैं? मैं तो उन्हें ही कांग्रेस समझता आया हूं। सभी उन्हें ही कांग्रेस समझते हैं।

कांग्रेस अम्मा : अरे हां, वो। बेटा, उन्हें मेरा प्रणाम कहना, अगर मिल सको। वैसे तुम क्या मिल सकोंगे। मैं ही नहीं मिल पाती उनसे तो।

रिपोर्टर : आप कांग्रेस होकर उनसे नहीं मिल पातीं? क्या वे भी आपसे मिलने नहीं आतीं?

कांग्रेस अम्मा : कभी नहीं आईं। अब इसमें उनकी भी क्या गलती? हो सकता है उनके सलाहकारों ने उन्हें मेरे बारे में बताया ही ना हो। अगर उन्हें मेरे बारे में कोई बताता तो वे जरूर आतीं।

रिपोर्टर : और उनका नन्ना-मुन्ना बालक?

कांग्रेस अम्मा : हां, वह बालक कभी-कभार आ जाता है। कभी मेरी लकुटिया ले लेता है और कंधे पर लाठी रख जैसे किसान चलते हैं ना, वैसे ही चलने की एक्टिंग करता है। कभी मेरा ये टूटा हुआ ऐनक पहन लेता है और पूछता है- देखो दादी, मैं गांधी बाबा दिख रहा हूं ना...। जैसा भी है, पर है बहुत प्यारा बच्चा। पर आश्चर्य है, मेरे बारे में उसने भी अपनी मां को कभी नहीं बताया।

रिपोर्टर : आप इस खंडहर इमारत में सालों से अकेली रहती हों। अपने बारे में कुछ तो सोचिए।

कांग्रेस अम्मा : अब मेरा कुछ भरोसा नहीं बेटा। इस दुनिया से कब मुक्त हो जाऊं, क्या पता।

रिपोर्टर : अरे नहीं, इस देश को आपकी बहुत जरूरत है। भले ही अब आपके घर वाले ही आपको ना पूछते हो, लेकिन देश के लिए आपने क्या ना किया, मैं सब जानता हूं। मैंने किताबों में सब पढ़ा है। क्या-क्या नाम गिनाऊं, गोखले जी, तिलक जी लेकर बापू तक, सब आपकी ही छत्रसाया में पले-बढ़े। नहीं, अभी आपको जाना नहीं है...

कांग्रेस अम्मा : बस कर पगले, अब रुलाएगा क्या! (और बेबस आंखों से एक आंसू टपक पड़ा...)

रिपोर्टर : आप बहुत भावुक हो रही हैं। बढ़ती उम्र में ऐसा होता है। मोदीजी भी अभी भावुक हो गए थे। अरे हां, मोदीजी से याद आया, उन्होंने अभी-अभी कोरोना का टीका लगवाया है। आप भी लगवा लीजिए, फिर आप भी सेफ हो जाओगी।

कांग्रेस अम्मा : तू पत्रकार होकर भी इतना भोला कैसा है रे? मेरे शरीर में तो वंशवाद, चमचागीरी, दलाली जैसे संक्रमण भरे पड़े हैं। इन संक्रमणों ने ही मेरे तन-मन को तोड़कर रख दिया है। कोरोना वाले टीके से कुछ नहीं होगा।

रिपोर्टर : फिर भी कोई तो टीका ऐसा होगा जिनसे आप हमारे बीच हमेशा के लिए रह सकती है?

कांग्रेस अम्मा : लीडरशिप का, मेहनत का, सांगठनिक क्षमताओं का, इसके टीके की जरूरत है। ये है क्या ...?

रिपोर्टर (15-20 सेकंड की शांति के बाद) : माफ करना अम्मा, कम से कम आपके लिए तो ऐसा टीका अभी अवेलेबल नहीं है। पर, इस खंडहर से आप बाहर तो निकलिए...। टीका भी बन जाएगा।

कांग्रेस अम्मा : जब टीका बन जाए तो पहले उन कांग्रेसियों को जरूर लगवा देना जो घर बैठकर चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं, मेरी जवानी फूटने के चमत्कार का इंतजार। और हां, मेरे नन्हे-मुन्ने बालक को मत भूल जाना...अब मैं चलती हूं...सोने का समय हो गया है...

रिपोर्टर काफी देर तक किंकत्तर्व्यविमूढ़ भाव से वहीं खड़ा रहा... उसे पता ही नहीं चला कि वह बूढ़ी अम्मा अचानक कहां ओझल हो गई.... क्या रिपोर्टर वास्तव में किसी भूत से बात कर रहा था? शायद!! पर जो भूतों को नहीं मानते, वे पाठक भला इसे क्या समझेंगे!!

मंगलवार, 2 मार्च 2021

Exclusive Interview : बढ़ते दामों के बीच गैस सिलिंडर को क्यों हुई नेहरूजी की चिंता?

gas cylinder , gas cylinder price satire,गैस सिलेंडर के दामों पर व्यंग्य, modi per vyangya, modi and nehru, राहुल गांधी पुश अप्स, गैस सिलेंडर दाम बढ़ोतरी प्रदर्शन
By jayjeet

जैसे ही कुछ लोगों द्वारा गैस सिलेंडर को लतियाने की खबर मिली, रिपोर्टर अपनी संवेदना जताने सिलेंडर के पास पहुंच गया..

रिपोर्टर : यह तो ठीक नहीं हुआ। आपको पैरों से लतियाया गया।
सिलेंडर : आ गए, जले को लाइटर लगाने। वैसे लतियाते पैरों से ही है, हाथों से नहीं... इट्स कॉमन सेंस...

रिपोर्टर : हां हां, पर कौन थे ये लोग?
सिलेंडर : रिपोर्टर आप हो। पता आपको होना चाहिए। और अब अगला डायलॉग जॉली एलएलबी फिलिम का यह मत मार देना- न जाने कहां से आते हैं ये लोग।

रिपोर्टर : हां, याद आया। ये मप्र यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। पर यह सवाल तो लाजिमी है - आज ये सालों बाद कहां से आ गए‌? बल्कि यह पूछना ज्यादा उचित होगा- बीच-बीच में कहां चले जाते हैं ये लोग?
सिलेंडर : युवा कांग्रेस पर तो मेरा मुंह मत खुलवाओ, यही अच्छा होगा।

रिपोर्टर : कहीं ऐसा तो नहीं कि एक तरफ तमिलनाडु में राहुल गांधी पुश-अप लगा रहे थे। तो शायद अपने नेता के सामने अपनी धाक जमाने के लिए युवा कांग्रेसियों ने आपको लतियाया हो!
सिलेंडर : हां, धाक तो गरीब पर ही जमाई जाती है। भाव गैस के ऊंचे हो रहे और लात हम गरीब खा रहे हैं। अगर धाक जमानी ही थी तो भरी हुई गैस वाले सिलेंडर के साथ जमाते। नानी याद आ जाती।

रिपोर्टर : इटली वाली ...!!!
सिलेंडर : आप कांग्रेसियों के नितांत पर्सनल इश्यू पर जा रहे हैं। इट्स नॉट फेयर। मैंने केवल मुहावरे का यूज किया था...

रिपोर्टर : खैर, असली मुद्दे पर आते हैं। यह सरकार कब समझेगी कि सिलेंडर जैसी चीजों, मेरा मतलब गैस के दाम बढ़ने से गरीबों को कितनी दिक्कत हो रही है।
सिलेंडर : जिस दिन समझ गई, उस दिन तो बेचारे नेहरूजी की शामत आ जाएगी।

रिपोर्टर : कैसे, इसका नेहरूजी से क्या लेना-देना?
सिलेंडर : अगर सरकार की पार्टी वाले मतलब बीजेपियों को यह लग गया कि गैस के दाम बढ़ने से उनके मतदाता बिचक रहे हैं तो वे नेहरूजी के पुतले फूंकना शुरू कर देंगे, यह कहते हुए कि आज गैस के दाम इसलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि 50 साल पहले नेहरू सरकार ने कुछ नहीं किया...

रिपोर्टर : वाह, आप तो बड़े दूरंदेशी हैं... तो फिर करना क्या चाहिए?
सिलेंडर : देखो भाई, बहुत सवाल हो गए, और सब के सब फालतू के सवाल। अब और पूछकर मेरा बीपी मत बढ़ाओ। लतियाने की वजह से मैं पहले से ही मेंटली परेशान हूं। टेंशन से मेरा सिर फटा जा रहा है, मैं पूरा फटूं, उससे पहले ही नौ दो ग्यारह हो जाओ... नहीं तो तुम्हारी ब्रेकिंग न्यूज बन जाएगी...

रिपोर्टर : रुको भाई, भागता हूं मैं...

पढ़ें ऐसे ही और भी मजेदार इंटरव्यू ...

Exclusive Interview : शिवराज को काटने वाले मच्छर की बदल गई ज़िंदगी
महंगाई के मन में फूटे राजनीति के लड्‌डू…गिरी हुई महंगाई से खास बातचीत
# gas cylinder , # gas cylinder price

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

Satire & humor : महंगाई के मन में फूटे राजनीति के लड्‌डू…गिरी हुई महंगाई से खास बातचीत

महंगाई , महंगाई दर गिरी, महंगाई पर जोक्स, महंगाई पर व्यंग्य, नेताओं पर जोक्स, राजनीति पर कटाक्ष, inflation rate down jokes, neta per jokes
By Jayjeet

महंगाई क्या गिरी, रिपोर्टर तुरंत उछलकर उसके पास पहुंच गया। रिपोर्टर को देखते ही महंगाई ने मुंह बनाया - आ गए तुम रिपोर्टर लोग, जले पर तेल डालने...

रिपोर्टर : इसे जले पे नमक छिड़कना कहते हैं बहन…

महंगाई : वाह, मतलब आप रिपोर्टर लोगों को मुहावरे भी पता हैं..! मैं तो बस तुम्हारी परीक्षा ले रही थी।

रिपोर्टर : हम आम आदमी भी हैं। परीक्षा तो आप हम आम लोगों की हमेशा ही लेती रहती हो... वैसे हम आपके जले पे नमक छिड़कने नहीं, बल्कि बधाई देने आए हैं।

महंगाई :  बधाई! किस बात की?

रिपोर्टर : अब गिरने के मामले में आप भी नेताओं से होड़ लेने लगी हैं। मतलब, इस मामले में आप देश में दूसरे स्थान पर पहुंच गई हैं। इसी बात की आपको लख लख बधाइयां…

महंगाई: अच्छा, तो मतलब हम भी क्या पॉलिटिक्स-वॉलिटिक्स में आ सकती हैं?

रिपोर्टर : अरे आपने तो मुंह की बात ही छीन ली।

महंगाई: पर एक बात अब भी समझ में नहीं आ रही। मुझे थोड़ा डाउट सा हो रहा है। हम गिरे कब हैं? मतलब हमें तो गिरने जैसा कोई फील ही नहीं हो रहा।

रिपोर्टर : यह तो हमको भी समझ में नहीं आ रहा। हमें भी आपमें गिरने वाले कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे। आज भी प्याज 50 रुपए किलो मिल रहे हैं। पेट्रोल सेंचुरी मारने जा रहा है। हमने अपने मन की बात पहले इसलिए नहीं बताई कि कहीं आप हमें अज्ञानी पत्रकार ना समझ लो...

महंगाई : अच्छा किया जो मन की बात ना बताई। एक के मन की बात ही काफी है।

रिपोर्टर : वाह! आप तो बड़ी डेयरिंग भी हो। देखना, बैन-वैन ना हो जाओ...ट्विटर पर हों?

महंगाई : मजाक  छोड़िए, आप तो यह बताइए, राजनीति करने के लिए हमें करना क्या होगा? हमारे मन में तो राजनीति के लड्‌डू फूट रहे हैं।

रिपोर्टर : आप असल में गिरी हैं या नहीं, यह तो किसी को ना पता, पर राजनीति करनी है तो खुद को गिरा हुआ फील करना जरूरी है।

महंगाई : ठीक है, हम मुंह पर सरकारी आंकडे़ चिपका लेते हैं। इससे गिरने का फील आ जाएगा।

रिपोर्टर : एक शर्त और है।

महंगाई : वो क्या?

रिपोर्टर : आपको गिरने के मामले में कंसिस्टेंसी भी बनाए रखनी होगी। ऐसे नहीं कि आज गिरी और कल ऊपर चढ़ गई। परसो गिरी और फिर ऊपर चढ़ गई…समझें!!

सेंसेक्स : मतलब, स्साला पूरा नेता बनना होगा!

रिपोर्टर : बिल्कुल।

महंगाई : पर यह तो संभव ही नहीं है। हम आंकड़ों में खुद को गिरा लें, वहां तक ठीक है। पर चाल-चलन, कैरेक्टर, इन सब मामलों में हम कैसे गिर सकती है? नहीं करनी ऐसी राजनीति, यह नेताओं को ही मुबारक...। मैं तो चली...

रिपोर्टर : अरे, सुनो तो सही। कोई ब्रेकिंग-व्रेकिंग तो देती जाओ...

#inflation_satire #inflation_jokes

रविवार, 31 जनवरी 2021

हलवे की कड़ाही और वोटर्स में क्या समानता है? जानिए इसी कड़ाही से, बजट पूर्व खास इंटरव्यू में…

बजट का हलवा

 

By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क, नई दिल्ली। बजट पेश होने में अब कुछ ही घंटे बाकी हैं। ऐसे में बजट संबंधी ब्रेकिंग न्यूज कबाड़ने के फेर में रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों न कड़ाही से बात की जाए, वही कड़ाही जिसमें बजट की प्रिंटिंग से पहले हलवा बना था। तो छिपते-छापते रिपोर्टर पहुंच गया नॉर्थ ब्लॉक कड़ाही के पास :

रिपोर्टर : राम-राम कढ़ाही काकी। कल बजट आ रहा है और आप आराम कर रही हों?

कड़ाही : अब हमारा बजट से क्या काम? हलवा बनना था, बन गया और बंट भी गया।

रिपोर्टर : पर आप यहां इस समय कोने में क्या कर रही हों?

कड़ाही : अब यही तो हमारी नियति है बेटा। बजट छपने से पहले ही हमारी पूछ-परख है। एक बार हलवा खतम तो हमारा काम भी खतम। बस यहीं कोने में सरका दी जाती है। साल भर यहीं पड़े रहो।

रिपोर्टर : मतलब आपमें और हममें कोई फर्क नहीं?

कड़ाही : बिल्कुल। जैसे तुम वोटर्स की वोटिंग से पहले ही पूछ-परख होती है, वैसे ही मेरी बजट की छपाई से पहले।


रिपोर्टर : अच्छा, तनिक यह तो बताओ कि बजट में क्या आ रहा है? थोड़ी-बहुत ब्रेकिंग-व्रेकिंग हम भी चला दें…

कड़ाही : ब्रेकिंग का क्या, कुछ भी चला दो। चला दो कि बजट की एक रात पहले नॉर्थ ब्लॉक के पिछवाड़े में एक भूत के कदमों के निशान पाए गए। हो गई ब्रेकिंग न्यूज..।

रिपोर्टर : अरे नहीं काकी। मैं टीवी वाली ब्रेकिंग की बात ना कर रहा। हमें तो ‘हिंदी सटायर’ के लिए ब्रेकिंग चाहिए, वही जो खबरी व्यंग्यों में हिंदी में भारत का पहला पोर्टल है।

कड़ाही : अच्छा। तो खबर चाहिए? ऐसा बोलो ना। पर वो मुझे कहां पता। मैंने बजट थोड़े देखा है।

रिपोर्टर : मंत्री और अफसर हलवा खाते समय कुछ तो बतियाए होंगे?

कड़ाही : हां, मंत्राणी अपने अफसरों से पूछ रही थीं कि क्या उस आम आदमी की पहचान हो गई है जिसके लिए हम बजट बना रहे हैं?

रिपोर्टर : अरे वाह, फिर क्या हुआ?

कड़ाही : वही तो बता रही हो। बीच में ज्यादा टोकाटोकी मत करो…हां तो इस पर अफसर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। तब एक सीनियर अफसर ने हिम्मत करके कहा कि मैडम जी, हम तो हलवे में लगे थे। वैसे भी बजट का आम आदमी से क्या लेना-देना? फिर भी हमने उसकी तलाश में टीमें लगा दी हैं…. और भी बहुत बातें हुईं, पर ज्यादा समझ में ना आईं।

रिपोर्टर : हमें तो हलवे की फोटो ही देखने को मिलती आई है। ये तो बता दो उसमें क्या-क्या माल डलता है?

कड़ाही : बेटा, ये तो बहुत कॉन्फिडेंशियल है, बजट से भी ज्यादा।

रिपोर्टर : ठीक है, ना पूछता। पर दिल में कई सालों से एक सवाल उठ रहा था, हलवे को लेकर।

कड़ाही : क्या?

रिपोर्टर : यही कि क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि किसी दिन कोई वित्त मंत्री यह कहें कि इस बार हलवा न बनेगा और न बंटेगा। इस बार रोटियां बनेंगी और गरीबों में बंटेंगी, क्योंकि इस देश को हलवे से ज्यादा रोटियों की दरकार है और…

कड़ाही (बीच में टोकते हुए) : बेटा, अब ज्यादा हरिशंकर परसाई मत बनो। अपनी औकात में रहो। वो तो समय रहते निकल लिए। तुम परसाई बनने के चक्कर में अपनी लिंचिंग न करवा बैठना। तुम अभ्भी के अभ्भी यहां से निकल लो…खुद तो मरोगे, मुझे भी मरवाआगे…

(Disclaimer : बताने की जरूरत नहीं कि यह खबर कपोल-कल्पित है। मकसद केवल कटाक्ष करना है, किसी की मनहानि करना नहीं।)

बुधवार, 2 सितंबर 2020

श्राद्ध पर क्यों गायब हो गए कौव्वे? खुद कौव्वे ने किया ऐसा खुलासा

कौवा , crow

हिंदी सटायर। मौका श्राद्ध का है। लेकिन इसके बावजूद कौव्वे कहीं नजर नहीं आ रहे। हाल ही में एक स्टडी में भी कहा गया है कि कौव्वे तेजी से लुप्त हो रहे हैं। लेकिन हमारे संवाददाता किसी तरह एक कौव्वे से टेलीफोनिक इंटरव्यू करने में सफल रहे। पेश हैं उसके मुख्य अंश :

हिंदी सटायर : आजकल कहां गायब हो गए हों?

कौव्वा: हम गायब नहीं हुए हैं, बल्कि श्राद्ध पक्ष में हमें छिपना पड़ रहा है। सेहत का जो सवाल है।

हिंदी सटायर : ऐसा क्यों?

कौव्वा:  पता नहीं कौन हमें पकड़कर खाना-वाना खिला दें?

हिंदी सटायर : अरे, कौव्वा भाई, वो तो सम्मान के रूप में आपको भोजन करवाते हैं? इसमें इतना क्यों अकड़ते हो?

कौव्वा:  हमारा भी पेट, दिल और किडनियां हैं। इंसान को अपनी फिकर नहीं है, हमें तो है। वे मिलावटी खाकर हार्ट और डायबिटीज के पेशेंट बन रहे हैं। हमें नहीं बनना। कोरोना काल अलग चल रहा है।

हिंदी सटायर : लेकिन इंसान तो आपको पितरों की तरह पूजकर भोजन करवाता है?

कौव्वा:  छोटा मुंह बड़ी बात। पर श्राद्ध का इंतजार क्यों करते हैं? जीते-जी जो असली पितर हैं, उन्हें भी थोड़ा अटेंशन दे दो भाई। फिर हमें भोजन करवाएं। तब हम भोजन ही नहीं करेंगे, आशीर्वाद भी देंगे, वादा रहा।



सोमवार, 24 अगस्त 2020

Funny Interview : कांग्रेस में कौन बन सकता है नया अध्यक्ष, राहुल के डॉगी PIDI ने किया खुलासा

jokes on congress, rahul dog PIDI, राहुल का कुत्ता पीडी, राहुल गांधी जोक्स


By Jayjeet

हिंदी सटायर डेस्क, दिल्ली। जैसे ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की और राहुल गांधी ने चिट्‌ठी लिखने वाले कांग्रेसियों को आढ़े हाथ लिया, किसी ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में रिपोर्टर लपककर पहुंच गया 10 जनपथ पर सीधे पीडी के पास। पीडी राहुल भैया का प्रिय डॉगी है। वह दो साल पहले उस समय सुर्खियों में आया था, जब राहुल ने कहा था कि उनके ट्वीटस पीडी ही करता है।

रिपोर्टर : पीडी भैया, उधर कांग्रेस में अफरातफरी मची है और इधर आप बड़े खुश नजर आ रहे हो?

पीडी: हां, राहुल भैया ने हमको तैयार रहने को कहा है।

रिपोर्टर : किस बात के लिए?

पीडी : शायद कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनने के लिए।

रिपोर्टर (जानबूझकर अनजान बनने का नाटक करते हुए) : क्यों भाई, ऐसा क्या हो गया?

पीडी : अरे आपको ना पता? किसने रिपोर्टर बना दिया! अभी कुछ देर पहले सोनिया मम्मा ने इस्तीफा देने की पेशकश की है। और राहुल भैया और प्रियंका दीदी ने भी कह दिया है कि अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का बनेगा। तो बताओ, अब अध्यक्ष कौन बनेगा? है कोई?

रिपोर्टर : पर आप भी तो परिवार में ही रहते हो? यानी प्रैक्टिकली तो आप भी गांधी परिवार का ही हिस्सा हो। तो आप भी ऐलिजिबल कैसे हो जाआगे?

पीडी : आप भी क्या बात करते हों...  हम परिवार में जरूर रहते हैं, पर गांधी-नेहरू खानदान के थोड़े हुए।

रिपोर्टर : अच्छा, राहुल भैया ने आपको ही अध्यक्ष बनने के लिए तैयार रहने को क्यों कहा? आपमें ऐसी क्या योग्यता है?

पीडी : वफादारी, सबसे बड़ी योग्यता तो यही है। फिर मैं मम्मा, भैया और दीदी की ऑन डिमांड पर कभी भी दुम हिला सकता हूं। उनके तलवे भी मैं ही बड़े अच्छे से चाट सकता हूं।

रिपोर्टर : माफ करना पीडी भैया, अभी आपने मुझ पर ताना मारा था, लेकिन पता आपको भी कुछ नहीं है।

पीडी : ऐसा क्या पता नहीं है?

रिपोर्टर : आप जिस वफादारी की बात कर रहे हो ना, वह तो कांग्रेस में कई लोगों के पास है। दुम हिलाने वाले भी बहुत मिल जाएंगे और तलवे चाटने वाले भी।

पीडी : पर भैया, दो पैर वाले तो दो पैर के ही होते हैं। दो पैर वालों की वफा का भरोसा नहीं। देखा नहीं, अभी कैसे फटाक से चिट्ठी लिख मारी। ये कोई वफादारी है !! भला राहुल भैया को नाराज कर दिया। वफादारी में चार पैर वालों से टक्कर नहीं ले सकते आपके दो पैर वाले वफादार।

रिपोर्टर : पर दूसरे कांग्रेसी नेता आपको पार्टी का अध्यक्ष क्यों स्वीकार करेंगे?

पीडी : अरे, थोड़ी देर पहले आपने ही तो कहा था कि प्रैक्टिकली हम गांधी परिवार का हिस्सा है... इसलिए, समझें...

रिपार्टर कुछ और पूछें, इतने में पीडी के पास जमीन पर रखा मोबाइल बज उठा। स्क्रिन पर राहुल भैया नाम चमक रहा था। और पीडी भी जी भैया, जी भैया में बिजी हो गया... और यह रिपोर्टर भी अपनी दुम को समेटकर वापस आ गया, ब्रेकिंग न्यूज के साथ...

#congress new president  #political satire #congress #rahul #humor