रविवार, 23 मार्च 2014

माइंड न करो उल्लुओ, हर जगह तो आपका राज है

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


‘यह भी क्या बात हुई! अब मनुष्यों ने हमें भी अपनी नीच राजनीति में घसीट लिया। हमारी कोई वकत ही नहीं रही जैसे।’ घनघोर बियाबान रात में लंच के बाद सुस्ताते उल्लुओं की चैपाल पर बैठा एक उल्लू बोल उठा।
‘सोचा न था कि ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे। स्कूलों में मास्टरजी बोलते थे तो ठीक है। कोई बात नहीं। स्कूल जैसे पुण्य स्थल पर कोई हमारा नाम ले, इसमें तो हमें गर्व ही होता था। लेकिन राजनीति में भी। छी-छी!’ दूसरे ने बात आगे बढ़ाई।
‘हमारे लोग भी राजनीति करते हैं, लेकिन क्या कभी हम मनुष्यों को बीच में लाते हैं!’
‘दादा सही बोला आपने। पहले भी ये लोग हर षाखा पर उल्लू बैठा जैसी ओझी बातें कहकर हमें लज्जित करते आए हैं।’
‘गलती हमारी ही है। हम कभी एकजुट हुए ही नहीं।’
दो उल्लुओं को उल्लू हित में चिंतन करते देख कुछ और उल्लू भी उनके निकट आ गए हैं। इनमें से अधिकांष को पता ही नहीं है कि मुद्दा क्या है, लेकिन सहमति में सिर हिलाए जा रहे हैं, मानो बाहरी समर्थन दे रहे हो। लेकिन एक ठसबुकिया टाइप उल्लू ने पूछ ही लिया,,:भाई आखिर ऐसा क्या हो गया? हमें भी तो बताओ।’
‘हमेषा ठसबुक पर ही लगे रहते हो। कुछ दुनियादारी की भी खबर रखा करो।’ बाहरी समर्थकों में षामिल एक अधेड़ से समझदार उल्लू बोला।
‘अरे भाई, हुआ यह कि राजनीति करने वाले एक आदमी ने कह दिया, चाय बनाने वालों की इज्जत करो, उल्लू बनाने वालों की नहीं। आपत्ति इसी बात पर है। हम क्या चाय से भी गए बिते हो गए! आप षौक से राजनीति करो। हमें कोई लेना-देना नहीं आपकी राजनीति से, लेकिन कृपा करके अपनी राजनीति में हमें घसीटकर हमारा मान-मर्दन तो न करो।’ उल्लू बोला। उसके सपाट चेहरे पर पीड़ा उभर आई।
ठसबुकिया उल्लू ने तत्काल अपडेट किया और अपनी दुनिया में फिर से खो गया।
इस बीच, चैापाल पर उल्लुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है। कई युवा उल्लू मुट्ठियां भींच-भींचकर बात कर रहे हैं। जिन्होंने यह मुद्दा उठाया था, अब वे पीछे भीड़ में खो गए हैं। कुछ दुपट्टेधारी, कुछ खद्दरधारी तो कुछ टोपीबाज उल्लू भी चैपाल पर आ गए हैं और भाषणबाजी षुरू हो गई है। 
स्थिति को विकट जानकार अंततः देवी को प्रकट होना पड़ा। ‘मेरे पुत्रों, नाराज माइंड न करो। मुझे ही देख लो। क्या मैंने कभी सोचा था कि ये इंसान मुझ पर ही कालिख पोत देंगे और काली चवन्नियों को राजनीति में भुनाएंगे? यह हुआ ना। आपको तो खुष होना चाहिए कि राजनीति में तो क्या, हर क्षेत्र में आपकी बिरादरी के लोग ठसे पडे हैं! थोडी-बहुत उंच नीच तो झेलनी होगी।’
ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती

यमराज के भैंसे के गुम होने और मिलने की कथा

Recently some Buffaloes of an UP Minister was missing and the administration was to force on the toes. 
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 

यमराज बड़े परेशान हैं। धरती की विजिट पर गए थे, लेकिन वहां कोई उनका भैंसा चुरा ले गया। अब भन्ना रहे हैं। उनके करीबी सलाहकार पहले भी कई बार समझा चुके थे, ‘महाराज अब मत घुमा करो। उमर हो गई है। काम के लिए यमदूत हैं तो सही।’ लेकिन धरतीवालों की संगत में उन्हें भी टीए-डीए का ऐसा चस्का लगा कि आए दिन वे विजिट निकाल ही लेते।
खैर, यमलोक में अफरा-तफरी का आलम है। सारे यमदूत भैंस की खोज में लगे हुए हैं। पिछले तीन दिन से यमदूतों ने कोई काम नहीं किया है। हर कोई भैंसा ढूंढऩे में लगा है। यह अलग बात है कि इसकी आड़ में कई यमदूत अपने नेटिव चले गए हैं तो कई घरों में आराम फरमा रहे हैं। लेकिन इस फेर में धरती पर बैलेंस कुछ ज्यादा ही बिगड़ता जा रहा है। इससे प्रभु के चेहरे पर शिकन पडऩी लाजिमी है। इंटरनल कम्युनिकेशन के जरिए यमराज को भी मैसेज हो गया है जिसका लब्बोलुबाब यही है कि यह ठीक नहीं है, जान लो। इस मैसेज से यमराज और भी तन्ना गए हैं। यमराज ने भी अपने सचिवालय से उसी लैंग्वेज में कह दिया है कि किसी भी स्थिति में दो दिन में उनका भैंसा वापस आ जाना चाहिए।
यमलोक में समस्या वाकई विकट है, जिसे सुलझाने का जिम्मा अंततः अक्सर धरती पर जाने वाले एक सीनियर यमदूत को दिया गया है। बड़े ही सुलझे हुए किस्म के ये यमदूत जानते हैं कि उन्हें अब क्या करना है। वे सीधे चित्रगुप्त के पास पहुंचे। ‘सरजी, भारत से किसी पुलिसवाले का कोई मामला है क्या?’
‘हां, पांच दिन पहले एक पुलिसवाले की फाइल आई हैै। बस उसके हिसाब की फार्मेलिटी करनी है। वैसे भी हिसाब क्या करना, मालूम ही है कि उसे भेजना है।’ चित्रगुप्त बोले।
ठसके बाद वह सीनियरयमदूत उस पुलिस वाले से मिला और उसे समस्या बताई। ‘इसमें क्या बड़ी बात है! भयंकर कान्फिडेंस के साथ पुलिसवाला बोला। ‘धरती पर भी एक मंत्री की कुछ भैंसें इसी तरह गुम गई थीं। हमारे लोगों ने ढूंढ निकाली। यह भैंसा भी मिल जाएगा, पर एक शर्त है। मेरे नरक में जाने के चांस बन रहे हैं, उसे स्वर्ग में बदलवाना होगा।’
‘हर जगह इधर से उधर करने की आदत गई नहीं!’ सीनियर यमदूत मन ही मन बडबडाया। पर करता क्या न मरता। उसे हामी भरनी पड़ी।
तो शुरू हुआ भैंसा सर्चिंग मिशन। वे एक यमदूत के साथ धरती पर उतरे और पहुंच गए एक दूधवाले के तबेले पर। ‘चुन लो कोई भी भैंसा’ वह पुलिसवाला बोला।
‘पर हमारे साहब का तो इनमें से कोई नहीं है।’ यमदूत बोला।
‘तो हम बना देगे ना, हम किसलिए हैं भाई?’
तो अंततः थोड़ी ना-नुकूर के बाद वह यमदूत भैंसा लेकर यमलोक पहुंचा। यमराज के महल में जाने से पहले वह पांच लीटर दूध पहले ही अपने घर पहुंचा आया था। तो अब यमदूत भी ज्ञानी हो गया है।
और अब क्लाइमेक्स... भैंसे को देखते ही यमराज गले लग गए। खुद भैंसा भी हक्का-बक्का है कि यह सिंग वाला भैया कौन है जो गले आ पड़ा है! यमराज भी जानते हैं कि यह उनका भैंसा नहीं है। लेकिन उपर से पड़ रहे दबाव को देखते हुए उन्होंने उसे अपना ही मान लिया। यमलोक में व्यवस्था ट्रैक पर आ रही है। प्रभु खुश हैं!
ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती

नारदजी की झाडू से देवलोक में मची खलबली

When the craze of AAP was on the rise.  
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


देवलोक में अफरा-तफरी का आलम है। किसी को समझ में नहीं आ रहा कि अचानक नारदजी को क्या हो गया है। उन्होंने सिर पर फूलों का गजरा छोड़कर एक अजीब-सी टोपी पहन ली है। तंबूरे के स्थान पर झाडू हाथ में ले ली है। इसकी खबर जब देवलोक के सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया को लगी तो वे भागे-भागे नारदजी के पास पहुंचे, ‘महाराज, क्या कमी रह गई? आपने झाडू क्यों उठा ली है? मैं सफाई करवा देता हूं।’ वे प्रभु के सबसे करीबी नारदजी को आखिर नाराज कैसे देख सकते थे!
‘अरविंदम अरविंदम’... मुंह से ये बोल फूटते ही सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया चैके। नारायण-नारायण के स्थान पर ये क्या बक रहे हैं! वे मन ही मन बुदबुदाए। उन्हें अचरज में देखकर नारदजी ही बोले- ‘बहुत हो गया। अब सिस्टम सुधारने का वक्त आ गया है। मैं पूरे सिस्टम को अपनी झाडू से साफ कर दूंगा।’ और फिर अरविंदम-अरविंदम कहकर हाथ मंे झाडू घूमाएं नारदजी वहां से चले गए।
उधर, देवलोक में अब तक पूरा माजरा साफ हो चुका था। धरती पर आनन-फानन में भेजे गए देवदूतों का एक प्रतिनिधिमंडल वहां से लौट चुका था और देवताओं की कोर कमेटी के सामने पाॅवर पाइंट प्रेजेंटेषन भी दे चुका था। सबके चेहरों पर चिंता साफ थी। हालांकि कुछ ने कहा कि नारदजी की हैसियत ही क्या है? हमें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन एक बुजुर्ग-से देवता ने समझाया कि हमें इसे हलके में नहीं लेना चाहिए। आज उन्होंने झाडू उठाई। अगर कल वे रोजाना तीन लीटर मुफ्त सोमरस की मांग कर दंेगे तो दिक्कत में पड़ जाएंगे। सबसे ज्यादा टैक्स इसी से मिलता है। और यह ऐसी मांग है कि उन्हें इस पर भरपूर समर्थन भी मिल जाएगा।
उधर, इंद्र को अपना आसन भी डोलता नजर आ रहा है। उन्होंने तमाम अप्सराओं को ‘फाॅर टाइम बीइंग’ महल से निकलने का आदेष दे दिया है। अब वे दरबार लगाने लगे हैं, रात को सड़कों पर हाल जानने निकलने लगे हैं। रोजाना दो चार कर्मचारी सस्पेंड भी हो रहे हैं। वहीं, इंद्र के कुछ विरोधी दबी जुबान में कह रहे हैं, देखते हैं यह प्रहसन कब तक चलता है।
उधर नारदजी के साथ कुछ आम टाइप के देवता जुड़ने लगे हैं। पूछने पर ये आम देवता कहते- ‘जस्ट फाॅर ए चंेज।’ अब चेंज की यह सद्भावना उनकी अपनी निजी लाइफ को लेकर है या सिस्टम को लेकर, प्रभु ही जानें!

ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती

गब्बर की चुनावी तिकडम

Very funny article, but at the end you will find some satire on our political system.

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha


  

‘चुनाव कब है चुनाव?’ पान खराब का पूरा पाउच मंुह में उड़ेलते हुए अपने लाॅन में बैठे गब्बर ने पूछा।
‘सरदार ये क्या बका जा रहा है।’ बंगले की उपरी मंजिल पर बैठा साम्भा बड़बड़ाया। उसे लगा कि उसने ही कुछ गलत-सलत सुन लिया होगा तो बोला, ‘सरदार, होली अगले महीने हैं।’
‘अरे, मैं पूछ रहा हूं, चुनाव कब है?’
‘यह तो इलेक्षन कमीषन बताएगा। पर माजरा क्या है सरदार?’
‘ठाकुर का संदेषा आया है। वे चुनाव में खड़े हो रहे हैं और हमसे लाॅजिस्टिक सपोर्ट मांग रहे हैं।’
‘सरदार, भूलना नहीं। आपको मारने के लिए ही उन्होंने कभी दो लफंगों को सुपारी दी थी। देखना उन्हें तो लेकर नहीं आ रहे।’ सांभा ने चेताया।
‘नहीं रहे, उनमें से एक तो बिल्डर का काम करता है। दूसरा घोडों पर दांव लगाकर इज्जतदार आदमी बन गया है। दोनों मजे में हैं। सुना है वे भी ठाकुर को चुनाव में सपोर्ट कर रहे हैं।’
‘वो तो करेंगे ही। वे ठाकुर के ही आदमी हैं। ठाकुर ने भी उनके लिए क्या-क्या नहीं किया।’
इतने में कालिया की एंटी।
‘खाली हाथ? ठेका नहीं मिला क्या?’
‘नहीं सरदार।’
‘तुमको पहले ही कहा था कि अफसरों को सेट कर लो। ठाकुर क्या तुम्हें सेट कर गया?’
‘नहीं सरदार, मैंने तो आपकी दारू पी है, चिकन खाया है...’ कहते ही कालिया को घबराहट होने लगी।
‘ले गोली खा, जब देखो तब हाई बीपी...। अब तफसील से बता क्या हुआ?
‘सरदार, वो ठाकुर के आदमियों ने हमारा खेल बिगाड दिया।’
‘अच्छा... तो ठाकुर का डबल गेम। उपर से चिकने जूते और नीचे तलवों में कीलें। वह पक्का नेता है तो हम भी कम नहीं। गब्बर फुसफुसाया। फिर जोर से बोला, ‘संदेषा करवा दो कि कोई सपोर्ट-वपोर्ट नहीं। हम भी चुनाव में खड़े होंगे।’
‘लेकिन सरदार आपको टिकट कौन देगा? सूरत देखी है क्या आपने?’ साम्भा बोला। सालों से मुंहलगा है। मुंहफट भी हो गया है। कुछ भी बोल देता है आजकल।
‘तो हम बदल लेंगे सूरत। वो क्या बोलते इमेज सुधारने वाले लोग होते हैं ना, उन्हें बोलो।’
‘इमेज कन्सलटेंसी।’ कालिया बोला।
’हां हां वही-वही।’ गब्बर खुष होकर बोला। ‘कालिया, जबसे तुमने दुनियादारी संभाली है, काफी होषियार हो गए हो।’
‘सरदार वो तो यूं ही।’ कालिया षरमा गया।
तो अब गब्बर की दाढ़ी ट्रिम हो गई है। चेहरे पर इम्पोर्टेड फ्रेम का चष्मा नजर आ रहा है। पान मसाले पाउच के स्थान पर चांदी का पानदान खरीद लिया गया है। उसे संभालने की जिम्मेदारी सांभा को दी गई है। आखिर कुछ तो करें। उपर बैठा-बैठा मक्खियां मारता रहता है। गब्बर के हाथ में आई फोन नजर आने लगा है। कालिया ने एंड्रायड आॅपरेट करना सिखा दिया है। जैसा कि बताया, कालिया तो पहले ही होषियार हो चुका है।
इस बीच, देष की दो पार्टियों ने गब्बर का नाम षार्टलिस्ट कर लिया है। ठाकुर पहले से ही षार्टलिस्टेड हैं। गब्बर ने वाट्स एप्स से मेसेज पहुंचाया है, ‘ठाकुर, यह सीट मुझे दे दें।’ लेकिन ठाकुर ने मना कर दिया है। गब्बर को कोई चिंता नहीं। वह अट्टहास लगा रहा है, ‘अब आएगा मजा चुनाव के इस खेल का।’
उधर, रामगढ की जनता कांप रही है, हमेषा की तरह।
 ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती