(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
इस पोर्टल के नाम में भले ही 'Humour' हो, लेकिन यह गंभीर मुद्दे भी उठाता है, कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं। फिर कुछ जोक्स, फनी आइटम तो हैं ही।
शनिवार, 24 जुलाई 2021
Funny Interview : राज कुंद्रा मामले से फुर्सत मिलते ही रिपोर्टर ने कर ली बादल के टुकड़े से खास बातचीत
गुरुवार, 22 जुलाई 2021
Satire : नो वन किल्ड कोरोना मरीज ...
मतलब आज ऑक्सीजन की कमी से कोई ना मरा, कल इंजेक्शन की कमी से कोई ना मरेगा... मतलब स्साला आदमी मरेगा कैसे? सरकार बताएगी?
By ए. जयजीत
'दद्दा, अब खुश हो जाओ और जिद छोड़ दो।' सीनियर देवदूत ने चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर पड़ी धरनाग्रस्त आत्मा से कहा।
'मैं तुम्हारी बात में ना आने वाला। तुम तीसरी बार फुसलाने आए हो, चित्रगुप्त के खास चमचे बनकर।'
'नहीं दद्दा, इस बार खबर सच्ची है। सरकार इतना भी झूठ नहीं बोलती है।'
'अब कौन-सा सच लेकर आ गए हो?'
'सरकार ने कहा है कि तुम्हारी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। मतलब सारा कन्फ्यूजन खत्म हो गया। अब कर्मों का हिसाब करवा लो। आप भी फ्री, हम भी फ्री।'
'मैं भी तो यही कह रहा था कि मेरी मौत हो ही नहीं सकती। धरती पर ऑक्सीजन तो फुल मात्रा में है। तो मौत कैसे हो सकती है?'
दद्दा की यह बात सुनते ही यह सीनियर देवदूत चकरा गया। आप भी चकरा गए ना। चकरा तो यह लेखक भी रहा है।
दरअसल, दद्दा बहुत शातिर है। पहले इस बात के बहाने वे चित्रगुप्त के दफ्तर में हिसाब करवाने से बचते रहे कि उनकी मौत की वजह स्पष्ट नहीं है। रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से उनकी मौत हुई या ऑक्सीजन न मिलने से, पहले यह साफ किया जाए। ऑक्सीजन या इंजेक्शन, इन दोनों में से किसी की जवाबदेही तय की जाए। इसके बाद ही वे अपने कर्मों के हिसाब-किताब के लिए चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत होंगे। हालांकि यमराज के दफ्तर से चली नोटशीट पर 'ऑक्सीजन की कमी' कारण स्पष्ट था, फिर भी दद्दा तो अड़ ही गए थे। देवदूतों ने उनके साथ जबरदस्ती की तो हाथ में घासलेट की बोतल और माचिस लेकर चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर ही धरने पर बैठ गए। लोकतंत्र तो ऊपर भी है। ऐसे ही भला जबरदस्ती थोड़ी की जा सकती है। और अब जब इस सीनियर देवदूत को लगा कि भारत सरकार के इस दावे से मामला सेटल हो गया और मौत की स्पष्ट वजह आ गई तो दद्दा ने नया दांव चल दिया। आइए, फिर सुनते हैं उनके तर्क-कुतर्क...
'दद्दा, अब ये लफड़ा मत कीजिए कि मौत ना हुई। मौत ना होती तो तुम यहां होते भला?' देवदूत ने सख्ती व मिमियानेपने के अजीब मिश्रण के साथ अपना तर्क दिया।
'क्यों तुम अपने उस छोकरे से, क्या नाम है, रम्मन देवदूत, उसी से पूछो। वही आया था मेरे पास। वह यही बोल के तो मुझे यहां लाया था कि ऑक्सीजन सिलैंडर में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो तुमको लेने आया हूं। पूछो उससे, यही बोला था कि नहीं!'
'अब उससे क्या पूछें। वैसे भी वह संविदा पर है। लेकिन मौत तो तुम्हारी आनी ही थी। हो सकता है यमराज जी के ऑफिस से जो नोटशीट चली होगी, उसमें कारण गलत दर्ज हो गया हो- ऑक्सीजन की कमी से मौत। पर अब स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई है। तुम यही तो चाहते थे कि जवाबदेही तय हो। तो अब रेमेडिसिवर इंजेक्शन पर जवाबदेही तय हो गई। बस खुश, अब चलो भी।'
लेकिन दद्दा के दिमाग में तो कुछ और ही खुराफात चल रही है। एक नया कुतर्क पटक दिया - 'क्यों जब नोटशीट पर कारण गलत दर्ज हो सकता है तो उसमें आदमी का नाम गलत दर्ज नहीं हो सकता? फिर देवदूत भी तुम्हारे संविदा वाले। तो उससे तो गलती हो ही सकती है। है कि नहीं!'
सीनियर देवदूत, जिसे कि 40 साल का अनुभव है, भी सकते में आ गया। स्साला आज तक यमराज के ऑफिस से चली एक भी नोटशीट गलत नहीं हुई। वह सोच में पड़ा हुआ है। उसे सोच में पड़ा देखकर दद्दा, जो ऑलरेडी शातिर है, ने एक और नया दांव चल दिया।
'मेरी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई। यही कहना चाहते हो ना तुम?'
'हां, जब ऑक्सीजन की कमी से ना हुई तो रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ही हुई होगी ना? हम यही मान लेते हैं।'
'अब, अगर कल को सरकार यह कह दे कि देश में एक भी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ना हुई, तो? तब तुम क्या करोगे?'
देवदूत, जो लगातार सोच में है, फिर सोच में पड़ गया - स्साला, सरकार का क्या भरोसा। यह भी कह सकती है। फिर तो लफड़ा हो जाएगा। और यह बुड्डा शकल ही नहीं, अकल से भी हरामी है। दूसरी आत्माओं को ना भड़का दे।
'दद्दा, यहीं रुको। मैं पांच मिनट में आया।' इतना कहकर देवदूत चित्रगुप्त के दफ्तर में घुस गया। पांच मिनट चर्चा करने के बाद वह वापस लौटा और दद्दा के कान में धीरे से कहा। दद्दा खुशी से उछल पड़े। उनके कुतर्क कामयाब हो गए थे।
यमराज के दफ्तर से संशोधित नोटशीट जारी हो गई है- दद्दा की मौत किसी भी वजह से नहीं हुई है। इसलिए उन्हें समम्मान धरती पर पहुंचाने के प्रबंध किए जाएं।
संविदा वाले देवदूत को सस्पेंड कर दिया गया है। किसी पर तो गाज गिरनी ही है। आखिर लोकतंत्र तो वहां भी है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
बुधवार, 21 जुलाई 2021
Satire : दो जासूस, करे महसूस कि जमाना बड़ा खराब है...
By Jayjeet
दो जासूस, दोनों के दोनों प्रगतिशील किस्म के। देश-दुनिया की समस्याओं पर घंटों चर्चा करके चर्चा के कन्क्लूजन को अपनी तशरीफ वाली जगह पर छोड़कर जाने वाले। दोनों एक कॉफ़ी हाउस में मिले। वैसे तो दोनों अक्सर इसी कॉफ़ी हाउस में मिलते रहते हैं, लेकिन आज का मिलना ज्यादा क्रांतिकारी है। अब ये जासूस कौन हैं, क्या हैं, इसका खुलासा ना ही करें तो बेहतर है। देखो ना, पेगासस नाम के किसी जासूस का खुलासा होने से कितनी दिक्कतें आ गईं। विपक्ष को हंगामा करने को मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस कहां पंजाब में अपने दो सरदारों के बीच सीजफायर करवाने के बाद थोड़ा आराम फरमा रही थी कि उसे फिर जागना पड़ा। और बेचारी सरकार। कब तक छोटे-छोटे हंगामों को राष्ट्र को बदनाम करने की साजिशें घोषित करती रहेगी। उसकी भी तो कोई डिग्नेटी है कि नहीं। कई बड़े-बड़े पत्रकार, नेता, बिल्डर, वकील, तमाम तरह के माफिया इस बात से अलग चिंतित हैं कि उनका नाम सूची में क्यों नहीं है! तो एक खुलासे से कितनी उथल-पुथल मच गई। इसलिए हम भी इन दोनों जासूसों के नाम नहीं बता रहे। हां, एक को करमचंद जासूस टाइप का मान लीजिए और दूसरे को जग्गा जासूस टाइप का। वैसे भी जासूस तो विशेषण है, संज्ञा का क्या काम। काले रंग का कोट, बड़ी-सी हेट, काला चश्मा, हाथ में मैग्नीफाइंग ग्लास वगैरह-वगैरह कि आदमी दूर से ही पहचान जाए कि देखो जासूस आ रहा है। दूर हट जाओ। पता नहीं, कब जासूसी कर ले।
तो जैसा कि बताया, ये दो जासूस एक कॉफ़ी हाउस में मिले। इसी कॉफ़ी हाउस में
दोनों का उधार खाता पता नहीं कब से चला आ रहा है। कई मैनेजर बदल गए, पर खाता अजर-अमर
है। कॉफ़ी हाउस में मुंह लगने वाले हर कप को मालूम है कि इन दिनों ये भयंकर फोकटे हैं।
इन दिनों क्या, कई दिनों से ही ये फोकटे हैं। कई बार कोट से बदबू भी आती है। जब किसी
के पास ज्यादा पैसे ना हों तो ड्रायक्लीन पर खर्च अय्याशी ही माना जाना चाहिए। तो ये
जासूस अक्सर इस तरह की अय्याशी से बचते हैं। वैसे इन दोनों जासूसों ने अपने बारे में
यह किंवदंती फैला रखी है कि जब ये वाकई जासूसी करते थे, तो उनके पास जूली या किटी टाइप
की सुंदर-सी सेक्रेटरी भी हुआ करती थीं, एक नहीं, कई कई। देखी तो किसी ने नहीं, पर
अब जासूसों से मुंह कौन लगे। कपों की तो मजबूरी है। बाकी बचते हैं।
खैर, मुद्दे पर आते हैं। तो आइए, इन दो प्रगतिशील जासूसों की जासूसी भरी
बातें भी सुन लेते हैं। आज तो चर्चा का एक ही विषय है - पेगासस।
"और बताओ, क्या जमाना आ गया?' पहले ने शुरुआत वैसे ही की, जैसी कि
अक्सर की जाती है।
"सही कह रहे हो। पर ये पेगासस है कौन?' दूसरा तुरंत ही मूल मुद्दे
पर आ गया, क्योंकि आज तो फालतू बातों के लिए इन दोनों के पास बिल्कुल भी वक्त नहीं
है।
"कोई जासूस है स्साला। फ्री में हर ऐरे-गैरे की जासूसी करता फिरता
रहता है।' पहले ने थोड़ा ज्ञानी होने के दंभ के साथ कहा।
"बताओ, ऐसे ही जासूसों के कारण हमारी कोई इज्जत नहीं रही।' दूसरे
ने यह बात इतनी संजीदगी से कही मानों उनकी कभी इज्जत रही होगी।
"और एक-दो की नहीं, पूरी दुनिया की जासूसी करने का ठेका उठा लिया
है इस पेगासस ने।' पहले ने जताया कि मामला वाकई गंभीर है।
"हां, रोज ही लिस्ट पे लिस्ट आ रही है, मानों चुनाव में खड़े होने
वाले उम्मीदवारों की सूचियां निकल रही हों।' दूसरे ने गंभीरता की हवा निकाल दी।
दोनों जोर से हंसते हैं। फिर अचानक अपने-अपने होठों पर उंगली रखकर शांत
रहने का इशारा करते हैं। लोगों को लगना नहीं चाहिए कि दो जासूस मूर्खतापूर्ण टाइप की
बातें कर रहे हैं, जो हंसी की वजह बन रही है। भले ही बातें करें, पर लगे नहीं। इसलिए
दोनों फिर धीमी आवाज में चर्चा शुरू देते हैं...
"यह भी क्या जासूसी हुई? अब आप नेताओं की जासूसी करवा रहे हों? नेताओं
की जासूसी करता है क्या कोई?' पहला फिर गंभीर हो गया।
"हां, मतलब नेताओं के नीचे से आप क्या निकाल लोगे? कोई बड़ा राज निकाल
लोगे? और जासूसी करके बताओंगे क्या? इतने करोड़ रुपए स्विस बैंक में, इतने करोड़ घर में,
इतने करोड़ की बेनामी संपत्ति, इतने लोगों को ठिकाने लगाने के लिए ये पलानिंग, वो पलानिंग।
जो चीज सबको मालूम है, वो आप बताओगे। ये क्या जासूसी हुई भला।' दूसरे ने पहले की गंभीरता
में गंभीरता के साथ पूरा साथ दिया।
"बताओ, क्या जमाना आ गया।' पहला फिर जमाने को दोष देने लगा।
"पर ये जासूसी करवा कौन रहा है?' दूसरा अब पॉलिटिकल एंगल ढूंढने की
जासूसी में लग गया है।
"कोई भी करवाए, हमें क्या मतलब?' पहले के भीतर का प्रगतिशील जासूस
अब आम मध्यमवर्गीय औकात में बदलने की तैयारी करने लगा है। कप की कॉफ़ी खत्म जो होने
लगी है।
दूसरा भी तुरंत सहमत हो गया। उसकी भी कॉफ़ी खत्म हो रही है। वह इस बात
पर सहमत है कि हमें ऐसे फालतू के मामलों में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं। चिंता
या तो सरकार करे जिसे हर उस मामले में देश की चिंता रहती ही है जिस मामले में उस पर
सवाल उठाए जाते हैं। या फिर विपक्ष करे, जो अब इस भयंकर चिंता में मरा जा रहा है कि
मामले को जिंदा रखने के लिए कुछ दिन और एक्टिव रहना होगा। संसद सत्र अलग शुरू हो गया
है। रोज हंगामा खड़ा करना होगा। कैसे होगा यह सब!
खैर, दोनों की कॉफ़ी खत्म हो गई है। तो चर्चा भी खत्म। तशरीफ को झाड़कर दोनों
उठ खड़े हुए। कॉफ़ी हाउस अब राहत की सांस ले रहा है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
रविवार, 18 जुलाई 2021
Humor : पंजाब में अमरिंदर और सिद्धू की लड़ाई से क्यों खुश हुई कांग्रेस?
By Jayjeet
10 जनपथ पर स्थित बड़े से बंगले के बड़े से गेट के बाहर फुटपाथ पर आज अचानक कांग्रेस अम्मा से मुलाकात हो गई। किनारे बैठी हुई। लेकिन घोर आश्चर्य, पोपले मुंह पर बड़ी ही स्मित मुस्कान! रिपोर्टर को रुकना ही था। अम्मा से यह दूसरी मुलाकात थी।
रिपोर्टर : पहचाना अम्मा?
कांग्रेस अम्मा : अरे हां, रिपोर्टर ना?
रिपोर्टर : बड़ी तेज याददाश्त है आपकी। मान गए आपको!
कांग्रेस अम्मा : बूढ़ी हो गई तो क्या हुआ, अब भी कुछ सांसें चल रही हैं (पोपले मुंह से जोरदार ठहाका)।
रिपोर्टर : आज बड़ी खुश नजर आ रही हों?
कांग्रेस अम्मा : बात ही ऐसी है। पंजाब से बड़ी अच्छी खबर आ रही है।
रिपोर्टर (चौंकते हुए) : अच्छी खबर? वहां तो आपके ही दो बेटे आपस में लड़ रहे हैं।
कांग्रेस अम्मा : यही तो अच्छी खबर है।
रिपोर्टर (लगता है बुढ़िया सठिया टाइप गई है) : कांग्रेस के दो नेता आपस में लड़ रहे हैं। इसमें क्या अच्छाई है?
कांग्रेस अम्मा : एक राज्य में कांग्रेस के पास दो-दो नेता हैं और दोनों की दोनों एक-दूसरे पर भारी। बेटा इससे अच्छी खबर और क्या होगी?
रिपोर्टर : पर वे तो आपस में लड़ रहे हैं अम्मा? (रिपोर्टर ने यह बात तीसरी बार रिपीट की)
कांग्रेस अम्मा : लड़ तो रहे हैं? यह कम है क्या? कांग्रेसियों को लड़ते हुए देखे तो जमाना हो गया। पर तुम मीडियावालों को कांग्रेस की खुशी देखी नहीं जाती। (बुढ़ापे की वजह से अम्मा शायद भूल गई कि थोड़े बहुत तो उसके राजस्थान के बेटे भी लड़े थे।)
रिपोर्टर : ऐसी बात नहीं है अम्मा। बंगाल में जब बीजेपी की हार पर आपने मोतीचूर के लड्डू बंटवाए थे, तो हम सबने बराबर खाए थे। हमारे ही कई लोगों ने तो खुद बंटवाए थे। पर अम्मा पंजाब में कांग्रेसियों के इस तरह लड़ने से क्या संदेश जाएगा? अच्छी बात है ये क्या?
कांग्रेस अम्मा : बेटा वही तो नहीं समझ रहे हो तुम। खुद को बड़ा रिपोर्टर कहते हो। भैया, इससे तो कांग्रेसियों में जान फूंक जाएगी। उन्हें इस बात का एहसास होगा कि वे भी लड़ सकते हैं। केवल घर बैठकर चर्बी चढ़ाना ही एकमात्र ऑप्शन नहीं है।
रिपोर्टर : लेकिन लड़ना तो सरकार के खिलाफ चाहिए ना?
कांग्रेस अम्मा (थोड़ी नाराजगी के साथ) : नवजोत क्या कर रहा है? सरकार के खिलाफ ही तो लड़ रहा है ना?
रिपोर्टर : पर वहां तो आपकी ही सरकार है? वहां वे क्यों लड़ रहे हैं?
कांग्रेस अम्मा : बेटा सरकार आज है, कल न रहे, पर अगर लड़ना सीख लिया तो यह दूसरी सरकारों के खिलाफ भी काम आएगा कि नहीं? बता, तू तो रिपोर्टर है ना!
रिपोर्टर ने बुढ़िया से ज्यादा मगजमारी करना मुनासिब नहीं समझा। आखिरी सवाल पर आ गया।
- अम्मा, चलिए आप खुश तो हम खुश। पर आप तो ये बताओ, उप्र में चुनाव आ रहे हैं। बाकी पार्टियों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। आपकी क्या तैयारी है?
कांग्रेस अम्मा : उप्र? ये क्या है? (कुछ याद आने के बाद) अच्छा, योगी के उत्तर प्रदेश की बात कर रहा है? तैयारी कर रहे हैं हम, बिल्कुल कर रहे हैं।
रिपोर्टर : वही तो पूछ रहे हैं। क्या तैयारी कर रहे हैं?
कांग्रेस अम्मा (10 जनपथ निवास की ओर इशारा करते हुए) : वो अंदर जाकर पूछो ना, वे ही बताएंगे?
रिपोर्टर : अरे अम्मा, हमारी वहां तक कहां पहुंच है। आप तो पहुंच सकती हैं। आप ही बताइए ना।
congress , satire on congress
बुधवार, 7 जुलाई 2021
Satire & Humor : जब राजा के दर्पण ने की दिल की बात, मतलब बड़ी वाली बदतमीजी!!
By Jayjeet
बुधवार, 30 जून 2021
पेट्रोल से खास बातचीत.... जब लोग अपनी बाइकों में इतना पेट्रोल डलवा रहे हैं तो कुछ तो गड़बड़ है...
By Jayjeet
बहुत दिनों के बाद आज रिपोर्टर फ्री था। तो सोचा, थोड़ा पेट्रोल से भी मिल लिया जाए। और पहुंच गया उसी पेट्रोल के पास जो अब खुद को एक तरह से सेलेब्रिटी मानने लगा था।
"नमस्कार भैया। कहां चढ़े हों? तनिक नीचे तो उतरो।' रिपोर्टर आसमान
की ओर देखते हुए पेट्रोल से मुखातिब था।
"कौन है भाई? हमारा विकास देखा नहीं जा रहा तो मुंह फेर लो।' पेट्रोल
उतने ही एटीट्यूड में बोला, जितना ऐसी स्थिति में आमतौर पर आ ही जाता है।
"आपका जरा इंटरव्यू करना है।'
"अच्छा तो आप रिपोर्टर हैं। बड़ी जल्दी आ गए। डीजल को भी जरा 100
पार कर लेने देते, फिर आते।' अपनी उपेक्षा के चलते पेट्रोल के मुंह पर एक तरह के कटाक्ष
का भाव है।
"आपकी शिकायत जायज है। देर हो गई आते-आते। अब क्या करें, कुछ बड़ी
राष्ट्रीय समस्याओं में फंस गया था। इसलिए समय ही नहीं मिल पाया।'
"अच्छा तो अब आप भी कांग्रेस हो गए। बड़ी-बड़ी समस्याओं में फंसे हुए
हैं और हम जैसे छोटों के लिए टाइम ही ना मिल रहा। बहुत बढ़िया!'
"अगर टांटबाजी हो गई हो तो सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू करें?'
"हां, जब सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत ना होती है तो फिर पूछने के लिए हम गरीब ही बचते हैं।' इतना कहते ही पेट्रोल ने ऐसा जोर से ठहाका लगाया कि थूक के कुछ छीटें रिपोर्टर के शर्ट पर आ गिरे। उसने यह ठहाका अपनी गरीबी पर उसी अंदाज में लगाया था जैसे अक्सर कई अमीर खुद की गरीबी पर लगाते हैं।
"इतना थूक ना उड़ाओ। आपकी थूक की एक-एक बूंद बड़ी कीमती है। और फिर
हमारे कपड़ों पर गिरकर रिस्की भी हो रही है। हवा में कब कौन कहां से तीली निकाल लें,
इन दिनों पता ही नहीं चलता। हां, पर आपने क्या कहा, मैंने कुछ सुना नहीं?'
"असली बातें सुनकर भी ना सुनना तो आप जैसों से सीखें। मैं कह रहा
था कि ये इंटरव्यू विंटरव्यू सरकार से क्यों नहीं करते?'
"अरे सरकार क्या हमारे लिए फालतू बैठी है? ट्विटर की वो छटाक भर की
चिड़िया भी सिर उठा रही है। इन दिनों बहुत चें चें कर रही है। लगता है राजद्रोहियों
के साथ मिल गई है। तो उसका थूथना दबाने में लगी है सरकार।'
"हां, ये तो सही कर रही है सरकार। ट्विटर को कम से कम देश के नक्शे-वक्शे
के साथ खेला नहीं करना चाहिए। इससे हम-आप तो ठीक है, पर उन लोगों की भावनाओं को बड़ी
ठेस पहुंचती है जो स्विस बैंकों के बजाय देश की सीमाओं के भीतर ही भ्रष्टाचार की अपनी
गाढ़ी कमाई रखते हैं। देश का पैसा देश में ही रहे, ऐसी पावन सोच वाले लोग जब ट्विटर
की ऐसी करतूत देखते हैं तो दुख तो होगा ही।'
"तो असल सवाल पूछने का सिलसिला शुरू करें?'
"असल सवाल?' हंसते हुए, "पर हमसे पूछने के लिए बचा ही क्या है?
यही पूछोंगे ना कि हमने तो सेंचुरी मार ली है, अब ये विराट दो साल से क्या कर रहा है?
पर बता दूं, क्रिकेट में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।'
"मेरी भी कोई दिलचस्पी नहीं है। फिर ऐसे सवाल पूछने के लिए उनकी बीवी
बैठी हुई हैं। हम क्यों पर्सनल बातें करें?'
"तो फिर पूछिए, जो भी पूछना हो। पर जरा जल्दी कर लेना। वैसे भी आपने
बहुत टाइम खोटी कर लिया। इतनी देर में हम दो-चार सेमी और ऊंचाई पर पहुंच जाते।'
"एक बहुत ही गंभीर सवाल है जो दो-तीन दिन से मन में मंडरा रहा है।
आपने सुना या पढ़ा ही होगा कि महामहिम ने कहा है कि वे अपनी आधी सैलरी टैक्स में दे
देते हैं ...'
"देखिए, महामहिम जी का हम बहुत सम्मान करते हैं। तो उनके खिलाफ हम
कुछ ना बोलेंगे, समझ लीजिए।' बात को बीच से ही काटते हुए पेट्रोल बोला।
"तो हम क्या कम सम्मान करते हैं उनका? बहुत सम्मान करते हैं। सबको
करना चाहिए। हम तो केवल उनकी बात से जुड़ा एक सवाल पूछ रहे हैं। पूरा सुन तो लीजिए।
जब महामहिम जी इतना टैक्स चुका रहे हैं, तो अपनी मोटरसाइकिलों में जो इतना महंगा तेल
भर-भरकर लोग जा रहे हैं, उनकी भी इनकम टैक्स जांच होनी चाहिए कि नहीं?'
"क्यों? हमारे दाम खटकने लगे! जरा खाने के तेल से भी ऐसा ही पूछो
ना!'
"हां, उससे पूछकर ही तो आ रहा हूं। वह भी इस बात से सहमत है।'
"क्या बोला वो? '
"यही कि लोग सब दिखावे के लिए झोपड़ियां तानकर रखे हैं और दो-दो टाइम
का खाना, वह भी तेल में बघारा हुआ खा रहे हैं। सरकार को पूरी जांच करके इस बात का पता
लगाना चाहिए कि आखिर आम लोगों के पास इतना भर-भरकर पैसा आ कहां से रहा है?'
"जब खाने का तेल यह बात बोल रहा है तो सही ही बोल रहा होगा। तो सरकार
जांच करवा लें और जो टैक्स चुरा रहे हैं, उनसे पूरी शक्ति के साथ पूरा टैक्स वसूले।
बेचारे देश के महामहिम टाइप के लोग ही टैक्स क्यों दें?' पेट्रोल ने सहमति जताई।
"तो फिर आप दोनों का यह ज्वाइंट स्टेटमेंट छाप दूं ना कि गाड़ियों
में पेट्रोल और पेटों में खाने का तेल अगर आम लोग इतनी आसानी से भरवा रहे हैं तो इसमें
कुछ तो गड़बड़ है।'
"पर हमारा नाम मत लेना। सूत्रों टाइप कुछ छाप सको तो छाप देना। कहीं
सरकार बुरा ना मान जाए। अभी सरकार से बहुत काम है। 150 तक जाना है। आप जानते ही हैं
कि अगर सरकार से काम हो तो ज्यादा क्रांति नहीं दिखानी चाहिए। अब मैं चलूं, आज के लेटेस्ट
दाम आ गए हैं। अब तो दो इंच और ऊपर चला मैं...'
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
सोमवार, 28 जून 2021
Political_Rumour_with_Humour : यह कैसी अफवाह? ...... पेट्रोल पर कांग्रेस जागी, राहुल ने लिखी चिट्ठी।
आप इसे कोरी अफवाह मान
सकते हैं। अफवाह यह है कि अंतत: कांग्रेस के वर्चुअल अध्यक्ष ने पेट्रोलियम
पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर भाजपा अध्यक्ष को एक चिट्ठी लिख मारी है।
यकीन नहीं हो रहा ना कि कांग्रेस आखिर इस मुद्दे पर जाग कैसे गई? इसीलिए ये सबकुछ
अफवाह जैसा ही लग रहा होगा। तो पढ़ लीजिए ये चिट्ठी। यह राहुल के स्टेटस से मेल
खाती है।
विषय : पेट्रोल-डीजल की
कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ कांग्रेस का राजनीतिक प्रस्ताव।
महोदय,
सेवा में नम्र निवेदन है कि इस समय देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हो रही है। आप जानते ही हैं कि मुख्य विपक्षी पार्टी होने की मजबूरी के चलते हम पेट्रोल-डीजल जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे की चाहकर भी अनदेखी नहीं कर सकते। इस मुद्दे पर सरकार का विरोध करने के लिए हम पर काफी नैतिक दबाव है। इसलिए गत दिनों 10 जनपथ रोड पर पार्टी की आयोजित एक अहम बैठक में इस पूरे मसले पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
मैं इस पत्र के माध्यम से सूचित करना चाहता हूं कि इस अहम बैठक में पार्टी ने जीरो के मुकाबले तीन मतों से एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव के अनुसार, चूंकि आप सात साल पहले ज्यादातर समय तक विपक्ष में रहे। पेट्रोल के जरा से दाम बढ़ने पर आसमान सिर पर उठा लेने का आपको पुराना अनुभव रहा है। ऐसे कठिन समय में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के मामले में आपको देशहित में अपने इस अनुभव का समुचित उपयोग करते हुए विरोध प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। ऐसा करना न केवल आपका राष्ट्रीय कर्म व सियासी धर्म है, बल्कि नैतिक दायित्व भी है।
पार्टी ने जीरो के मुकाबले तीन मतों से यह भी निर्णय लिया है कि समय मिलने पर हम भी कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को आपके द्वारा आयोजित किए जाने वाले एक या दो विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए प्रेरित करेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि प्रदर्शन के लायक कांग्रेसी कार्यकर्ता मिलते ही हम तुरंत उन्हें देशसेवा में झोंक देने के लिए तत्पर होंगे।
आपको फिर याद दिला दूं कि अगर इस कठिन समय में भी ओछी राजनीति करते हुए आप इतने महत्वपूर्ण मुद्दे की अनदेखी करते रहे और सड़कों पर नहीं निकले तो देश के साथ इससे बड़ा विश्वासघात और कुछ और नहीं होगा। विरोध प्रदर्शन आयोजित न कर पाने की स्थिति में आप इस पत्र को ही कांग्रेस पार्टी की ओर से भर्त्सना पत्र की तरह मानने का कष्ट करें।
आपका तो हरगिज नहीं...
राहुल
बुधवार, 23 जून 2021
Satire : तीसरा मोर्चा और मोनालिसा की मुस्कान!
By Jayjeet
गुरुवार, 17 जून 2021
Satire : सत्ता का हाथी और छह आधुनिक अंधे!
By Jayjeet
बात बहुत पुरानी है। बात जितनी पुरानी होती है, उतनी ही भरोसेमंद भी होती है। तो यह भरोसेमंद भी है। किसी जमाने में छह अंधे हुआ करते थे। अंधे तो उस जमाने में और भी बहुत थे, लेकिन एक हाथी ने उन अंधों को अंधत्व के इतिहास में अमर बना दिया। अमर होने का फायदा यह होता है कि आप किसी भी बात को उसकी अमरता पर लाकर खत्म कर सकते हैं। यह बात नेहरू-गांधी के अनुयायियों से बेहतर भला और कौन जान सकता है? तो इन छह अंधों की बात भी हाथी की ऐतिहासिक व्याख्या पर आकर खत्म हो गई। बात भले खत्म हो गई हो, लेकिन अंधत्व की वह परम्परा खत्म नहीं हुई। वैसे यहां कोई राजनीति न ढूंढें, हम वाकई अंधों की ही बात कर रहे हैं। तो बगैर ब्रेक के बढ़ाते है वही बात, अंधों की बात।
तो हुआ यूं कि उन छह अंधों के छह आधुनिक
वंशज हाल ही में किसी वेबिनार में मिल गए। चूंकि वे अपने पूर्वजों की अमर परम्परा को
जीवित रखने के लिए ही अवतरित हुए थे, ऐसा उन्हीं का मानना था। तो उन्होंने दो काम किए।
एक, वे अंधे बने रहे और दूसरा, उन्होंने भी हाथी की व्याख्या करने के अपने पुरखों के
पुनीत काम को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया। पुरखों का काम आगे बढ़ाने का सबसे बड़ा फायदा
यह होता है कि कुछ नया नहीं करना पड़ता है। नुकसान केवल पुरखों का नाम डूबने के खतरे
के रूप में होता है। पर चूंकि पुरखे जा चुके होते हैं। तो यह खतरा अक्सर लोग और यहां
तक कि पॉलिटिकल पार्टियां भी उठा लेती हैं।
तो जैसा कि पहले बताया, ये छह अंधे एक
वेबिनार में मिले। नए जमाने के नए अंधे। तो हाथी को जंगल में खोजने की मशक्कत करने
के बजाय उन्होंने उसे गूगल पर ही खोजने का निर्णय लिया। गूगल का फायदा यह भी होता है
कि वह गलत खोजों को भी करेक्ट कर देता है। जैसे इन छह अंधों द्वारा "Elephent'
लिखकर सर्च करने पर भी गूगल ने स्पेलिंग ठीक कर ढेरों हाथी सामने पटक दिए। छोटे-बड़े,
आड़े-टेढ़े, पस्त और मदमस्त। उन्होंने बहुमत से एक मदमस्त हाथी चुन लिया। हालांकि उन्होंने
वही हाथी क्यों चुना, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। बस चुनना था तो चुन लिया।
लेकिन खुशी तो उनके चेहरे पर ऐसी थी मानो सरकार चुन ली। दिखावा तो एेसा कि क्या समझ-बूझकर
हाथी चुना। चूंकि वे वोर्टस भी थे तो उन्हें ऐसा हाथी चुनने में अपने मतदान का अनुभव
काम आया।
खैर हाथी का चुना जाना ज्यादा महत्वपूर्ण
था। उन्होंने जो हाथी चुना था, वह शायद उनके चुने जाने से पहले ही मदमस्त था। वह सत्ता
का हाथी था जो इन दिनों ट्विटर, वाट्सऐप के पीछे-पीछे गूगल के बाड़े में भी आ धमका था
और इसीलिए उन अंधों को वह गूगल पर ही चरते हुए मिल गया। सत्ता का वर्चुअल हाथी उनके
सामने तो था, लेकिन उसे न देख पाना उनकी परंपरागत मजबूरी थी।
खैर, अंधों ने वर्चुअल हाथी की वर्चुअल
व्याख्या शुरू की, क्योंकि हमने भी तो बात उस व्याख्या के लिए ही शुरू की थी।
पहला अंधा वर्चुअल हाथी के पेट पर अपने
कम्प्यूटर माउस का कर्जर रखते ही बोला। अरे यह तो दीवार है। वोटों के लिए हिंदुओं-मुस्लिमों
के बीच खींची हुई दीवार।
अब दूसरे अंधे ने अपने माउस का कर्जर हाथी
के मुंह की तरफ मोढ़ा। सूंड पर पहुंचते ही बोला, - नहीं जी, यह दीवार नहीं, यह तो सांप
है। विष वमन करने वाला सांप, धर्म के नाम पर तो कभी पाकिस्तान के नाम पर।
तीसरे अंधे के माउस का कर्जर हाथी की पूंछ
के पास पहुंचा। उसे महसूस करके बोला, - यह
रस्सी है, ऐसी रस्सी जो सत्ता में ऊपर चढ़ने के भी
काम आए और विरोधियों का गला कसने के भी।
अब चौथे की बारी थी। चौथे अंधे ने हाथी
के कानों को छूआ तो बोला, अबे, यह तो सूपड़ा है। जो काम का न हो, उसे झटक देता है। 75
साल के बूढ़ों को साफ करने में यह ज्यादा काम आया।
पांचवें अंधे के माउस का कर्जर हाथी के
पैर के पास पहुंचा तो ऐसा उत्साह से भर गया मानो हाथी का रहस्य उसी ने ढूंढ़ लिया हो।
वह चिल्लाने ही वाला था कि यकायक चुप हो गया। बाकी के अंधे 'क्या क्या' करते ही रह
गए, पर वह न बोला तो न बोला। शायद वह अकल से अंधा न था।
छठे ने अब ज्यादा इंतजार करना ठीक न समझा।
वह अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं, लेकन दूसरों को मूर्ख जरूर समझता था। उसने
सोचा, बहुत बकवास हो गई। सब घिसी-पिटी बात कर रहे हैं। मैं देखता हूं। उसने हाथी के
दांतों तक अपने माउस का कर्जर पहुंचाया और धीरे से बोला, ‘अरे मूर्खों, यह तो बांसुरी
है, बांसुरी। यह वही बांसुरी है, जो कभी नीरो बजाया करता था।’
पांचवें को छोड़कर बाकी सभी अंधों ने चिल्लाकर
कहा, अरे हां, कुछ दिन पहले यही बांसुरी तो हमने सुनी थी। क्या सुंदर धुन थी। अब वे
आंखों से अंधे थे, कानों से बहरे थोड़े ही थे। तो वह सुंदर धुन तो सबने सुनी ही थी,
पांचवें वाले ने भी।
अब फिर से पुराने जमाने की कहानी में लौटते हैं। पूर्वजों द्वारा हाथी की व्याख्या में तो वह हाथी कन्फ्यूज हो गया था। लेकिन सत्ता के इस मदमस्त हाथी को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। नतीजा : एक अंधे को छोड़कर बाकी सभी धारा 124 के तहत जेल में चक्की पीस रहे हैं। पांचवें अंधे ने हाथी की इमेज को दुरुस्त करने के लिए उसका सोशल मीडिया अकाउंट संभाल लिया है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
बुधवार, 16 जून 2021
Humor & Satire : गेहूं की बोरियों का भी वाट्सएप ग्रुप, बारिश में भीगती बोरियां डाल रही हैं स्टेटस
By Jayjeet
और तेज हवाओं के साथ झमाझम बारिश होने लगी। मानसून की पहली बारिश थी। बैग में छाता तो था, लेकिन बाइक पर उसे कैसे संभालता। तो रिपोर्टर ने भीगने से बचने के लिए सीधे उस यार्ड की शरण ली जहां गेहूं की बोरियां रखी हुई थीं। लेकिन वहां का सीन देखा तो माथा ठनक गया। गेहूं की एक नहीं, कई बोरियां पहली बारिश में भीगने का लुत्फ उठा रही थीं। छई छप्पा छई, छप्पाक छई... पर डांस कर रही थीं। न कोई लाज, न कोई शरम। रिपोर्टर का रिपोर्टतत्व जागृत हो उठा और अपना छाता तानकर सीधे पहुंच गया ऐसी ही एक बोरी के पास ...
रिपोर्टर : बोरीजी... बोरीजी ssss... ऐ बोरी...
बोरी : कौन भाई। आप कौन? क्यों चिल्ला रहे हों?
रिपोर्टर : ये आप बारिश में बिंदास भीग रही हैं। क्या आपको ना मालूम कि आपके भीतर बहुत ही कीमती दाना भरा हुआ है?
बोरी : अरे कहां ऐसी छोटी-मोटी बातों में लगे हों। पहली बारिश है। आप भी फेंकिए ना अपना छाता और मस्त भीगिए ना। (और फिर वह लग छई छप्पा छई, छप्पाक छई... )
रिपोर्टर : अरे नहीं, मैं तो आपको आपकी जिम्मेदारी का एहसास करवाने आया हूं।
बोरी : देखिए, जब मानसून की पहली बारिश होती है ना तो महीनों की सारी तपन दूर हो जाती है। मेरी सारी सहेलियां और कजीन सब भीगने का मजा ले रही हैं और आप हैं कि अपनी रिपोर्टरगीरी में इन शानदार पलों को खो रहे हों।
रिपोर्टर : सब भीग रही हैं, मतलब?
बोरी : हमारा वाट्सएप ग्रुप है। मप्र से लेकर राजस्थान, उप्र, पंजाब, हरियाणा, सब जगह की बोरियां इससे जुड़ी हैं। सब बोरियों ने पहली बारिश में भीगने की सेल्फियां पोस्ट की हैं। तो मैं क्यों यह मौका छोड़ू? अब आप आ ही गए तो मेरी बढ़िया-सी फोटो ही खींच दीजिए। ग्रुप में भी डाल दूंगी और स्टेटस पर भी।
रिपोर्टर (फोटो खींचने के बाद) : बहुत हो गया बोरीजी। मुझे आपके भीतर पड़े दाने की चिंता हो रही है। आप समझती क्यों नहीं?
बोरी : आप क्यों चिंता कर रहे हों? चिंता करने वाले दूसरे लोग हैं ना। अनाज भंडारण केंद्रों के कर्मचारी, मंडियों के अफसर सब हैं ना। कल आएंगे। आंकलन कर लेंगे कि कितना अनाज खराब हुआ, कितना सड़ा। अपने दस्तावेजों में सब दुरुस्त कर लेंगे। बेमतलब की चिंता छोड़िए और आप तो मेरे साथ एक सेल्फी लीजिए। किसी बोरी ने आज तक किसी रिपोर्टर के साथ सेल्फी ना खिंचवाई होगी। आज तो सबको जलाऊंगी...
रिपोर्टर : पर ये कौन अफसर हैं? मुझे जरा उनका नंबर दीजिए, अभी बात करता हूं।
बोरी : आप बहुत ही विघ्न संतोषी टाइप के आदमी मालूम पड़ते हों। लगता है, न आप कभी खुद खुश होते हो और न दूसरों को खुश देख सकते हों...
रिपोर्टर : अरे, मैं तो उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना चाहता हूं, बस।
बोरी : अब आप भी बस कीजिए रिपोर्टर महोदय। बेचारे अफसर पहली बारिश में घर में बैठकर अपनी-अपनी बीवियों के हाथों पकोड़े खा रहे होंगे। आप क्यों छोटी-छोटी बातों पर उन्हें परेशान करना चाहते हैं। आप भी जाकर खाइए ना पकोड़े-सकोड़े... और इतना कहकर फिर लग गई ...छई छप्पा छई, छप्पाक छई...
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
सोमवार, 14 जून 2021
Funny : कोरोना की जिंदगी में भी शुरू हुआ स्यापा!
By Jayjeet
कोरोना ने
हम सब लोगों की जिंदगी में तूफान मचा रखा है। लेकिन अक्षय तृतीया के बाद से अब यह
तूफान कोरोना की जिंदगी में उठ रहा है। वजह - उसने कोरोनी से शादी जो कर ली है।
कोरोना की जिंदगी में क्या स्यापा चल रहा है, आइए सुनते हैं कोरोना और उसकी
धर्मपत्नी यानी कोरोनी की यह बातचीत।
कोरोना
: हे कोरोनी, तुमने ये इतना बड़ा-सा घुंघट क्यों डाल रखा है?
कोरोनी
: आपसे हमें संक्रमण ना हो जाए, इसी खातिर...
कोरोना
: अरे, जबसे तुमसे शादी हुई है, तबसे हममें संक्रमित करने की ना तो
इतनी ताकत बची, ना इतना समय..
कोरोनी
: तो इसमें हमें काहे दोष देते हों? हमने ऐसा क्या किया?
कोरोना
: क्या किया? सुबह से ही बिस्तर पर बैठे-बेठे ऑर्डर देने लगती हो, चाय
बनी क्या? नाश्ता बना क्या? चाय-नाश्ता बनाकर फारिग होता ही हूं कि आलू-प्याज की
रट लगा देती हो। बस, थैला उठाए आलू-प्याज और सब्जी लेने निकल जाता हूं। लोगों को
संक्रमित क्या खाक करुं?
कोरोनी
(घुंघट को हटाते हुए) : देखिए जी, अब ये तो ज्यादा हो रहा है... अरे और दूसरे
हस्बैंड लोग भी तो हैं। वे अपने पड़ोस में शर्माजी को ही देखो..
कोरोना
: शर्माजी, कौन शर्माजी?
कोरोनी
: वही शर्माजी, जिनको तुमने हमारी इन्गेजमेंट के दिन ही संक्रमित किया
था, भूल गए क्या? देखो उनको भी तो, कैसे बीवी के इशारों पर नाचते हैं, पर बॉस की
भी पूरी हाजिरी लगाते हैं। ऐसे एक नहीं, कई लोग हैं जो बीवी और बॉस दोनों की चाकरी
पूरे तन-मन से करते हैं और मुंह से उफ्फ तक नहीं निकलाते। और एक तुम हो कि बीवी
जरा-से काम क्या बताती, उसी में चाइना वाली नानी याद आने लगती है.... काम धाम कुछ
नहीं, शो-बाजी तो पूछो मत...
कोरोना
(गुस्से में) : क्या काम-धाम ना करता हूं, बताओ तो जरा? सुबह उठकर
चाय-नाश्ता तैयार मैं करता हूं, सब्जी-वब्जी मैं लाता हूं। दोनों टाइम के बर्तन
मैं साफ करता हूं। तंग आ गया मैं तो ... घर-गृहस्थी के चक्कर में अपना असली काम ही
भूल गया... देखो, कैसे लोग बिंदास बगैर मास्क लगाए घूम रहे हैं, जैसे मुझे चिढ़ा
रहे हों कि आ कोरोना आ... पर अब ताकत ही ना बची ...
कोरोनी
(मामले को शांत करते हुए) : अरे जानू, तुम तो
नाराज हो गए। अच्छा, चलो आज डिनर में चाऊमिन मैं बना दूंगी। .... और सुनो जी,
गांधी हॉल में साड़ी की सेल शुरू हुई है। उसमें हजार-हजार की साड़ी पांच-पांच सौ
में मिल रही है। चलो ना वहां, तुम्हारा भी मूड फ्रेश हो जाएगा...
कोरोना
(सीने पर हाथ रखते हुए) : हे भगवान, क्यों सेल
का नाम लेकर मेरा बीपी बढ़ा रही हो? उधर, सरकार ने वैक्सीन पर फिर पॉलिसी बदल ली है।
मेरे लिए तो जिंदगी में टेंशन ही टेंशन है। क्या करुं, कहां जाऊं...!!
कोरोनी
: हाय
दैया, ये सरकार है कि तमाशा है। पल में तोला, पल में माशा। पर सरकार तुम्हारे पीछे
हाथ धोकर क्यों पड़ी है?
कोराना
: अरे
हमें पूरी तरह से नाकारा बनाने के लिए, और क्या! आधे मरे को पूरा मारने के लिए।
कोरोनी : अजी, तब तो
तुम टेंशन मत लो। हम सरकार से कह देंगे कि देश में कोनो वैक्सीन-फैक्सीन की जरूरत
नहीं है। अब हम है ना...!! और अब फटाफट तैयार हो जाओ। लॉकडाउन खुलने के बाद पहली
सेल है। ऐसा ना हो कि सेल में अच्छी-अच्छी साड़ियां पहले ही खतम हो जाए...
और कोरोना
"जी जी' करते हुआ तैयार हुआ और कंधे झुकाए निकल पड़ा बाइक पर कपड़ा मारने...