इस पोर्टल के नाम में भले ही 'Humour' हो, लेकिन यह गंभीर मुद्दे भी उठाता है, कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं। फिर कुछ जोक्स, फनी आइटम तो हैं ही।
शनिवार, 16 जनवरी 2021
Satire & Humour : भारत में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू, लेकिन देश में हैं कोरोना से भी भयंकर वायरस, इनसे रहें बचकर
गुरुवार, 14 जनवरी 2021
Satire : करप्शन में 'Skill Development' करेगी सरकार, ढंग से रिश्वत न लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई की भी तैयारी
मप्र के सीधी जिले में एक महिला विकास परियोजना अधिकारी को 10 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया। यहां रिश्वतखोरी पर दो सवाल उठ रहे हैं- हमारे अफसर इतनी छोटी-मोटी रिश्वत क्यों ले रहे हैं? और दूसरा, आखिर ऐसे कैसे रिश्वत ले रहे हैं कि इतनी आसानी से पकड़ में आ रहे हैं? इससे तो पूरे सिस्टम और सरकार पर ही सवालिया निशान लग गए हैं। देखिए, यह व्यंग्य वीडियो...
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मंगलवार, 12 जनवरी 2021
Satire & Humour : विवेकानंद के अनमोल विचारों से हमारे नेताओं ने क्या सीखा?
By Jayjeet
आज स्वामी विवेकानंद (swami vivekanand) की जयंती है। 12 जनवरी को उनका जन्मदिवस होता है और हर साल इसे ‘युवा दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। विवेकानंद ने अपने भाषणों और लेखों में कई अनमोल और Thought-Provoking विचार दिए हैं। भारतीय नेताओं ने उनके विचारों को कैसे यूज किया, इस पैकेज में देखिए इसका satirical अंदाज :
विवेकानंद का विचार : उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : उठाईगिरी करो, लोगों की नींद हराम करो, कुछ भी करो। तब तक नहीं रुको, जब तक कि कुर्सी प्राप्त न हो जाए।
विवेकानंद का विचार : उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : उस नेता ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी नैतिकता जैसी चीज से व्याकुल नहीं होता।
विवेकानंद का विचार : विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : राजनीति एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को बाहुबलि बनाने के लिए आते हैं।
विवेकानंद का विचार : जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : चुनाव के दौरान आप जो वादे करते हैं, उन्हें समय पर पूरा बिल्कुल नहीं करना चाहिए, नहीं तो आम लोगों का राजनीति पर से विश्वास ही उठ जाता है।
विवेकानंद का विचार : जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी तरह मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा, भगवान तक जाता है।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : जिस तरह से विभिन्न राजनीतिक दलों से उत्पन्न नेता अपनी पूरी नैतिकता को धूल में मिला देते हैं, उसी प्रकार हर नेता द्वारा चुना हुआ मार्ग, जाे हमेशा बुरा होता है, कुर्सी तक ही जाता है।
विवेकानंद का विचार : ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वे हमीं हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
नेताओं ने ऐसे किया यूज : पुलिस से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक, सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। हममें से कुछ नादान लोग हैं जो इन शक्तियों का यूज नहीं करते और फिर कहते हैं कि कितना अंधकार है भाई।
विवेकानंद का विचार : अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है। अन्यथा ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए, बेहतर है।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : अगर कुर्सी हमारे अपने भाई-भतीजों की भलाई करने में मदद करें तो इसका कुछ मूल्य है। अन्यथा यह सिर्फ बुराई का ढेर है। ऐसी घटिया राजनीति से जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए, बेहतर है।
विवेकानंद का विचार : कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो यह कहना कि तुम निर्बल हों।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : कभी मत सोचिए कि सत्ता के लिए कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना ही सबसे बड़ी ‘अराजनीति’ है। अगर कोई पाप है तो यह कहना कि तुम बाहुबलि नहीं हों।
स्वामी विवेकानंद का विचार : बस वही जीते हैं ,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : बस वही राजनीति कर पाते हैं, जो अपने लिए राजनीति करते हैं।
विवेकानंद का विचार : यह जीवन अल्पकालीन है। संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे ही वास्तव में जीते हैं।
नेताओं ने ऐसे किया यूज : यह सत्ता अल्पकालीन है। कुर्सी की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो नेता अपने भाई-बंधुओं के लिए काम करते हैं, वे ही वास्तव में राजनीति करते हैं।
(Disclaimer : यहां स्वामी विवेकानंदजी की किसी भी तरह से अवज्ञा नहीं की जा रही। मकसद केवल आज की राजनीति पर कटाक्ष करना है।)
मंगलवार, 5 जनवरी 2021
Satire & Humour Video : राहुल 51 साल की उम्र में 'शिशु नेता' से बन जाएंगे यंग लीडर! कोरोना कर लेगा सुसाइड
नया साल (New Year) कई तरह की उम्मीदें लेकर आता है। लकिन क्या आम आदमी भी नए साल से कुछ उम्मीदें रख सकता है? नए साल 2021 में हम क्या उम्मीदें रख सकते हैं, देखिए इस satire Video में ...
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सोमवार, 21 दिसंबर 2020
Satire 1 Minute Video : सर्दी के मौसम में देश के काम आएंगे ये बड़े-बड़े नेता...जानिए कैसे?
By A. Jayjeet
पुणे। देश में शीतलहर के बढ़ते प्रकाेप का सामना करने के लिए मौसम विभाग ने प्रभावित इलाकों में ओवेसी और गिरिराज सिंह की CDs बंटवाने का फैसला किया है।
मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया- “ये दोनों जहां भी मुंह फाड़ते हैं, उस पूरे क्षेत्र में माहौल गर्म हो जाता है। इसी के मद्देनजर हमने इनकी CDs खरीदने का फैसला किया है। हम इन CDs को शीतलहर से प्रभावित इलाकों में घर-घर बंटवा देंगे। हमारे आकलन के अनुसार ये CDs भी वही काम करेंगी, जो एक हीटर करता है।”
उन्होंने बताया कि जहां ठंड से ज्यादा ही नुकसान होने की खबर मिलेगी, वहां हम इनके वीडियो भाषण दिखाएंगे। इसके लिए विभाग ने थोक में DVDs भी खरीदने के आदेश दे दिए हैं।
ओवेसी और गिरिराज सिंह ने स्वागत किया :
मौसम विभाग की इस अनूठी पहल का ओवेसी और गिरिराज सिंह ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि इस सामाजिक-राष्ट्रीय कार्य में योगदान देकर वे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इन दोनों ने मौसम विभाग से यह भी कहा है कि अगर ज्यादा ही गर्मी की आवश्यकता हो तो वे राष्ट्रहित में प्रत्यक्ष भाषण देने के लिए भी हरदम तैयार रहेंगे।
गर्मी से बचाव के लिए मनमोहन सिंह के पोस्टर छपवाए जाएंगे :
इस बीच, मौसम विभाग ने अगले साल भारी गर्मी की आशंका को देखते हुए इससे निपटने की तैयारियां अभी से शुरू कर दी है। इसके तहत मनमोहन सिंह के लाखों पोस्टर छपवाए जा रहे हैं। गर्मी के दिनों में लू-लपट वाले इलाकों में ये पोस्टर चिपकवाकर थोड़ी ठंडक पहुंचाई जाएगी।
विभाग के एक अधिकारी के अनुसार पहले मनमोहन सिंहजी के बयानों की भी CDs खरीदने का विचार था, लेकिन इस आधार पर इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया कि जब कुछ सुनाई ही नहीं देगा तो फिर सीडीज पर धनराशि बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है।
संबंधित वीडियो देखने के लिए क्लिक करें यहां
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ राजनीतिक कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं। )
सोमवार, 30 नवंबर 2020
Hindi Satire : नए साल में एक माह का समय बाकी, जानिए लोग क्यों खा रहे हैं बादाम?
मेरा रिजाेल्यूशन : अगले साल से मैं रोज बादाम खाऊंगा, ताकि अपना रिजाेल्यूशन याद रहे। |
Humour Desk, दिल्ली/भोपाल। अब जबकि नए साल को आने में एक माह से भी कम का वक्त बचा है, लोगों ने पिछली बार लिए अपने-अपने रिजोल्यूशन्स की तलाश तेज कर दी है। कई लोग तो रोज मुट्ठी भर-भरके बादाम खा रहे हैं ताकि उन्हें यह याद आ सके कि साल 2020 की शुरुआत में उन्होंने क्या रिजोल्यूशन लिया था।
इस संबंध में हमारी टीम ने कुछ लागों से बात की। भोपाल के युवक राजेश सा रा रा रा ने इस बारे में पूछने पर बताया, “सर, था तो बहुत अच्छा, एकदम यूनिक-सा, पर अभी याद नहीं आ रहा। लेकिन इस बार मैं अपने फोन में सेव कर लूंगा ताकि अगले साल कोई पूछे तो बता तो सकूं।”
इसी तरह एक कॉलेज कन्या ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मैंने वजन कम करने का रिजोल्यूशन लिया था। पर एक्चुअली हुआ क्या कि फ्रेंड लोग कहने लगे कि इत्ता अच्छा रिजोल्यूशन लिया है तो एक पार्टी तो बनती है। ऑब्वयसली, पार्टी तो बनती थी। तो फिर मैंने दो दिन बाद उसे OLX पर बेच दिया। जो पैसे मिले, उससे ही शानदार पिज्जा पार्टी थ्रो कर दी।’ फिर आनन-फानन में समोसा मुंह में भरते हुए उसने कहा, “इस बार मैं कुछ ऐसा डिफरंट टाइप का रिजोल्यूशन लूंगी कि लोग देखते रह जाएंगे, देखना, रियली!”
क्यों भूल जाते हैं रिजोल्यूशन?
इस बारे में साइकोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश शर्मा का कहना है कि नए साल पर 99 फीसदी लोग रिजोल्यूशन लेते ही लेते हैं। इसमें कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करते। हां, लेकिन इनमें से केवल एक फीसदी ही लोग ऐसे होते हैं जो ईमानदारी के साथ कन्फेस करते हैं कि वे इस साल भी अपना रिजोल्यूशन पूरा नहीं कर पाए। ऐसे लोग फिर उसे अगले साल के लिए कैरी फारवर्ड कर देते हैं। बाकी के बचे 99 फीसदी को तो याद ही नहीं रहता कि उन्होंने रिजोल्यूशन क्या लिया था।
इसलिए डॉ. सुरेश ने लोगों को सलाह दी कि रिजोल्यूशन लेना ही काफी नहीं है। उसे डायरी में लिखकर रखना ज्यादा जरूरी है, ताकि हमें 364 दिन बाद फिर नए रिजोल्यूशन को ढूंढने की मगजमारी नहीं करनी पड़े। उन्होंने कहा, “मैं ऐसा ही करता हूं। अभी डायरी देखकर बता सकता हूं कि मैंने इस साल क्या रिजोल्यूशन लिया था।’
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और सिस्टम पर कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं।)
Hindi Satire : 500 रन नहीं बनने पर ICC ने जताई चिंता, गेंदबाजों की चालाकी खत्म करने मशीनों से होंगी बॉलिंग
Humour Desk. मेलबर्न। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने अब तक किसी भी ODI की एक पारी में 500 रन नहीं बनने पर चिंता जताई है। इसने गेंदबाजों की चालाकी और धूर्तता को खत्म करने के लिए अब मशीनों से बॉलिंग करवाने का निर्णय लिया है। यह निर्णय रविवार को सिडनी में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों के शर्मनाक प्रदर्शन की वजह से लिया गया है। इस मैच में दोनों टीमों के बल्लेबाज मिलकर 100 ओवर में महज 727 रन ही बना पाए।
ICC के एक सूत्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “इतने सारे नियमों में बदलाव करने और सपाट पिचें बनाने के बावजूद टीमें एक पारी में 500 रन भी नहीं बना पा रहीं। यहां तक कि सिडनी की सपाट पिचों पर भी बल्लेबाज फेल हो रहे हैं। यह बेहद अफसोसजनक हैं और बल्लेबाजों के निकम्मेपन को दर्शाता है।”
ICC के इस सूत्र ने कहा, “क्रिकेट में रोमांच बना रहे, इसके लिए गेंदबाजों की धूर्तता और चालाकी को खत्म करने का वक्त आ गया है। अब भी देखा गया है कि कई बार कोई-कोई गेंदबाज नैतिकता को ताक पर रखकर ऐसी बॉल फेंक देता है कि बेचारा बल्लेबाज मात खा जाता है। इस विसंगति को दूर करने के लिए अब हम तकनीक का सहारा लेने जा रहे हैं। इसके लिए अब आगे से हर वन डे मैच में गेंदबाजी केवल बॉलिंग मशीनों से होंगी। मशीनों में ऐसी सेटिंग की जाएगी कि न तो बॉल स्विंग हो और न ही स्पिन। सीधी-सपाट बॉल आएगी तो बल्लेबाजों को खेलने में आसानी होगी।”
यह पूछे जाने पर कि ऐसा करना क्या गेंदबाजों के साथ अन्याय नहीं होगा? उन्होंने प्रश्नकर्ता की नादानी पर हंसते हुए कहा, “जब किसी भी टीम में गेंदबाज ही नहीं होंगे ताे उनके साथ अन्याय कहां से होगा!”
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है।)
रविवार, 29 नवंबर 2020
Humour & Satire : वैक्सीन से नहीं, किसी और चीज से होगा कोरोना का इलाज !
Humour Desk. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना की वैक्सीन के विकास की जानकारी हासिल करने के मकसद से तीन लैब्स का दौरा किया, लेकिन वहां वे यह जानकर दंग रह गए कि वैक्सीन तो नहीं बन रही, बल्कि बगैर वैक्सीन के ही कोरोना को ठिकाने लगाने की तैयारी की जा रही है...कैसे, जानने के लिए देखें यह फनी वीडियो।
(Disclaimer : This video is work of fiction and fun. Viewers are advised not to confuse about the content in the video as being true.)
रविवार, 22 नवंबर 2020
Satire : गायों के हित में मप्र की गो-कैबिनेट का बड़ा फैसला, पॉलिथीन पर से बैन हटेगा
मजा आ गया! पॉलिथीन पर से बैन हटने के बाद...! |
मप्र की गोभक्त सरकार ने 24 मई 2017 को पॉलिथीन पर बैन (Polythene ban) लगाने के संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी किया था। सरकार ने इसके लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गायों को बचाने की दलील दी थी। नोटिफिकेशन जारी होते ही लोगों ने इसका मतलब यह निकाल लिया कि अब प्रदेश में न तो पॉलिथीन बनेगी और न ही बिकेगी। कई भोले दुकानदारों ने दुकानों पर नोटिस भी चिपका दिए थे कि – “सरकार ने पॉलिथीन पर बैन लगा दिया है। कृपया मांगकर शर्मिंदा न करें।” आम लोगों ने पतले कपड़े की बनी पॉलिथीन के लिए सहर्ष तीन से लेकर पांच रुपए तक खर्च करने भी शुरू कर दिए। कई लोग घर से ही थैले लेकर जाने लगे।
फिर मरने लगी गायें…
मप्र सरकार का यह फैसला भी नोटबंदी की तरह उलटा साबित हो गया। राज्य सरकार को मिली एक गोपनीय रिपोर्ट के अनुसार पॉलिथीन बैन होते ही सड़कों पर से ये गायब होने लगी। चूंकि मप्र की सड़कों पर विचरने वाली गायें सालों से पॉलिथीन खाकर ही अपना पेट भर रही थीं। ऐसे में पॉलिथीन की आदी ये गायें भूखी मरने लगी। कई सड़कों पर गायों के मरने की खबरें भी आईं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गो कैबिनेट की पहली ही बैठक में सरकार ने पॉलिथीन बैन पर आंशिक छूट दे दी।
कौन कर सकेगा यूज, कौन नहीं?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पॉलिथीन पर बैन से छूट किसे दी जाएगी, लेकिन गोधन सेवा से जुड़े वरिष्ठ अफसरों के अनुसार गायों के हित में कोई भी हिंदू नागरिक पॉलिथीन में सामान लाकर उसे कहीं भी फेंक सकेगा। मुस्लिम और ऐसे ही उन समाजों के लिए यह प्रतिबंध जारी रहेगा जो गोधन को मां नहीं मानते हैं।
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं। )
शनिवार, 21 नवंबर 2020
Satire : बीवियों ने NGT से कहा, फटकार लगाना बंद करें, पहले हमसे ट्रेनिंग तो ले लीजिए…
Humour Desk, नई दिल्ली। पराली जलाने पर उप्र सरकार और अब खुले में कचरा जलाने पर दिल्ली सरकार व आरओ वॉटर सिस्टम पर पर्यावरण मंत्रालय को NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ताजा फटकारों से बीवियों का धैर्य चूक गया है। उन्होंने कहा है कि बात-बेबात में NGT को सरकारों को फटकार लगाना बंद कर देना चाहिए। यह केवल बीवियों का अधिकार है। बात-बात में ऐसी फटकार लगाने का कोई मतलब भी नहीं है जिसे कोई सुनता तक नहीं। इससे तो फटकार की तौहीन ही हो रही है।
अखिल भारतीय बीवी कमेटी की प्रवक्ता श्रीमती अलंकार मुंहपेमारेगी ने यहां गुरुवार सुबह एक प्रेस कांफ्रेंस में नाराजगी जताते हुए कहा, “NGT के जज तो सरकारों को आए दिन ऐसे फटकारते हैं जैसे वे उनके निजी पति हो। पूरी दुनियाभर में फटकारने का अधिकार केवल और केवल बीवियों को है, चाहे वह आम आदमी हो या अमेरिका का राष्ट्रपति ही क्यों न हो। यह बातें जजेस को न पता हो, आश्चर्य है, जबकि उनमें से कई जज स्वयं पति भी हैं।”
फटकार लगानी ही हो तो हमसे सीखें …
यह पूछे जाने पर कि अगर उनकी धमकी के बावजूद NGT के जज (और अन्य अदालतों के भी जज) फटकार लगाने पर अड़े रहते हैं तो वे क्या करेंगी? इस पर श्रीमती मुंहपेमारेगी ने अपने स्वर को नीचे करते हुए कहा, तब हम रोंकेंगी नहीं। हम जजों की अवमानना करना नहीं चाहतीं। लेकिन हमारा उनसे यही विनम्र आग्रह रहेगा कि अगर फटकार लगानी ही है तो जरा तमीज से लगाएं। अगर फटकार लगाए और कोई सुने भी नहीं, तो इससे तो फटकार का ही अपमान होगा। अगर नहीं आता तो हमसे ट्रेनिंग ले लें। ट्रेनिंग के बाद मजाल है कि कोई सरकार उनको सुनने से मना कर दें। एक ही फटकार में सरकारें उल्टे पैर आएंगी और मिमियाते हुए कहेंगी – जी जी, सॉरी, सॉरी, मैं कर रहा हूं ना…।
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मंगलवार, 10 नवंबर 2020
Satire : कांग्रेस ने निर्वाचन आयोग से की ‘कांग्रेस आरक्षित सीटों’ की मांग
निवार्चन आयोग के दफ्तर जाते राहुल गांधी। |
नई दिल्ली। कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनावों में हुई हार से बड़ा सबक लेते हुए आने वाले तमाम चुनावों में अपने लिए सीटें आरक्षित करने की मांग की है। इस संबंध में मंगलवार रात को ही पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मिलकर अपना मांग-पत्र सौंपा।
बिहार विधानसभा चुनावों में बमुश्किल डेढ़ दर्जन सीटें जीतने के बाद यहां मंगलवार की रात को कांग्रेस कोर कमेटी की एक आपातकालीन बैठक हुई। बैठक में कई वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि अगर लोकसभा चुनाव सहित सभी राज्यों की विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस पार्टी के लिए कुछ सीटें आरक्षित कर दी जाएं तो इससे भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक विरासत को बचाना संभव हो सकेगा। अगर निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की यह मांग मान ली तो जिस तरह एससी/एसटी सीटों पर केवल इन्हीं वर्गों के लोग चुनाव लड़ सकते हैं, उसी तरह कांग्रेस आरक्षित सीटों पर भी कांग्रेसियों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति होगी।
पार्टी को उम्मीद है कि अगले साल बंगाल विधानसभा चुनावों से यह नई व्यवस्था लागू हो जाएगी। सूत्र ने बताया कि अगर निर्वाचन आयोग इस संबंध में कोई फैसला नहीं लेता है तो कांग्रेस व्यापक जनांदोलन छेड़ देगी।
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मंगलवार, 3 नवंबर 2020
अंतिम उपाय के तौर पर सरकार ने चला ‘प्याज के आधार’ पर आरक्षण का दांव
नई दिल्ली। प्याज के लगातार बढ़ते दामों को रोकने के लिए सरकार ने अंतत: अंतिम उपाय के तौर पर ‘प्याज के आधार पर आरक्षण’ का दांव चल दिया है। उसने घोषणा की है कि प्याज न खाने वाले देश के तमाम वर्गों को नौकरियों में आरक्षण मुहैया करवाया जाएगा। इस घोषणा के बाद प्याज के दामों में गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में सोमवार की रात को आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में यह योजना बनाई गई। इसमें तय किया गया कि जो भी परिवार यह हलफनामा देगा कि वह भविष्य में न तो अपने घर में प्याज खाएगा और न ही ढाबे या होटल में प्याज मांगकर ढाबे/होटल वालों को शर्मिंदा करेगा, वह ‘प्याज आधार’पर आरक्षण का पात्र समझा जाएगा। इस प्रावधान को लागू करने के लिए सरकार कल ही अध्यादेश ला सकती है।
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। )
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रविवार, 5 जुलाई 2020
शिक्षा विभाग का गुरु वशिष्ठ को नोटिस- हासिल करो बी-एड डिग्री अन्यथा .....
By Jayjeet
नई दिल्ली/देवलोक। सरकार ने गुरु वशिष्ठ, गुरु द्रोणाचार्य और ऋषि सांदीपनी को एक नोटिस जारी कर अगले दो साल के भीतर बी-एड (या समकक्ष डिग्री) करने को कहा है। नोटिस में कहा गया है कि बी-एड न करने की दशा में पाठ्यपुस्तकों में से आप तीनों के नाम विलोपित कर दिए जाएंगे।
इस नोटिस की एक काॅपी hindisatire ने हासिल की है। इस नोटिस में कहा गया है कि देश में शिक्षा का अधिकार कानून को लागू हुए 10 साल बीत चुके हैं। इस कानून में क्वालिटी एजुकेशन के वास्ते शिक्षकों के लिए बी-एड (या समकक्ष डिग्री) लेना अनिवार्य कर दिया गया है। नोटिस में लिखा गया, “बहुत ही खेद के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि आपको इतने मौके दिए जाने के बाद भी आप अब तक शिक्षण-प्रशिक्षण में कोई औपचारिक डिग्री हासिल नहीं कर सके। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी क्वालिटी एजुकेशन में कोई आस्था नहीं है। फिर भी आपकी पूर्व प्रतिष्ठा के मद्देनजर सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 4 (बी) के प्रावधान को शिथिल कर आपको एक और मौका देने का फैसला किया है। आप तीनों को अप्रैल 2022 तक डिग्री हासिल करनी होगी। ऐसा न किए जाने पर आपके गुरु के दर्जे को खत्म कर दिया जाएगा। तदनुसार समस्त पाठ्यपुस्तको में से आपको विलोपित कर दिया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी आपकी होगी।”
फालोअप स्टोरी 1
नई दिल्ली/देवलोक। शिक्षा विभाग द्वारा अगले दो साल के भीतर बी-एड या समकक्ष डिग्री अनिवार्य रूप से हासिल करने की सूचना मिलते ही ऋषि वशिष्ठ सक्रिय हो गए। उन्होंने तत्काल शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर बी-एड डिग्री हासिल करने में असमर्थता जताई थी। सूत्रों के अनुसार केंद्र में अनुकूल सरकार होने के कारण वशिष्ठ को बी-एड या समकक्ष डिग्री हासिल करने की अनिवार्यता से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन उन्हें इस संबंध में ऐसा प्रमाण-पत्र पेश करने को कहा गया है जिसमें स्वयं राम इस बात की पुष्टि करते हो कि गुरु वशिष्ठ ने उन्हें क्वालिटी एजुकेशन मुहैया करवाया था। इस प्रमाण-पत्र की तीन सत्यापित प्रतियां पेश करने को कहा गया है। प्रमाण-पत्र सत्यापन नियम- 22 की कंडिका 2 (ए) की उपकंडिका 4 (बी) के तदनुसार सत्यापन संबंधित जिले के कलेक्टर द्वारा अथवा कलेक्टर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा ही जारी किया जाना चाहिए। इस प्रमाण पत्र के संदर्भ क्रमांक, जारी करने की तिथि व कार्यालय की सील तथा जारी करने वाले अधिकारी के नाम व पद का स्पष्ट उल्लेख होना आवश्यक है।
फालोअप स्टोरी 2 (लाइव रिपोर्ट)
फैजाबाद (उप्र)। शिक्षा विभाग द्वारा बी-एड या समकक्ष डिग्री की अनिवार्यता से मुक्ति के बाद ऋषि वशिष्ठ अपने शिष्य राम द्वारा प्रस्तुत प्रमाण-पत्र के सत्यापन के लिए फैजाबाद कलेक्टोरेट पहुंचे (अयोध्या का जिला मुख्यालय फैजाबाद है।)
ऋषि वशिष्ठ (एक बाबू से) : भैया, ये राम का प्रमाण-पत्र है। इसे सत्यापित करवाना है।
बाबू : क्या लिखा है।
ऋषि वशिष्ठ : यही कि मैंने उन्हें पढ़ाया, इसे सत्यापित करवाना है एडीएम साहेब से।
बाबू (अपने साथी कर्मचारी से) : देखो, कैसे-कैसे लोग आ जाते हैं। (फिर ऋषि वशिष्ठ से) : राम को साथ लाए क्या?
ऋषि वशिष्ठ : अरे वो कैसे आ सकते हैं? उन पर तो पूरे संसार का भार है। उसे छोड़कर यहां आना तो संभव नहीं है।
बाबू : बाबा, एडीएम साहेब ऐसे तो सत्यापित करेंगे नहीं। नियमानुसार फिजिकल प्रजेंटेशन होना जरूरी है।
ऋषि वशिष्ठ : और कोई रास्ता?
बाबू : पीछे बड़े बाबू बैठे हैं, उनसे मिल लो।
ऋषि वशिष्ठ बड़े बाबू के पास पहुंचे। अपनी पूरी कहानी सुनाई।
बड़े बाबू (कुछ सोचते हुए) : चलो, आप बुजुर्ग हैं और आपकी कहानी पर भरोसा भी कर लेते हैं, लेकिन हमें तो नियम से चलना होगा ना। राम का कोई प्रूफ तो चाहिए ना। कोई आईडी प्रूफ है क्या?
ऋषि वशिष्ठ : ये क्या होता है?
बड़े बाबू : यही कोई आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड। ड्राइविंग लाइसेंस तो होगा ही?
ऋषि वशिष्ठ : इसमें से कुछ नहीं है।
बड़े बाबू : कमाल है! अच्छा, एक काम करो, बाहर बबलू बैठा है, उससे मिल लो, काम हो जाएगा।
ऋषि वशिष्ठ : ये बबलू कौन है? कहां मिलेगा?
बड़े बाबू : कोई भी बता देगा, पूछ लो। अब मेरा टाइम वेस्ट मत करो, जाओ।
फालोअप स्टोरी 3
फैजाबाद का सबसे फेमस दलाल है बबलू। बाबू से लेकर बड़े बाबू और तमाम अफसराें से बड़े मधुर संबंध हैं।
ऋषि वशिष्ठ : बबलू भैया, हमें राम का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है।
बबलू : कहां है राम?
ऋषि वशिष्ठ : वो नहीं है, तभी तो आपके पास भेजा गया है।
बबलू : वो हाेता तो भी मेरे पास ही आना पड़ता। अब नहीं है तो इसके एक्स्ट्रा लगेंगे।
ऋषि वशिष्ठ : क्या एक्स्ट्रा?
बबलू (गुस्से में): अरे बाबा, पैसा और क्या?
ऋषि वशिष्ठ : क्या? सरकारी काम के भी यहां पैसे लगते हैं?
बबलू (हंसते हुए) : अरे बाबा, क्या दूसरी दुनिया से आए हों? यहां हर चीज के पैसे लगते हैं।
ऋषि वशिष्ठ : ठीक है, पर काम तो हो जाएगा ना!! मेरे पास कोई और दस्तावेज-वस्तावेज नहीं है।
बबलू : पैसा तो है ना, हो जाएगा।
फालोअप स्टोरी 4
नई दिल्ली/देवलोक। गुरु वशिष्ठ द्वारा वांछित दस्तावेज पेश करने के बाद शिक्षा विभाग ने यह मान लिया है कि वे उतने ही समर्थ शिक्षक हैं, जितने कि बीएड या समकक्ष डिग्री धारक होते हैं। इसलिए अब पाठ्यपुस्तकों से उनका नाम विलोपित करने की जरूरत नहीं है। इस संबंध में जल्दी ही अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इस बीच, शिक्षा विभाग ने गुरु द्रोणाचार्य और ऋषि सांदीपनी को रिमाइंडर भेजकर दो सप्ताह के भीतर संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने को कहा है।
(खबरी व्यंग्य पढ़ने के लिए आप हिंदी खबरी व्यंग्यों पर भारत की पहली वेबसाइट http://www.hindisatire.com पर क्लिक कर सकते हैं।)
गुरुवार, 2 जुलाई 2020
जमीन का जवाब जमीन से : सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा को चीन में दिया फ्रीहैंड
चीन जाने की तैयारी करते हुए रॉबर्ट वाड्रा। |
By Jayjeet
हिंदी सटायर/ग्लोबल टाइम्स। मोदी सरकार ने ‘जमीन का जवाब जमीन से’ देने की योजना के तहत रॉबर्ट वाड्रा को चीन में फ्रीहैंड देने का निर्णय लिया है। भारत के इस फैसले से चीन के सत्ता के गलियारों में भारी खलबली मच गई है। प्रमुख चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार इससे भयभीत चीन ने प्रस्ताव दिया है कि अगर भारत वाड्रा को हमारी सीमाओ से दूर रखे वह पूरा अक्साई चीन भारत को लौटाने को तैयार है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार विदेश मंत्रालय ने अपने एक सीक्रेट कम्युनिकेशन में चीन को धमकाया था कि अगर वह जमीन हड़पने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो राबर्ट वाड्रा को चीन भिजवाकर वहां उन्हें फ्रीहैंड दे दिया जाएगा। इस धमकी से भयभीत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आनन-फानन में अपने वरिष्ठ लीडर्स और सेना के आला अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय मीटिंग की। इस मीटिंग में सहमति बनी कि अक्साई चीन की कुछ हजार वर्ग किमी जमीन के चक्कर में पूरे चीन को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। चीनी सूत्रों के अनुसार चीन ने प्रस्ताव रखा है कि हम भारत को उसके कब्जे वाला पूरा क्षेत्र लौटा देंगे और फिर आइंदा उसकी तरफ तिरछी नजर से भी ना देखेंगे। बस भारत को वाड्रा को चीन की सीमा से एक हजार किमी दूर रखना होगा।
अब चीन को समझ में आएंगे दामादजी के असली मायने :
सरकार के इस निर्णय का वाड्रा ने भी स्वागत किया है। उन्होंने ट्विट करते हुए कहा- “मेरे लिए इससे बड़े गर्व की बात और क्या होगी कि मैं देश के काम आ सकूं। अब चीन को पता चलेगा कि दामादजी का असली मतलब क्या होता है।”
(Disclaimer : यह खबर शुद्ध कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और राजनीतिक कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं।)
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Satire & Humour : जब बाबा रामदेव को नोबेल पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया! क्यों और कैसे? एक सच्ची कहानी!
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। पतंजलि द्वारा कोराना की दवा ‘कोरोनिल’ बनाने के दावे के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें नोबेल पुरस्कार देने की वकालत कर रहे हैं, कुछ मजाक में तो कुछ सच्ची में। हिंदी सटायर को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार बाबा रामदेव तो पिछली बार ही इस अवार्ड के लिए प्रबल दावेदार थे। लेकिन उन्हें अवार्ड मिलते-मिलते रह गया। दरअसल, इसका खुलासा तब हुआ, जब हमारा उत्साही रिपोर्टर इस संबंध में बात करने के लिए नोबेल कमेटी के पास पहुंच गया। वहां बैठे एक सूत्र से बात की तो उसने तफ्सील से पूरी जानकारी दी।
रिपोर्टर : बाबाजी ने कोरोना की दवा ‘कोरोनिल’ बना ली है। अब तो चिकित्सा का नोबेल उन्हें मिल ही जाना चाहिए।
नोबेल कमेटी का सूत्र : अरे आपको नहीं मालूम, नोबेल तो उन्हें पिछले साल ही मिल जाता, पर एक लोचा हो लिया।
रिपोर्टर : ऐसा कौन-सा लोचा हो लिया?
सूत्र : अब क्या बताएं। बाबा रामदेव जी ने खुद को चार-चार कैटेगरी में नॉमिनेट करवा लिया था।
रिपोर्टर : अरे, कैसे? और ये चार कौन-सी कैटेगरी हैं?
सूत्र : एक, चिकित्सा के लिए।
रिपोर्टर : हां, इसमें तो बहुत टॉप का काम कर रहे हैं अपने बाबाजह। इसमें तो मिलना ही था। पर दूसरी कैटेगरी में और कहां टांग घुसा ली इन्होंने?
सूत्र : यही तो प्रॉब्लम हो गई। उन्हें मुगालता हो गया कि 5 रुपए से कारोबार को बढ़ाकर 5 हजार करोड़ का कर लिया तो इकोनॉमी के लिए अवार्ड मिलना चाहिए।
रिपोर्टर : अच्छा! इसके अलावा?
सूत्र : आपको याद होगा कि बाबाजी ने एक बार ‘ओम शांति ओम’ शो में भी काम किया था। तो उन्होंने पीस के लिए भी अप्लाई कर दिया। इतना ही नहीं, किसी ने बाबा को कह दिया कि आप तो केमिस्ट्री में भी माहिर हैं- योग एंड पॉलिटिक्स की केमिस्ट्री। बस, बाबाजी ने यहां भी टांग घुसेड़ दी।
रिपोर्टर : तो इससे क्या हो गया?
सूत्र : चार-चार नॉमिनेशन से कमेटी वाले चकरा गए। कुछ लोग उन्हें चारों में अवार्ड देने की बात करने लगे कुछ उनका विरोध। बस, कमेटी में इतना कन्फ्यूजन पैदा हो गया कि बाबाजी को नोबेल अवार्ड आगे के लिए टाल दिया गया।
(Disclaimer : यह केवल काल्पनिक इंटरव्यू है। केवल हास्य-व्यंग्य के लिए लिखा गया है। कृपया समर्थक और विरोधी दोनों टेंशन ना लें… )
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रविवार, 21 जून 2020
इस पति ने लिखकर दिया है कि वह भविष्य में सपने में भी ‘बायकॉट’ शब्द का नाम तक न लेगा, क्यों? पढ़ें यहां…
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। हमेशा भावनाओं में बहना अच्छी बात नहीं है। ग्राउंड रिएलिटीज देखना भी जरूरी है। लेकिन यहां के एक पति ने इसका ध्यान नहीं रखा और बायकॉट की राजनीति का शिकार हो गया।
यह घटना भोपाल के रानीगंज क्षेत्र में रविवार की सुबह घटित हुई। पति के एक जलकुकड़े पड़ोसी सूत्र की मानें तो इस क्षेत्र के एक मध्यमवर्गीय घर में रहने वाले एक मासूम पति ने टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही ‘बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट्स’ की रौ में बहकर खुलेआम धमकी भरे अंदाज में बायकॉट्स की एक भरी-पूरी सूची अपनी पत्नी को थमा दी। इस सूची में पति ने बाकायदा तीन चीजों का बायकॉट करने की धमकी दी थी – बायकॉट चाय मेकिंग, बायकॉट लौकी एंड बायकॉट कपड़े सूखाना।
उस जलकुकड़े सूत्र (जो एक अन्य महिला का पति ही है) ने बड़े ही शान से बताया , “उसकी पत्नी ने वह सूची ली। उस पर तिरछी नजर डाली और फिर फाड़ दी। उसके बाद, अहा, कसम से, मजा आ गया। पूछो ही मत …।”
फिर क्या हुआ? इसके जवाब में जलकुकड़े सूत्र ने कहा- “मैंने खिड़की से हटने में ही भलाई समझी। ज्यादा देर तक तमाशा देखने में रिस्क था। पकड़ा जाता तो! मेरी भी पत्नी है घर में! आपका क्या!!”
उस जलकुकड़े ने दावा किया कि उस पति ने बाकायदा यह भी लिखकर दिया है कि वह भविष्य में बायकॉट शब्द के बारे में सपने में भी नहीं सोचेगा। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। इस बीच, उस पति की इस ओछी हरकत की अन्य सभी पतियों ने अपनी-अपनी पत्नियों के समक्ष कड़े शब्दों में निंदा की है।
गौरतलब है कि यह पति पहले भी ‘बायकॉट चीनी प्रोडक्ट्स’ जैसे कैम्पेन के दौरान आज जैसे हल्के-फुल्के समाज विरोधी कृत्यों में शामिल रहा था। लेकिन तब लोगों ने उसका बचपना समझकर उसे इग्नोर कर दिया था। लेकिन क्या पता था कि यह आदमी भविष्य में इतना बड़ा समाज विरोधी कदम उठा लेगा।
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। कोई भी पति इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकता।)
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बुधवार, 17 जून 2020
Satire : सरकार का बड़ा फैसला, फसलें खराब न होने पर अफसरों को मिलेगा मुआवजा!
हिंदी सटायर डेस्क, भोपाल। मानसून की दस्तक के साथ ही मप्र सरकार ने ‘अफसर मुआवजा कोष’ बनाने का ऐलान कर दिया है। फसलें खराब न होने की स्थिति में इस कोष से संबंधित अफसरों को मुआवजा दिया जाएगा।
सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “फसलें खराब होना या न होना प्रभु के हाथ में है। इस पर हमारा कोई बस नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि फसलें खराब न होने की स्थिति में हमारे सरकारी अफसर किसानों की तरह सुसाइड करने को मजबूर हो जाएं। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि अगर फसलें बर्बाद नहीं होती हैं तो अफसर मुआवजा कोष से अफसरों को उतनी राशि मुआवजे में दी जाएगी, जितनी कि मुआवजा वितरण के दौरान वे खुद ही स्व-प्रेरणा से ले लेते हैं।”
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Satire : टाइम मिस-मैनेजमेंट!
एक बंदा एग्जाम की तैयारी करता प्रतीत हो रहा था। छह महीने तक करता रहा। पर रिजल्ट आया जीरो बंटे सन्नाटा।
मैं – छह माह तक क्या किया? पास क्यों न हो सके?
वह – जी, एग्जाम की तैयारी ना कर सका।
मैं – क्यों?
वह – टाइम ही ना मिल सका।
मैं – टाइम क्यों ना मिला?
वह – सारा टाइम तो टाइम मैनेजमेंट कैसे करें, इसकी किताबें पढ़ने और वीडियो देखने में ही चला गया।
मैं – ओहो। तो अब आगे क्या प्लानिंग है?
वह – फेल होने पर हम खुद को मोटिवेट कैसे करें, इस पर जरा स्टडी कर रहा हूं। इसके बाद कुछ प्लानिंग ..
मॉरल ऑफ द स्टोरी उर्फ ज्ञान… : हमारे यहां मोटिवेशनल गुरु अगर इतने कूद-कूदकर सफल हुए जा रहे हैं तो इसमें उन बेचारों को दोष मत दीजिए।
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शुक्रवार, 5 जून 2020
बारिश में अधिक से अधिक भीगे अनाज, सरकारी महकमे ने की पूरी तैयारी
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। मानसून की आहट सुनते ही मप्र सरकार ने मंडियों में रखी उपज के भीगने के पूरे इंतजाम कर लिए हैं। सरकार ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल 20 फीसदी अनाज अधिक भीगना चाहिए। ऐसा न होने पर उनके खिलाफ कड़ी विभागीय कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। इस बीच, कई इलाकों में निसर्ग तूफान के असर के कारण हुई पहली ही बारिश में मंडी प्रांगण में रखे अनाज के भीगने से सरकारी खेमे में उल्लास की लहर है।
मप्र में कई इलाकों में जून के पहले पखवाड़े में मानसून के पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इस संबंध में कृषि विभाग के एक सीनियर अफसर ने हिंदी सटायर से खास बातचीत में कहा, “हर बार की तरह इस बार भी हम अनाज को मानसूनी बारिश में भिगोने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। वैसे तो हमने इस तरह की चाक-चौबंद व्यवस्था कर रखी है कि खरीदा गया या किसानों द्वारा बेचने के लिए लाया गया अनाज बिल्कुल नैचुरली खुले में ही पड़ा रहे। फिर भी अगर कहीं गलती से अनाज को सुरक्षित रख दिया गया है तो उसे जल्दी ही मानसून दिखाने के लिए खुले में ले लाएंगे।”
उन्होंने कहा, “सारे संबंधित अफसरों को अधिक से अधिक अनाज और उपज को मानसूनी बारिश में भिगोने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद अगर किसी मंडी या सरकारी गोदाम में अनाज सुरक्षित पाया जाता है तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
20 फीसदी अधिक का टारगेट :
प्यून को पान-बहार लाने का निर्देश देने के बाद अधिकारी ने बताया कि अब सरकार भी प्राइवेट सेक्टर्स की तरह टारगेट बेस्ड काम करने लगी है। इस बार पूरे प्रदेश में अनाज के भीगने का लक्ष्य पिछली बार की तुलना में 20 फीसदी अधिक दिया गया है। उम्मीद है कि हम इसके आसपास रहेंगे।
यह पूछे जाने पर कि इतना प्रगतिशील राज्य होने के बावजूद मप्र अब तक 100 फीसदी लक्ष्य हासिल क्यों नहीं कर पाया? इस सवाल पर सीनियर अफसर ने धीरे से कहा, “प्रदेश में अब भी ऐसे कई भ्रष्ट अधिकारी हैं जो गोदाम में रखे अनाज को मानसून या चूहों से बचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सरकार ऐसे अफसरों पर नजर रखे हुए हैं। हम जल्दी ही ऐसे अफसरों को चिह्नित कर उन्हें उन विभागों में भेजने की कार्रवाई करेंगे जहां केवल मक्खी मारने का काम होगा। ये अफसर इसी तरह का काम करने के लायक हैं।”
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रविवार, 24 मई 2020
Interview : जब जनप्रिय रिपोर्टर को रोटी ने सुना दी खरी-खरी…
By Jayjeet
जैसे ही लॉकडाउन में थोड़ी राहत मिली, यह रिपोर्टर फिर निकल पड़ा अपने काम पर। काम मतलब उलटे सीधे इंटरव्यू के फेर में। इस समय आदमी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज क्या है? रोटी.. हां रोटी। इसी तलाश में लाखों लोग अपने गांव छोड़कर शहरों के नरक में गए थे और अब इसी के चक्कर में अपने गांव लौट रहे हैं। तो रिपोर्टर भी तलाशने लगा रोटी। कुछ दुकानों पर उसे डबलरोटी तो नजर आई, लेकिन रोटी नहीं। काफी देर तक इधर-उधर घूमने के बाद आखिर उसे इंटरव्यू के लिए रोटी नसीब हो ही गई। सड़क के किनारे पड़ी हुई थी, बिल्कुल सूखी हुई। शायद किसी दुर्भाग्यशाली लेकिन आत्मस्वाभिमानी गरीब के हाथों से गिर गई होगी और फिर उसने उसे उठाना उचित न समझा होगा।
‘नमस्कार रोटी जी। क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं?’ रिपोर्टर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बोला।
रोटी ने अपनी बंद आंख खोली, धूल साफ करते हुए अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई : जी, बोलिए।
मैं इस देश का जनप्रिय रिपोर्टर। बस आपका इंटरव्यू लेना था।
रोटी : क्या अब रिपोर्टर भी नेता हो क्या, जनप्रिय रिपोर्टर? खैर, पूछिए, पर जरा जल्दी पूछिएगा।
रिपोर्टर : सबसे पहले तो यही पूछना है कि आप गरीब की रोटी है या अमीर की?
रोटी: आपका पहला सवाल ही गलत है। रोटी तो रोटी होती है, न अमीर की न गरीब की। उसका तो एक ही काम होता है खाने वाले का पेट भरना। हां, गरीब की रोटी सूखी हो सकती है, लेकिन उसके लिए तो वही मालपुआ होती है ना!
रिपोर्टर : इन दिनों आप बड़ी डिमांड में है?
रोटी : यह भी गलत सवाल। मेरी डिमांड कब नहीं रहती? गरीबों की बस्तियों में तो मेरी हर समय मांग रहती है। लोग जीते भी मेरे लिए हैं और मरते भी मेरे लिए। देखा ना अभी, मेरे खातिर कितने लोग सैकड़ों किमी पैदल ही चल पड़े हैं।
रिपोर्टर : तो कहने का मतलब है गरीब के हाथ में आपको ज्यादा सम्मान मिलता है, अमीर के हाथ में कम?
रोटी : जब आपने अपनी तारीफ में कहा था कि आप जनप्रिय रिपोर्टर हैं, तभी मैं आपकी औकात समझ गई थी कि आप नेता जैसी तुच्छ हरकत तो करेंगे ही। नेताओं जैसी भेदभाव बढ़ाने वाली बात कर रहे हैं आप। हां, अमीर-गरीब के बीच भारी खाई है,लेकिन पेट की भूख तो अंतत: मुझसे ही मिटती है, भले ही अमीर की थाली में सौ पकवान ही क्यों न हों?
रिपोर्टर : जब आपको कोई खाता है तो कैसा लगता है?
रोटी : आप क्या पहले न्यूज एंकर भी रह चुके हैं जो ऐसे बेमतलब के सवाल पूछ रहे हैं? भाई, ईश्वर ने मुझे पैदा ही इसलिए पैदा किया है कि दूसरों की खुशी के लिए मैं खुद को मिटा दूं। ऐसा करके मैं अपने कर्त्तव्य का ही तो पालन करती हूं।
रिपोर्टर : अरे वाह, क्या नेक विचार हैं। अगर सभी इंसान भी आपकी तरह सोचने लगे तो शायद कोई भूखा न सोएं… अभी तो आपका यह विचार और भी प्रासंगिक हो गया है, सबका पेट भर सकता है।
रोटी : चलिए… अब दूर हट जाइए। बहुत देर से वह कुत्ता बड़ी लालसा के साथ अपनी जीभ लटकाए आपके हटने का इंतजार कर रहा है। अभी तो बेचारे जानवरों के सामने भी पेट भरने का संकट पैदा हो गया है। और हां, आपके सवाल बड़े कमजोर थे। अगली बार किसी से इंटरव्यू करने जाए तो तैयारी करके जाइएगा, जनप्रिय रिपोर्टर!!!
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